ब्राजील की लोकतान्त्रिक व्यवस्था पर धुर दक्षिणपंथी ताकतों का कब्जा
28 अक्टूबर को ब्राजील में अन्तिम दौर का चुनाव परिणाम आया। इसमें विवादास्पद धुर दक्षिणपंथी नेता जेर बोल्सोनारो की जीत हुई। वामपंथी झुकाव रखने वाली वर्कर्स पार्टी के नेता फर्नाडो हदाद को कुल मतों का 44 प्रतिशत प्राप्त हुआ वहीं बोल्सोनारो को 56 फीसदी मत मिले। 7 अक्टूबर को हुए पहले दौर के चुनाव में भी बोल्सोनारो ने विभिन्न पार्टियों के 13 उम्मीदवारों में 46 प्रतिशत मत पाकर बढ़त बना ली थी जबकि हदाद को 29 फीसदी मत ही मिले थे। नये राष्ट्रपति कंजर्वेटिव सोशल लिबरल पार्टी से ताल्लुक रखते हैं। उनकी पार्टी के नाम में “लिबरल” शब्द भले ही दिखायी देता हो लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान विभिन्न मुद्दों पर उनकी राय से यही झलकता है कि आम जनता के लिए उनके दिल में कोई जगह नहीं है। उनका आक्रामक रवैया अमरीका में हुए पिछले चुनावों में ट्रम्प द्वारा अपनाये गये रवैये से भी ज्यादा घृणित और उग्र था।
ब्राजील में चुनाव ऐसे समय में हुआ जब देश भयानक आर्थिक मन्दी के दौर से गुजर रहा है। बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हैं। लाखों लोगों की नौकरियाँ छूट गयी हैं। जिनके पास नौकरी है उनकी तनख्वाह कम हो गयी है। महँगाई आसमान छू रही है। देश में विदेशी निवेश भी नहीं है। इस चुनाव में अर्थव्यवस्था का मुद्दा सबसे अहम रहा क्योंकि लाखों–करोड़ों लोग इससे प्रभावित हुए हैं। दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर कनैडियन, यूएस एण्ड लातिन अमरीकन स्टडीज के प्रोफेसर डॉ अब्दुल नफे का मानना है कि खराब अर्थव्यवस्था के अलावा ब्राजील में और भी मुद्दे हैं जो बेहद गम्भीर हैं। उनका कहना है, “ब्राजील में भ्रष्टाचार आसमान छू चुका है। संस्थागत तरीके से कई अरब डॉलर इधर–उधर हुए हैं। एक और बड़ा मुद्दा है–– हिंसा। ब्राजील में इतनी हिंसा है कि 64 हजार लोग मारे जा चुके हैं। इतनी हिंसा तो उन देशों में होती है जहाँ युद्ध चल रहा है।” वह आगे बताते हैं, “ऐसा लग रहा है कि ब्राजील में असहिष्णुता और नफरत का रेला सा आया है। अश्वेत और महिलाएँ निशाने पर हैं। इसके अलावा वामपंथी कहना यहाँ आज के समय में सबसे बड़ी गाली बन गयी है।”
इस सदी के आरम्भ में लूला दा सिल्वा 2003 से 2011 तक ब्राजील के राष्ट्रपति रहे थे। वे वर्कर्स पार्टी से थे। उन्होंने देश में आर्थिक असमानता को कम करने की भरसक कोशिश की। ब्राजील को अन्तरराष्ट्रीय पटल पर एक नयी पहचान भी दिलायी। समाज के निचले तबके तक विकास का लाभ पहुँचाने और उन्हें मुख्यधारा से जोड़ने का काम किया। लेकिन उनकी सरकार कई मामलों में नवउदारवादी नीतियों के दबाव में झुकती चली गयी। अमरीका के दबाव के चलते उन्हें ऐसी नीतियाँ भी लागू करनी पड़ीं जो जनविरोधी थीं और आर्थिक संकट को जन्म देने वाली थीं। इस दौरान कब उनकी पार्टी भ्रष्टाचार के आरोपों में घिर गयी, इसका उन्हें भी पता नहीं चला। खुद लूला दा सिल्वा पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे। उन्हें पद छोड़ना पड़ा और वह फिलहाल जेल में हैं। इसके बाद वर्कर्स पार्टी की ही डील्मा रुसेफ राष्ट्रपति बनी। डील्मा रुसेफ को 2016 में महाभियोग के कारण हटा दिया गया था और उसके बाद उपराष्ट्रपति माइकल टेमर राष्ट्रपति बने। वह सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी से थे जो एक मध्यमार्गी दक्षिणपंथी पार्टी है। डील्मा रुसेफ के ऊपर महाभियोग में इस पार्टी की मुख्य भूमिका थी। इस घटनाक्रम के बाद ब्राजील में राजनीतिक और आर्थिक संकट खड़ा हो गया था।
अगर ब्राजील के इतिहास पर एक नजर डालें तो हम देखते हैं कि यहाँ अफ्रीका से बड़ी तादाद में लाये गये काले लोगों को गुलाम बनाया गया था। ब्राजील दुनिया का आखिरी देश था जहाँ गुलामी 1988 में खत्म हुई। ब्राजील में 54.60 फीसदी लोग या तो अफ्रीकी मूल के हैं या फिर मिश्रित नस्ल के हैं। ब्राजील के सत्ताधारी वर्ग में ज्यदातर गोरे लोग हैं। यहाँ का समाज काले और गोरे में बँटा हुआ है। काले लोगों की तादाद ज्यादा होने के बावजूद यहाँ पर गोरे लोगों का हर क्षेत्र में दबदबा बना हुआ था। वर्कर्स पार्टी पिछले 16 में से 14 साल तक सत्ता में बनी रही। इस दौरान बहुत से सुधारवादी कदम उठाये गये। उन्होंने समाज के निचले तबके लिए आरक्षण का प्रावधान किया। गरीबों का भत्ता बढ़ाया। ऐसे तमाम सुधारों की वजह से ज्यादातर लोग गरीबी रेखा से ऊपर आये। इसे देखते हुए उच्च वर्ग में नाराजगी और असन्तोष की प्रतिक्रिया आयी। आज जो ब्राजील के हालात हैं वे इन्ही सुधारों का नतीजा हैं। इसी वजह से संयुक्त राष्ट्र और अन्तरराष्ट्रीय समुदाय भी मानता है कि लूला दा सिल्वा अपराधी नहीं, बल्कि राजनीतिक कैदी हैं। उन्हें उनके सुधारवादी कदमों से नाराज हुए कुलीन वर्ग की नाराजगी की वजह से सजा काटनी पड़ रही है।
धुर दक्षिणपंथी उम्मीदवार जेर बोल्सोनारो ने उच्च वर्ग के बीच पनपे इस असन्तोष का भरपूर फायदा उठाया। बोल्सोनारो थल सेना अध्यक्ष थे। उनका राजनीतिक जीवन एक सैन्य नेता के तौर पर रहा है। उनका पूरा राजनीतिक करियर सेना की तानाशाही को महान बनाने से शुरू हुआ और अब तक आधार वही चल रहा है। धीरे–धीरे वे मुख्यधारा की राजनीति में आये और रियो द जेनेरियो से कांग्रेस सदस्य बन कर संसद गये। वे ब्राजील में सेना के शासन को सही ठहराते हैं। उनका मानना है कि देश की मजबूती के लिए ब्राजील को 1964.85 वाली सैन्य तानाशाही के दौर में दोबारा जाना चाहिए। साल 2016 में जब तत्कालीन राष्ट्रपति डील्मा रुसेफ पर चल रहे महाभियोग के दौरान कांग्रेस सदस्यों द्वारा मतदान किया जा रहा था उस वक्त बोल्सोनारो ने दिवंगत नेता कर्नल एल्बर्टाे उस्तरा को अपना मत दिया था। एल्बर्टाे ब्राजील के बेहद विवादित नेता थे। उन पर देश में सेना की तानाशाही के दौरान कैदियों को प्रताड़ित करने के आरोप लग चुके हैं।
बोल्सोनारो ने भ्रष्टाचार के खिलाफ पहले से ही चल रही मुहिम को तेज करने के साथ ही सरकारी कम्पनियों को बेचकर अर्थव्यवस्था को सुधारने का दावा किया है। पेरिस जलवायु समझौते से बाहर आने का ऐलान भी वह पहले ही कर चुके हैं। पर्यावरण समझौतों से बाहर जाने का फैसला करके उन्हांेने इनसानियत विरोधी कदम उठा दिया है। उन्होंने अपनी छवि ब्राजील के हितों के रक्षक के तौर पर पेश की है। जब वे ऐसा कहते हैं तो कुलीन वर्ग के हितों की रक्षा की बात करते हैं। सेना उनके पक्ष में खुलकर आ गयी है और उन्हें धार्मिक कुलीनों का भी समर्थन मिल गया है। ब्राजील में एवेंजेलिकल चर्चों के संगठन ने बोल्सोनारो के समर्थन में खुलकर प्रचार किया। अपने चुनाव अभियान के दौरान बोल्सोनारो ने नये मतदाताओं का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए सारे तीन–तिकड़म आजमाये। मुक्त बाजार की आर्थिक नीतियों का समर्थन करने के कारण उन्हें पूँजीपति वर्ग का भी अच्छा–खासा समर्थन मिला।
नारीवादी और समलैंगिक आन्दोलनों के प्रति गुस्सा और भ्रुण हत्या की मुखालफत, ये सब उनकी नीतियों में शामिल है। इसी साल बलात्कार का आरोप लगने पर बोल्सोनारो ने अपनी सहयोगी पर बेहद विवादित और अपमानजनक बयान दिया था। उसने कहा, “वह महिला इस लायक नहीं है कि उसका बलात्कार किया जाये, वह बेहद बदसूरत है और मेरे ‘टाइप’ की नहीं है।” इस बयान के बाद ब्राजील की महिलाओं ने फेसबुक पर बोल्सोनारो के खिलाफ एक फेसबुक ग्रुप बनाकर विरोध अभियान चलाया। वे समलैंगिकता के भी विरोधी हैं। साल 2011 में एक साक्षात्कार के दौरान उन्होंने कहा था, “मैं अपने बेटे को एक समलैंगिक होने से बेहतर एक सड़क हादसे में मरते देखना चाहूँगा।”
वर्कर्स पार्टी पर बोल्सोनारो की जीत से खुश द कनेडियन ब्राडकास्टिंग कार्पाेरेशन का कहना है कि एक बार फिर कनाडा की कम्पनियों को नये सिरे से इस संसाधन सम्पन्न देश में निवेश करने का अवसर मिल सकेगा। कॉर्पारेशन की तरफ से “मुक्त व्यापार” के प्रति उनकी मजबूत प्रतिबद्धता के लिए शुक्रिया भी अदा किया गया है। अमरीकी राज्य की एक पूर्व अधिकारी अन्ना प्रूसा का कहना है कि ब्राजील में खनन निवेशकों के लिए आने वाला समय अच्छा रहेगा।
इस तरह ब्राजील में फिर एक बार उन ताकतों को जीत हासिल हुई है जो ब्राजील ही नहीं पूरी दुनिया को बर्बादी के कगार पर ले जाना चाहती हैं। दुनियाभर में मन्दी का दौर 2008 से अब तक जारी है जो लगातार गहराता जा रहा है। 1930 की मन्दी ने हिटलर जैसा शैतान पैदा किया था जो मानवता के इतिहास पर काला धब्बा है। हाल के वर्षों में दुनिया के अलग–अलग हिस्सों में ऐसी ताकतंे सर उठाती जा रही हैं जो दुनिया भर के प्रगतिशील लोगों के लिए चिन्ता का विषय है। 1990 में अमरीका के नेतृत्व में दुनिया भर में थोपी गयी नवउदारवादी की नीतियों को जब तक पूरी तरह से दफना नहीं दिया जायेगा तब तक ऐसी घोर प्रतिक्रियावादी ताकतें सर उठाती रहेंगी।
Leave a Comment
लेखक के अन्य लेख
- अन्तरराष्ट्रीय
-
- अमरीका–ईरान समझौते का शिशु–वध 15 Aug, 2018
- ब्राजील की लोकतान्त्रिक व्यवस्था पर धुर दक्षिणपंथी ताकतों का कब्जा 14 Feb, 2019