जून 2020, अंक 35 में प्रकाशित

कोरोना महामारी के समय ‘वेनिस का सौदागर’ नाटक की एक तहकीकात

(16वीं सदी में विलियम शेक्सपियर ने वेनिस का सौदागर (द मर्चेंट ऑफ वेनिस) नाटक की रचना की थी। यह नाटक कितना लोकप्रिय हुआ, इसका अंदाजा लगाने के लिए इतना कहना ही काफी है कि दुनिया की कई भाषाओं में इसका अनुवाद हो चुका है और अपनी रचना काल से अब तक इसका दुनिया भर में अनगिनत बार मंचन किया जा चुका है। कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन जारी है। इस समय का फायदा उठाते हुए लेखक ने इस विश्व प्रसिद्ध और कालजयी रचना पर अपने चन्द शब्द लिखे हैं। इसके माध्यम से यहाँ 21वीं सदी की दो मुख्य परिघटनाओं पर भी जोर दिया गया है पहला, वित्तीयकरण जिसे सूदखोरी का ही उन्नत रूप कहा जा सकता है और दूसरा, साम्प्रदायिकता और नस्लवाद। कोरोना महामारी से भी ये परिघटना कहीं न कहीं गहराई से जुड़ती है, जिसका यहाँ केवल संकेत भर किया गया है।)

बस्सानियो मौजमस्ती में व्यस्त अमीर घराने का खुशमिजाज नौजवान है, बेलगाम फिजूलखर्ची ने उसे कंगाल कर दिया है। वह बेलमोन्ट की राजकुमारी पोर्शिया से शादी करना चाहता है, लेकिन उसे पाने के लिए बहुत अधिक पैसों की जरूरत है, क्योंकि वह किसी अमीर सामन्त से शादी करने की इच्छुक है। इसके अलावा राजकुमारी पोर्शिया आने वाले सामन्तों के सामने एक पहेली सुलझाने के लिए देती है, जिसे सुलझाने वाले सामन्त से ही वह शादी करेगी। दूसरी ओर धन का आकांक्षी बस्सानियो अपने घनिष्ट मित्र एंटोनियो से मदद के लिए कहता है, जो एक सम्पन्न व्यापारी है। एंटोनियो अपने दोस्त की मदद के लिए सहमत तो है, लेकिन अभी जहाज वापसी तक उसके पास पैसे नहीं हैं। बस्सानियो कर्ज के लिए यहूदी सूदखोर शाईलॉक के पास जाता है। लेकिन एंटोनियो ने पहले कभी शाईलॉक के साथ यहूदी होने के चलते बहुत दुर्व्यवहार किया था। एक बार भीड़ वाले इलाके में एंटोनियो ने शाईलॉक को कुत्ता कहा और उसके मुँह पर थूक दिया था। यहाँ यह बात साफ जाहिर है कि विलियम शेक्सपियर 16वीं शताब्दी के जिस वेनिश शहर का जिक्र करते हैं, वहाँ यहूदी समुदाय के साथ बहुत बुरा बर्ताव किया जाता था। इस रचना से यह भी पता चलता है कि वहाँ का कानून भी यहूदियों के खिलाफ भेदभाव बरतता था और सामान्य ईसाई लोगों में उनके प्रति नफरत भरी होती थी।

शेक्सपियर ने पीड़ित समुदाय के एक व्यक्ति को सूदखोर के रूप में चित्रित किया। सामान्यत: किसी भी समाज में सूदखोर से घृणा की जाती है क्योंकि वह लोगों की मजबूरी का फायदा उठाकर ब्याज कमाता है और धन इकट्ठा करता है। लेकिन शाईलॉक के प्रति यह खास घृणा यहूदी कौम के प्रति आम घृणा में नहीं बदलती। शाईलॉक बहुत धनी सूदखोर है। वह एक शर्त के साथ बस्सानियो को पैसे उधार देने के लिए सहमत है–– यदि बस्सानियो तय तिथि पर इसे वापस नहीं करता है, तो शाईलाक उसके दोस्त एंटोनियो केे एक पाउण्ड मांस से अपने घाटे की भरपाई करेगा। बस्सानियो इस समझौते से संकोच करता है, लेकिन एंटोनियो को इसमें कोई समस्या दिखायी नहीं देती है। उसे यकीन है कि वह समय पर ही शाईलॉक का कर्ज चुकाने में सफल हो जायेगा।

एंटोनियो की जान–पहचान का एक व्यक्ति शाईलॉक से कहता है कि मुझे यकीन है अगर एंटोनियो कर्ज चुकाने में नाकाम होता है तो आप उसका मांस नहीं लेंगे। शाईलॉक की नफरत यहूदी पीड़ा के रूप में सामने आती है जो सताये गये यहूदियों के प्रति स्वाभाविक सहानुभूति पैदा करती है। वह कहता है कि कर्ज तो मछली के लिए काँटे में चारे के समान है। इससे कुछ और हो या न हो, मेरा बदला जरूर पूरा होगा। उसने मुझे अपमानित किया और मेरे नुकसान पर हँसा, मुझे व्यापार में जब फायदा हुआ, तो उसने मेरा मजाक उड़ाया। मेरी कौम को अपमानित किया––– मेरे दोस्तों का मनोबल तोड़ा, मेरे दुश्मनों को भड़काया। इन सबका क्या कारण है? मैं एक यहूदी हूँ! यह देखो, मेरे पास यहूदी आँखें नहीं हैं? यहूदी हाथ, अंग, भावनाएँ, स्नेह, जुनून नहीं हैं? हम (ईसाई और यहूदी) एक जैसा भोजन करते हैं? हमें एक जैसे हथियार से चोट लग सकती है? हमें रोग, इलाज, गर्म और ठण्डा, तथा एक ईसाई की तरह सर्दी और गर्मी लगती है? अगर आप हमें काँटा चुभाएँगे, तो क्या हमारा खून नहीं बहेगा? आप हमें गुदगुदी करेंगे, तो हम हँसे नहीं? अगर आप हमें जहर देंगे तो क्या हमारी मौत नहीं होगी? और अगर तुम हमारे साथ गलत करोगे तो क्या हम बदला नहीं लेंगे? अगर हम इन मामलों में आपके जैसे हैं, तो बाकी मामलों में भी हम आपके समान होंगे। अगर एक यहूदी किसी ईसाई के साथ दुर्व्यवहार करता है, तो उसकी सदाशयता क्या है? प्रतिशोध। अगर एक ईसाई किसी यहूदी के साथ दुर्व्यवहार करता है, तो ईसाई उदाहरण के हिसाब से उसकी पीड़ा का क्या होना चाहिए? प्रतिशोध क्यों नहीं? आप व्यवहार में मेरे साथ जो खलनायकी दिखाएँगे, मैं भी उसी पर अमल करूँगा। और इस तरह चीजें बदतर होती जायेंगी।”

यहाँ हम देखते हैं कि अपने नाटक ‘वेनिस का सौदागर’ में शेक्सपियर आम लोगों में फैली साम्प्रदायिकता की उस भावना को चिन्हित करते हैं, जिसका शिकार आज भी बहुत से देशों और हर समाज के अल्पसंख्यक समुदाय हैं। पिछले 400 सालों में दुनिया भर में यह साम्प्रदायिकता टेढ़े–मेढ़े और ऊबड़–खाबड़ रास्तों से होती हुई आज 21वीं सदी में एक खतरनाक मोड़ पर पहुँच गयी है। आज कई देशों में नस्लवादी और फासीवादी सरकारें सत्ता में काबिज हैं। दुनिया के बड़े हिस्से में साम्प्रदायिकता का जहर फैला है। अवीवा डेच जो पुनर्जागरण और आधुनिकतावादी काल के साहित्य की विशेषज्ञ हैं, उन्होंने “वेनिस का सौदागर” को एक यहूदी पाठक के रूप में समझा। वह कहती हैं कि––– इस नाटक के प्रति मेरे परिवार का रवैया उलटा था – “यह भयानक, यहूदी–विरोधी नाटक” वे इसे कहा करते थे। शाईलॉक ने जैसा अपमान झेला था, उसे हमारे कई दोस्तांे और रिश्तेदारों ने कुछ दशक पहले द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यूरोप में अनुभव कर लिया था। उनका बलपूर्वक रूपान्तरण दुखद है, उनके साथ जो भी हुआ वह बहुत दर्दनाक है। मेरे समुदाय के लिए, नाटक का वह पहलू सबसे सकारात्मक है, जिसमें शाईलॉक ने अपने उत्पीड़क को “सम्मान” के साथ जवाब दिया है, जिसमें वह एक यहूदी को एक इनसान के रूप में बेहद शानदार तरीके से पेश करता है। वह कहता है–– “––– अगर आप हमें काँटा चुभाएँगे, तो क्या हमारा खून नहीं बहेगा?–––” (द मर्चेंट ऑफ वेनिस का एक यहूदी पाठ, अवीवा डेच, 15 मार्च 2016, बीएल–डॉट–यूके)

शेक्सपियर ने अल्पसंख्यक समुदाय की पीड़ा को सूदखोर शाईलॉक के डायलॉग में व्यक्त किया है। लेकिन उनका मानना है कि यह पीड़ा अन्याय के लिए कोई बहाना नहीं हो सकती। शाईलॉक पीड़ित है, लेकिन प्रतिशोध की भावना उसे एक इनसान भी नहीं रहने देती। वह पतित हो जाता है और इतना गिर जाता है कि किसी इनसान के मांस की माँग कर बैठता है। उसकी यह माँग दिवा–स्वप्न साबित होती लेकिन उसे भौतिक आधार मिलता है। वह आधार है–– शाईलॉक का बेहद धनी होना और सूदखोरी का धंधा करना। सूदखोरी ने शाईलॉक को न केवल अपनी इच्छा पूरी करने के लिए साधन मुहैया कराया बल्कि उसके व्यक्तित्व को भी विकृत कर दिया। यहाँ इस बात पर जोर दिया जाना चाहिए कि किसी इनसान का पेशा, जिससे वह अपनी आजीविका कमाता है, उसके व्यक्तित्व पर सीधा प्रभाव डालता है। अच्छा पेशा इनसान को अच्छा बनाता है और बुरा पेशा उसे बुरा बनाता है।

कहना न होगा कि शाईलॉक ही इस नाटक का केन्द्रीय चरित्र है। उसके डायलॉग दिल को झकझोर देते हैं। उसका आचरण मन में अजीब वितृष्णा पैदा करता है। उसके प्रति सहानुभूति होते हुए भी हम उससे नफरत करना नहीं छोड़ पाते। वह हर जगह अपने व्यवहार से अन्य पात्रों पर हावी रहता है। आज जब मैं इस बात को चिन्हित कर रहा हूँ, तो इसका वाजिब कारण है। आज दुनिया की अर्थव्यवस्था में शाईलॉक की केन्द्रीय भूमिका है। बेहद खतरनाक रूप में उसका पुनर्जन्म हुआ है। लेकिन आज वह वेनिस के व्यापारी की तरह सामप्रदायिक रूप से उत्पीड़ित नहीं है बल्कि वह आज की व्यवस्था का नियंत्रक है और इस व्यवस्था को गतिमान रखने के लिए साम्प्रदायिकता का साहरा ले रहा है। वेनिस का यह सूदखोर सर्वशक्तिमान वित्तीय कम्पनियाँ बन गया है। उसकी वित्तीय पूँजी ने सूदखोरी से कहीं अधिक मानवद्रोही चरित्र अपना लिया है। शाईलॉक अमरीका के वॉल स्ट्रीट पर काबिज है। वह हर देश को सूद पर पैसा उठाकर उन देशों के लोगों का मांस नोच रहा है। उन्हें गुलाम बना रहा है। काम वही है, भूमिका बदल गयी है। सम्भावना यही है कि वेनिस के व्यापारी का जो अन्त हुआ, उससे कहीं अधिक भयावह अन्त इस आधुनिक शाईलॉक का भी होगा। खैर, अब कहानी की ओर लौटते हैं।

बस्सानियो को पता चला है कि राजकुमारी पोर्शिया के पिता ने उसकी शादी के लिए एक परीक्षा छोड़ दी थी। परीक्षा में तीन टोकरी हैं–– एक सोने से बनी है, दूसरी चाँदी और तीसरी सीसे की। प्रत्येक के साथ एक शिलालेख है। मोरक्को का राजकुमार सोने की टोकरी चुनता है, एरेगन का राजकुमार चाँदी की। लेकिन उनके भाग्य में राजकुमारी पोर्शिया नहीं है। बस्सानियो सही टोकरी चुनता है, वह पोर्शिया से शादी करता है और उसका नौकर ग्रेटियानो, पोर्शिया की नौकरानी नर्सिया से।

इस बीच, एंटोनियो के जहाज समुद्र में खो जाते हैं। वह शाईलॉक का कर्ज चुकाने की स्थिति में नहीं रह जाता। सूदखोर शाईलॉक ने एंटोनियो और उसके बीच के अनुबंध को अदालत में घसीट लिया, क्योंकि वह अपने अपमान का बदला लेने के लिए एंटोनियो के शरीर का एक पाउण्ड मांस काट लेने पर आमादा है। ड्यूक (न्याय मंत्री) शाईलॉक को तर्कों से समझाने की कोशिश करता है, लेकिन शाईलॉक अनुबंध को तोड़ने से इनकार करता है और कहता है कि अगर उसके साथ न्याय नहीं किया गया तो लोगों का राज्य की न्याय व्यवस्था से भरोसा उठ जायेगा। जबकि बस्सानियो ने ऋण का भुगतान तीन गुना अधिक करने के लिए कहा, फिर भी शाईलॉक ने मना कर दिया।

कहानी में नया मोड़ आता है। बस्सानियो की पत्नी पोर्शिया वकील “बल्थजार” के वेश में छिपकर आती है, “कानून क्लर्क” के वेश में ग्रेटियानो की पत्नी नर्सिया है। कोर्ट में सभी शाईलॉक के क्रूर व्यवहार के खिलाफ हैं। दर्शक उसे गाली देते हैं। वह सिर्फ नफरत के काबिल है। लेकिन शेक्सपियर ऐसी परिस्थिति का लाभ उठाकर बड़ा सन्देश देने में कामयाब होते हैं। पोर्शिया शाईलॉक से दया की माँग करती है। वह दया को राजा के सबसे अच्छे गुणों में गिनाती है, वह ईश्वर को भी दयावान बताती है। यहाँ उसके संवाद बेहतरीन है। लेकिन सूदखोर शाईलॉक निर्मम है। उसने इनकार कर दिया। पोर्शिया एकदम मँजे हुए वकील की तरह जिरह में शाईलॉक को फँसा देती है और कहती है कि बेशक शाईलॉक एंटोनियो का मांस काट ले लेकिन खून की एक बूँद भी नहीं गिरनी चाहिए, क्योंकि यह बात अनुबंध में नहीं है। सभी स्तब्ध रह जाते हैं। पोर्शिया हमला करती है। वह कहती है कि “अगर तुमने एक ईसाई के खून की एक बूँद को बहाया तो वेनिश के कानून के हिसाब से तुम्हारी जमीन और सम्पत्ति छीन ली जायेगी। वह फिर कहती है कि इसलिए, आप मांस को काटने के लिए तैयार रहें। न तो आपको कम और न ही अधिक लेना है। लेकिन सिर्फ एक पाउण्ड मांस। यदि आप एक पाउण्ड से अधिक या कम लेते हैं और इसमें एक बाल बराबर भी फर्क आता है तो मौजूदा कानून के हिसाब से तुम्हारी मौत पक्की है और तुम्हारे सभी सामान जब्त कर लिए जायेंगे।” शाईलॉक के होश–हवास गुम हो जाते हैं। हड़बड़ी में वह अपनी शर्त वापस लेता है और मूल ऋण वापस स्वीकार करने के लिए सहमत हो जाता है।

अन्त में पोर्शिया कहती है कि “शाईलॉक ने एक विनीशियन नागरिक को नुकसान पहुँचाने की धमकी दी, कानून के हिसाब से उसकी सम्पत्ति का आधा हिस्सा वेनिस राज्य को और आधा एंटोनियो को सौप देना चाहिए।” लेकिन मौत के मुँह से वापस लौटा एंटोनियो खुश है, वह मृत्यु होने तक शाईलॉक को अपनी सम्पत्ति रखने की सहमति दे देता है।

शाईलॉक की तरह ही आधुनिक वित्तपति भी न्याय के दरबार में हार चुका है। उसके पास खुद को बचाने का कोई तर्क नहीं है। उसने जोर–जबरदस्ती से अपनी सत्ता कायम कर रखी है। वह दुनिया की 70 फीसदी सम्पदा का मालिक है और सभी आर्थिक गतिविधियों का नियन्ता। अपनी इसी नियामक ताकत के बल पर वह पहाड़ों को खोखला कर रहा है, नदियों को सुखा रहा है और जंगलों का सफाया कर रहा है। उसने पर्यावरण को इतना तहस–नहस कर दिया है कि कोरोना जैसा सामान्य फ्लू भी महामारी बनकर दुनिया पर टूट पड़ा है। जनता बेहाल है, शासक वर्ग घबराए हुए हैं। दुनिया को तभी मुक्ति मिल सकती है, जब इस वित्तपति के शासन का अन्त हो और जनता का नया राज कायम हो।

 
 

 

 

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