सीबीआई और इडी के निदेशकों का सेवा विस्तार
वर्ष 2021 के संसद के शीतकालीन सत्र से ठीक पहले केन्द्र सरकार द्वारा दो अध्यादेश पारित किये गये। 9 दिसम्बर को इन्हें संसद मेंे ध्वनि मत से पास भी करा लिया गया। पहला अध्यादेश केन्द्रीय सर्तकता आयोग संशोधन (2021) और दूसरा अध्यादेश दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन संशोधन (2021) है।
केन्द्रीय सर्तकता आयोग संशोधन में इडी प्रवर्तन विभाग और दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन संशोधन में सीबीआई के निदेशकों का कार्यकाल 5 साल तक बढ़ाने का प्रावधान है। जिसमें गत वर्षों के रिकॉर्ड के आधार पर निदेशकों का कार्यकाल बढ़ाया जायगा। जब अध्यादेशों को पास किया गया, तब लोक शिकायत एवं पेंशन राज्य मंत्री जितेन्द्र सिंह ने बताया कि यह अध्यादेश सीबीआई और इडी के निदेशकों का कार्यकाल 5 साल तक सीमित करने के लिए है। इन अध्यादेशों से पहले सीबीआई और इडी के निदेशकों का कार्यकाल 2 साल का था।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भ्रष्टाचार और घुसखोरी की जाँच के लिए ब्रिटिश सरकार ने 1941 में विशेष पुलिस स्थापन का गठन किया था। 1947 में देश आजाद होने के बाद विशेष पुलिस स्थापन जैसी संस्थाएँ स्वतंत्र बनायी गयीं। 1963 में विशेष पुलिस स्थापन का नाम बदलकर सीबीआई कर दिया गया। इसे आर्थिक अपराध के अलावा अन्य अपराधों की जाँच भी खास आग्रह पर दी जाने लगी। इडी को विदेशी मुद्रा विनियमन अध्निियम (1947) के अन्तर्गत विनिमय नियंत्रण कानूनों के उल्लंघन को रोकने के लिए बनाया गया था, इसकी स्थापना 1956 में हुई थी।
इन जाँच एजेन्सियों की निष्पक्षता पर पहले भी सवाल उठते रहे हैं और इनकी छवि सत्ता पक्ष के सेवक की है। केन्द्र सरकार द्वारा लाये गये अध्यादेश जाँच एजेन्सियों को मुक्कमल तौर पर सत्ता के लठैत बनाने के लिए हैं। अध्यादेश में कहा गया है कि जाँच एजेन्सियों के निदेशकों का कार्यकाल गतवर्षों के रिकॉर्ड के आधार पर बढ़ाया जायेगा। यानी कोई भी निदेशक अपने सेवा विस्तार की मलाई खाने के लिए सरकार के इशारों पर नाचेगा। जिन निदेशकों का कार्यकाल बढ़ाया गया है जैसे–– इडी के निदेशक संजय कुमार मिश्रा, वे पहले ही इस सरकार के लिए भाजपा के पक्के कार्यकर्त्ता के तौर पर काम कर रहे हैं, आगे और जमकर करंेगे। कहते हैं कि जो जिसका खायेगा, उसका ही गायेगा।
पहले ही जाँच एजेन्सियों की निश्पक्षता का आलम यह है कि जब मौरिसस सरकार ने भारत सरकार को राफेल घोटाले के सम्बन्ध में यह जानकारी दी कि फर्जी बिल बनाकर बिचैलियों ने 65 करोड़ रुपये का घोटाला किया है तो सारी जानकारी और दस्तावेजी सबूत होने के बावजूद जाँच एजेन्सियों ने कोई जाँच नहीं की। अब यह अध्यादेश जाँच एजेन्सियों को सत्ता की सेवा के लिए और ज्यादा मजबूर कर देगा।
हाल ही में वरिष्ठ पत्रकार श्री निवासन ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि जाँच एजेन्सियों ने 500 से ज्यादा व्यक्तियों को टारगेट किया है, जिसमें ऐसे एक्टिविस्ट, विपक्षी नेता, शिक्षाविद्, बुद्धिजीवी हैं जो सरकार की गलत नीतियों पर सवाल उठाते हैं। सरकार ने जाँच एजेन्सियों को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर विरोध की आवाजे दबा दी। इन कानूनों से सरकार को अपने खिलाफ उठने वाली हर आवाज को कुचलने में और ज्यादा मदद मिलेगी। श्री निवासन की रिपोर्ट से स्पष्ट होता है कि सरकार ने जाँच एजेन्सियों के निदेशकों पर सेवा विस्तार की जो मेहरबानी की है, उससे विपक्षी पार्टियों पर घोटाले भ्रष्टाचार के मुकदमे लादना और अपने ऊपर लगे आरोपों को हटाना आसान हो जायेगा। इसलिए तो महाराष्ट्र के सांगली से बीजेपी के लोक सभा सदस्य संजय पाटिल ने कहा कि “इडी उनके पीछे नहीं पड़ेगी, क्योंकि वह भाजपा के सांसद हैं”।
सरकार संविधान का रक्षक होने का दावा करती है जबकि ये कानून सुप्रीम कोर्ट के 1997 में जैन हवाला केस के फैसले के खिलाफ हैं जिसमें जाँच एजेन्सियों के निदेशकों का कार्यकाल 2 साल तय किया गया था।
स्वतंत्र संस्थाओं में अपने माफिक अफसरों का सेवा विस्तार करना तथा सुप्रीम कोर्ट की अवहेलना तानाशाही की ओर इशारा करती है। इन अध्यादेशों के बाद सीबीआई और इडी देश में होने वाले अपराधों को रोकने के बजाय विपक्ष को कुचलने का एक हथियार बन जायेगी। इन अध्यादेशों के माध्यम से जाँच एजेन्सियों को दलदल में धकेला जा रहा है।