बुद्धि को भ्रष्ट कर रहा फेसबुकी प्रेत
एनएन नेटवर्क पर एसएसआरएस प्लेटफॉर्म द्वारा किये गये एक हालिया सर्वेक्षण में पाया गया कि चार में से तीन अमरीकी वयस्कों का कहना है कि फेसबुक अमरीकी समाज को तबाह कर रहा है। 55 फीसदी लोगों ने इस प्लेटफॉर्म का उपयोग करने वाले लोगों को ही इसका दोषी माना है। जबकि 45 फीसदी का कहना है कि यह सब फेसबुक के काम करने के तरीके का ही परिणाम है। 49 फीसदी अमरीकियों ने बताया है कि वे कम से कम एक ऐसे व्यक्ति को जानते हैं जो फेसबुक पर उपलब्ध सामग्री के कारण साजिश के सिद्धान्त में विश्वास करने लगा है। ऐसी सोच रखने वालों में युवा लोगों की संख्या अधिक है। 35 साल से कम उम्र के 61 फीसदी वयस्कों का कहना है कि फेसबुक पर परोसी गयी सामग्री के कारण उनकी पहचान का कोई न कोई व्यक्ति इस तरह की साजिश का शिकार हुआ है।
सूचनाओं के आदान–प्रदान के अलावा फेसबुक और इंस्टाग्राम नाम के दोनों सूचना प्रौद्योगिकी प्लेटफॉर्म किस हद तक लोगों के बीच नफरत, विभाजन आदि का संचार करते हैं, लोगों, विशेष तौर पर बच्चों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करते हैं, इसका भी एक सनसनीखेज रहस्योद्घाटन सामने आया है।
संचार प्रौद्योगिकी के इन प्लेटफॅार्मों ने अपने मुनाफे के लिए लोगों के जीवन को दाँव पर लगा दिया है। व्यापार, विज्ञान और परिवहन से सम्बन्धित उपभोक्ता संरक्षण, उत्पाद सुरक्षा और डेटा सुरक्षा के बारे में गठित की गयी अमरीकी सीनेट उपसमिति के समक्ष अक्टूबर 2021 में व्हाइट हाउस में हुई सुनवाई के दौरान हुए खुलासों ने वैश्विक स्तर पर दुनिया भर के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और सक्रिय न्यायप्रिय और दूसरे नेकदिल लोगों द्वारा जाहिर की गयी उन्हीं शंकाओं पर मुहर लगायी है जिन्हें वे पिछले काफी अरसे से लोगों के बीच लेकर जाते रहे हैं।
सुनवाई के दौरान उपसमिति के समक्ष उपस्थित हुई फेसबुक की एक पूर्व डेटा वैज्ञानिक, फ्रांसिस हेगन ने बताया कि “फेसबुक अपने प्लेटफॉर्म को सुरक्षित रखने और सुरक्षा को और ज्यादा पुख्ता करने की बजाय अपने मुनाफे को अधिक महत्व देता है। फेसबुक ने अपनी उस आन्तरिक शोध, जिनमें यह खुलासा हुआ था कि फेसबुक के उत्पाद (सॉफ्रटवेयर) कितने हानिकारक हैं, उनको भी कानूनी संस्थानों से छुपाये रखा गया है। उनका कहना है कि “फेसबुक के इस तरह के हथकंडों के इस्तेमाल के नतीजों ने विभाजन, कलह को बढ़ावा दिया है, झूठ का प्रसार किया है, और धमकियों की संख्या बढ़ी है और टकराव भी अधिक हुए हैं। कई मामलों में तो इस तरह की ऑनलाइन बातचीत वास्तविक हिंसा में बदल गयी है जिससे बहुत नुकसान हुआ है और बहुत से मामलों में तो लोगों की जान तक गयी है।”
कई हजार पन्नों के आन्तरिक शोध दस्तावेजों के हवाले से, जिन्हें ‘द वॉल स्ट्रीट जरनल’ ने ‘फेसबुक फाइल्स’ शीर्षक से छापा है, हेगन का कहना है कि, फेेसबुक में काम करते हुए मुझे एक भयानक हकीकत का पता चला कि फेसबुक के बाहर लगभग किसी को भी इस बात का अहसास नहीं कि फेसबुक के अन्दर क्या चल रहा है। कम्पनी महत्वपूर्ण सूचनाओं को जानबूझ कर देश की अवाम, अमरीकी सरकार, और दुनिया भर की सरकारों से छुपा कर रखती है।”
यहाँ गौर करने वाली बात यह है कि हर सामान्य समझदारी वाला व्यक्ति यह जान सकता है कि जब भी हम फेसबुक पर अपने प्रोफाइल पर क्लिक करते हैं, तो सिर्फ हमारी लाइक्स / अनलाइक्स ही नहीं, हमारी हर चीज की सूची कम्पनी के डेटाबेस में संग्रहीत होती है, जहाँ से वह अपने गणितीय सूत्रों द्वारा हमें चैरासी के चक्र में फँसाये रखता है, वही बात हमारे सामने बार–बार प्रकट होती रहती है। और जब कभी भी हम जाने–अनजाने फेसबुक पर किसी कम्पनी के किसी उत्पाद के विज्ञापन पर क्लिक कर देते है, तो हमें हर समय उसी उत्पाद से जुड़े विज्ञापन दिखाई देते रहते हैं। एक और ध्यान देने वाली बात यह है कि हमारी मित्रता सूची भले ही पाँच हजार तक सीमित की गयी हो, लेकिन हमारी किसी भी पोस्ट को अधिकतम 50–60 दोस्त ही देख सकते हैं, बाकियों तक वह पोस्ट पहँुचती ही नहीं। फेसबुक ने ऐसे एल्गोरिदम (गणितीय सूत्र) गढ़े हैं जिससे उनकी अपनी ही सोच और उनके अपने उत्पादों को अपने ग्राहकों तक पहँुचाया जा सके और उन्हें खरीदने के लिए उकसाया जा सके।
आपने कहीं न कहीं पढ़ा होगा कि फेसबुक ने किसी खास इंजीनियरिंग कॉलेज / संस्थान के फलां–फलां छात्र को करोड़ों रुपये सालाना की नौकरी के लिए चुना है। उस छात्र को भाग्यशाली दिखाकर बाकियों को निक्कमें साबित करने की मंशा तो छुपी ही हुई है, लेकिन इससे भी आगे फेसबुक यूँ ही उस छात्र को इतने पैसे नहीं दे रहा, वह कम्पनी उससे ऐसे फार्मूले तैयार करवाती है जो उससे सम्बन्धित व्यापारिक और उससे जुड़े अन्य हितधारकों के इरादों को बखूबी पूरा करते हैं।
फेसबुक के आन्तरिक शोध दस्तावेजों से यह भी पता चलता है कि इंस्टाग्राम पर आने के बाद यूनाइटेड किंगडम की किशोरियों के बीच आत्महत्या की संख्या में 13–5 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गयी है। एक अन्य अध्ययन में पाया गया है कि इंस्टाग्राम से जुड़ने वाली 17 फीसदी लड़कियों का कहना है कि उनमें चल रही न खाने की या कम खाने की बीमारी में बढ़ोतरी हुई है। 32 फीसदी लड़कियों ने कहा कि जब भी उन्हें अपने शरीर के आकार को लेकर चिन्ता होती थी, तो अगर वे इंस्टाग्राम पर जाती हैं, तो उनकी स्थिति और भी खराब हो जाती है। जानबूझ कर किशोर लड़कियों को निशाना बनाया गया, हालाँकि एप्प 13 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए प्रतिबन्धित है, लेकिन उम्र को प्रमाणित करने का कोई तरीका इस एप्प पर नहीं है। इससे जाहिर होता है कि फेसबुक ने हर समय अपने मुनाफे को सामने रखा है और बच्चों और एप्प इस्तेमाल करने वालों के हित को नजरन्दाज किया है। इससे भी आगे फेसबुक इंस्टाग्राम का एक अन्य रूप 13 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए लॉन्च करने की फिराख में है। इसके परिणाम विनाशकारी हो सकते हैं।
एक अन्य रहस्योद्घाटन में यह बात सामने आयी है कि फेसबुक ने ऐसे गणितीय सूत्रों को गढ़ा है जिसके तहत अगर किसी पोस्ट को कोई कमेण्ट, लाइक या कोई और टिप्पणी प्राप्त होती है, तो गणितीय सूत्र उस पोस्ट को जंगल की आग की गति से फैलाता है और उस पोस्ट को एक बहुत ही महत्वपूर्ण पोस्ट बना दिया जाता है। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि इस तरह के पोस्टों के मामले में, किसी क्रोेनोलोजिकल ऑर्डर (समयानुसार आगे–पीछे करने की क्रिया) का बेरहमी से उल्लंघन किया जाता है। इस सूत्र के तहत सनसनीखेज मसाला प्रकाश की गति से इस प्लेटफॉर्म के माध्यम से सम्बन्धित समुदायों तक फैलता है और यह केवल घृणा, नफरत, और गलत सूचना फैलाने का एक जरिया मात्र बनकर रह जाता है, जैसे कि जब भी किसी स्थान पर साम्प्रदायिक / जातीय / भाषाई / रंगभेद / क्षेत्रीय आदि दंगे भड़कते हैं तो इनकी पृष्ठभूमि में ऐसे प्लेटफॅार्मों पर उगले जाने वाले जहर की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका का उल्लेख किया गया है। हमारे पास दिल्ली में नागरिकता विरोधी प्रदर्शनों के दौरान हुए साम्प्रदायिक दंगों का उदाहरण है, जिसके दौरान इन दंगों से पहले मुस्लिम विरोधी प्रचार जोरों पर था।
साथ ही, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि फेसबुक के पास फेसबुक इस्तेमाल करने वालों की जिस स्तर की जानकारी मौजूद है उसका दुरुपयोग करने के बारे में भी सन्देह पाया जाता है। व्हाट्सएप के बारे में कहा जाता है कि इस प्लेटफॉर्म पर की जाने वाली बातचीत और जानकारी का आदान–प्रदान बिल्कुल फूलप्रूफ (यानी इसे किसी और के साथ साझा करने की सम्भावना न के बराबर) है, लेकिन जब भी सरकार किसी व्यक्ति के बारे में कोई भी जानकारी लेना चाहती है, तो उसे पूरी सूचना मुहैया करायी जाती है। फेसबुक पर यूजर्स के बारे में जानकारी का दरवाजा खुला है, यानी यह एक खुली किताब की तरह है। उदाहरण के लिए, जब भी हम किसी उत्पाद के विज्ञापन पर क्लिक करते हैं, तो या तो उस उत्पाद के या मिलते–जुलते उत्पाद के विज्ञापन हमारा पीछा ही नहीं छोड़ते। इसका मतलब यह है कि इस फेसबुक प्लेटफॉर्म ने उस डेटा को उन व्यावसायिक संस्थाओं के साथ अपने व्यावसायिक हितों को ध्यान में रखते हुए साझा किया है। फेसबुक के पास यूजर्स के राजनीतिक झुकाव, पसन्द–नापसन्द, उसकी मित्र–मण्डली, यूजर्स की लोकेशन, उसके एक जगह से दूसरी जगह जाने की जानकारी, किसके साथ किस तरह की बातें, विचार साझा करते है, इनके बारे में पूरी जानकारी उपलब्ध है। जिनका इस्तेमाल अक्सर सरकारें और स्वार्थी तत्व अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए उपयोग में लाते है।
लेकिन इसके साथ ही सरकार की आलोचना को शुरू में ही रोक देने का पूरा बन्दोबस्त फेसबुक ने बखूबी किया हुआ है। पिछले अनुभव से पता चलता है कि सरकार के विरुद्ध किसी भी टिप्पणी को वहाँ ही खारिज कर दिया जाता है, उस यूजर को पूर्ण रूप में महीनेभर के लिए ब्लॉक कर दिया जाता है यह कहकर कि उसकी यह टिप्पणी सामाजिक / सामुदायिक मानदंडों के अनुरूप नहीं है, इसलिए यह पोस्ट समाज के लिए घातक है और बिना तथ्यों के है, आदि।
केरल में एक फेसबुक शोधकर्ता ने फेसबुक के जरिये फैलाई जा रही झूठ की आँधी को ट्रेस करने के लिए फेसबुक पर नया खाता खोलकर केरल के एक यूजर के अनुभव को जानना चाहा। फेसबुक द्वारा सुझाये गये सारे फेसबुक रेंजों को अपने अनुरोध भेजे। उसके आश्चर्य की कोई सीमा नहीं रही कि जितने मृतक उसने अपने पूरे जीवन में नहीं देखे थे उससे कहीं ज्यादा मृतकों की न्यूज उसने अपने न्यूज फीड में देखी। क्योंकि फेसबुक पर इस तरह के बहुत से फेक आईडीज मौजूद हैं। 14 फरवरी के पुलवामा हमले के बाद, फेसबुक के गणितीय फार्मूले राजनीतिक और सैन्य सामग्री के पृष्ठों के सुझावों से भरपूर थे। वॉच और लाइव टैब पर क्लिक करने से उसे पोर्न (लचर, अश्लील) सामग्री एल्गोरिदम द्वारा परोसी गयी।
यहाँ यह भी गौर करने वाली वाली बात है कि फेसबुक को 2021 की पहली चैथाई की आमदनी का 52–5 फीसदी हिस्सा अमरीका और कनाडा के बाहर से प्राप्त हुआ है। लेकिन ऐसी गलत सूचना प्रदान करने की कुल वैश्विक लागत का 47 फीसदी अकेले अमरीका में ही खर्च किया जाता है और शेष थोड़ा सा हिस्सा बाकी के पूरे विश्व के लिए रखा जाता है।
अन्य वैज्ञानिक उपलब्धियों की तरह, सूचना प्रौद्योगिकी में उल्लेखनीय प्रगति ने भी मानव जाति को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया है। इसलिए हर उपयोगकर्ता (यूजर) को ऐसा लगता है कि फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म ने उन्हें लगभग हर मुद्दे पर अपने निजी विचार व्यक्त करने का मौका दिया हुआ है, लेकिन उस यूजर का उत्साह जाता रहता है जब उसके विचारों को सामुदायिक मानकों पर खरे न उतरने के कारण ब्लॉक करके उसका खाता सस्पेंड कर दिया जाता है।
साम्राज्यवादी पूँजीवाद के युग में, विज्ञान की प्रत्येक उन्नति का अपने निजी स्वार्थ के लिए निरन्तर इस्तेमाल करना आम बात है। जरूरत है शासक वर्ग द्वारा अपने पक्ष में इस्तेमाल की जाने वाली विज्ञान की हर युक्ति को गहराई से समझने और विज्ञान के इस तरह के दुरुपयोग को रोकने के लिए जनता का जागरूक करने की, फेसबुक जैसे सोशल प्लेटफॉर्म के इस्तेमाल में पारदर्शिता लाने के लिए आवाज उठाने की, सरकार और कॉर्पोरेट जगत के बीच पक्के सम्बन्धों को उजागर करने की, ताकि विज्ञान की ऐसी प्रगति को विशाल जनता के हित में इस्तेमाल किया जा सके। एक बेहतर रचनात्मक समाज के निर्माण के लिए इस्तेमाल किया जा सके।