‘रोही’ विकास पर कुर्बान एक गाँव की दास्तान
(फोटो साभार गूगल से)
“अपनी मिट्टी को छिपाएँ आसमानों में कहां, उस गली में भी न जब अपना ठिकाना हो सका”
25 नवम्बर को मुझे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जेवर रैली में जाने का मौका मिला। इसी दिन प्रधानमंत्री ने नोएडा इण्टरनेशनल एयरपोर्ट जेवर का शिलान्यास किया। हमेशा की तरह ही प्रधानमंत्री की इस रैली की चकाचौन्ध भी निराली थी और हमेशा की तरह ही उन्होने अपने भाषण में विकास, समृद्धि, रोजगार के लम्बें चौड़े दावे भी किये।
रैली से वापस लौटते हुए, रैली स्थल से बामुश्किल एक किलोमीटर दूर मुझे एक डरावना मंजर नजर आया। मैं जेवर हवाई अड्डे पर कुर्बान हो गये रोही गाँव के पास से गुजर रहा था। सड़क के किनारे खड़े होकर देखने से ऐसा लगता है जैसे खुदाई में निकली कोई बस्ती हो। धीरे–धीरे आप इसके नजदीक जायेंगे तो आपको गलियाँ, कुएँ, चौराहें, मकानों की अदखुदी नींवे, ढहे–फूटे मकान और इनका समुच्चय एक उजडा हुआ गाँव नजर आयेगा। यह रोही है या था। गाँव को उजाड़ने वाला एक बुलडोजर अभी वहीं खड़ा था।
इन्ही खण्डहरों के बीच पीले चेहरोंवाले उदास मेहनतकश भी तम्बू में बैठे नजर आये। यह बहुत लम्बे समय से हर तरह के मौसम की मार झेलते हुए इन्हीं तम्बुओं में अपनी गुजर–बसर कर रहे हैं। बेघर होने के कारण मौसमी बीमारी इन्हें आसानी से शिकार बना लेती है। यहाँ बिजली, पानी, स्कूल, दवाई की दुकान जैसी कोई भी सुविधा अब नहीं है। ऐसे में इन परिवारों के बच्चों की पढ़ाई–लिखाई की बात करना भी अजीब लगा। इनका तो गाँव ही अब देश के नक्शे पर नहीं रहा। गाँव बचा है तो बस यहाँ के लोगों की यादों में! इस गाँव की सारी जमीन का जेवर हवाई अड्डा बनाने के लिए सरकार ने अधिग्रहण कर लिया है। जमीन अधिग्रहण के बाद इनके रोजी–रोजगार, घर–परिवार का कोई ठिकाना नहीं है। इनके पुनर्वास की चिन्ता भी सरकार और उसके नुमाइन्दों को हो, ऐसा नहीं लगा।
यहाँ की उपजाऊ जमीन में हाड़तोड़ मेहनत करके किसान हर साल लहराती फसल पैदा करते थे, जो अब हवाई पट्टियों और हवाई जहाजों के शोर तले विस्मृति के गर्भ में दफन हो जाएगी। रोही गाँव के एक बहुत छोटे किसान ओमपाल ने बताया “ म्हारों अब कछु ठिकानों ना बचो है, म्हारों पूरो सात सो गज को प्लाट था, जिसके बदले जा सरकार ने बस 290 मीटर को प्लाट दीजौ है, जा में अपनी भैंसन बाधे जा कि खुद रवै, ऊपर तै जा भी शर्त लिखवा लेयी कि पशु पालन ना करनौ है, कछु समझ ना आरौ है, म्हारों भरो पुरो परिवार बिगड़ गौ, जा प्लाट तौ ऐसो लगौ जैसे मुर्गी का दबड़ो होत है, हम पशु ना पालै तौ का करै? जा हवाई अड्डौ तले तो म्हारी पूरी तीन पीढ़ी दफन हे जावे गौ।”
गाँव से उजड़ने वाली बडी आबादी छोटे किसानों, मजदूरों, लौहार, बढ़ाई, छोटे दुकानदारों की है जिनकी जीविका अब ख़त्म हो चुकी है। हवाई अड्डे में अधिग्रहीत कुल 5000 हेक्टेयर जमीन से करीब 9000 परिवार उजडेगें। इनके उजड़ने के बाद जीविका की गारण्टी सरकार की नहीं है यानी करीब 40000–50000 आबादी के पास अब भविष्य की कोई उम्मीद नहीं है। जो मुआवजा किसानों को मिला है वह भी धीरे–धीरे पूँजीपतियों की जेबों में जा रहा है।
मुआवजा आने के बाद स्थानीय शोरूमो में दो पहिया और चार पहिया वाहनों की ब्रिकी में लगभग 30 से 35 प्रतिशत तक की वृद्धि हो गयी है। मुआवजा मिलने के तुरन्त बाद ही यहाँ अलग–अलग तरह से किसानों के रुपये ठगने का धन्धा फल–फूल गया है। गैर–जरूरी समान बेचने, शेयर बेचने, वित्तीय व्यापार करने जैसी कम्पनियाँ किसानों के पास मंडराती रहती हैं उन्हे जाल में फँसा रही है। जमीन से उजड़ा देहाती किसान भला इन कम्पनियों की मक्करियों के सामने भला कैसे टिक पायेंगा ?
उजड़ी हुई आबादी का काफी बड़ा हिस्सा भूमिहीन लोगों का है, जो गाँव में नाई, धोबी, बढ़ाई, राजमिस्त्री जैसी सेवाएँ देते थे या खेत मजदूरी करते थे। ऐसे तमाम लोगों के पेशे तो उजड़ गये, लेकिन उन्हें मुआवजा नहीं मिला। वास्तव में जमीन अधिग्रहण की सबसे भयावह मार इन्ही पर पडी है। ऐसे तमाम लोग अपने पेशों से उजड़कर दर-बदर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं।
सरकार वादे कर रही है कि हवाई अड्डा बनने से यहाँ रोजगार की बाढ़ आ जायेंगी और करीब 5 लाख 50 हजार रोजगार पैदा होगें। निजी कम्पनियों से रोजगार बढ़ेगा! यह वायदा कोरा झूठ है। विकास के नाम पर पहले भी निजी कम्पनियों द्वारा किसानों की जमीन का अधिग्रहण कर मल्टीपलैक्स होटल, हब, गोल्फ कोर्स, चमचमाते एक्सप्रेसवे आदि बनाये गये हैं जिनमें स्थानीय लोगों को नाममात्र का रोजगार मिला है। कम्पनियों द्वारा काम पर लिये गये लोगों की संख्या उजाड़े गये लोगों से सैकडों गुना कम है। इसके अलावा कम्पनियाँ कम से कम 300 किलोमीटर दूर इलाके के आदमी को ही काम पर रखती हैं। अगर थोड़े बहुत स्थानीय लोगों को रोजगार दिया भी गया तो उसका स्तर भी चौकीदार, वेटर, सफाईकर्मी जैसी श्रेणी का होता है। स्थानीय लोगों का इन मल्टीपलैक्स होटलों आदि में भविष्य कितना सुरक्षित होगा इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।
जेवर हावाई अड्डा पूरी दुनिया में व्यापार करने वाली बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में सौदेबाजी के लिए आनेवाले पूँजीपतियों और उनके सहयोगियों की यात्रा को आसान बनायगा। देशी–विदेशी पूँजीपतियों के माल के आयात–निर्यात को आसान बनायेगा बशर्तें यह बन जाये। जेवर हवाई अड्डे जैसे कार्गोहब के लिए महाराष्ट्र में भी हजारों हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण किया गया था लेकिन पिछले 15 सालों में वहाँ कुछ नहीं हुआ। जो हजारों ग्रामीण उजाडे गये थे उनका आज कहीं अता–पता नहीं है।
अब तक किसानों से लगभग 1334 हेक्टयर जमीन ली जा चुकी है। किसानों का कहना है कि उसका उचित मुआवजा अभी तक हम लोगों को नहीं मिला हैं। भूमि अधिग्रहण अधिनियम के अनुसार शहरी क्षेत्र को सर्किल रेट का 02 गुना और ग्रामीण क्षेत्र को 04 गुना मुआवजा मिलना चाहिए जबकि यहाँ के किसानों के लिए सर्किल रेट का केवल 02 गुना मुआवजा ही घोषित हुआ है और यह भी अभी तक नहीं मिला हैं। उचित मुआवजा न मिलने के कारण किसान लगातार नोएडा विकास प्राधिकरण के कार्यालय के चक्कर काट रहे हैं, दिन-रात धरना प्रदर्शन कर रहे हैं यह सब मीडिया से बिलकुल गायब है। उसमें केवल मोदी जी की रैली की छटा बिखरी है।
विकास की इस चकाचौन्ध में स्थानीय किसानों के हिस्से बार्बदी ही आयी है। उनको हवाई जहाज में बैठने की शायद ही कभी जरूरत पड़े। पूँजीपति और उसके मैनेजर, डारेक्टर और सलाहकार आदि ही इन हवाई जहाजों की सैर–सपाटा करते है। ये आये दिन उन्हीं किसानों को सोशल मीडिया और विभिन्न माध्यमों से कौसते रहते हैं जिनकी उपजाऊ जमीनों पर इनका हवाई जहाज उतरता है। हवाई अड्डों के लिए कुर्बानी किसान ने दी है और इसका मजा कम्पनियाँ और किसानों को कोसनेवाला मधयम वर्ग लेगा। कमाल की बात है कि हवाई जहाज या विकास का मजा लेनेवाले अमीरों की किसी बस्ती का आज तक अधिग्रहण नहीं हुआ। न ही कभी उनके घरों पर बुलडोजर चले। ऐसा होता तो उन्हें भी विकास की कीमत समझ में आती।