21 अप्रैल, 2020 (ब्लॉग पोस्ट)

कोविड-19 : आईसीएमआर क्यों नहीं सार्वजनिक कर रही कोविड कार्यबल की बैठकों के मिनट्स

विद्या कृष्णन स्वास्थ्य मामलों की पत्रकार हैं और गोवा में रहती हैं. 20 अप्रैल 2020 को कारवाँ मैगजीन में उनका एक लेख प्रकाशित हुआ था, जिसका शीर्षक है— “कोरोनावायरस : कारवां के सवालों का आईसीएमआर ने नहीं दिया जवाब, क्यों नहीं सार्वजनिक कर रही कोविड कार्यबल की बैठकों के मिनट्स.” इस लेख में उन्होंने अपने 15 अप्रैल को कारवां में अंग्रेजी में छपे लेख का जिक्र भी किया है, जिसका शीर्षक है-- “मोदी सरकार ने कोरोना संबंधी जरूरी फैसलों से पहले आईसीएमआर द्वारा गठित कार्यबल से नहीं ली सलाह.”  इन दोनों लेखों के चुनिन्दा अंशों को यहाँ दिया जा रहा है.

 

कोविड-19 के लिए गठित देश के 21 शीर्ष वैज्ञानिकों वाले राष्ट्रीय कार्यबल (टास्क फोर्स), जिसे महामारी के संबंध में नरेन्द्र मोदी सरकार को सलाह देनी थी, उसके चार सदस्यों का कहना है कि देशव्यापी तालाबंदी या लॉकडाउन को बढ़ाने की घोषणा करने से पहले कार्यबल की बैठक ही नहीं हुई. 14 अप्रैल को एक राष्ट्रीय प्रसारण में मोदी ने लॉकडाउन को 3 मई तक बढ़ाने की घोषणा की थी. सरकार ने निर्णय लेने से पहले विशेषज्ञों की टीम से परामर्श ही नहीं किया. 14 अप्रैल को समिति के एक सदस्य ने सरकार की नाराजगी के डर से नाम न छापने की शर्त पर मुझे बताया, "समिति ने पिछले सप्ताह एक भी बार मुलाकात नहीं की." 14 अप्रैल तक भारत में कोविड संक्रमितों की संख्या बढ़कर 10363 हो गई थी और इससे मरने वालों की संख्या 339 हो चुकी थी.

 

"लगता है कि बस यह बताने के लिए वे वैज्ञानिकों से परामर्श कर रहे हैं, यह समिति बनाई गई है," एक सदस्य ने कहा. उस सदस्य ने कहा कि 4 अप्रैल को भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर), जो भारत की कोविड-19 नीति तैयार करने वाली नोडल संस्था है, ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया था कि निजी प्रयोगशालाओं को कोविड-19 की जांच की अनुमति देने का निर्णय कार्यबल के साथ "व्यापक विचार-विमर्श" के बाद लिया गया है. लेकिन उस सदस्य के अनुसार, ऐसी कोई चर्चा नहीं हुई. सदस्य ने बताया कि 14 अप्रैल तक कार्यबल को किसी भी मीटिंग के मिनट्स तक नहीं दिए गए. कार्यबल के एक दूसरे सदस्य ने भी नाम न छापने की शर्त पर बताया कि बैठकों के मिनट्स केवल कैबिनेट सचिव को भेजे गए हैं और कार्यबल के अन्य सदस्यों के साथ साझा नहीं किए गए.

 

कार्यबल द्वारा लिए गए निर्णय में जिस किस्म की अपारदर्शिता है उसे कोविड-19 की निजी जांच की अनुमति वाले निर्णय से समझा जा सकता है. 21 मार्च को, कार्यबल गठित होने के तीन दिन बाद, स्वास्थ्य मंत्रालय ने आईसीएमआर द्वारा जारी दिशानिर्देशों को नोटीफाई किया, जिसमें निजी क्लीनिकों को नोवेल कोरोनवायरस की जांच की अनुमति दी गई थी और परीक्षणों के लिए 4500 रुपए शुल्क निर्धारित किया गया था. अधिवक्ता शशांक देव सुधी ने एक जनहित याचिका में इस फैसले को चुनौती दी. उस याचिका में अदालत से गुहार लगाई गई कि वह निशुल्क परीक्षण करने के लिए निजी क्लीनिकों को निर्देश दे. 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने याचिका मंजूर की और आदेश दिया कि परीक्षण सरकारी और निजी दोनों प्रयोगशालाओं में निशुल्क होना चाहिए.

 

दो दिन बाद दिल्ली के प्राइमस अस्पताल के आर्थोपेडिक सर्जन डॉ. कौशल कांत मिश्रा ने आदेश के संशोधन की मांग करते हुए एक हस्तक्षेप आवेदन दायर किया. आवेदन में कहा गया था कि अदालत ने निजी क्लीनिकों की भरपाई का मामला बाद में हल करने को कहा है जिसके चलते निजी लैबें मरीजों की जांच करने से इनकार करेंगी. आवेदन में उन्होंने अदालत से मांग की कि वह निजी प्रयोगशालाओं को आम जनता से 4500 रुपए तक जांच शुल्क लेने की अनुमति दे और केवल आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की श्रेणी वाले लोगों के लिए निशुल्क परीक्षण की जाए. 11 अप्रैल को अपने आवेदन के बारे में एएनआई के एक ट्वीट को रिट्वीट करते हुए मिश्रा ने लिखा, "यह हर नागरिक और सरकार की मदद करने का प्रयास है !!! ... इसे पीएम फंड के लिए दान माना जाना चाहिए क्योंकि आप खुद को नहीं बल्कि समाज को भी बचा रहे हैं!!".....

 

केंद्र सरकार ने आदेश के संशोधन का समर्थन किया है. सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने राज्य के "सीमित संसाधनों" की दुहाई दी और कहा कि कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई लंबी चल सकती है. फिर 12 अप्रैल को अदालत ने अपने पिछले आदेश को संशोधित करते हुए फैसला सुनाया कि निशुल्क जांच केंद्र सरकार की आयुष्मान भारत बीमा योजना के लाभार्थियों तक सीमित होगी. अदालत ने कहा कि "सरकार इस बात पर विचार कर सकती है कि क्या इस संबंध में कोई विशेष निर्देश जारी किए बिना समाज के किसी अन्य वर्ग को कोविड-19 के निशुल्क परीक्षण का लाभ दिया जा सकता है." अदालत ने यह भी कहा, "हम इस बात से अवगत हैं कि योजना का निर्धारण और उसका कार्यान्वयन सरकार के क्षेत्राधिकार में है, जसके पास इस तरह के मामलों के सबसे अच्छे विशेषज्ञ हैं." लेकिन लगता है कि जैसे सरकार ने तय कर लिया है कि वह स्वयं द्वारा गठित विशेषज्ञों की टीम से भी परामर्श नहीं करेगी. नतीजतन, निजी क्षेत्र को इस महामारी से अप्रत्याशित कमाई होगी क्योंकि अदालत ने उन्हें आईसीएमआर द्वारा तय 4500 रुपए प्रति परीक्षण की दर से जांच करने की अनुमति जो दी है.....

 

स्वास्थ्य क्षेत्र पर नजर रखने वाली संस्था ऑल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क की सह-संयोजक मालिनी आयसोला ने कहा, "शुल्क सीमा अनुचित रूप से बहुत अधिक है और परीक्षण की सही लागतों से इसका कोई संबंध नहीं है." आयसोला  ने उन वैज्ञानिकों से संपर्क किया जिनका अनुमान है कि परीक्षण 500 रुपए तक में हो सकता है. “निजी प्रयोगशालाओं को इस तरह के भारी मार्जिन की अनुमति क्यों दी गई? और आईसीएमआर ने अदालत को मजूमदार शॉ वाली समिति के बारे में क्यों नहीं बताया? शुल्क निर्धारित करने के फैसले कैसे लिए गए, इस बारे में भी कोई पारदर्शिता नहीं है. ”

 

इस बीच सरकार ने कार्यबल की सिफारिशों को लागू नहीं किया है. 6 अप्रैल को आईसीएमआर ने एक दस्तावेज प्रकाशित किया था जिसमें कहा गया था कि कार्यबल ने तत्काल प्राथमिकता के रूप में "इंडिया कोविड-19 क्लीनिकल रिसर्च कोलैबोरेटिव नेटवर्क”  के गठन की सिफारिश की है. दस्तावेज में उल्लेख है, "इस नेटवर्क का लक्ष्य देश में कोविड-19 की नैदानिक समझ को बढ़ाना है ताकि विशिष्ट नैदानिक प्रबंधन प्रोटोकॉल विकसित किया जा सके." मैंने जिन दो सदस्यों से बात की उनके अनुसार यह अभी तक नहीं किया गया है. "जहां तक मैं जानता हूं इस पर चर्चा नहीं की गई है," नाम जाहिर न करने का अनुरोध करने वाले पहले सदस्य ने कहा. "वे निर्णय लेकर हम पर डाल रहे हैं. मुझे संदेह है कि यह निर्णय कहीं और लिया गया है और बाद में कहा जाएगा कि हमने यह निर्णय लिया है. "

 

कार्यबल के अध्यक्ष पॉल और आईसीएमआरएस के महानिदेशक भार्गव को मैंने कई ईमेल और संदेश भेजे जिनका कोई जवाब नहीं मिला. उनकी प्रतिक्रिया मिलने पर रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.

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... कारवां की रिपोर्ट को प्रकाशित करने से पहले कारवां ने भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) को ईमेल और संदेश भेजे थे लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया. तो भी रिपोर्ट के प्रकाशित होने के बाद आईसीएमआर ने एक ट्वीट किया कि कारवां की रिपोर्ट गलत है. इसके बाद प्रेस सूचना ब्यूरो फैक्ट चैक ने अपने ट्विटर हैंडल से कारवां की रिपोर्ट को फेक न्यूज बताया.

 

इसके बाद कृष्णन ने आईसीएमआर के महानिदेशक बलराम भार्गव, कार्यबल के अध्यक्ष विनोद पॉल, पीआईबी फैक्ट चैक के अधिकारी और स्वास्थ्य मंत्रालय के लिए पीआईबी की सहायक महानिदेशक मनीषा वर्मा को ईमेल कर स्पष्ट किया कि कारवां की रिपोर्ट कार्यबल के चार सदस्यों के हवाले से लिखी गई है और आईसीएमआर या पीआईबी ने रिपोर्ट में उठाए गए जरूरी सवालों का जवाब नहीं दिया है. कृष्णन ने उन्हें यह भी बताया कि रिपोर्ट को प्रकाशित करने से पहले भार्गव और पॉल को जवाब देने के लिए पर्याप्त वक्त दिया गया था लेकिन दोनों ने जबाव नहीं दिया. चूंकि आईसीएमआर ने रिपोर्ट में उठाए गए जरूरी सवालों का जवाब नहीं दिया इसलिए कृष्णन ने पीआईबी से पूछा है कि उसने किन तर्कों के आधार पर उनकी रिपोर्ट को गलत बताया है.

 

कृष्णन ने पॉल और भार्गव को जवाब देने के लिए 16 अप्रैल की दोपहर तक का समय दिया था. उस दिन सुबह 9.53 बजे उन्हें पीआईबी फैक्ट चैक का जवाबी ईमेल आया कि उनके ईमेल को वर्मा को फॉर्वर्ड कर दिया गया है. इस खबर को प्रकाशित किए जाने तक भार्गव, पॉल या वर्मा किसी ने भी जबाव नहीं दिया है.

 

पत्रकार कृष्णन ने पॉल, भार्गव और वर्मा को लिखे अपने ईमेल में इन 11 सवालों के जबाव मांगे हैं :

 

1. आईसीएमआर ने ट्वीट किया है कि पिछले महीने कार्यबल ने 14 बार बैठकें की थी. कार्यबल के सदस्यों ने बताया है कि लॉकडाउन की घोषणा से पहले के हफ्ते में कोई बैठक नहीं हुई. क्या 8 और 13 अप्रैल के बीच कार्यबल की कोई बैठक हुई थी?

 

 

2. क्या कार्यबल के सदस्यों को बैठक के मिनट्स की कॉपी दी जाती है? यदि नहीं, तो क्यों नहीं?

 

3. क्या आईसीएमआर या केंद्र सरकार ने निजी क्लीनिकों को कोविड-19 की जांच की अनुमति देने और जांच का मूल्य 4500 रुपए रखने वाले निर्णय में कार्यबल से औपचारिक तौर पर सलाह ली थी? यदि हां, तो इन बैठकों और चर्चाओं के मिनट्स की कॉपी उपल्ब्ध कराएं.

 

4. आईसीएमआर ने ट्वीट किया था कि पिछले महीने कार्यबल ने 14 बार बैठक की. कृपया इन बैठकों के मिनट्स उपलब्ध कराएं. यह भी बताएं कि ये बैठकें किन तारीखों में हुई थीं और इनमें किन-किन लोगों ने भाग लिया था?

 

5. कारवां ने अपनी रिपोर्ट में यह भी बताया है कि कार्यबल की सिफारिश के बावजूद आईसीएमआर ने “इंडिया कोविड-19 क्लीनिकल रिसर्च कोलैबोरेटिव नेटवर्क” का अब तक गठन नहीं किया है. फिलहाल इसका क्या स्टेटस है?

 

6. अपनी बैठकों में कार्यबल ने क्या सिफारिशें की हैं?

 

7. सिफारिशों या बैठकों के मिनट्स को सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया?

 

8. आईसीएमआर ने सुप्रीम कोर्ट से यह क्यों छिपाया कि कि वह निजी क्षेत्र के लोगों वाली समिति से परामर्श कर रही है जिसके बारे में उस समिति की सदस्य किरण मजूमदार शॉ ने साक्षत्कारों में खुद बताया है?

 

9. कृपया नीजी क्षेत्र के लोगों वाली समिति की जानकारी साझा करें. इससे कब परामर्श किया गया? क्या राष्ट्रीय कार्यबल की तर्ज पर इसके संबंध में भी कोई औपचारिक अधिसूचना या जानकारी दी गई है? इसके सदस्य कौन लोग हैं? केंद्र या आईसीएमआर ने कितनी बार इस समिति से परामर्श किया है? इस समिति ने क्या-क्या सिफारिशें दी हैं?

 

10. क्या आईसीएमआर ने सुप्रीम कोर्ट से झूठ बोला था कि उसने नीजी जांच की मंजूरी देने के संबंध में कार्यबल से चर्चा की थी?

 

11. कारवां अंतर्राष्ट्रीय स्तर की पहचान वाली और सम्मानित संस्था है. इसके बावजूद पीआईबी ने उसके सवालों का जबाव दिए बगैर ही उसकी रिपोर्ट को गलत बता दिया. पीआईबी ने फैक्ट चैक करने के लिए किस प्रक्रिया को अपनाया था?

(कारवाँ से साभार)

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