यमन का गृहयुद्ध और साम्राज्यवादी गिरोह का हमला
यमन में 2015 से हुति विद्रोहियों और सऊदी अरब समर्थित सरकार के बीच गृह–युद्ध चल रहा है जिसमे अब तक 10 हजार से अधिक लोग मारे गये हैं और 15 हजार से अधिक लोग घायल हुए हैं। हुति सिया मुसलमान हैं जिन्हे ईरान का समर्थन हासिल है जो की एक सिया देश है जबकि यमन सरकार को सऊदी अरब और उसके अन्य सहयोगियों का समर्थन है। ईरान और सऊदी अरब मध्य–पूर्व में अपना अपना वर्चस्व चाहते हैं।
हुति यह मानते हैं की यमन सरकार ने उनका सही तरीके से विकास नहीं किया है इसलिए उन्होंने 2004 से ही विद्रोह करना शुरू कर दिया था और 2014 में उन्होंने यमन की राजधानी साना पर कब्जा कर लिया था। जिससे 2015 में गृह युद्ध की शुरुआत हो गयी थी। 2015 में गृह–युद्ध शुरू होने के बाद से सऊदी अरब ने हुति इलाकों पर बमबारी करनी शुरू कर दी– सऊदी अरब ने यमन पर 2015 के बाद से 2 लाख 30 हजार से अधिक हमले किए हैं। इस बमबारी में स्कूलों, अस्पतालों और खाद्य भंडारण स्थलों को निशाना बनाया गया। मछली पकड़ने वाली नावें, मछुवारे और मछली बाजार सऊदी अरब के युद्धपोतों और हेलीकाप्टरों का शिकार बन गये। सऊदी अरब के सहयोगी देशों ने यमन को खाद्य सामाग्री भेजनी बन्द कर दी। यमन अपने वार्षिक प्रधान खाद्य आपूर्ति के 80 फीसदी से अधिक के लिए समुद्री आयात पर निर्भर है इसलिए खाद्य सामाग्री के आयात को रोकने के लिए बन्दरगाहों पर बम्बारी की गयी। खाद्य आपूर्ति के मामलों को और भी बदतर बनाने के लिए अमेरिका समर्थित सऊदी हवाई हमले ने 2015 से 2018 तक जान–बूझ कर कृषि क्षेत्रों, बाजारों और खाद्य भण्डारण स्थलों को निशाना बनाया जिससे अकाल और भूखमरी की आग धधक उठी।
संयुक्त राष्ट्र द्वारा पिछले साल जारी एक रिपोर्ट के अनुसार 2 कारोड़ यमनवासी भूखमरी का शिकार हो सकते हैं। जो यमन की कुल आबादी का 70 फीसदी है। इस भयावह स्थिति में 20 लाख से अधिक बच्चे शामिल हैं जो पहले से ही भूख से ग्रसित हैं। इनमें भी 5 लाख बच्चे ऐसे हैं जो गंभीर कुपोषण से पीड़ित हैं। युद्ध के कारण उत्पन्न भयावह स्थिति के बीच हैजा के प्रकोप से यमन में स्थिति और भी गम्भीर हो गयी। इस प्रकोप ने लगभग 2 लाख 69 हजार लोगों को संक्रमित किया और 1600 लोगों की मौत का कारण बना। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बताया की हैजा के कारण यमन में मरने वाले लोगों की संख्या 2015 में पूरी दुनिया में हैजा के कारण मरने वाले लोगों की संख्या से अधिक है। इसके अलावा यमन में हजारों बच्चे ऐसी बीमारियों से मर रहे हैं जिनका इलाज आसानी से हो सकता है लेकिन चिकित्सा, भोजन और अस्तित्व के लिए बुनियादी आवश्यकताओं को यमन में आने से रोक दिया गया। यमन के लोग न केवल अपने अस्तित्व के लिए बल्कि पश्चिमी मीडिया द्वारा इन हालातों के कवरेज न किए जाने के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र का कहना है की अगर हालात और बुरे होते हैं तो यमन का इससे उबर पाना सम्भव नहीं होगा।
युद्ध की इस स्थिति ने यमन में सामान्य जन–जीवन को तहस–नहस कर दिया है। यमन के मामले में अमेरिका सऊदी अरब का समर्थन करके उन्हीं गलतियों को दोहरा रहा है जो उसने इराक के साथ किया था। अमेरिका लगातार सऊदी अरब को भारी मात्रा में हथियार बेंच रहा है और सऊदी अरब धड़ल्ले से उसका इस्तेमाल यमन में कर रहा है। 2018 में सऊदी अरब दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक देश रहा है जिसका बहुत बड़ा भाग उसने अमेरिका से आयात किया है और कर रहा है।
इराक की तबाही से इस्लामिक स्टेट (आइएसआइएस) जैसा आतंकवादी संगठन पैदा हुआ उसी तरह यमन की तबाही ने मासूम लोगों को आतंकवादी संगठनों में शामिल होने क लिए रास्ता तैयार कर दिया है। अल–कायदा जैसा आतंकवादी संगठन पहले ही यमन में लम्बे समय से काम कर रहा है और अब बहुत तेजी से अपनी पैठ बना रहा है।
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