रूस की समाजवादी शिक्षा-व्यवस्था दुनिया के लिए बनी मिसाल
भारत की आजादी के 70 दशक हो चुके हैं फिर भी हमारी सरकारें देश की जनता को शिक्षा और स्वस्थ्य का समान अधिकार देने में नाकाम रहीं हैं। हिंदुस्तान जैसे-जैसे जवान होता गया देश की शिक्षा-स्वस्थ्य व्यवस्था पूंजीपतियों या यूं कहें कि निजी हाथों की कठपुतली बनती गई । आलम ये है कि सरकारी संस्थानों में आज लोग अपने बच्चों को पढ़ाना नहीं चाहते । हम आरक्षण की मांग करते हैं, राजनीतिक दल आरक्षण के मायाजाल में देश की जनता को उलझाए रखना चाहते हैं, क्या हमने कभी समान शिक्षा और समान स्वास्थ्य के लिए कोई आवाज उठाई या आंदोलन किया । नहीं किया क्योंकि हर कोई जानता है कि समान शिक्षा होने से हर कोई जागरुक हो जाएगा, अमीर-गरीब का भेद बहुत कम हो जाएगा, लोग हर कदम पर हक की बात करने लगेंगे, लिहाजा जितने धीरे-धीरे देश की जनता साक्षर होगी उतना ही आसान होगा उन्हें गुमराह करना।.. आगे पढ़ें
बुद्धिजीवी की भूमिका
(विश्वविख्यात पुस्तक 'ओरियंटलिज्म़` (प्राच्यवाद) के लेखक एडवर्ड सईद (१ नवंबर, १९३५-२५ सिंतबर, २००३) लंबे समय तक कोलम्बिया विश्वविद्यालय में अंग्रेजी भाषा और तुलनात्मक साहित्य के प्रोफेसर रहे। फिलिस्तीनी मुक्ति संघर्ष के लिए राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में काम करने वाले सईद की प्रतिष्ठा उत्तर-औपनिवेशिक सिद्धांतकार व साहित्य-आलोचक के रूप में है।-सं०)
मैं लगभग चालीस वर्षों से अध्यापन का कार्य कर रहा हूं। बतौर विद्यार्थी और बाद में एक अध्यापक की हैसियत से अपने जीवन का ज्यादातर हिस्सा मैंने विश्वविद्यालय की चहारदीवारी के अंदर गुजारा है। विश्वविद्यालय मेरे लिए, जैसा कि मेरा विश्वास है हम सब के लिए, चाहे जिस हैसियत से भी आप इससे जुड़े हों, एक बेमिसाल जगह है। एक ऐसा आदर्श स्थान, जहां सोचने की आजादी, परखने की आजादी तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ही सारतत्त्व होते हैं। वास्तव में, हम जानते हैं कि विश्वविद्यालय किस हद तक ज्ञान व विद्वता का भी केन्द्र होता है।
कई सवालों में.. आगे पढ़ें
उन्नीसवीं सदी का भारतीय पुनर्जागरण : यथार्थ या मिथक
(एक)
पिछले पच्चीस-तीस वर्षों से मैं इस पर सोचता रहा हूं और इस विषय पर कुछ खंड लिख भी चुका हूं. 19वीं सदी के गुजराती साहित्य में और विशेष रूप से नवलराम और गोवर्धनराम के लेखन में मेरी रूचि है. मगर दुर्भाग्य से गोवर्धनराम का सरस्वतीचंद्र हिंदी में उपलब्ध नहीं है. यहां मैं गोवर्धनराम के उस भाषण का खास तौर पर उल्लेख करना चाहता हूं, जो उन्होंने 1892 में विल्सन कॉलेज की लिटरेरी सोसाइटी में अंग्रेजी में दिया था. विषय था-क्लासिकल पोयट्स ऑफ गुजरात. नरसी मेहता, अखो और प्रेमानंद पर वहां उन्होंने भाषण दिया था. 17वीं शताब्दी के दो प्रसिद्ध कवियों प्रेमानंद और शामल भट्ट पर विशेष रूप से उन्होंने टीका प्रस्तुत की थी. मैं यह देखकर आश्चर्यचकित था कि केवल पचास वर्षों के अंतराल के बाद ही कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने अपनी किताब गुजराती साहित्य का इतिहास में उनके विचारों का खंडन किया. बाद में मनसुखलाल झावेरी ने अपने.. आगे पढ़ें
थॉमस रो : ब्रिटिश राजदूत जिसने भारत की गुलामी की नींव रखी थी
‘ईमानदार टॉम’, जैसा उसे प्रिंस ऑफ़ वेल्स की बहन एलिज़ाबेथ कहती थी, को राजदूत बनना अपने जीवन का उद्देश्य लगा. सो उसने इंग्लैंड के राजा के लिए वह काम कर दिया जो उसके पहले कोई भी ब्रिटिश राजदूत नहीं कर पाया था. वह हिंदुस्तान को थाली में परोसकर अपने राजा के पास ले आया.
अंग्रेज़ी शासन भारत से व्यापार करने के लिए आतुर हुआ जा रहा था. 1599 में ईस्ट इंडिया कंपनी इंग्लैंड की रानी से हुक्मनामा लेकर हिंदुस्तान से व्यापार करने का अधिकार प्राप्त कर चुकी थी, पर बात नहीं बन पा रही थी. अकबर काल के दौरान और उसके बाद विलियम हॉकिन्स कंपनी के जहाजों को 1609 में भारत तो ले आया था, उसे जहांगीर के दरबार में जगह भी मिल गई थी, पर वह व्यापारिक संधि नहीं करवा पाया था.
फिर कंपनी ने 1615 में थॉमस रो को 600 पौंड सालाना की तनख्वाह, जिसमें से आधे कंपनी.. आगे पढ़ें
विज्ञान और “संस्कृति” का विच्छेद
एक वक्त था जब वैज्ञानिक अपने कार्य को व्यापक रूप से बोधगम्य बनाने की कोशिशों में जी-जान से लगे रहते थे। लेकिन, आज की दुनिया में ऐसा रुख दिखायी देना नामुमकिन है। आधुनिक विज्ञान के आविष्कारों ने सरकारों के हाथों में अच्छा या बुरा करने की अभूतपूर्व ताकत दे दी है। जबतक इन्हें इस्तेमाल करने वाले राजनेताओं को इन ताकतों की प्रकृति के बारे में बुनियादी समझ न हो, मुश्किल है कि वे इन्हें समझदारी के साथ इस्तेमाल करेंगे। और लोकतान्त्रिक देशों में न सिर्फ राजनेताओं, बल्कि आम लोगों को भी कुछ हद तक वैज्ञानिक समझदारी रखना जरूरी है।
अंग्रेजी में पढ़ें...
https://users.drew.edu/~jlenz/br-kalinga.html
इस समझदारी का व्यापक पैमाने पर प्रसार करना कोई आसान काम नहीं है। जो लोग तकनीकी वैज्ञानिकों और जनता के बीच सम्पर्क स्थापित करने का काम प्रभावी तरीके से कर सकते हैं, दरअसल वे ऐसा काम कर सकते हैं जो न सिर्फ मानव कल्याण के लिये, बल्कि.. आगे पढ़ें
ईश्वर का आखिरी सहारा (भाग एक)
मैटर, गॉड एंड द न्यू फिजिक्स : ब्रह्मांड विज्ञानी पॉल डेविस की लोकप्रिय पुस्तकों पर एक समीक्षा निबंध
कोरिन्ना लोट्ज़
गेरी गोल्ड
फ्रेडरिक एंगेल्स ने, विशेष रूप से एंटी-ड्यूहरिंग में, एक ऐसे दर्शन के विचार का विरोध किया जो विज्ञान से ऊपर खड़ा हो। उन्होंने देख लिया था कि सैद्धांतिक प्राकृतिक विज्ञान का क्रांतिकारी विकास प्राकृतिक प्रक्रियाओं के द्वंद्वात्मक चरित्र को सामने लेकर आयेगा।
“पहले के सभी दर्शन से स्वतंत्र, जो अभी भी बचा हुआ है, वह है विचार का विज्ञान और उसके नियम, औपचारिक तर्क और द्वंद्वात्मकता। बाकी सब कुछ प्रकृति और इतिहास के सकारात्मक विज्ञान में समाहित हो गया है।”(1)
अब हम यह देखेंगे कि कैसे एंगेल्स द्वारा विकसित दार्शनिक पहुँच आधुनिक विज्ञान की क्रांतिकारी प्रगति से सत्यापित और समृद्ध हुआ है। हमारा यह लेख, क्वांटम यांत्रिकी, खगोल भौतिकी और चेतना के अध्ययन के क्षेत्र में किये गये काम के प्रकाश में, द्वंद्वात्मक तर्क विकसित करने के लिए.. आगे पढ़ें
नये श्रम कानून मजदूरों को ज्यादा अनिश्चित भविष्य में धकेल देंगे
असल मायनों में, नये श्रम कानूनों का लाजमी जोर श्रम–पूँजी के रिश्तों की एक मिसाल को आम बना देने पर है, जो राज्य की कम दखलंदाजी या कानूनों में ढील और दोतरफा औद्योगिक रिश्तों पर इसके स्वाभाविक प्रभाव पर आधारित है।
संसद में तीन नये श्रम कानून पारित किये गये हैं जो मौजूदा 25 श्रम कानूनों की जगह लेंगे। इन तीनों कानूनों का मेल उन श्रम कानूनों के आधिकारिक तौर पर अन्त का प्रतीक है जो हमने बीसवीं सदी के ज्यादातर हिस्से में देखे हैं।
ये कानून पहले से मौजूद उन चैखटों को पूरी तरह बदल देते हैं जिनका इस्तेमाल श्रम कानूनों के अमल के दायरे को तय करने के लिए किया गया था, जैसे किसी प्रतिष्ठान में काम करने वाले लोगों की संख्या। उदाहरण के लिए नया औद्योगिक सम्बन्ध कानून 300 मजदूरों तक के प्रतिष्ठान को सरकार की पूर्व अनुमति के बिना मजदूरों को बर्खास्त करने और छँटनी करने.. आगे पढ़ें
नये श्रम कानून मजदूरों को ज्यादा अनिश्चित भविष्य में धकेल देंगे
असल मायनों में, नये श्रम कानूनों का लाजमी जोर श्रम–पूँजी के रिश्तों की एक मिसाल को आम बना देने पर है, जो राज्य की कम दखलंदाजी या कानूनों में ढील और दोतरफा औद्योगिक रिश्तों पर इसके स्वाभाविक प्रभाव पर आधारित है।
संसद में तीन नये श्रम कानून पारित किये गये हैं जो मौजूदा 25 श्रम कानूनों की जगह लेंगे। इन तीनों कानूनों का मेल उन श्रम कानूनों के आधिकारिक तौर पर अन्त का प्रतीक है जो हमने बीसवीं सदी के ज्यादातर हिस्से में देखे हैं।
ये कानून पहले से मौजूद उन चैखटों को पूरी तरह बदल देते हैं जिनका इस्तेमाल श्रम कानूनों के अमल के दायरे को तय करने के लिए किया गया था, जैसे किसी प्रतिष्ठान में काम करने वाले लोगों की संख्या। उदाहरण के लिए नया औद्योगिक सम्बन्ध कानून 300 मजदूरों तक के प्रतिष्ठान को सरकार की पूर्व अनुमति के बिना मजदूरों को बर्खास्त करने और छँटनी करने.. आगे पढ़ें
जैव-चिकित्सा अनुसंधान की मदद कैसे हो
भारत में स्वास्थ्य विज्ञान में अनुसंधान वर्षों के जमीनी काम पर आधारित समस्या-समाधान की दिशा में नहीं किये जा रहे हैं, यही एक ऐसी मुख्य वजह है कि तमाम पुरानी और नयी बीमारियां लगातार हमें अपना शिकार बना रही हैं।
कभी भारत स्वास्थ्य अनुसंधान में अग्रणी था। भारत और ब्रिटिश के दिग्गजों ने आजादी से पहले और बाद में भी कुछ दिनों तक मिलकर प्लेग अनुसंधान (1900 के दशक का महान प्लेग आयोग) और मलेरिया अनुसंधान पर शानदार काम किया था। 1900 के दशक में भारतीय अनुसन्धान कोष संस्था की शुरुआत हुई, यह संस्था स्वास्थ्य अनुसंधान के लिए अनुदान देती थी। आजादी के बाद यही भारतीय स्वास्थ्य अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) बन गई, जिसके पहले डायरेक्टर डॉक्टर सी जी पंडित बने। हैदराबाद में देश की पहली स्वास्थ्य अनुसंधान संस्था नॅशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ नुट्रिशन की स्थापना हुई, दूसरी संस्था वायरस अनुसन्धान केंद्र (वीआरसी) 1952 में शुरू हुई। आजादी के बाद आईसीएमआर के.. आगे पढ़ें
कोरोना का जवाब विज्ञान है नौटंकी नहीं
09 मई 2020 को विद्या कृष्णन ने ‘कारवाँ’ पत्रिका में छपे अपने लेख “कोरोना का जवाब विज्ञान है नौटंकी नहीं, महामारी पर गलत साबित हुई केंद्र सरकार” में सरकार के कामकाजों का वैज्ञानिक लेखा-जोखा लिया है. वे लिखती हैं कि “कई वैज्ञानिकों ने, जिनसे मैंने लॉकडाउन बढ़ाए जाने के बाद बातचीत की, इस सार्वजनिक-स्वास्थ्य संकट के दौरान विज्ञान को राजनीति और नौटंकी के नीचे रखे जाने पर अपनी निराशा और बेचैनी व्यक्त की. नौटंकीबाजी से आशय भारतीय वायुसेना और भारतीय नौसेना द्वारा 3 मई को किए गए फ्लाइ-पास्ट्स था, जिसमें हेलीकॉप्टरों से भारत के अस्पतालों पर फूल बरसाए गए. इससे पहले थाली और ताली बजाई गई थी और दिये जलाए गए थे.
“महामारी के दौरान सरकार के लिए अपने सार्वजनिक-स्वास्थ्य विशेषज्ञों की सलाह पर ध्यान देना अत्यंत महत्वपूर्ण है. ऐसा करने में विफलता वेंटीलेटर, बेड, परीक्षण किट और अन्य सुविधाओं को तैयार रखने के मामले में भारत की तैयारी पर.. आगे पढ़ें
संकटग्रस्त परिवारों का पेशेवार ब्यौरा
(साभार इन्डियन एक्सप्रेस 11 अप्रैल 2020)
(भारतीय उपभोक्ता अर्थव्यवस्था, डाटाबेस 2016-2018) आगे पढ़ें
छोटे दुकानदार का कारोबार छीन लेगी रिलायंस की जिओ–मार्ट
रिलायंस इण्डस्ट्रीज एक और क्षेत्र में उतरने जा रही है, जहाँ वह ऑनलाइन के खुदरा बाजार में अमेजन, फ्लिपकार्ट, वी–मार्ट आदि कम्पनियों के साथ प्रतियोगिता करेगी । रिलायंस इण्डस्ट्रीज की यह पेशकश रिलायंस रिटेल और रिलायंस जिओ मिलकर चलायेंगी । रिलायंस जिओ अपने ग्राहकों से बिना पूछे उन्हें सीधा रिटेल से जोड़़़ देगी । यह अपने प्रतियोगियों से अलग व्यवस्था करने जा रही है । खुदरा सामानों की डिलीवरी के लिए ग्राहकों को एक एप के जरिए लोकल स्टोर से जोड़ा जायेगा । रिलायंस अपने हाई स्पीड फोर–जी नेटवर्क के जरिए ग्राहक को तत्काल सेवा प्रदान करेगी । मोबाइल एप से ऑर्डर करने पर घर बैठे सामान को स्टोर से ग्राहकों तक पहुँचा दिया जायेगा, मतलब जिओ–मार्ट बिचैलिए का काम करेगी । फिलहाल देश में 15000 स्टोर डिजिटलाइज हुई है ।
दुकानदारों को ऑफर देगी कि हम आपके धन्धे में निवेश करेंगे और मुनाफे को 20 या 30 प्रतिशत लेंगे,.. आगे पढ़ें