फरवरी 2020, अंक 34 में प्रकाशित

बोलीविया में नस्लवादी तख्तापलट

10 नवम्बर को बोलीविया में इवो मोरालेस की चुनी हुई सरकार का तख्तापलट कर दिया गया। इवो मोरालेस देश के पहले मूल निवासी राष्ट्रपति थे। वे पिछले 14 साल से देश की सत्ता सम्भाल रहे थे। 20 अक्टूबर को उन्हें चैथी बार देश का राष्ट्रपति चुना गया था। उन्होंने 46–35 प्रतिशत मत प्राप्त करके अपने निकटतम प्रतिद्वन्द्वी कार्लोस मेसा को 10 प्रतिशत से अधिक मतों से हराया था।
विपक्षी दक्षिणपन्थी और नस्लवादी पार्टियों, पुलिस और सेना के गठजोड़ ने उनकी जीत स्वीकार नहीं की और पूरे देश में अराजकता और खून–खराबे का माहौल तैयार कर दिया। विरोधियों ने उनकी हत्या करने पर 50 हजार डॉलर का ईनाम घोषित कर दिया। 8 नवम्बर को सेना अध्यक्ष विलियम कलीमान ने देश की जनता को खून–खराबे से बचाने के बहाने उनसे देश छोड़कर चले जाने की धमकीभरी गुजारिश की। 10 नवम्बर को मोरालेस मैक्सिको के राष्ट्रपति आनेस मैनुअल लापेज के आग्रह पर उपराष्ट्रपति अल्वारो गर्सिया के साथ मैक्सिको चले गये।
मोरालेस के विरोधियों ने उन पर चुनाव में धाँधली करने का आरोप लगाया था। इस शिगूफे की शुरुआत अमरीका से हुई थी। बाद में तख्तापलट में अमरीका की भूमिका दिन के उजाले की तरह साफ हो गयी। दरअसल अमरीकी नीतियों को स्वीकार न करने वाले देशों में दख्तापलट करवाना अमरीका की पुरानी रणनीति है और इसके सैकड़ों उदाहरण इतिहास में भरे पड़े हैं।
क्यूबा, वेनेजुएला, मैक्सिको, अर्जेण्टीना समेत लातिन अमरीका के अधिकांश देशों ने बोलीविया में तख्तापलट की निन्दा की है और अमरीका को इसका असली षड्यंत्रकारी बताया है। अर्जेण्टीना के अलबर्तो फर्नान्देज ने कहा है कि इस घटना ने पूरे क्षेत्र को 1970 के दशक के गन्दे दौर में पहुँचा दिया है, जब लातिन अमरीका में अमरीकी पिट्ठू दक्षिणपन्थी सैन्य शासकों की सरकारें थीं। लातिन अमरीका के एकमात्र देश ब्राजील के राष्ट्रपति बोलसेनारो ने इस तख्तापलट का समर्थन किया है, जो खुद एक तख्तापलट के जरिये सत्ता तक पहुँचे हैं।
2006 में जब मोरालेस ने पहली बार बोलीविया की सत्ता सम्भाली थी, उसी समय से अमरीकी शासक वर्ग उनके शासन को उखाड़ फेंकने की लगातार कोशिश कर रहा था। सन् 2008 में बोलीविया की आर्थिक राजधानी सान्ताक्रूज के नस्लवादी गिरोहों और पूँजीपतियों के साथ मिलकर अमरीका देश के दो टुकड़े करने की असफल साजिश भी कर चुका है। मोरालेस को इस बार के चुनाव में भी अपनी जीत पर दृढ़ विश्वास था, इसलिए उसने अपने विरोधियों के पसन्दीदा, अमरीकी नेतृत्व वाले संगठन ओएएस (ऑर्गेनाइजेशन ऑफ अमरीकन स्टेट्स) के पर्यवेक्षकों को चुनाव की निगरानी करने के लिए निमंत्रित किया था। यह संगठन लातिन अमरीका में हर सम्भव तरीके से अमरीकी हितों को पूरा करने के लिए बदनाम है।
चुनाव के दौरान ओएएस के पर्यवेक्षकों ने चुनाव में गड़बड़ी की कोई सूचना नहीं दी। बाद में मतों की गिनती के दौरान जब मोरालेस की जीत स्पष्ट दिखायी देने लगी, तब यही संगठन धाँधली का शोर मचाने लगा। अमरीकी कॉर्पोरेट हितैषी मीडिया, जिसका प्रमुख उद्देश्य पैसे के बदले सहमति गढ़ना है, उसके लिए इतना संकेत काफी था। सारे मीडिया संस्थान एक सुर में इवो मोरालेस और उनकी पार्टी एमएएस (मूवमेंट टुवार्ड् सोशलिज्म) के चरित्र हनन के काम में रम गये। हालाँकि किसी ने भी आज तक चुनाव में धाँधली का सबूत देने की जहमत मोल नहीं ली।
20 अक्टूबर को मोरालेस के चैथी बार राष्ट्रपति चुने जाने पर यह तय हो गया कि उन्हें चुनाव के रास्ते सत्ता से बाहर करना नामुमकिन है। अब तक किसी भी पार्टी न दुबारा चुनाव कराने की माँग नहीं की थी, उलटे मोरालेस ने ही विपक्ष के सामने दुबारा चुनाव कराने का प्रस्ताव रखा, जिसे विपक्ष ने नामंजूर कर दिया, क्योंकि मामला चुनाव में धाँधली का था ही नहीं, असली मकसद तो मोरालेस को सत्ता से बाहर करना था, जो चुनाव से सम्भव नहीं था। अब तख्तापलट ही एक मात्र रास्ता था।
अमरीका के पुराने पिट्ठू सान्ताक्रूज के नस्लवादी गिरोह अपने काम में लग गये। एमएएस नेताओं पर सरेआम हमले होने लगे। मोरालेस के समर्थक मूल निवासी मजदूर और किसान नेताओं और कार्यकर्ताओं पर हमला होने लगा, उनके घर जलाये जाने लगे। पुलिस ने इस मामले में हस्तक्षेप करने से हाथ खींच लिया। घटनाएँ तेजी से सभी शहरी क्षेत्रों में फैल गयीं। मोरालेस ने जब पुलिस अधिकारियों को नस्लवादी गिरोहों के उत्पात पर कार्रवाई करने का आदेश दिया तो उन्होंने आदेश मानने से इनकार कर दिया। और भी आगे बढ़कर पुलिस खुद नस्लवादी गिरोहों के साथ उपद्रव में शामिल हो गयी। हालात यहाँ तक खराब हो गये कि मोरालेस की बहन की हत्या की कोशिश की गयी और उनका घर जला दिया गया।
राष्ट्रव्यापी उपद्रव यानी मोरालेस के तख्तापलट की कमान अब सान्ताक्रूज के एक नस्लवादी लम्पट, सीआईए के एजेण्ट फर्नान्दो कमाचो के हाथ में थी, जो 2008 में देश के दो हिस्से करने के अमरीकी षड्यंत्र में भी शामिल रह चुका था। विकीलीक्स फर्नान्दो कमाचो और कार्लोस मेसा के अमरीकी खुफिया संस्थाओं और यूरोपीय नस्लवादी संगठनों से जुड़़े होने के दस्तावेज पहले ही सार्वजनिक कर चुका है। अमरीका में ही सामने आयी रिपोर्टों में यह भी खुलासा हो चुका है कि तख्तापलट से पहले बोलीविया के उच्च पुलिस और सैन्य अधिकारी अमरीका के सम्पर्क में थे और उन्हें कद के अनुरूप एक लाख डॉलर से 10 लाख डॉलर तक की रिश्वत दी गयी थी। यह मात्र संयोग नहीं कि सेना और पुलिस दोनों के सर्वोच्च अधिकारी अमरीका में प्रशिक्षण लिये हैं और दूतावास की सेवाओं से जुड़़कर अमरीका में कई साल बिताये हैं।
जब पूरे देश पर पुलिस और हथियारबन्द नस्लवादी गिरोहों के गठजोड़ का आतंक छा गया और यह स्पष्ट हो गया कि एमएएस के कार्यकर्ता हथियारबन्द पलटवार करने में सक्षम नहीं हैं, तो सेना अध्यक्ष ने राष्ट्रपति मोरालेस से देश में अमन के लिए देश छोड़कर चले जाने की धमकीभरी गुजारिश की। अब मोरालेस के सामने दो रास्ते थे–– या तो वह चिली के महान नेता की तरह हाथ में पिस्तौल लेकर लड़ते हुए शहीद हो जायें या कुछ समय के लिए देश छोड़कर चले जायें और फिर से सत्ता प्राप्ति की तैयारियाँ करें। उन्होंने दूसरा रास्ता चुना। मोरालेस ने अपने देश की जनता से जल्द ही वापस लौटने तथा अपनी अन्तिम साँस तक साम्राज्यवाद और सामाजिक गैरबराबरी के खिलाफ संघर्ष करने का वादा किया है।
बोलीविया में स्पेनी उपनिवेशी शासन की समाप्ति से लेकर 2006 तक की लगभग एक सदी तक अमरीकी नव–उपनिवेशवादी पिट्ठू सरकारों का दौर रहा है, जिसमें देशी सरकार का काम केवल अमरीका से बनकर आयी नीतियों को लागू करना था। इस दौर की एक झलक हम एदुआर्दो गालिआनो की प्रसिद्ध पुस्तक ‘लातिन अमरीका के रिसते जख्म’ में देख सकते हैं। लातिन अमरीका में  बोलीविया सबसे पिछड़ा और गरीब देश है। यहाँ की मूल निवासी आबादी का बड़ा हिस्सा खेती से जुड़़ा है। इवो मोरालेस एक किसान परिवार में पैदा हुए थे और कोका चुआने वाले किसानों के आन्दोलन के जरिये 1990 के दशक में राजनीति में आये। उस समय मूल निवासी जनता बेलगाम आर्थिक शोषण के साथ–साथ अकल्पनीय नस्ली सामाजिक उत्पीड़न का शिकार थी। आलम यह था कि कुल आबादी के 60 प्रतिशत हिस्से, मूल निवासियों को सरकारी दफ्तरों में सीधे प्रवेश की इजाजत नहीं थी। उन्हें कीटनाशक से नहलाकर अन्दर घुसाया जाता था। मूल निवासियों में साक्षरता दर बहुत कम थी। अपने ही देश में उनकी भाषा को मान्यता नहीं मिली थी। कुल मिलाकर यह बहुसंख्य आबादी बीसवीं सदी के अन्तिम दशक तक अपने ही देश में यूरोपीय नस्ली उत्पीड़न झेलते हुए पशुवत जीवन जीने के लिए मजबूर थी।
2006 में सत्ता सम्भालने के बाद मोरालेस ने बोलीविया को एक बहुभाषी, बहुराष्ट्रीयताओं का देश घोषित किया। सभी के लिए समान नागरिकता का अधिकार सुनिश्चित किया। सभी समूहों की भाषाओं को एक समान मान्यता दी। लिंग भेद, निरक्षरता और बहुत सी गलत कबीलाई परम्पराओं के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर जबरदस्त अभियान चलाये, जिनके चैकानेवाले नतीजे सामने आये। उदाहरण के तौर पर–– मोरालेस के मात्र 14 साल के शासन के बाद बोलीविया आज लगभग 100 प्रतिशत साक्षर देश है, जिस लक्ष्य को भारत आजादी के 73 साल में भी हासिल नहीं कर पाया है। पिछले 14 सालों में उन्होंने अमरीकी साम्राज्यवाद पर न केवल अपने देश से नकेल कसी, बल्कि उसे पूरे लातिन अमरीका से भगाने के सामूहिक प्रयास में हिस्सेदारी की। बोलीविया की सत्ता सम्भालते वक्त उन्होंने अपने देश की जनता से नव उपनिवेशवादी राज्य और नव उदारवादी मॉडल का नाश करने का वादा किया था, उनकी नीतियों से यह जाहिर है कि वे कभी अपने वादे से पीछे नहीं हटे।
ऐसे साम्राज्यवाद विरोधी जनपक्षीय सरकार के मुखिया इवा मोरालेस का तख्तापलट करने वाले नस्लवादी गिरोहों की सत्ता को अगर अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने झटपट मान्यता दे दी, तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं। बोलीवियाई जनता के खिलाफ अपराध करने की दोषी सेना और पुलिस को उसने लोकतंत्र का रक्षक बताया है। तख्तापलट का गुणगान करते हुए उसने अपने अगले षड्यंत्र के लक्ष्य भी घोषित कर दिये। उसने कहा कि ‘इस घटना ने वेनेजुएला और निकारागुआ की सरकारों को यह सन्देश दे दिया है कि लोकतंत्र और जनता की इच्छा जीतेगी।’ उसके इस कथन में लोकतंत्र के स्थान पर साम्राज्यवाद और जनता के स्थान पर अमरीकी पूँजीपति रखने से अर्थ ज्यादा स्पष्ट हो जायेगा।
10 नवम्बर के बाद अमरीकी शासकों ने बोलीविया में जिन गिरोहों को सत्तासीन किया है, उन्होंने लोकतंत्र के प्रति अपनी गद्दारी स्पष्ट कर दी है। मोरालेस के राष्ट्रपति पद छोड़ने के 24 घण्टे बाद ही अचानक एक ईसाई धर्मान्ध सीनेटर जीनिन अनेज, जिसकी पार्टी को चुनाव में 5 प्रतिशत मत भी नहीं मिले हैं, अचानक राष्ट्रपति की पोशाक में, हाथ में बड़ी सी बाइबिल लेकर राष्ट्रपति भवन के छज्जे पर प्रकट हुई और खुद को बोलीविया का आन्तरिक राष्ट्रपति घोषित कर दिया। लोकतंत्र की इस देवी के मुख से फूटे पहले लोकतांत्रिक शब्द यूँ थे–– “यह बाइबिल हमारे बहुत काम की है––– हमारी ताकत गॉड है––– गॉड ही सत्ता है।” खुद अमरीका का विश्व प्रसिद्ध अखबार द गार्जियन इन्हें ‘नस्लवादी’ और न्यूयार्क टाइम्स ‘ढींठ महिला’ कहकर सम्बोधित करता है। नव वर्ष पर इस लोकतंत्र की देवी ने बोलीवियाई जनजातीय समूह ‘अमारा’ को शैतान कहा है और बताया है कि मूल निवासी जूता पहनने के लायक भी नहीं हैं। 
तख्तापलट के मुख्य षड़यंत्रकारी फर्नान्दो कमाचो तो जीनिन अनेज से भी दो कदम आगे निकल गये। सीआईए के साथ तो इनके सम्बन्ध जगजाहिर हैं ही, साथ ही इनका नाम पनामा पेपर काण्ड में भी खूब उछला है। ये खुद को नस्लवादी अति दक्षिणपन्थी कहते हैं, पेशे से व्यापारी हैं। इन्होंने राष्ट्रपति भवन में अपने पहले भाषण में कहा कि “बाइबिल राष्ट्रपति भवन में वापस आ गयी है। पचामामा (मूल निवासियों की देवी–– धरती माँ) की अब कभी भी राष्ट्रपति भवन में वापसी नहीं होगी––– बोलीविया ईसा मसीह का है।” लोकतंत्र के इस नव नायक ने पुलिस और सेना की मौजूदगी में बोलीविया के बहुरंगी राष्ट्रीय ध्वज (विषाहालाला) को फाड़ा और ईसाइयत के झण्डे को ऊँचा उठाने का वादा किया।
धन्य हैं अमरीकी शासक वर्ग द्वारा नियुक्त किये गये लोकतंत्र के बिजूखे!
दरअसल साम्राज्यवादियों के लिए लोकतंत्र के इन ठेकेदारों की हैसियत उनके बंगले के चैकीदार से ज्यादा नहीं होती, जिसे वे जरूरत के अनुसार घर के अगले दरवाजे या पिछले दरवाजे पर खड़ा कर लेते हैं। दुनिया भर में तानाशाहों को प्रश्रय देने वाले अमरीका के लिए लोकतंत्र उसके साम्राज्यवादी मंसूबों को पूरा करने के अलावा कोई मायने नहीं रखता। इवो मोरालेस की गलती यह थी कि वे बोलीविया को एक साम्राज्यवाद मुक्त, सम्प्रभु लोकतांत्रिक राष्ट्र बनाना चाहते थे–– उस बोलीविया को जिसका शासक वर्ग पूँजीपति वर्ग है, जो पहले ही अमरीकी साम्राज्यवाद के साथ शत्रु–सहयोगी सम्बन्धों में बँधा है, जिसका राष्ट्र प्रेम और राष्ट्रीय सम्प्रभुता मण्डी में पैदा होती है और मण्डी में ही तिरोहित हो जाती है, जिसके लिए मुनाफे से बड़ा कोई प्रभु नहीं। वे जिस पूँजीपति वर्ग की सम्प्रभुता चाहते थे, उसी ने उनकी पीठ में छुरा भोंका।
इवो मोरालेस की नीतियों ने छोटी और तात्कालिक ही सही, बोलीविया के पूँजीपति वर्ग और उसके शत्रु सहयोगी साम्राज्यवादी पूँजीपति वर्ग के मुनाफे पर चोट की थी। उनकी सरकार ने तेल, प्राकृतिक गैस जैसी खनिज सम्पदाओं के व्यापार सम्बन्धी पुराने समझौतों को रद्द करके नये समझौते किये थे, जिनमें सरकार के राजस्व का हिस्सा बढ़ा दिया गया था। पूँजीपति वर्ग के मुनाफे में हुई इस कटौती से जो रकम हासिल हुई, उसे शिक्षा, चिकित्सा, खाद्य सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा आदि की जन कल्याणकारी योजनाआंे पर खर्च किया गया। इसके चलते पिछले 14 सालों में देश की गरीबी 50 प्रतिशत तक कम हुई और बोलीविया लातिन अमरीका में सबसे तेज आर्थिक वृद्धि वाला देश बन गया। उन्होंने विश्व बैंक और विश्व मुद्रा कोष पर अपनी कर्ज निर्भरता को कम करके क्षेत्रीय देशों के बीच कर्ज के लेन–देन को बढ़ावा दियाय लातिन अमरीकी देशों को मिलाकर एक क्षेत्रीय बैंक का निर्माण किया, जिसके चलते साम्राज्यवाद पर निर्भरता घटी।
बोलीविया एक खनिज सम्पन्न देश है। यहाँ तेल, प्राकृतिक गैस, टिन, लीथियम जैसे मूल्यवान खनिजों के विशाल भण्डार मौजूद हैं। दुनिया में कुल ज्ञात लीथियम का 70 प्रतिशत भण्डार बोलीविया में है। इसके खनन के विकास के लिए मोरालेस ने चीन के साथ 2–5 अरब डॉलर का एक समझौता किया था। शायद यही समझौता मोरालेस के तख्तापलट का सबसे बड़ा कारण बना। क्योंकि आज लीथियम एक बहुत महत्त्वपूर्ण खनिज बन चुका है। छोटे आकार और उच्च क्षमता की बैटरियाँ जैसे मोबाइल, कम्प्यूटर, इलेक्ट्रॉनिक वाहन आदि की बैटरियाँ बनाने में इसका इस्तेमाल होता है। लीथियम जिसके नियंत्रण में होगा, उसका विश्व अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण भी बढ़ जाएगा और यह अवसर चीन को मिले, अमरीका ऐसा नहीं होने देगा।
मोरालेस ने पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में भी फिदेल कास्त्रो और ह्यूगो शावेज के साथ मिलकर काम किया था। कोचाबाम्बा का प्रसिद्ध धरती माँ का अधिकार पत्र इन्हीं तीनों नेताओं के प्रयासों का परिणाम था। अपने देश में उन्होंने उद्योगों और खनन कम्पनियों के प्रदूषण फैलाने पर बहुत हद तक रोक लगायी और दूसरे देशों पर इसके लिए दबाव बनाया।
मोरालेस लातिन अमरीका की ‘गुलाबी लहर’ के नेताओं में से एक हैं। वास्तव में यह उभार अपनी प्रकृति में सुधारवादी और प्रगतिशील था। वे समाजवाद तो चाहते थे, लेकिन पूँजीवाद का नाश करके नहीं, बल्कि पूँजीवादी संसद के रास्ते, क्रान्ति के जरिये नहीं, सुधार के जरिये। लातिन अमरीका की विशिष्ट परिस्थितियों से पैदा हुए इस आन्दोलन ने एक ऐसे दौर में, जब समाजवादी गढ़ ढह चुके हैं, साम्राज्यवाद के अश्वमेधी घोड़े को पकड़ लेने की हिम्मत की और साम्राज्यवाद के सरगना अमरीका को सीधे चुनौती दी। 
इवो मोरालेस को साम्राज्यवादियों और उनके पिट्ठू देशी पूँजीपति वर्ग ने भले ही देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया हो, लेकिन उनकी समर्थक बहुसंख्यक मेहनतकश जनता आज भी बोलीविया की सड़कों पर संघर्ष कर रही है।

छपते–छपते : लगातार चल रहे जनआन्दोलन के दबाव में बोलीविया में 3 मई को नये चुनाव कराये जाने की घोषणा कर दी गयी है। इवो मोरालेस ने अपनी पार्टी एमएएस के नेता और पूर्व आर्थिक मामलों के मंत्री लुइस एर्स को राष्ट्रपति और पूर्व विदेश मंत्री डेविड चोकहुंका को उपराष्ट्रपति के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ाने का फैसला किया है। इवो अभी अर्जेण्टीना में निर्वासित जीवन बिता रहे हैं, जहाँ से उन्होंने ‘हथियारबन्द मिलीशिया’ के गठन की बात कही। विवाद होने पर उन्होंने अपने शब्द वापस ले लिये। ऊँट किस करवट बैठेगा यह आने वाला समय बतायेगा, लेकिन यह स्पष्ट है कि साम्राज्यवादियों की राह आसान नहीं है।
 

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