22 अगस्त, 2022 (ब्लॉग पोस्ट)

एकान्त के सौ वर्ष: एक परिचय

गाब्रिएल गार्सीया मार्केज के विश्व प्रसिद्ध उपन्यास 'एकान्त के सौ वर्ष' का हिन्दी अनुवाद राजकमल से प्रकाशित हुआ है। इस महाकाव्यात्मक उपन्यास को पढ़ना अधिक अर्थपूर्ण बनाने के लिए यह टिप्पणी दी जा रही है।

हमें अगर पुर्तगाल और स्पेन की आइबेरियन संस्कृति, सामाजिक जीवन और उससे जुड़ी हुई दूसरी चीजों की जानकारी हो तो इसका आनन्द उठाने में अधिक आसानी होगी। साथ ही यदि हम इस बात की कल्पना करें कि सामन्तवाद से व्यापारिक पूँजीवाद में संक्रमण के युग का आदमी किस प्रकार का था, उस समय के चरित्र जैसे समुद्री डाकू (पाइरेट्स), लुच्चे-लफंगे बदमाश, घुमन्तु (जिप्सी) और काउब्वाय वगैरह कैसे थे तो भी हमें इस उपन्यास को पढ़ने में आसानी होगी। स्पेनी औपनिवेशीकरण के समय लातिन अमरीका में किस तरह लोग अलग-अलग जगह से आकर बसे और किस तरह विभिन्न संस्कृतियों के बीच घात-प्रतिघात और मिश्रण हुआ और स्पेनी, अंग्रेजी व अमरीकी उपनिवेशवादियों ने लातिन अमरीका के साथ किस तरह का सलूक किया, इन सबकी जानकारी-समझदारी रखने वाले व्यक्ति को उपन्यास समझने में मदद मिलेगी। कोई जमीन या कोई समाज किस तरह के लोगों को पैदा करता है यह समझकर हम उस देश के साहित्य को भी समझ सकते हैं। साइबेरिया की बर्फीली जमीन उन मजबूत लोगों और उनके रहन-सहन के उस विलक्षण ढंग और संस्कृति को जन्म देती है जिसका जिक्र प्रायः हम रूसी उपन्यासों में पाते हैं। इसी तरह क्यूबाई क्रांतिकारी जोसमार्ती, लातिन अमरीकी एकता के नायक बोलीवार और चे ग्वेरा तथा फिदेल जैसे क्रांतिकारी नेताओं से लेकर शावेज के व्यक्तित्वों के आधार पर भी हम लातिन अमरीकी चरित्रों का अनुमान कर सकते हैं।

अपने कलेवर और शैली में यह एक महाकाव्यात्मक उपन्यास है। यह एक काल्पनिक शहर मकान्दो के जन्म, उत्थान और पतन की गाथा है जिसके सबसे महत्वपूर्ण बाशिन्दे बुएन्दिया परिवार के लोग हैं जिसकी छह पीढ़ियों की कहानी इस शहर के उत्थान-पतन के साथ गुथी हुई है। यह एक ऐतिहासिक विवरणात्मक गाथा की तरह चलती है। अन्य महाकाव्यात्मक कृतियों की तरह ही इस उपन्यास का भी एक खास इलाके की जनता के ऐतिहासिक यथार्थ से सीधा रिश्ता है। यह एक लातिन अमरीकी देश कोलम्बिया की उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भ में स्पेन से आजादी (1810 से 1825) मिलने से लेकर बाद के विकास का इतिहास है। उपन्यास में वर्णित गृहयुद्धों के अन्तहीन सिलसिलों को सीधे तौर पर 1885 से 1902 तक कोलम्बिया में जारी गृहयुद्धों पर आधारित समझा जाता है और कर्नल औरेलियानों के चरित्र और कर्नल राफेल उरीबे के बीच अनेक समानताएं हैं जिसके कमान में लेखक के दादा ने लड़ाई लड़ी थी। उरीबे का संघर्ष 1902 में नीरलाण्डिया संधि से खत्म हुआ जिसका उपन्यास में उल्लेख है। 1900 और 1928 के बीच बोस्टन की यूनाइटेड फ्रूट कम्पनी ने कोलम्बिया को अपनी गिरफ्त में ले लिया। इस कम्पनी के खिलाफ मजदूरों का संघर्ष अक्टूबर 1928 में अपने उत्कर्ष पर पहुँचा जब 32000 मजदूरों नें हड़ताल की। बाद में सरकार ने आन्दोलन के दमन के लिए सेना भेजी  जिसने 5 दिसम्बर 1928 को सियेङ्गा में जनसंहार किया। इसी के साथ-साथ यह भी जानना दिलचस्प होगा कि उपन्यास में न सिर्फ लेखक के परिवार के सदस्य बल्कि स्वयं लेखक भी मौजूद है।

लेकिन यह एक ऐतिहासिक उपन्यास नहीं है। इसकी जगह यह पाठकों को इसके काल्पनिक होने के बारे में सावधान भी करता है। इतिहास यहाँ यथार्थवादी उपन्यासों की इतिवृत्तात्मक हू-ब-हूपन के साथ उपस्थित नहीं है वरन बिम्बों, मिथकों और चमत्कारी घटनाओं के एक ताने-बाने से निर्मित जादुई आवरण द्वारा आच्छादित है। पूरे उपन्यास में फंतासी और तथ्यात्मकता एक दूसरे से घुली-मिली हैं और यही उपन्यास की एक खास विशेषता है जिसका रसास्वादन करने से इंकार करने पर या अधिक यथार्थवादी तर्कसंगतता की माँग करने पर उपन्यास का आनन्द नहीं उठाया जा सकता है। यथार्थ को फंतासी के माध्यम से अभिव्यक्त करने की यह शैली जादुई यथार्थवाद कहलाती है, यह उपन्यास इसका प्रातिनिधिक उदाहरण है। जादुई यथार्थवाद को आमतौर पर लातिन अमेरिका और उसके प्राकृतिक, भौगोलिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक अनोखेपन से जोड़ कर देखा जाता है और इसने यथार्थवादी उपन्यासों की पारम्परिक पश्चिमी शैली से अपनी अलग पहचान कायम की है।

दक्षिण अमेरिका की उष्णकटिबन्धीय जलवायु और विविधतापूर्ण भू-दृश्य एक ऐसी प्रकृति और जीवजगत का निर्माण करते हैं जो शेष दुनिया से कई मामलों में अलग हैं और इस तरह शेष दुनिया की तुलना में विविधतापूर्ण विचित्रता से भरे हुए हैं। केवल जैविक विविधता ही नहीं, खनिज सम्पदा के मामले में भी यह भूमि बहुत धनी है। परन्तु इन सब के बावजूद भी यहाँ के निवासियों को पिछली कुछ शताब्दियों से निरन्तर त्रासदियों के एक ऐसे सिलसिले से गुजरना पड़ा है जो आज भी जारी है।

गार्सिया मार्क्वेज का कहना है कि "एकांत के सौ साल" लातिन अमेरिका का इतिहास नहीं बल्कि उसपर रूपक है (metaphor), इसकी मूल ऐतिहासिक विषय-वस्तु में- विजय और उपनिवेश बसाना और वैज्ञानिक खोज, गृह युद्ध, विदेशी आर्थिक हस्तक्षेप, तकनीकी बदलाव और अंततः, लम्बे समय से स्थापित हो चुकी जीवन शैली का विनाश और लुप्त होना ये सारी बातें शामिल हैं।

प्रारम्भिक स्पेनी विजय की ओर तब संकेत होता है जब पहले अध्याय में जोस आकार्डिओ बुएण्डिया को समुन्दर से कई किलोमीटर दूर, रहस्मय ढंग से तट पर लगे हुए एक पुराने जहाज के अवशेष और एक जिरहबख्तर मिल जाता है। प्रारम्भिक स्पैनी औपनिवेशीकरण तथा अंग्रेजी नाविक, सर फ्रान्सिस ड्रेक द्वारा डाले गये समुद्री डाकों (छापों) की वजह से मची तबाही का जिक्र दूसरे अध्याय में किया गया है। बाद में इस घटना का कोई खास जिक्र नहीं होता।      

लातिन अमरीकी त्रासदी की शुरूआत नयी दुनिया के खोज के साथ शुरू होती है जब स्पेनी आक्रान्ताओं ने वहाँ के मूल निवासियों का इस तरह कत्लेआम किया, स्थानीय सभ्यता को इस कदर छिन्न-भिन्न कर दिया और खनिज तथा प्राकृतिक सम्पदा की ऐसी लूट मचाई जिसका इतिहास में कोई सानी नहीं है। इस सम्पदा और सुखी जीवन के लोभ में जहाँ स्पेन और पुर्तगाल जैसे शुरूआती उपनिवेशवादी देशों के गरीब लोग भारी संख्या में इस नयी भूमि पर बसने आये, वहीं समुद्री डाकुओं से लेकर घुमन्तु बंजारे तक इस ओर आकृष्ट हुए और उस मिश्रित और बहुसांस्कृतिक समाज की नींव पड़ी जिसमें बाद में अफ्रीका से लाये गये काले गुलाम भी शामिल हो गये। लेकिन स्पेनी, अंग्रेजी और आगे चलकर अमेरिकी साम्राज्यवाद ने कभी इस भूमि को वैसा नहीं बनने दिया, जैसाकि शुरूआती बाशिन्दों ने इसके बारे में कल्पना की थी।

छल-कपट, दाँव-पेंच, षडयन्त्र और आक्रमण, हर हथकण्डों से उन्होनें अपने लूट और शोषण को जारी रखने के लिए इस क्षेत्र को अशांत बनाये रखा। लम्बे रक्तपात और वीरतापूर्ण संघर्षों के बाद पिछली शताब्दी के शुरू में लातिन अमेरिकी देशों को मिली आजादी को शीघ्र ही अमेरिकी साम्राज्यवाद का ग्रहण लग गया। स्थानीय पिट्ठूओं के साथ मिलकर उन्होंने जनवाद, प्रगति और शान्ति की इन देशों और उसकी जनता की आकांक्षा को कुचला और तख्तापलट, दमन और नवउपनिवेशवादी लूट का एक ऐसा नजारा पेश किया जिसने स्पेनी उपनिवेशवादियों के कारनामों को पीछे छोड़ दिया। लातिन अमेरिका के देश, पूरी दुनिया में तख्तापलट की घटनाओं, सैन्य तानाशाहों और गुमशुदगी के लिए जाने जाने लगे।

आज भी एक-एक देश में दसियों हजार की संख्या में ऐसे लोग हैं जिनके बारे में कोई नहीं जनता कि वे कहाँ गये। यह सब इस तथ्य के बावजूद हुआ कि लातिन अमेरिका ने बोलीवार और जोसमार्ती जैसे वीरों को जन्म दिया और जनता ने कभी भी लड़ाई और प्रतिरोध का रास्ता नहीं छोड़ा। साम्राज्यवादी षडयंत्रों ने एक ऐसी भूमि को जो विविधतापूर्ण और समृद्ध थी और जहाँ के वाशिंदे अलग-अलग देशों से आकर बसे हुए मेहनती और हिम्मती लोगों के वंशज थे, असफल सपनों की भूमि में बदल दिया। इस राजनीतिक-सामाजिक घटनाक्रम ने लातिन अमेरिका के पहले से भी जटिल यथार्थ को और अधिक उलझा दिया और इस ऐतिहासिक त्रासदी को अभिव्यक्त करने के लिए लेखक फंतासी के शरण में गये। इतिहास को एक रूपक के रूप में, फंतासियों और बिम्बविधान की एक श्रृंखला के रूप में अभिव्यक्त करने की वह शैली सामने आयी जो 'एकान्त के सौ वर्ष' में अपनायी गयी है।

जादुई यथार्थवाद के बारे में अधिक जानकारी के लिए हमें गाब्रिएल गार्सिया मार्खेज द्वारा नोबेल पुरस्कार ग्रहण करते समय दिया गया भाषण भी पढ़ना चाहिए जो लातिन अमेरिका के यथार्थ की विचित्रता और विलक्षणता तथा लेखक की कृति की शैलीगत विशिष्टता के बीच के अन्तरसम्बन्धों की ओर पर्याप्त संकेत करता है।

जादुई यथार्थवाद की शैली के कारण यह उपन्यास पाठकों को अनुभूति के दो धरातलों पर प्रभावित करता है। एक स्तर पर यह सर्वाधिक अप्रत्याशित और आश्चर्यजनक घटनाओं और चरित्रों से युक्त एक मनोरंजक हास्य उपन्यास है जिसको पढ़ना एक आल्हादकारी अनुभव है तो दूसरी ओर उससे गहरे स्तर पर उसमें एक त्रासद विडम्बना और गहरी उदासी का भाव लगातार विद्यमान रहता है और पाठकों को छूता है, क्योंकि अंततः यह एक शहर और एक परिवार के असफलताओं की कहानी है। इस रूप में यह एक बेचैन करने वाला उपन्यास भी है।

वैविध्य और वैचित्य से परिपूर्ण लातिन अमेरिकी भूमि, बाह्य और आन्तरिक शक्तियों के शोषण और षडयंत्रों से पूर्ण विगत कुछ शताब्दियों के इतिहास की असफलता, वहाँ की जनता की निराशा और व्यर्थताबोध और परिणामतः वहाँ के जीवन की निस्सारता की हमें जितनी अच्छी समझ होगी, इस उपन्यास के हास्य और त्रासदी के दोनों पक्षों को आत्मसात करने में हम उतने ही सफल होंगे।

अनेक विश्वविख्यात कृतियों की तरह ही यह उपन्यास भी कोई समाधान प्रस्तुत नहीं करता। यह किसी कृति के उत्कृष्ठता की शर्त भी नहीं है। लेकिन एक समाधान सम्भवतः कृति के अन्त में ही छुपा हुआ है। इतिहास को एक निर्मम प्रहसन के रूप में समझने और एक जल्दी ही भूल जाने वाली फंतासी के रूप में अनुभव और चित्रित करने में शायद लेखक जानबूझकर अपने पाठकों के इस प्रकार के दृष्टिकोण की एक त्रासद निस्सारता का कायल बनाना चाहता है। वह शायद लातिन अमेरिका की जनता को बताना चाहता है कि मैकोन्दों खत्म हो गया है, इसे याद रखो और अपने लिए एक नये इतिहास का निर्माण करो। उपन्यास में ही इस बात की घोषणा की गई है कि जिस दिन कोई मैकोन्दों के इतिहास (यानि आल्किदेयास की पाण्डुलिपि) को पूरी तरह समझ लेगा, इसका अन्त हो जायेगा। शहर और परिवार का अन्त पूर्वनिर्धारित है क्योंकि आगे बढ़ने के लिए जिस चीज की जरूरत है वह उनके पास नहीं है। उनका एकान्त तथा अतीत, फंतासी और मनोगत इच्छाओं के प्रति उनकी प्रतिबद्धता इस बात को सुनिश्चित कर देती है।

लेकिन उपन्यास इस बात की ओर भी संकेत करता है कि मैकोन्दों पूरी तरह खत्म नहीं होगा, क्योंकि एक चरित्र के रूप में लेखक, जो उस मार्खेज का वंशज है जिसने कर्नल बुदेन्दिया के साथ-साथ लड़ाई लड़ी थी, कारालान पुस्तक विक्रेता का सुझाव मानकर विनाश के पहले ही राबेलाइस के संग्रह के साथ शहर छोड़ देता है और पाठक इस बात का अनुमान कर सकते हैं कि उसके साथ वहाँ के जीवन की स्मृतियाँ जिंदा रहती हैं जो अवश्य एक बेहतर सभ्यता के निर्माण के लिए मार्गदर्शक का काम करेंगी।                  

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