2,26,800 करोड़ रुपये का मासिक व्यापार घाटा
सितम्बर महीने में व्यापार घाटा 1,74,552 करोड़ रुपये (20.78 अरब डॉलर) था जिसको लेकर सरकार और मीडिया ने खूब ढिंढोरा पीटा कि भारत का व्यापार घाटा तेजी से कम हो रहा है। यह भी दावा किया गया कि पिछले साल की तुलना में अक्टूबर महीने में इस साल का व्यापार घाटा सबसे कम होगा। इस पर मोदी जी की दूरदर्शिता का खूब बखान किया गया। ऐसा अनुमान लगाया गया था कि अक्टूबर में देश का व्यापार घाटा 1,84,800 करोड़ रुपये रहेगा। लेकिन इस सब हवाबाजी की पोल–पट्टी तब खुल गयी जब अक्टूबर के आकड़े सामने आए। इसमें पता चला कि व्यापार घाटा तो बढ़कर 2,26,800 करोड़ रुपये हो गया है, जो अनुमान से करीब 42,000 करोड़ रुपये ज्यादा था। इस पर सरकार और उससे सम्बद्ध मीडिया घरानों की घिग्गी बँध गयी। इन आँकड़ों को देखकर उनके मुँह से चू भी नहीं निकली।
अगर पिछले कुछ महीनों की तुलना की जाये तो निर्यात में वृद्धि जरूर दिखायी दे रही थी, लेकिन सितम्बर–अक्टूबर में आयात में बढ़ोत्तरी हुई और निर्यात गिर गया जो अर्थव्यवस्था के लिये कोई अच्छी खबर नहीं थी। इसको सरकार ने लगातार नजरन्दाज किया और अपना महिमामण्डन करती रही।
पिछले कुछ महीनों में विदेशी मुद्रा भण्डार में तेजी से गिरावट आयी है जिससे व्यापार घाटा कम होने के बजाय और बढ़ गया है। व्यापार घाटे को पूरा करने के लिए विदेशी मुद्रा का होना बेहद जरूरी है, लेकिन इसी साल सितम्बर के महीने में विदेशी मुद्रा भण्डार 59,21,000 करोड़ रुपये से घटकर, नवम्बर के महीने में सिर्फ 55,27,000 करोड़ रुपये रह गया। जुलाई के बाद से सातवीं बार भारत का विदेशी मुद्रा भण्डार लगातार नीचे गिरा। इसको लेकर सरकार ने आँख मूँद ली है। उसे न कुछ दिखायी दे रहा है और न ही कुछ सुनाई। वह तो सिर्फ आधे–अधूरे आँकड़ों की वाहवाही करने में जुटी है।
जहाँ एक तरफ र्इंधन आयात पर देश का खर्च बढ़ गया है, वहीं दूसरी तरफ वस्तुओं के निर्यात में तेजी से कमी आयी है। भारत में पुराने समय से ही सबसे ज्यादा पेट्रोलियम उत्पाद, रत्न–आभूषण, कपास–कपड़े, दवाइयाँ, कार्बनिक और अकार्बनिक रसायन, मशीनें, उपकरण, लोहा, इस्पात, कार, डेयरी उत्पाद और चाय आदि का निर्यात किया जाता रहा है। हकीकत यह है कि मौजूदा समय में इन उत्पादों का निर्यात घटा है और उन उत्पादों का निर्यात बढ़ा है जिनका उत्पादन भारत में अकूत मुनाफा कमाने के लिये विदेशी कम्पनियाँ करती हैं। ज्यादातर इन कम्पनियों के उत्पादों का यहाँ उत्पादन नहीं होता, बल्कि इनकी सिर्फ असेम्बलिंग की जाती है। इससे ज्यादातर पैसा विदेशी कम्पनियों के धन्नासेठों की जेब में जाता है। अगर यह पैसा भारत में नहीं आएगा तो व्यापार हमेशा घाटे में ही रहेगा।
इसके अलावा इलेक्ट्रॉनिक्स के समानों में निर्यात कुछ जरूर बढ़ा है। लेकिन सच्चाई की परतें तब खुलती हैं जब पता चलता है कि इलेक्ट्रॉनिक और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (एमईआईटीवाई) को इस सालाना बजट में 14,421 करोड़ रुपये दिया जाना तय था, जिसे अचानक बढ़ाकर 21,936 करोड़ रुपये कर दिया गया। इलेक्ट्रॉनिक्स के समानों में इतना रुपया देने के बावजूद भी निर्यात में मामूली सा इजाफा ही हुआ है। एक ओर तो सरकार को इलेक्ट्रॉनिक्स में जितने का बाबू नहीं उतने का झुनझुना पड़ गया, वहीं दूसरी ओर पिछले छह महीनों से पेट्रोलियम, रत्न, आभूषणों आदि के निर्यात में भी भारी गिरावट जारी है।