तथ्य सदैव अटल सत्य होते हैं: “एक्सटर्मिनेट ऑल द ब्रूट्स” डाक्यूमेंट्री फिल्म की समीक्षा
उपनिवेशवाद, गुलामी और नरसंहार पर आधारित राउल पेक की चार भागों की जोरदार डाक्यूमेंट्री फ़िल्म उपनिवेशवाद के अपराधों को पूरी तरह उजागर करती है।
“तुम पहले से बहुत कुछ जानते हो और इसलिए मैं भी जानता हूँ। हमारे पास जानकारी की कमी नहीं है बल्कि जितना हम जानते हैं उसको समझने और उससे निष्कर्ष तक पहुंचने के साहस की कमी है।"
--“एक्सटर्मिनेट ऑल द ब्रूट्स”, 1996 में ग्राण्टा द्वारा प्रकाशित स्वेन लिंडक्विस्ट की किताब
लिंडक्विस्ट की किताब और राउल पेक की इस फ़िल्म का शीर्षक, जोसेफ कॉनराड़ की किताब “हार्ट ऑफ डार्कनेस" से लिया गया है। अफ्रीका को कैसे सभ्य बनाया जाए, इस बारे में अलग-थलग पड़े श्वेत उपनिवेशवादी कुर्तज़ की अंतिम सलाह थी, “एक्सटर्मिनेट ऑल द ब्रूट्स" यानी सभी पशुओं का विनाश कर दो।
पेक, लिंडक्विस्ट के दोस्त और सहकर्मी थे। उनकी इस फ़िल्म को एक अलग मीडिया संस्करण के रूप में देखने के बजाय लिंडक्विस्ट द्वारा किये गए कामों की निरंतरता में देखना चाहिए। यह डाक्यूमेंट्री दूसरी तरह की चीज़ों जैसे विशेष रूप से रोक्सेन दुनबर ऑर्टिज़ की किताब “एन इंडिजेनस पीपल्स हिस्ट्री ऑफ द यूनाईटेड स्टेट्स" पर भी प्रकाश डालती है।
जेम्स बाडविन की ज़िन्दगी और कामों पर आधारित पेक की पिछली फिल्म ‘आई एम नॉट योर नीग्रो' ऑस्कर के लिए चुनी गई थी और न्यूयॉर्क टाइम्स द्वारा “नस्लीय/जातीय राजनीति में एक उच्च-स्तरीय सिनेमा" के रूप में सराही गयी थी। “एक्सटर्मिनेट ऑल द ब्रूट्स" डाक्यूमेंट्री को मुख्यधारा की मीडिया से अधिक विरोधात्मक प्रतिक्रियाएँ मिल सकती हैं। अमरीका की आज़ादी और लोकतंत्र पर टिके होने जैसी कोरी बकवास जो कि एक बहुत बड़ा झूठ है, इसके बारे में पेक के भंडाफोड़ से रूढ़िवादी और उदारवादी दोनों तरह के लोग एक जैसा पलटवार करेंगे।
ऐतिहासिक तथ्य और उनसे जुड़े रहने का कार्यभार
इतिहास एक ऐसा विषय है जो परस्पर साझेदारी, बहस-मुबाहिसों और वाद-विवादों द्वारा बेहतर तरीक़े से समझा जा सकता है। लेकिन अपनी विरोधी व्याख्याओं पर बहस करने में समर्थ होने के लिए इतिहासकारों की कुछ महत्वपूर्ण ऐतिहासिक तथ्यों पर एक आम सहमति होनी चाहिए।
वे तथ्य जिन पर पेक ध्यान आकर्षित करते हैं, वे पहले से ही व्यापक रूप से लोगों के बीच विख्यात हैं और, सम्राट के कपड़ों के बारे में सच्चाई की तरह, हम सभी को उनकी बात सुनकर फायदा होता है, जो जोर जोर देकर कही जाती हैं।
यूरोप-केन्द्रित इतिहास और उसकी राजनीतिक चर्चाएँ प्रबोधन मूल्यों से भरी हुई हैं। शिक्षित होना, तर्क करना और लोकतांत्रिक और कानून पर आधारित सरकार-- ये सभी चीज़ें यूरोप ने पूरी दुनिया को दी हैं।
पेक का उद्देश्य यूरोप की आत्म-मुग्धता को खत्म करना है। वह इसके लिए कोई अव्यवहारिक रास्ता नही सुझाते। उनका काम कभी न झुठलाए जा सकने वाले तथ्यों को दोहराना है। वे तथ्य जो इतिहास की बुनियाद हैं और जिन्हें उस समय के इतिहासकारों द्वारा जानबूझकर बाकायदा सोचते समझते हुए अनदेखा किया गया है।
“एक्सटर्मिनेट ऑल द ब्रूट्स" डाक्यूमेंट्री तथ्यों के साथ जुड़ती है। यह दर्शकों को भी काम देती है। उनका काम तथ्यों को समझना और स्पष्ट करना है। यह कार्य खुद अपने हित के लिए और समाज के हित के लिए हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है।
“एक्सटर्मिनेट ऑल द ब्रूट्स" डाक्यूमेंट्री की खासियत
“एक्सटर्मिनेट ऑल द ब्रूट्स" डाक्यूमेंट्री, सैमुअल एल जैक्सन द्वारा लिखी गयी ‘आई एम नॉट योर नीग्रो' से बिल्कुल अलग खुद है और पेक द्वारा लिखी गयी है। हैती, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ द कांगो (डीआरसी) और न्यूयॉर्क में बिताए गए उनकी ज़िन्दगी के कुछ संदर्भ बिंदु भी फ़िल्म में दिखाए गए हैं।
अपने खुद के वास्तविक अनुभवों को फ़िल्म के विषय से जोड़ने के पीछे दो कारण हैं। पहली, यह बात दर्शकों के सामने आती है कि वह खुद भी तथ्यों से जुड़े रहने के लिए बाध्य हैं। और दूसरी बात यह है कि पेक को हैती में अमरीकी सैन्य-बल द्वारा समर्थित डुवालियर की तानाशाही झेलनी पड़ी और उनके सामने अमरीका द्वारा कांगो से पैटरिस लुमाम्बा की सरकार को उखाड़ फेंकने जैसे अनुभव थे।
पेक के अनुभव, सदियों से हो रहे यूरोप के विस्तार को बताते हुए फ़िल्म को एक खास तरह की ताक़त देते हैं। इस व्यापक और खास फ़िल्म में दर्शकों की भावनाओं और समझदारी को प्रभावित करने के लिए अलग-अलग तरीके अपनाए गए हैं।
सभी महत्वपूर्ण दृश्यों को एक-एक घंटे की चारों फिल्मों में बड़े स्पष्ट और रोचक तरह से दर्शाया गया है। कोलंबस का आना, फ्लोरिडा में सेमिनोल्स के खिलाफ लड़ाई, बेल्जियम के साम्राज्यवादियों द्वारा कांगो लोगों के साथ भयंकर लूटपाट और कत्लेआम जैसी घटनाओं को छोटे-छोटे दृश्यों में दिखाया गया है। गोरों के साम्राज्यवाद को उजागर करता जोश हार्टनेट का वही चेहरा लगातार हर दृश्य में दिखाई देता है।
एनिमेटिड चित्रकला द्वारा, अफ्रीका से गुलामों के जत्थे की यात्रा जैसे दृश्यों की बहुत ही सरल और सजीव प्रस्तुति है जो बेहद जबरदस्त तरह से सभी घटनाओं का विवरण देती हैं। सभी आँकड़ों, नक्शों और संक्षिप्त घटनाओं को इस प्रकार बुना गया है कि वे आसानी से उपलब्ध होने के साथ-साथ आलोचनात्मक नज़रिया भी रक्खें।
उपनिवेशवाद, गुलामी और नरसंहार
पेक के लिए, यूरोपीय सभ्यता की स्थापना केवल यूनानी लोकतंत्र के बारे में या प्रबोधन से संबंधित घटना नहीं थी। उपनिवेशवाद, गुलामी और नरसंहार पर आधारित यूरोप के विस्तार की कहानी को इतने स्पष्ट और सामान्य तरीके से दुनिया को बताकर पेक ने तर्क को पुनर्संतुलित कर दिया है।
इसके साथ ही, “एक्सटर्मिनेट ऑल द ब्रूट्स" केवल एक मौलिक ऐतिहासिक कृति न रहकर इससे कहीं आगे की रचना है। अपने बुढ़ापे की अवस्था मे पहुँचे पूँजीवाद के सभी अमानवीय गुणों को उजागर करने में यह फ़िल्म पूर्ण रूप से कामयाब होती है। ऐसे समय में नस्लीय/जातीय भेदभाव करने वाले पश्चिमी राजनीतिक नेताओं के झूठे ढोंग का भंडाफोड़ ही पेक की चर्चा का मुख्य विषय है।
श्वेत वर्चस्व और ‘हथियार धारण करने का अधिकार' रेड इण्डियन आदिवासियों के विनाश और गुलामी की विरासत है। जब मैं यह रिव्यु लिख रहा हूँ, उसी समय फिलिस्तीनियों का कत्लेआम और विस्थापन भी जारी है, यह सब ‘सभ्यता' लाने के लिए अमरीका द्वारा वहाँ की सभी देशीय अड़चनों को खत्म करने का सदियों से चला आ रहा सिलसिला है। लोकतंत्र के लिए लड़े जाने वाले युद्ध पूरे अरब देशों को तबाह कर सकते हैं क्योंकि यूरोपीय मूल्य-मान्यताएँ और आदर्श बड़ी निर्दयता से उनके जीवन जीने के अधिकार को छीन लेती हैं। यूरोपीय धर्मयुद्ध (क्रूसेड्स) से लेकर अब तक लोगों का भौतिक और सांस्कृतिक उन्मूलन जारी है। यह तबाही अब चीन, ब्राज़ील और म्यांमार आदि सभी जगहों पर हमारी दुनिया का एक अहम हिस्सा बन गयी है।
“एक्सटर्मिनेट ऑल द ब्रूट्स" डाक्यूमेंट्री एक हथियार है। पेक चाहते हैं कि इस भयानक सपने का अंत करने के लिए यह फ़िल्म स्कूलों और विश्वविद्यालयों में शिक्षा का स्रोत बनें। छोटे-छोटे टुकड़ों में बँटे होने और अपने एनीमेशन्स, आसान स्पष्टीकरण और इसी प्रकार के अन्य तरीकों के कारण यह फ़िल्म बच्चों की कक्षाओं के बिल्कुल अनुरूप है। यही कारण है कि पेक पूरी सैद्धान्तिक व्याख्या करने के बजाय सवाल उठाने पर ज्यादा ज़ोर देते हैं। पूँजीवाद और साम्राज्यवाद की मार्क्सवादी व्याख्याएँ इन सवालों के जवाबों के लिए एक अच्छा विकल्प हो सकती हैं।
जनता की तबाही हमारे इतिहास का एक हिस्सा रही है। यदि हम इस तबाही को स्वीकार करने में असफल रहते हैं तो हम सामाजिक डार्विनवादी दृष्टिकोण को अपनाने लगते हैं जो यह मानता है कि गरीब लोग मरने के लिए अभिशप्त हैं और प्रगतिशील लोगों की भूमिका उनके रास्ते में उन्हें मदद करने की है। उदाहरण के लिए, ब्रिटिश शासन के लोग अपने समारोहों में विलुप्त हो चुके लोगों और उनकी संस्कृतियों के बारे में एक छोटी सी टिप्पणी के साथ ज़िक्र करते हैं। व्यवस्था द्वारा की जा रही धोखाधड़ी, लूट और हत्याओं के फलस्वरूप एक दूसरे से संपर्क न कर पाने और सांस्कृतिक असमानता जैसी अनेक समस्याएँ पैदा होती जा रही हैं। और ये सब सोच समझकर और जानबूझकर की गयी हैं।
संभवतः “एक्सटर्मिनेट ऑल द ब्रूट्स" डाक्यूमेंट्री में उदारवादियों के लिए स्वीकार करने योग्य सबसे चौकाने वाली बात फ़िल्म का यह निष्कर्ष होगा कि हिटलरी नरसंहार का बहुत बड़ा पूर्व-वृत्तांत अमरीकी और यूरोपीय नरसंहार थे। इस दौरान पूरी तरह से तबाह हुए लोगों की सूची बहुत लंबी है और पेक ने उन सबको फ़िल्म में शामिल किया है। हिटलर ने पूर्वी यूरोप पर हमले किये तथा उसने स्लावी और यहूदियों को पूरी तरह खत्म करने के लिए भीषण युद्ध भी किये, जिससे उनकी जमीन छीनकर जर्मन उपनिवेशवादी बसाहटों के लिए एक विशाल क्षेत्र लेबेन्स्राम तैयार किया जा सके। अमरीकी जनजातियों (लाल चमड़ीवाले रेड इण्डियन) के विरुद्ध लड़े गए विध्वंसकारी युद्ध इससे किस प्रकार अलग थे? वास्तव में हिटलर स्लावी लोगों को ‘हमारे लाल चमड़ीवाले' कहा करता था।
“एक्सटर्मिनेट ऑल द ब्रूट्स" एक बेहद शानदार और उत्कृष्ट डाक्यूमेंट्री फ़िल्म है जिसे जरूर देखा जाना चाहिए। यह एक ऐतिहासिक फ़िल्म है, एक हथियार है और पतनशील पूँजीवाद जो जिंदा रहने के लिए हिंसा और नफ़रत पर निर्भर है, उसके ख़िलाफ़ छिड़े युद्ध में एक निर्णायक ज़रिया है।
रूस के एक विद्वान ने कहा है कि “तथ्य सदैव अटल सत्य होते हैं।” हमें अपने उत्पीड़कों का उनके घृणित लाभ की मानवीय कीमतों और उनकी उत्पत्ति के खिलाफ मुक़ाबला करने के लिए दृढ़ होने की जरूरत है।
(काउंटरफायर से साभार, अनुवाद— रुचि मित्तल)
जॉन वेस्टमोरलैंड इतिहास के एक शिक्षक और यूसीयू प्रतिनिधि हैं। वह पीपुल्स असेंबली के सक्रिय सदस्य हैं और काउंटरफायर के लिए नियमित रूप से लिखते हैं।
अंग्रेजी में....https://www.counterfire.org/film-review/22322-facts-are-stubborn-things-exterminate-all-the-brutes-review