विज्ञान के दार्शनिक, फ्रेडरिक एंगेल्स को 200 वें जन्मदिवस पर याद करते हुए
उन्नीसवीं सदी के वैज्ञानिक रूप से अत्यधिक प्रबुद्ध व्यक्तियों में से एक बेहद प्रसंशित, एंगेल्स ने प्रकृति के भौतिकवादी इतिहास की राह रौशन की।
अब से 200 साल पहले 28 नवंबर 1820 को फ्रेडरिक एंगेल्स का जन्म जर्मनी के बर्मन में हुआ था।
ऐसा लगता है कि फ्रेडरिक एंगेल्स कभी खुद को गंभीरता से नहीं लेते थे।
एंगेल्स अपनी ‘स्वीकारोक्ति’ में अपनी स्वाभाविक अवस्था में थे, जिसे 1865 में कभी मार्क्स की बेटियों ने रिकॉर्ड किया था, जल्द ही उनके पिता भी ऐसा करने के लिए प्रेरित हुए थे। वे ‘स्वीकारोक्तियाँ’ निश्चित रूप से पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष सामाजिक अनुष्ठान थीं, लेकिन ये आत्म-अन्वेषण पर किसी भी गंभीर प्रयास की तुलना में ड्राइंग-रूम का एक विषयांतर अधिक थीं। फिर भी, मार्क्स पूछे गये सवालों का जवाब देने में बिलकुल संजीदा थे, जबकि विशेष रूप से एंगेल्स बेअदब और मुखर थे। इस तरह, मार्क्स ने अपनी मुख्य चारित्रिक विशेषता को ‘उद्देश्य की विलक्षणता’ के रूप में बताया, जबकि एंगेल्स ने अपनी मुख्य चारित्रिक विशेषता को ‘सबकुछ आधा-अधूरा जानने वाले’ के रूप में। मार्क्स ने ‘परवशता’ को दुःख के रूप में पेश किया था, जबकि एंगेल्स ने 'दन्त चिकित्सक के पास जाने' को। मार्क्स की पसंदीदा सूक्ति, सुप्रसिद्ध, ‘'कोई मनुष्य मेरे लिए पराया नहीं है' थी, जबकि एंगेल्स ने सीधे-सीधे जवाब दिया ‘कोई भी नहीं'। अंत में, यहाँ तक कि मार्क्स ने 'हर चीज पर सवाल करो' को अपने आदर्श वाक्य के रूप में दर्ज किया, तो एंगेल्स ने प्रसन्नतापूर्वक अपने आदर्श वाक्य के रूप में 'फिक्र मत करो' का उल्लेख किया।
आज हममें से कई लोगों के साथ यह समस्या है कि हम अक्सर एंगेल्स को बिलकुल शाब्दिक अर्थ में लेते हैं, उनके चपल हास्य बोध को भूल जाते हैं। इसलिए हम सोचते हैं कि वास्तव में फ्रेडरिक एंगेल्स अपने जीवन के लम्बे समय तक चीजों को हल्के में लेते रहे थे। निश्चित रूप से हम आभार महसूस करते हैं कि उन्होंने अपने अधिक प्रसिद्ध, और दीर्घकालिक जरूरतमन्द मित्र मार्क्स का इंग्लैंड आवास के दौरान सहयोग किया था-- आर्थिक और अन्य रूप में-- जिसके बिना मार्क्स शायद उन कार्यों को पूरा नहीं कर पाते, जिनकी वजह से आज दुनिया उन्हें जानती है। हम मार्क्स के बाद के लेखन का एक बड़ा हिस्सा-- जिसमें पूँजी के खण्ड दो और तीन शामिल है-- प्रिंटिंग के लिए एंगेल्स के अमूल्य योगदान को भी सहजता से स्वीकार करते हैं, जिसके लिए उन्हेंने उनके संपादक और प्रकाशक के रूप में काम किया। हालांकि, एंगेल्स के सैद्धांतिक काम के लिए, हम उन्हें मुख्य रूप से मार्क्सवाद के एक व्याख्याकार या अन्वेषक के रूप में देखते हैं, हालाँकि इसके सबसे प्रसिद्ध अन्वेषक के रूप में ही, जबकि मूल विचारक के रूप में कभी-कभी ही देखते हैं।
वास्तव में, एंगेल्स को कभी-कभी मार्क्स के विचारों के 'सरलीकरण करने वाले' के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जो कई सरलीकरण करने वालों की तरह, कभी-कभी मुख्य लेखन के बारे में भ्रामक पार्श्व टिप्पणी दे सकता है। उन्नीसवीं सदी के बौद्धिक दिग्गजों में से एक एंगेल्स के बारे में इस पीढ़ी के अध्ययन पर यह एक दुखद टिप्पणी है, ऐसे व्यक्ति जिनके कई सैद्धांतिक सवालों के बारे में दुर्जेय कार्ल मार्क्स ने भी खुद को कई बार टाल दिया! (द वायर द्वारा 'द क्रूसर इन ए क्रोनिकलर : फ्रेडरिक एंगेल्स एंड द वर्किंग क्लास इन इंग्लैंड ' शीर्षक के तहत एक निबंध पर मैंने वास्तव में तर्क दिया था कि शुरुआती औद्योगिक काल के अंग्रेज़ मजदूर वर्ग की दशा पर एंगेल्स का अन्वेषण कार्य समाज के अध्ययन की मार्क्सवादी पद्धति का सबसे पहला प्रयोग था और यह मार्क्सवाद से पहले का था, जैसा कि हम आज कई वर्षों से जानते हैं।)
उम्मीद है कि, एंगेल्स को उनके जन्म के दो सौ साल बाद गलत व्याख्या, गलत धारणा और विस्मृति के बोझ को हटाकर समझा जाएगा। उम्मीद है कि योग्य समीक्षक एंगेल्स के सैद्धांतिक रुचियों के बहुत व्यापक क्षेत्र का सर्वेक्षण करेंगे, जबकि मैं यहाँ वानर से नर बनने में श्रम की भूमिका शीर्षक वाले उनके निबंध तक खुद को सीमित रखूंगा। मई-जून 1876 में लिखे गए, इस निबंध को बाद में उनकी रचना प्रकृति का द्वंदवाद के अध्याय नौ के रूप में शामिल कर दिया गया, विज्ञान और प्राकृतिक इतिहास के दर्शन पर एंगेल्स का यह अधूरा-- और उनके जीवनकाल में अप्रकाशित-- काम उनके 1878 की उत्कृष्ट कृति एण्टी ड्यूरिंग की तुलना में अधिक व्यापक है।
वानर से नर… को एक अलग पुस्तक के रूप में प्रकाशित करने के काम को काफी महत्वपूर्ण माना जाता था, पहले प्रोग्रेस पब्लिशर्स, मॉस्को द्वारा और बाद में कई देशों में अन्य प्रकाशकों द्वारा। वास्तव में, ‘प्राकृतिक और मानव इतिहास के एकात्मक भौतिकवादी प्रतिमान’ को प्रस्तुत करने के कारण, यह निबंध अपने समय में ज्ञान-मीमांसा और सत्ता-मीमांसा की एक ऐतिहासिक उपलब्धि थी, और इसे प्राकृतिक इतिहासकारों, विज्ञान के दार्शनिकों, मानवविज्ञानियों और विकासवादी जीवविज्ञानियों की पीढ़ियों द्वारा ऐसा ही माना गया है। चूँकि अपनी दूसरी बड़ी व्यस्तताओं के कारण, एंगेल्स इस उल्लेखनीय अंश को कभी पूरा नहीं कर सके-– उनके अन्य उपदेशों के कारण यह शब्दशः एक वाक्य के बीच में ही खत्म हो जाता है- जो शायद हमें प्रकृति के भौतिकवादी दर्शन के सबसे अधिक प्रभावशाली ढंग से तर्क-वितर्क करने वाले एक सैद्धांतिक व्याख्या से वंचित कर देता है। लेकिन उन्होंने जो कुछ पीछे लिखकर छोड़ दिया है, उससे यह थोड़ा दूर ले जाता है-- प्राकृतिक इतिहास की जांच के द्वंद्वात्मक-भौतिकवादी पद्धति का एक शानदार चित्रण।
एंगेल्स यह कहते हुए शुरू करते हैं कि श्रम न केवल सभी सम्पत्ति का मूल स्रोत है ("प्रकृति के बाद, जो इसे उन पदार्थों की आपूर्ति कराती है जिसे वह सम्पत्ति के रूप में परिवर्तित करता है"), वास्तव में, यह "सम्पूर्ण मानव अस्तित्व के लिए मुख्य बुनियादी शर्त है"। ऐसा इसलिए है क्योंकि मानव शरीर-- और साथ ही, मानव मस्तिष्क- वास्तव में श्रम की ऐतिहासिक प्रक्रिया के माध्यम से ही विकसित हुए हैं। अब, श्रम-- यहां तक कि इसके सबसे शुरुआती संस्करण, जिसमें सबसे ज्यादा अपरिष्कृत प्रारम्भिक उपकरणों का निर्माण शामिल था-- ने दोपाया (बाइपेडलिज्म) को जरूरी बना दिया, क्योंकि केवल अपने हाथों को मुक्त करके ही वन-मानुष (एन्थ्रोपोयड) उन उपकरणों को बनाने की संभावना पैदा कर सकता था।
इसलिए "वानर से नर में संक्रमण का निर्णायक (पहला) कदम", तब लिया गया था, जब नर-वानर (होमिनिड्स) ने सीखा कि कैसे सीधे खड़े हुआ जाए और केवल अपने पैरों पर चला जाए, न कि चारो हाथों-पैरों पर, या यहाँ तक कि आधे सीधे मुद्रा में भी जिसमें, आमतौर पर कुछ आदिम-मानव (प्राइमेट्स) 'चलते समय' हाथों का कम से कम आंशिक उपयोग करते थे। दो पैरों पर चलने के साथ ही अल्पविकसित उपकरणों के शिल्प कार्य में नर-वानर के हाथों के तेजी से और अधिक व्यापक उपयोग ने उनके हाथों को लगातार अधिक निपुण और बहुमुखी बनाया। और, इन कौशल और क्षमताओं के बदले वानरों और शुरुआती आदमी के बीच का अन्तर बढ़ता गया। इससे अर्थपूर्ण अवलोकन का परिणाम निकलता है जो इस निबंध की मुख्य बातें है:
"इस प्रकार हाथ केवल श्रम का अंग नहीं है, यह श्रम का उत्पाद भी है।" (एंगेल्स द्वारा जोर दिया गया)
लेकिन हाथ अकेले मौजूद नहीं था, एंगेल्स हमें याद दिलाते हैं; यह एक अत्यधिक जटिल जीव का केवल एक हिस्सा था। "इस तरह हाथ को जो फायदा हुआ, उससे पूरे शरीर को भी फायदा हुआ..."। इसके अलावा, इन्सानी बोली का उद्भव और विकास हाथ के विकास के प्रभाव के माध्यम से हुआ। श्रम के बदौलत ही मनुष्य के ज्ञान की सीमाओं का लगातार विस्तार हुआ, और मनुष्य को अपने वातावरण पर महारत हासिल करने में ज्ञान की नयी सीमाओं ने संयुक्त या सामुदायिक – वैयक्तिक के विपरीत – क्रियाकलापों के लाभों की ओर संकेत किया (उदाहरण के लिए, शिकार में)। संयुक्त खोज ने आपसी सहयोग और समन्वित कार्रवाई को बढ़ावा दिया जिसके फलस्वरूप, मनुष्य एकजुट हुए। "संक्षेप में, मनुष्य बनने के क्रम में वे उस स्थिति में पहुँचे जहाँ एक-दूसरे से कहने के लिए उनके पास कुछ था"। (एंगेल्स द्वारा तिरछा किया हुआ)
"आवश्यकता ने अंग का निर्माण किया: धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से लय द्वारा लगातार अधिक परिपक्व लय उत्पन्न करने के लिए वानर का अविकसित कंठ परिवर्तित हो गया था, और मुख के अंगों ने धीरे-धीरे एक के बाद एक स्पष्ट ध्वनि का उच्चारण करना सीख लिया था।"
उसी समय, नर-वानरों ने अपने आहार में अधिक विविधता अपनाया। उन्होंने आहार में प्रचुर प्रोटीन युक्त (मस्तिष्क के विकास के लिए महत्वपूर्ण) मांस और मछली को शामिल किया, और आग के उपयोग की खोज के साथ, इन खाद्य पदार्थों ने चयापचय को तेज किया, अधिक से अधिक पोषण की आपूर्ति की, जिससे मनुष्य को भोजन की तलाश करने या निगलने में अधिक समय व्यतीत नहीं करना पड़ता था। वह अब नए वातावरण में रहने और महत्वपूर्ण रूप से, बोझ ढोने वाले और भोजन के स्रोत के रूप में दोनों तरह के, जानवरों को पालने में सक्षम हो गया। मनुष्य ने विविध जलवायु में रहना सीखना शुरू कर दिया।
"हाथ, बोलने के अंगों और मस्तिष्क के संयुक्त कामकाज से, न केवल प्रत्येक व्यक्ति में बल्कि समाज में भी, मनुष्य अधिक से अधिक जटिल कार्यों को अंजाम देने में समर्थ हो गए, और खुद के लिए उच्च से उच्च लक्ष्य निर्धारित करने और उन लक्ष्यों को प्राप्त करने में सक्षम हो गए थे"। कृषि को पशु-पालन और शिकार से जोड़ा गया। फिर कताई, बुनाई, मिट्टी के बर्तन, धातु-कर्म और परिवहन आया। फिर कला और विज्ञान के बाद व्यापार आया। यथार्थपूर्ण और उद्देश्य-चालित विचार प्रक्रियाओं के साथ-साथ अमूर्त विचार का आना भी प्रारम्भ होने लगा। मनुष्य अब सभ्यता - राष्ट्रों, राज्यों और धर्मों- की संस्थाओं को विकसित करने के लिए तैयार हो गया था।
एंगेल्स मानव को एकल पारिस्थितिक आले में फिट करने के बजाय प्रकृति में विविध और गतिशील तरीकों से नियंत्रित करने की क्षमता होने के कारण जानवरों से अलग रूप में देखते हैं। और यह क्षमता मानव श्रम से उत्पन्न होती है, जो दोनों ही नियंत्रण/रूपान्तरण में मदद करती है और मनुष्य की संज्ञानात्मक कार्यक्षमताओं को लगातार बढ़ाकर उसी क्षमता को और अधिक बढ़ाती है।
प्रसिद्ध जीवाश्म विज्ञानी स्टीफन जे गोल्ड के अनुसार, आज जिसे 'जीन-कल्चर कोएवोल्यूशन’ के रूप में जाना जाता है, उसका यह सार है, एक प्रक्रिया जिसके तहत आनुवंशिक विकास और विकसित होती सांस्कृतिक क्षमताएँ दोनों खुद को आगे बढ़ाने के लिए परस्पर सहभागिता और अंतर्भेद करती हैं। गोल्ड का मानना है कि समस्त मानव विकास "जीन-कल्चर कोएवोल्यूशन के साथ आगे बढ़ाता और पीछे हटाता है" और यह कि (इस प्रक्रिया के लिए) "उन्नीसवीं सदी की सबसे अच्छी व्याख्या फ्रेडरिक एंगेल्स द्वारा 1876 के उनके उल्लेखनीय निबंध में की गयी थी"। गोल्ड एंगेल्स के काम को "मानव विकास के उन्नत सिद्धांत का एक उत्कृष्ट प्रदर्शन" मानते हैं, जो श्रम की भूमिका को इसके केंद्र में दिखाता है। यह तथ्य है कि डार्विन के विकासवादी जीव विज्ञान पर पथ-प्रदर्शक कार्य के तुरंत बाद प्रकाशित उनका यह निबंध विद्वता और विश्लेषणात्मक दृढ़ता का एक उल्लेखनीय उदाहरण है।
इस प्रकार वानर से नर… बोध और सत्ता-मीमांसा के महत्वपूर्ण प्रश्न प्रस्तुत करता है, यह सुझाव देता है कि मानव बौद्धिक क्षमता अन्य स्तनधारियों पर मानव मस्तिष्क की किसी भी कथित अंतर्निहित श्रेष्ठता का परिणाम नहीं है बल्कि यह मनुष्य के शरीर और उसके मस्तिष्क के अंगों के बीच द्वंद्वात्मक संबंध का परिणाम है। फिर, भाषा के जटिल रूपों को व्यक्त करने की मानवीय क्षमता भी समय के साथ विकसित हुई, जो कि मनुष्य के ध्वन्यात्मक रूप से गतिशील और अनुकूलनीय स्वर अंगों की बदौलत हुआ, लेकिन ये उत्तरवर्ती आकार लेते गए और शायद सैकड़ों-हजारों वर्षों में परिष्कृत हुए। इस प्रकार, एंगेल्स तत्कालीन प्रचलित कार्टेशियन विश्वदृष्टिकोण को चुनौती देते हैं, जो शरीर और मस्तिष्क के द्वैतवाद और उनके बीच एक स्पष्ट सीमा-निर्धारण पर आधारित था। ऐसा करने में, वह इस बात को विस्तार से बताते हैं कि उन्होंने और मार्क्स ने, उनके सहभागिता के शुरुआत में, द होली फैमिली में उल्लेख किया था, कि "विचार को विचारशील पदार्थ से अलग करना असंभव है"।
भौतिकवादी प्राकृतिक इतिहास का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू भी इस निबंध में स्पष्ट होता है, जो मोटे तौर पर यह बताता है कि मनुष्य प्रकृति का एक हिस्सा है, और प्रकृति को पुनर्गठित और पुन: व्यवस्थित करने में मानव संस्था एक लम्बी ऐतिहासिक प्रक्रिया का हिस्सा रही है, "जिससे प्रकृति की भौतिक सामग्री, श्रम के माध्यम से, मूल्य की मानव प्रणालियों में समाविष्ट हो जाती है”। यह वैचारिक ढांचा एंगेल्स के इस विश्वास को मजबूत बनाता है कि "मानवता को पूँजीवादी विकास के विनाशकारी पारिस्थितिकीय ढाँचे से ऊपर उठने की जरूरत है" और एक ऐसे मॉडल की ओर बढ़ने की जरूरत है जो प्रकृति के साथ सामंजस्य के रूप में काम करता हो। वे स्पष्ट रूप से मानव के भौतिक विकास की सोच के खतरे को प्रकृति के विरोधाभास में, या इसके सीधे विरोध में होने के रूप में इंगित करते हैं--
“प्रकृति पर अपनी इन्सानी जीत को लेकर हमें बहुत ज्यादा डींग नहीं हाँकनी चाहिए, क्योंकि ऐसी हरेक जीत के बदले प्रकृति हमसे बदला लेती है। यह सही है कि हरेक जीत से पहले-पहल वे ही परिणाम हासिल होते हैं जिनकी हमें उम्मीद थी, लेकिन दूसरी-तीसरी बार उससे बिलकुल अलग किस्म के अप्रत्याशित परिणाम सामने आते हैं जो केवल अकसर पहले वाले परिणामों को बेअसर कर देते हैं। मेसोपोटामिया, ग्रीस, एशिया माइनर और दूसरे इलाकों में, जिन लोगों ने खेती योग्य भूमि प्राप्त करने के लिए जंगलों को नष्ट कर दिया, उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि जंगलों के साथ-साथ नमी इकट्ठा करने वाले जलाशयों और संग्रह केंद्रों को हटाकर वे उन देशों की तबाही का आधार बना रहे थे। जब आल्प्स के इटलीवासियों ने दक्षिणी ढलानों पर चीड़ के जंगलों को कट-काटकर पूरी तरह इस्तेमाल कर लिया था ... तब उन्हें इस बात का बिलकुल अहसास नहीं था कि ऐसा करके वे अपने इलाके में पशुपालन की जड़ खोद रहे हैं। उन्हें इस बात का और भी कम अहसास था कि ऐसा करके वे साल के कई महीनों के लिए पहाड़ी झरनों के पानी से खुद को वंचित कर रहे हैं और दूसरी ओर ऐसी स्थिति बना रहे हैं कि बारिश के मौसम में मैदानी इलाकों में और अधिक उग्र मूसलधार बारिश हो। यूरोप में आलू फैलाने वालों को इस बात की जानकारी नहीं थी कि एक ही समय में वे इन दूर के कंदों के साथ-साथ गलसुआ रोग भी फैला रहे थे।”
अन्यत्र, वह फिर से लिखते हैं--
"क्यूबा में स्पेनिश बागान मालिकों को क्या परवाह थी, जिन्होंने पहाड़ों की ढलानों पर जंगलों को जला दिया और बहुत अधिक मुनाफेवाले कॉफी के पेड़ों की एक पीढ़ी के लिए उस राख से पर्याप्त उर्वरक प्राप्त किया-- उन्हें क्या परवाह थी कि बाद में भारी उष्णकटिबंधीय वर्षा से मिट्टी की असुरक्षित ऊपरी परत धुल गयी, पीछे केवल नंगी चट्टानें छोड़ गयी!
और इस सब से सबक? एंगेल्स हमें बताते हैं कि
"... इस प्रकार हर कदम पर हमें याद दिलाया जाता है कि हम किसी भी तरह से प्रकृति पर शासन नहीं करते हैं जैसे कि विदेशी लोगों पर कोई विजेता करता है, जैसे कि कोई व्यक्ति प्रकृति के बाहर खड़ा हो – बल्कि हम मांस, रक्त और मस्तिष्क सहित प्रकृति का ही हिस्सा हैं, और इसके बीच ही जीते हैं, और यह कि हमारी सारी महारत इस तथ्य में निहित है कि हमें इसके नियमों को सीखने और उन्हें सही तरीके से लागू करने में सक्षम होने के कारण अन्य सभी प्राणियों से अधिक लाभ प्राप्त है।” (जोर दिया गया है।)
ये टिप्पणियाँ आज के समय में सतत विकास समझे जाने वाले अत्यधिक विकसित अर्थ को अभिव्यक्त करती हैं। वे मार्क्सवादियों के खिलाफ एक सामान्य पर्याप्त झूठा आरोप भी लगाते हैं: कि मानवता के सामाजिक संगठन का उनका दृष्टिकोण प्रोमेथियन है, जिसका यह कहना है कि वे मनुष्य के लिए 'असीम' भौतिक प्रगति की कल्पना करते हैं। एंगेल्स का मानना है कि विज्ञान पर्याप्त नहीं है। पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने के लिए "हमारे अब तक के मौजूदा उत्पादन के साधन में, और इसके साथ हमारे पूरे समकालीन सामाजिक व्यवस्था में एक संपूर्ण क्रांति की आवश्यकता है"। आज की परिस्थिति में, हरित विकास के लिए उत्पादन के पूंजीवादी साधनों का उन्मूलन एक आवश्यक शर्त है।
यहाँ तक कि इसके अधूरे रूप में भी, वानर से नर… निबन्ध प्राकृतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण योगदान है। प्रकृति के एक सुसंगत दर्शन को फिर से रचने के प्रयास के रूप में यह निबन्ध अमूल्य है। 1939 में महान जे.बी.एस. हेल्डेन ने एंगेल्स के जैविक विकास की व्याख्या के प्रति अपने ऋण को इस प्रकार स्वीकार किया--
"अगर डार्विनवाद पर उनकी टिप्पणी आम तौर पर प्रचलित होती, तो हो सकता है कोई और या मैं भी अपने अव्यवस्थित सोच के कुछ भाग से छुटकारा पा जाता।"
दुनिया के अग्रणी जैव वैज्ञानिकों में से एक स्व-शिक्षित बहुज्ञ (व्यक्ति) को एक महान श्रद्धांजलि!
(साभार -- द वायर)
अनुवाद -- सिमरन