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राजनीति

कोरोना लॉकडाउन भूख से लड़ें या कोरोना से

25 मार्च को प्रधानमंत्री मोदी ने पूरे देश में अचानक लॉकडाउन का एलान कर दिया। कोरोना वायरस से देश का मध्यमवर्ग, पूँजीपति और मैनेजर, शासन–प्रशासन में बैठे तमाम पार्टियों के नेता और नौकरशाह (डीएम, एसपी, जज, तहसीलदार आदि)... आगे पढ़ें


कोरोना वायरस, सर्विलांस राज और राष्ट्रवादी अलगाव के खतरे

दुनिया भर के इनसानों के सामने एक बड़ा संकट है। हमारी पीढ़ी का शायद यह सबसे बड़ा संकट है। आने वाले कुछ दिनों और सप्ताहों में लोग और सरकारें जो फैसले करेंगी, उनके असर से दुनिया का हुलिया... आगे पढ़ें


तीसरी दुनिया : वायरस पर नियंत्रण के बहाने दुनिया को एबसर्ड थिएटर में बदलती सरकारें

(इस प्रहसन का पटाक्षेप कोरोना संकट की समाप्ति के साथ होगा। सरकार को पता है कि उसकी सारी नाकामयाबियों पर कोरोना भारी पड़ जायेगा। बेरोजगारी, महंगाई, जीडीपी में कमी सबका ठीकरा कोरोना के सिर फूटेगा।) लन्दन से प्रकाशित... आगे पढ़ें


भारत और कोरोना वायरस

हालाँकि कोरोना वायरस का प्रभाव यूरोप और संयुक्त राज्य अमरीका पर ज्यादा हुआ है, फिर भी भारत इस बीमारी का सबसे बड़ा शिकार होने का दावेदार है। लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने संकट का सामना करने... आगे पढ़ें


मुनाफा नहीं, इंसानियत ही दुनिया को बचा सकती है

अमरीका आर्थिक, तकनीकी और सामरिक मामले में दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश है। उसे धरती का स्वर्ग माना जाता है और वह ऐसा दावा भी करता है। लेकिन अब इस दावे की हवा निकलती दिख रही है। किसने... आगे पढ़ें


लॉकडाउन, मजदूर वर्ग की बढ़ती मुसीबत और एक नयी दुनिया की सम्भावना

कोरोना संकट पर देश–दुनिया में इतनी ज्यादा उथल–पुथल मची है और इस का असर इतना व्यापक है कि इसे एक लेख में समेटना लगभग नामुमकिन है। दुनिया के हर देश और हर इनसान के पास कोरोना को समझने... आगे पढ़ें


सामाजिक जनवाद की सनक

(अमरीका में सामाजिक जनवाद के बड़े चेहरे ‘बर्नी सैण्डर्स’ को अन्त में राष्ट्रपति के प्रत्याशी से खुद को हटा देना पड़ा। यह उन ताकतों के लिए जोरदार झटका है जो मौजूदा नवउदारवादी दौर में सामाजिक जनवाद का झण्डा... आगे पढ़ें


साहित्य

कोरोना महामारी के समय ‘वेनिस का सौदागर’ नाटक की एक तहकीकात

(16वीं सदी में विलियम शेक्सपियर ने वेनिस का सौदागर (द मर्चेंट ऑफ वेनिस) नाटक की रचना की थी। यह नाटक कितना लोकप्रिय हुआ, इसका अंदाजा लगाने के लिए इतना कहना ही काफी है कि दुनिया की कई भाषाओं... आगे पढ़ें


नजीर अकबराबादी : जनता और जमीन का शायर

जन्म 1735 – निधन 1830 नजीर अकबराबादी सिद्ध और सच्चे हिन्दुस्तानी कवि हैं। बिलकुल धूप की तरह उजले, मिट्टी की तरह गीले, पहाड़ की तरह ऊँचे, बरछी की तरह नुकीले और बहार की तरह रंगीले। उन्होंने आदमी और... आगे पढ़ें


कहानी

रफीक भाई को समझाइये

चला जाता हूँ हँसता–खेलता मौजे हवादिस से अगर आसानियाँ हो, जिन्दगी दुश्वार हो जाये भेल्लोर से लौटे हैं रफीक भाई। गये थे मामूजान की ओपन हार्ट सर्जरी करवाने अपनी जाँ से रोग लगा आए। ओपन हार्ट के सक्सेस... आगे पढ़ें


व्यंग्य

दिखावे बहुत हो चुके! अब जरूरत है दिल, दिमाग और जवाबदेही से योजना बनाने की

भारतीय अभिजात मीडिया और सत्ता–प्रतिष्ठान की बेनाम प्रवासी मजदूरों की आकस्मिक और हृदय को छू जाने वाली त्रासदी की खोज के बारे में मैं रोज पढ़–सुन रही हूँ। ऐसा लगता हैं ये सब टीकाकार समकालीन इतिहास के साथ–साथ... आगे पढ़ें


साक्षात्कार

महामारी ने पूँजीवाद की आत्मघाती प्रवृत्तियों को उजागर कर दिया है

जिप्सन जॉन और जितेश पीएम ‘ट्राईकाण्टिनेण्टल इंस्टीट्यूट फॉर सोशल रिसर्च’ में फैलों हैं। दोनों ने ‘द वायर’ के लिए नोम चोमस्की का साक्षात्कार लिया। चोमस्की भाषाविद् और राजनीतिक कार्यकर्ता हैं, जो नवउदारवाद, सैन्यवाद, साम्राज्यवाद और औद्योगिक–मीडिया समूह की... आगे पढ़ें


विचार-विमर्श

भगवानपुर खेड़ा, मजदूरों की वह बस्ती जहाँ न रवि पहुँचता है, न कवि!

(कोरोना महामारी और लॉकडाउन की सबसे बुरी मार मजदूर वर्ग पर पड़ रही है। जमीनी हालात का पता लगाने के लिए और राहत देने के लिए विकल्प मंच, शाहदरा के सदस्य कई किराये के मकानों में गये, जहाँ... आगे पढ़ें


अन्तरराष्ट्रीय

समाचार-विचार

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