अगस्त 2018, अंक 29 में प्रकाशित

21वीं सदी में सैन्यवाद का उठता ज्वार

(क्लिन्टन, बुश और ओबामा से ट्रम्प तक)

––जेम्स पेत्रास

21वीं सदी के पहले दो दशकों में अमरीकी सैन्यवाद बहुत तेजी से फैला और इसे डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन दोनों के राष्ट्रपतियों द्वारा गले लगाया गया। राष्ट्रपति ट्रम्प के द्वारा सैन्य खर्च में बढ़ोतरी के बारे में मीडिया का उन्माद उस सैन्यवाद के फैलाव को जानबूझकर अनदेखा करता है जो अपने सभी पहलुओं के साथ राष्ट्रपति ओबामा और उनके दो पूर्ववर्ती राष्ट्रपतियों ‘बिल’ क्लिन्टन और जार्ज बुश जूनियर के कार्यकाल में भी जारी था।

इस लेख में हम पिछले सत्रह सालों में सैन्यवाद की निरन्तर वृद्धि की तुलना और चर्चा करते हुए आगे बढ़ेगे। इसके बाद हम इसका जिक्र करेंगे कि अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था में सैन्यवाद का प्रवेश अमरीकी साम्राज्यवाद का एक अनिवार्य ढाँचागत लक्षण है।

सैन्यवाद

अमरीका का राष्ट्रपति कोई भी रहा हो और वह अपने लोकप्रिय शब्दाडम्बरों से भरे चुनावी अभियानों में घरेलू अर्थव्यवस्था के हित में चाहे जितना भी सैन्य खर्च पर पाबन्दी लगाने की बात कहता रहा हो, इसके बावजूद सैन्य खर्च में भारी वृद्धि जारी है।

‘बिल’ क्लिन्टन के कार्यकाल में सन् 2000 का सैन्य खर्च 302 अरब डॉलर से बढ़कर 2001 में 313 अरब डॉलर हो गया। राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश (जूनियर) के कार्यकाल में 2002 का सैन्य खर्च 357 अरब डॉलर था जो तेजी से बढ़कर 2004 में 465 अरब डॉलर और फिर 2008 में और बढ़कर 621 अरब डॉलर हो गया। राष्ट्रपति ओबामा (‘‘शान्ति उम्मीदवार’’) के कार्यकाल में 2009 का सैन्य खर्च 669 अरब डॉलर था जो तेजी से बढ़कर 2011 में 711 अरब डॉलर और फिर 2017 में प्रत्यक्ष गिरावट के साथ 596 अरब डॉलर हो गया। अब नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ट्रम्प 2018 में सैन्य खर्च को 650 अरब डॉलर तक बढ़ाने की माँग कर रहे हैं।

कुछ तथ्य इस क्रम में हैं–– ओबामा का 2017 में सैन्य बजट ने ‘रक्षा–सम्बन्धित’ राजकीय विभागों के कुछ खर्चों को रद्द किया और ऊर्जा विभागों के नाभिकीय हथियारों के कार्यक्रम में 25 अरब डॉलर की बढ़त को शामिल किया। ओबामा के समय में 2017 में कुल सैन्य खर्च का योग 623 अरब डॉलर था जो ट्रम्प के प्रस्ताव से 30 अरब डॉलर कम था। ओवरसीज कन्टिनजेन्सी ऑपरेशन (ओसीओ) के लिए ओबामा के सैन्य खर्च को वार्षिक बजट के प्रस्तावों में शामिल नहीं किया गया और अफगानिस्तान, इराक, सीरिया, यमन, लीबिया और अनेक देशों के लिए अमरीकी युद्ध का खर्च ओसीओ शामिल था जो उसके कार्यकाल में तेजी से बढ़ गया था। ओबामा के 8 सालों के कार्यकाल का सैन्य खर्च जॉर्ज डब्ल्यू बुश के समय के सैन्य खर्च से 816 अरब डॉलर अधिक था।

राष्ट्रपति ट्रम्प का सैन्य खर्च में बढ़ोतरी का प्रस्ताव डेमोक्रेटिक राष्ट्रपतियों के सैन्य खर्च की सूची से मेल खाता है जो मीडिया के दावों के विपरीत है। स्पष्ट रूप से रिपब्लिकनों और डेमोक्रेटों ने विश्व व्यवस्था को संचालित करने वाली ताकत के तौर पर अमरीकी सेना पर बहुत अधिक विश्वास किया है। आईएसआईएस ऑपरेशन के लिए 7.5 अरब डॉलर (50 फीसदी वृद्धि के बाद) और साइबर तथा आतंकवाद विरोधी युद्ध के लिए 8 अरब डॉलर को शामिल करने के बाद ओबामा के 2017 के बजट में सबसे बड़ी बढ़ोतरी खुफिया लड़ाकू विमानों, नाभिकीय पनडुब्बियों और वायुयान वाहकों में की गयी जिनका निशाना स्पष्ट रूप से रूस, चीन और ईरान की। नौसेना और वायुसेना को कुल बजट का तीन चैथाई प्राप्त हुआ। वाशिंगटन रूस को दिवालिया करके इसे पुतिन के पहले के दशक की गुलामी में पहुँचाने का प्रयास करता है। सीआईए, ओबामा और रिपब्लिकन पार्टी का ट्रम्प के खिलाफ क्रूर अभियान रूस के साथ उसकी वार्तालाप के चलते है। दशकों से अमरीका की एक धु्रवीय वर्चस्व की माँग की मुख्य बातें ट्रम्प के अधिकार और नियुक्तियों को छीन लेने पर निर्भर है जो आंशिक या पूर्ण रूप से सैन्य चलित अमरिकी साम्राज्यवाद के पूरे ढाँचे को कमजोर करता हुआ नजर आ रहा है। जबकि पूर्ववर्ती चारों प्रशासनों द्वारा सैन्य चलित साम्राज्यवाद को जारी रखा गया था।

ऊपरी तौर पर ट्रम्प का सैन्य खर्च में बढ़ोतरी अमरीका के आर्थिक स्तरों को बढ़ाने वाली उसकी योजना के लिए एक ‘‘सौदेबाजी के गुटके’’ की तरह है। ये अवसर हैं – रूस से सौदों में कमी, चीन, पूर्वी एशिया (सिगांपुर, ताइवान और दक्षिण कोरिया) और जर्मनी से व्यापार पर फिर से मोल–भाव, इनमें से सभी बहुत बड़ी मात्रा में खरबों अमरीकी डॉलर का वार्षिक व्यापार घाटा शामिल किये हुए हैंे।

ट्रम्प की बार–बार असफलता उसकी नियुक्तियों पर लगातार दबाव तथा उसकी छवि और व्यक्तिगत जीवन के प्रत्येक पहलू पर डाला गया दबाव जबकि यहाँ तक की घेरे के बाहर सट्टा बाजार की ऐतिहासिक वृद्धि के सामने ये बातें अमरीकी अल्पतंत्र के बीच सत्ता और ‘कौन सरकार चलायेगा’ इसे लेकर गहरे विभाजन की ओर इशारा करती है।  द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत के बाद, हम विदेश नीति में मूलभूत दरारों के गवाह हैं।

प्रतिरोधी वाद–विवाद की पहले की धारणा अब प्रचलन में नहीं है। वित्तीय पे्रस (द फिनान्सियल टाइम्स और वाल स्ट्रीट जर्नल) खुलेआम सैन्यवादियों के साथ हैं, जबकि वाल स्ट्रीट के वित्तीय व्यापारी ट्रम्प के व्यवसाय हितैषी राष्ट्रीय नीतियों तथा रूस और चीन के साथ समझौते पर बातचीत के पक्ष में हैं। ज्यादातर प्रचारक अस्तबलों के साथ घुटे हुए ‘विशेषज्ञ दल’, विशेषज्ञ, सम्पादक तथा उदार और नवरूढ़िवादी विचारधारा के सर्मथक रूस के खिलाफ सैन्य अक्रामकता को बढ़ावा देते हैं। जबकि लोक–लुभावन सोशल मीडिया ट्रम्प के जमीनी समर्थक घरेलू उत्पादक तथा राष्ट्र की चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स घरेलू करों में तथा संरक्षणवादी उपायों के लिए दबाव डालते हैं।

सेना ट्रम्प समर्थक है और वह आर्थिक लाभ के लिए युद्ध की उसकी धारणा का समर्थन करती है। इसके विपरीत सीआईए, नौसेना और वायुसेना ने ओबामा के एकांगी सैन्य बजट का सबसे अधिक लाभ उठाया, ऐसी नीतियाँ घरेलू अर्थव्यवस्था को तबाह कर देंगी, इसके बावजूद रूस और चीन से विश्व स्तर पर सैन्य टकराव और इनके सहयोगी देशों जैसे ईरान के खिलाफ युद्ध की नीति को जारी रखे हुए है।

डोनाल्ड ट्रम्प की साम्राज्यवादी अवधारणा इन बातों पर आधारित है कि उत्पादों का निर्यात और बाजारों पर कब्जा किया जाये। घरेलू बाजार में (अभी एक हजार अरब डॉलर से ज्यादा विदेशों में हैं।) फिर से मुनाफाप्रद निवेश के लिए बहुराष्ट्रीय निगमों की पूँजी  को वापस अमरीका में आकर्षित किया जाये। ऐसे आर्थिक और सैन्य सहयोग का विरोध करते हैं जो अमरीकी वित्तीय घाटे और कर्ज को बढ़ाते हैं। यह पहली सरकारों के विपरीत सैन्यवादी जिन्होंने विकृत व्यवसायिक घाटे तथा रूस और उसके सहयोगी देशों पर प्रतिबन्ध, सैन्य अड्डा और हस्तक्षेप पर असन्तुलित अमरीकी खर्च को स्वीकार किया था।

पश्चिमी यूरोप नाटो के खर्च का एक बड़ा हिस्सा अदा करने के राष्ट्रपति ट्रम्प के उद्देश्य को और इसके अमरीकी सैन्य खर्च पर यूरोप की निर्भरता को कम करता है। दोनों राजनैतिक पार्टियों द्वारा अस्वीकार कर दिये गये। रूस से रिश्ते को सुधारने की दिशा में बढ़ाया गया ट्रम्प का हरेक कदम उन एक–ध्रुवीय सैन्य साम्राज्यवादियों के गुस्से को भड़काता है जिनका डेमोक्रेट और रिपब्लिकन नेतृत्व पर नियन्त्रण हैं।

सैन्यवादी साम्राज्यवाद ने रूस के सहयोगी देशों को कुछ रणनीतिक सहूलियतें प्रदान की है जैसे–– ईरान और लेबनान के साथ अस्थायी समझौते और यूक्रेन के साथ कमजोर शान्ति समझौते। ठीक इसी समय वाशिंगटन अपने सैन्य अड्डों को नार्डिक–– बाल्टिक इलाके से एशिया तक फैला रहा है। वह ब्राजील, वेनेजुएला और यूक्रेन में सैन्य तख्तापलट के लिए समर्थन की धमकी देता है।

इन आक्रामक चालों का रणनीतिक उद्देश्य अमरीका के वैश्विक प्रभुत्त्व के सम्भावित स्वतंत्र प्रतिद्वंदी के रूप में रूस को घेरना और नष्ट करना है।

राष्ट्रपति ट्रम्प की शुरुआती नीति, ‘अमरीकी किला’ बनाने की है–– सैन्य बजट में वृद्धि करना है, मैक्सिको की सीमा पर और तेल से सम्पन्न खाड़ी देशों में पुलिस और सैन्य शक्ति को बढ़ाना है। ट्रम्प का एजेण्डा सैन्य ताकत को मजबूत करना है जो निर्यात बाजार को बढ़ाने के लिए द्विपक्षीय समझौता वार्ताओं में अमरीका की आर्थिक सौदेबाजी के पक्ष को मजबूत करे।

निष्कर्ष

अमरीका तीखे रूप से विभाजित दो साम्राज्यवादों के बीच बहुत खतरनाक टकराव का गवाह है।

सैन्यवाद, अमरीकी साम्राज्यवाद का स्थापित रूप है जो राजसत्ता के औजार से गहराई से जुड़ा है। इसमें 17 खुफिया एजेंसियाँ, प्रचार विभाग, वायुसेना और नौसेना के साथ–साथ उच्च तकनीकी क्षेत्र और वाणिज्यिक पूँजीवादी अभिजात वर्ग शामिल है जो अमरीकी श्रमिकों की कीमत पर विदेशी आयात और सस्ते विदेशी कुशल श्रमिकों से लाभान्वित हुआ है। विनाशकारी युद्ध, खोये हुए बाजार, घटती मजदूरी, जीवन स्तर में गिरावट और महँगी नौकरियों का विदेशों में स्थानान्तरण यही उनका रिकॉर्ड है। सबसे अच्छी चीज यह की गयी है कि उन्होंने बहुत बड़ी कीमत पर कुछ कमजोर अधीनस्थ शासकों को बनाये रखा है।

एक रणनीतिक साम्राज्यवादी विकल्प बनाने का ट्रम्प शासक का प्रयास कहीं अधिक सूक्ष्म दृष्टिकोण के इर्द–गिर्द घूमता है–– वह सैनिक ताकत का इस्तेमाल घरेलू मजदूर बाजार को बढ़ाने के लिए और विदेशों में आर्थिक हस्तक्षेप के लिए जन समर्थन सुनिश्चित करना चाहता है। सबसे पहले और सबसे अधिक ट्रम्प को एहसास है कि रूस को यूरोप में उसके बाजार से अलग नहीं किया जा सकता और न ही उसे प्रतिबन्धों से हराया जा सकता है। यह उसे बड़े स्तर के व्यापारिक सौदों के लिए वैश्विक समझौता वार्ता को प्रस्तावित करने की दिशा में ले जाता है जो अमरीकी बैंक, तेल, कृषि और बड़ी इंडस्ट्री के पक्ष में हो। दूसरी ओर ट्रम्प सामाजिक ‘साम्राज्यवाद’ का समर्थन करता है जिसके चलते स्थानीय अमरीकी उद्योगों और बैंक पर आधारित अमरीकी निर्यात बाजार अमरीकी व्यापारियों और मजदूरों के लिए अधिक वेतन और लाभ की तरफ ले जाएगा।

अमरीकी साम्राज्यवाद को महँगे और असफल सैन्य हमलों पर निर्भर नहीं होना है, बल्कि अमरीकी उद्योगों और बैंकों द्वारा विदेशी ‘आक्रमण’ पर निर्भर करना होगा जो निवेश के लिए अमरीका में अपना मुनाफा वापस लाएँगे और नियन्त्रण मुक्त और कर कटौती की उसकी प्रस्तावित योजना के पहले से प्रेरणा के चलते स्टाक मार्केट को फिर से मजबूत करेंगे।

राष्ट्रपति ट्रम्प का इस नये साम्राज्यवादी नमूने की ओर संक्रमण एक भयानक शत्रुता को पैदा करता है जो उनके कार्यक्रम को रोकने में सफल हुआ है और उनके शासन को उखाड़ फेकने का भय पैदा किया है।

शुरू से ही, राजसत्ता को सुदृढ़ करने में ट्रम्प की विफलता, एक ऐसी गलती है जो उसके प्रशासन के महत्त्व को कम करती है। जबकि चुनाव मेंे उसकी जीत ने उसे राष्ट्रपति का कार्यालय सौप दिया, उसका शासन राजसत्ता का केवल एक पहलू है जो तात्कालिक विघटन के लिए असुरक्षित है और स्वतंत्र प्रतिघाती तथा वैधानिक विभागों द्वारा उसकी राजनीतिक मृत्यु के लिए उसे बेदखल किये जाने को लेकर भी असुरक्षित है। अन्य सरकारी विभाग ओबामा और पिछले शासकों के उत्तरवर्तियों से भरा हुआ है जो सैन्यवाद को लेकर बहुत गहराई से प्रतिबद्ध हैं।

दूसरी बात, ट्रम्प अपने अभिजात समर्थकों और जनाधार को वैकल्पिक मीडिया के आसपास लामबन्द करने में असफल रहे हैं। उनके प्रशासन पर जन मीडिया के तीखे आक्रमण के खिलाफ ट्वीटर पर ‘सुबह का सन्देश’ एक कमजोर प्रतिरोध साबित हुआ है।

तीसरी बात, जापान और इंगलैंड से अन्तरराष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करने में ट्रम्प सफल हुए हैं। जबकि वे रूस के साथ करार करते हुए पीछे हट गये जो उनके साम्राज्यवादी प्रतिद्वन्दियों को कमजोर करने वाला प्रमुख मुद्दा बनेगा।

चैथी बात, ट्रम्प अपनी अप्रवासी नीतियों को एक नये कारगर घरेलू रोजगार कार्यक्रम से जोड़ने में असफल हो गये और वह ओबामा प्रशासन के समय लायी गयी कठोर अप्रवासी–विरोधी नीतियों का खुलासा करने और उनका लाभ उठाने में नाकाम रहे, जबकि ओबामा शासन के दौरान इन नीतियों के चलते लाखों लोगों को कैद में डाल दिया गया था और निष्कासित कर दिया गया था।

पाँचवी बात, ट्रम्प बाजार को बढ़ावा देने वाली अपनी आर्थिक नीतियों और सैन्य खर्चोें के बीच सम्बन्ध स्पष्ट करने में नाकाम रहे तथा कैसे उनका काम पूरी तरह लीक से हटकर है, यह बताने में असफल रहे।

इन सबका नतीजा यह हुआ कि उदारवादी नवरूढ़िवादी सैन्यवाद को इस नये राष्ट्रपति के खिलाफ हमले में सफलता मिली, जिससे नये राष्ट्रपति को अपनी मुख्य रणनीति से पीछे हटना पड़ा। ट्रम्प को घेर लिया गया है और वे बचाव की मुद्रा में हैं। अगर वह इस घातक हमले से बच भी जाते हैं तो भी अमरीकी साम्राज्य के ‘पुनर्निर्माण’ की उनकी मुख्य धारणा और घरेलू नीति की धज्जियाँ उड़ जाएँगी तथा उनके बचे–खुचे टुकड़े उनकी दोनों धारणाओं का घालमेल होंगे–– अमरीकी उत्पादों के लिए विदेशी बाजार के फैलाव और एक सफल घरेलू रोजगार कार्यक्रम के बिना विदेशी युद्धों और ढहते बाजारों में बदलाव की शुरुआत ही राष्ट्रपति ट्रम्प के लिए सम्भावित कार्यभार है।

अनुवाद–– अशुतोष कुमार

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