मई 2024, अंक 45 में प्रकाशित

अमरीका में फैक्टरी फार्मिंग का विकास और पारिवारिक पशुपालन का विनाश

अमरीका की खेती में निगमीकरण के बढ़ते प्रभाव को देखने पर कई दिलचस्प तथ्य सामने आते हैं। मसलन, लागतों, मशीनरी और पैदावार पर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का नियन्त्रण, फैक्टरी फार्मिंग का उदय तथा ग्रामीण पारिवारिक खेती और पशुपालन का विनाश आदि।

आज अमरीका में फैक्टरी फार्मिंग के विस्तार से शायद ही यह अनुमान लगाया जा सके कि जब यूरोप से आये लोगों ने इस धरती को अपना घर बनाया था तो उस समय का पशुपालन इससे बिलकुल जुदा किस्म का था। जाहिर है कि आज की तुलना में उस दौर में तकनीक पिछड़ी हुई थी। मूलत: शारीरिक श्रम के दम पर खेती और पशुपालन किया जाता था, वह भी अफ्रीकी गुलामों के श्रम को निचोड़कर भूस्वामी वर्ग खेती करता था। कालान्तर में गुलामी प्रथा के अन्त के बाद परिवार केन्द्रित खेती और पशुपालन की शुरुआत हुई।

19वीं शताब्दी में अमरीका के आयोवा राज्य में परिवार केन्द्रित खेती को बढ़ावा देने के लिए गाँवों को खास तरीके से तैयार किया गया था। एक वर्ग मील में 160 एकड़ रकबे के चार खेत बनाये गये थे, जो एक विशाल शतरंज बोर्ड की तरह दिखायी देते थे। धीरे–धीरे परिवार बढ़ते गये और जमीन का रकबा घटता गया। इन खेतों में लोग गाय और सूअर पालते थे तथा मक्का, फली, जई और सोयाबीन उगाते थे। खेतों की जुताई के लिए घोड़े इस्तेमाल होते थे बाद में जिनका स्थान ट्रैक्टरों ने ले लिया।

धीरे–धीरे यहाँ की खेती में पूँजी ने प्रवेश किया। किसानों ने बाजार में बेचने के लिए फसलें उगाना शुरू किया। जैसा कि अकसर होता है, शुरू में किसानों को फायदा हुआ और उन्हें राज्य द्वारा प्रोत्साहित भी किया गया, लेकिन बाद में फसलों की कीमतों में गिरावट और लागत में बढ़ोतरी के चलते किसान तबाह होते गये। जैसा कि पूँजीवादी विकास का चरित्र है, कुछ किसानों ने इसका फायदा उठाया और वे ज्यादा बड़े रकबे के मालिक बनकर फार्मरों में तब्दील होते गये। उन्होंने बहुत पहले ही पशुपालन और मिश्रित खेती को छोड़ दिया था, वे केवल बाजार के लिए खेती करने लगे। जानवरों के चारे के लिए मक्का और सोयाबीन को हजारों की संख्या में विशाल अर्ध–स्वचालित शेडों में उगाया जाने लगा जिसे कॉर्पोरेट खरीदारों को बेच दिया जाता। अब आयोवा के बड़े हिस्से में खेती का ऐसा ही नजारा दिखायी देने लगा। इसके साथ ही फैक्टरी फार्मिंग के विकास ने पारिवारिक पशुपालकों को लगभग तबाह कर डाला।

फैक्टरी फार्मिंग क्या है और इसने अमरीका के पशुपालकों को कैसे तबाह किया? अमरीका में निजी कम्पनियाँ मुर्गी, सूअर, मछली और गाय पालती हैं और उनके मांस, दूध और इनसे बने उत्पाद जैसे–– हैमबर्गर, बीफ स्टीक, चिकन, दही, पनीर, घी और चीज को बाजार में बेचती हैं। पशुपालन के इस तरीके को फैक्टरी फार्मिंग या संकेंद्रित पशु आहार संचालन (सीएएफओ) कहते हैं। खेती में पूँजी के प्रवेश और नयी तकनीक के विकास के चलते औद्योगिक तरीके से ऐसा पशुपालन सम्भव हो पाया है। इसी का फायदा उठाकर न केवल अमरीका में, बल्कि कई अन्य देशों में फैक्टरी फार्मिंग अपने पैर पसारती जा रही है।

फैक्टरी फार्मिंग पर आरोप लगाया जाता है कि इसने ग्रामीण समुदाय, पर्यावरण और पशुधन का विनाश किया है। हम जानते हैं कि पुराने जमाने में फसलों की खेती और पशुपालन के बीच एक गहरा रिश्ता होता था। पशु और पेड़–पौधे एक–दूसरे पर निर्भर होते थे। पशु के मल, मूत्र और कार्बन डाई ऑक्साइड को पौधे ग्रहण करके पर्यावरण को साफ करते थे, वहीं पौधों से पैदा होने वाली फसल और ऑक्सीजन को पशु इस्तेमाल कर लेते थे। लेकिन फैक्टरी फार्मिंग में यह सन्तुलन बिगड़ गया है। फैक्टरी फार्मिंग में एक छोटी सी जगह में ढेर सारे पशुओं को रखना क्रूरता तो है ही साथ ही यह पर्यावरण को प्रदूषित भी करता है क्योंकि पशुओं से उत्पन्न मल को खेती में इस्तेमाल नहीं किया जाता और फसलों के लिए रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता बढ़ गयी है। विशालकाय मुर्गा–पालन और पशुपालन केन्द्रों के आस–पास के इलाकों में भयावह बदबू, गन्दगी तथा ट्रकों के शोर से स्थानीय लोगों का जीना दूभर हो जाता है।

बड़ी निगमों द्वारा संचालित फैक्टरी फार्मिंग ने छोटे स्वतंत्र पशुपालकों को किस तरह बर्बाद कर डाला यह एक दर्दनाक दास्तान है। फैक्टरी फार्मिंग के विकास के चलते पशुपालकों की ऐसी जगहें जहाँ पहले मवेशियों और सूअरों के चारागाह थे, उनके ऊपर संकट के घने बादल मँडराने लगे। लागत जुटाने के लिए कुछ किसान अब जमीन किराये पर देने लग गये जिन पर निगमों ने चारे या मक्के की खेती शुरू कर दी। कुछ किसानों के फार्महाउस खाली रह गये। पशुशालाओं की छतें गिर गयीं। परित्यक्त मुर्गी फार्म, गौशाला, सूअरबाड़े और जंग लगी मशीनें आज भी किसानों–पशुपालकों की बर्बादी की कहानी बयान करती हैं। मजबूरी में जमीनें भी बेची गयीं जो निगमों के हत्थे चढ़ गयीं। ऐसी कहानी खास तौर से अमरीका के मध्य–पश्चिम में लगभग हर जगह दोहराई गयी है।

अमरीकी कृषि निगमों की हैसियत दिन–दुनी रात–चौगुनी बढ़ती गयी। उनकी नजर ब्रिटेन के बाजार पर भी पड़ी। अमरीका ने ब्रेक्सिट के बाद व्यापार समझौते के हिस्से के रूप में ब्रिटेन के बाजार में खुली पहुँच के लिए प्रयासों की झड़ी लगा दी थी। यह मामला विवादों में घिर गया और ब्रिटेन के किसान अमरीकी राजदूत वुडी जॉनसन की उस बात के कायल नहीं हुए जो उन्होंने अमरीकी खेती को अपनाने की अपील करते हुए कही थी। उनका कहना था कि जिन लोगों ने क्लोरीन में चिकन धोने जैसी प्रथाओं (यानी फैक्टरी फार्म) का विरोध किया था, इसके लिए उनकी जेबें गरम की गयी थीं। यह अमरीकी कृषि निगमों के पक्ष में बेशर्मी भरा तर्क था। इससे ब्रिटेन के लोगों में गुस्से की लहर दौड़ गयी। यह ब्रिटेन के किसानों–पशुपालकों के लिए चेतावनी थी कि अगर वे अमरीकी आयात के खिलाफ प्रतिस्पर्धा करना चाहते हैं, तो उन्हें अपने मानकों को कम करना होगा या उन्हें अपना व्यवसाय छोड़ देना होगा।

यह कोई आश्चर्य की बात नहीं थी क्योंकि इन निगमों ने खुद अमरीकी किसानों–पशुपालकों के साथ यही व्यवहार किया था। अमरीका के पशुपालक जो दशकों से पशुपालन करके अपने परिवार का भरण–पोषण कर रहे थे, कॉरपोरेट के आने के बाद उनके पशुपालन केन्द्र गायब हो गये। वे गरीब से और गरीब हो गये। उनके समुदाय बिखर गये। उनमें से बहुतेरे उजड़ कर  मजदूर बन गये। पशुपालकों की यह बर्बादी काफी हद तक संकेंद्रित पशु आहार संचालन, यानी फैक्टरी फार्मिंग के विकास के चलते ही हुई।

फैक्टरी फार्मिंग की कई इकाइयाँ अर्ध–स्वचालित होती हैं, जिनमें पशुओं को खाना भी कंप्यूटर चालित मशीनों द्वारा खिलाया जाता है और जानवरों की निगरानी वीडियो द्वारा की जाती है। गायों का दूध भी मशीनों से निकाला जाता है। कई कार्यों के बीच गाड़ी चलाने वाले मजदूरों द्वारा समय–समय पर दौरा भी किया जाता है। इन सबकी शुरुआत 1930 के दशक में सूअर बूचड़खानों के मशीनीकरण से हुई थी। 1950 के दशक तक, मुर्गियों को नियमित रूप से भयावह परिस्थितियों में विशाल शेडों में ठूँसना आम बात हो गयी थी। 1970 के दशक की शुरुआत में, अमरीकी कृषि सचिव अर्ल बुट्ज ने निगम खेती को बढ़ावा दिया। उन्होंने किसानों को प्रोत्साहित किया कि वे बाजार के लिए मक्का और सोयाबीन जैसी कमोडिटी फसलें उगायें। कुछ किसान उनके झाँसे में आ गये। अधिक उत्पादन के लिए जमीन और नयी मशीनरी की जरूरत थी जिसे उन्होंने भारी कर्ज लेकर पूरा किया। यहीं से अमरीकी किसानों पर संकट की बिजली गिरने लगी। एक दशक बाद, अत्यधिक उत्पादन ने कृषि संकट का रूप ले लिया। ऊँची ब्याज दरों ने पारिवारिक खेतों की लागत और कर्ज को बढ़ा दिया। नतीजा किसानों की बर्बादी।

1990 में, अमरीका में कुल कृषि उत्पादन का लगभग आधा हिस्सा छोटे और मध्यम आकार के खेतों से आता था। आज यह एक चौथाई से भी कम रह गया है। जैसे–जैसे छोटे–मध्यम आकार के पारिवारिक फार्म खत्म होते गये, उन पर निर्भर व्यवसाय जैसे बीज, उर्वरक और कीटनाशक की दुकानें भी गायब हो गयीं। ये सभी कारोबार सीधे निगमों के थोक विक्रेताओं के पास चले गये। स्थानीय पशुचिकित्सकों की माँग भी खत्म हो गयी। खेती और पशुपालन से जुड़े कई छोटे–छोटे पेशे जैसे–– नर्सिंग स्कूल, पशु बधशाला, पशु आहार की दुकानें, डेरी आदि खत्म हो गयीं और उनके व्यवसायी उजड़ गये।

अमरीका की कृषि निगमों ने पशुओं के प्रजनन की आनुवंशिकी विधि को अपने नियंत्रण में उसी तरह ले लिया जिस तरह उन्होंने बीटी संशोधित बीजों को विकसित करके खेती को अपने नियन्त्रण में ले लिया था। जैसे–जैसे फैक्टरी फार्म फैलते गये, उनके आगे परिवार केन्द्रित छोटे बूचड़खाने टिक नहीं पाये। निगमों ने न केवल उत्पादन पर, बल्कि बाजार पर भी अपना नियन्त्रण स्थापित कर लिया। उन्होंने विक्रेताओं से साँठ–गाँठ करके बाजार हथिया लिया। इस तरह बाजार पर भी उनका एकाधिकार कायम हो गया। पशुपालकों का स्वतंत्र पेशा खत्म हो गया तो वे अपने खेतों पर मकई और सोयाबीन उगाने के लिए मजबूर हो गये जिसे वे पशु चारे के रूप में फैक्ट्री फार्मों या इथेनॉल के लिए निगमों को बेच दिया करते हैं।

आज अमरीका में किसी न किसी प्रकार के लगभग 2,50,000 फैक्टरी फार्म हैं। अकेले मिसौरी में 1985 में 23,000 स्वतंत्र सूअर पालक थे। 2019 में उनकी संख्या घटकर 2,000 के लगभग हो गयी। इसी अवधि में स्वतंत्र पशु फार्मों की संख्या में 40 प्रतिशत की गिरावट आयी। देश में सबसे बड़ा सूअर पालक वर्जीनिया स्थित स्मिथफील्ड फूड्स है, जिसके पास अमरीका में (और मैक्सिको और पूर्वी यूरोप में और भी अधिक) लगभग दस लाख सूअर हैं। आयोवा सेलेक्ट फार्म्स देश में सबसे तेजी से बढ़ते कैफो परिचालनों में से एक है, जिसके 800 फार्म आयोवा की आधी काउंटियों में फैले हुए हैं।

अमरीका में बहुराष्ट्रीय निगमों को फायदा पहुँचाने वाली सरकारी नीतियाँ बनायी गयीं और उसे लागू किया गया। इससे पशुधन उद्योग पर इन निगमों का एकाधिकार कायम हो गया। ये निगम सरकारी सहायता के जरिये जानबूझकर अधिक उत्पादन करते हैं और कीमतें गिरा देते हैं। निगम फैक्टरी फार्म बनाने के लिए कम–ब्याज, संघ द्वारा गारंटीकृत ऋण प्राप्त करके कृषि व्यवस्था के साथ खिलवाड़ करते हैं और फिर अधिक उत्पादन करते हैं। लेकिन वे जानते हैं कि बाद में सरकार कीमतों को स्थिर करने के लिए अधिशेष खरीदेगी। इससे छोटे पशुपालक उजड़ जाते हैं। पैसा और सत्ता के खेल में इन निगमों ने छोटे पशुपालकों और किसानों को हासिये पर धकेल दिया है। रंगीन उत्पादों की इनकी चमचमाती दुकानों की चकाचौंध ने उन पशुपालकों और किसानों के दुखों को उनके सीने में ही दफन कर दिया है जो धरती के इस सबसे समृद्ध देश में भी बर्बाद हो गये हैं। उनकी व्यथा सुनने वाला कोई नहीं है।

यह कहा गया कि छोटे पशुपालक बड़ी निगमों के साथ प्रतियोगिता करें। जबकि प्रतियोगिता के खेल के नियमों को इस तरह बनाया गया कि वे दोनों खिलाड़ियों के लिए समान नहीं थे। खुद बड़ी निगमें खेल के नियमों को नियंत्रित करती हैं। वे लोकतंत्र को अपनी मुट्ठी में रखकर नेताओं को अपने इशारों पर नचाती हैं। मीडिया भी उनकी कठपुतली है। यह असमान खेल आज पूरी दुनिया में खेला जा रहा है और जिसका नाम है मुक्त प्रतियोगिता जिससे बड़ा कोई प्रपंच नहीं होगा और जो बाघ और बकरी के बीच प्रतियोगिता की हिमायत करता है, साफ है कि अमरीका के छोटे किसानों–पशुपालकों के लिए यह बर्बादी का सबब बन गया।

ऐसा नहीं है कि फैक्टरी फार्मिंग के उत्पाद उच्च गुणवत्ता के होते हैं। क्वालिटी एग फैक्टरी फार्म के अण्डे खाकर 1988 में, साल्मोनेला बीमारी से 11 लोगों की मौत हो गयी थी। उसके बाद इसके अण्डों की बिक्री पर अस्थायी रूप से प्रतिबंध लगा दिया गया था। 2017 में, इसके पूर्व मालिक जैक डेकोस्टर अपने बेटे पीटर के साथ जेल गये क्योंकि 2010 में इसके अण्डे से साल्मोनेला बीमारी के कारण हजारों लोग बीमार हो गये थे। इस कम्पनी ने कृषि विभाग के निरीक्षक को खराब अण्डे पास कराने के लिए रिश्वत भी दी थी। मालिक डेकोस्टर पर पशु क्रूरता, रिकॉर्ड में हेराफेरी, ठेकेदारों को धोखा देने और प्रदूषण फैलाने के लिए लाखों डॉलर का जुर्माना भी लगाया गया था। उसने अपने अप्रवासी मजदूरों को गन्दी और असुरक्षित परिस्थितियों में रहने और काम करने के लिए मजबूर किया था। यह भी पाया गया कि इसके आयोवा संयंत्रों में महिला मजदूरों के साथ बलात्कार किया जाता था। डेकोस्टर एक ऐसा उदाहरण है कि कैसे पूँजीपति पैसे और प्रभाव के जरिये अपनी मनमानी करते हैं।

बराक ओबामा ने वादा किया था कि वे छोटे किसानों और पशुपालकों के फायदे के लिए नयी नीतियाँ ले आयेंगे। लेकिन वे भी निगमों के हाथ के खिलौने ही साबित हुए। इससे किसानों के बीच ओबामा की छवि खराब हुई थी और किसानों में उनकी लोकप्रियता खत्म हो गयी। लेकिन डोनाल्ड ट्रम्प और उनके बाद जो बाइडन ने भी किसानों के लिए कुछ नहीं किया और निगमों के चाकर बने रहे।

फैक्ट्री फार्मिंग तकनीक केन्द्रित होती है, लेकिन ऐसा नहीं है कि इसमें मजदूर काम नहीं करते। इसमें काम करने वाले मजदूरों का बेरहमी से शोषण किया जाता है और मजदूरी नाममात्र की होती है। उनमें से ज्यादातर प्रवासी मजदूर होते हैं और शोषण–उत्पीड़न का विरोध करने पर उन्हें तुरन्त निकाल बाहर किया जाता है। उनका किसी रजिस्टर में नाम दर्ज नहीं होता। मांस काटने और पैक करने वाले मजदूर अकसर दुर्घटनाग्रस्त होते रहते हैं। अमरीकी ‘सेण्टर फॉर डिजीज कन्ट्रोल एण्ड प्रवेंशन’ (सीडीसी) संस्था के अनुसार, जिन फार्मों में जानवरों को गहन रूप से पाला जाता है, वे मजदूरों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। मजदूरों को फेफड़ों की बीमारी, चोटें और जानवरों से मनुष्यों में फैलने वाले संक्रमण (जैसे तपेदिक) हो सकते हैं। दुर्घटना या मौत होने की स्थिति में फार्म मालिक द्वारा उनके परिवार की मदद नहीं की जाती है। अमरीका में फार्म मजदूरों की यूनियन भी बहुत कमजोर हालत में है।

फैक्टरी फार्मों पर, जानवरों को तेजी से बढ़ने के लिए पाला जाता है ताकि उन्हें जल्दी से जल्दी बाजार में बेचने के लिए उत्पादों में बदला जा सके। अत्यधिक तंग और भीड़भाड़ वाली जगह में बिताये गये जीवन के चलते फैक्ट्री–फार्म वाले जानवरों में कई शारीरिक विकृतियाँ पैदा हो जाती हैं। इससे उनसे पैदा उत्पाद की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। मसलन, प्रदूषित गौशाला में रहने और धूप की कमी से गायों के दूध की पौष्टिकता घट जाती है। फैक्ट्री–फार्म में क्रूरता की कुछ मिसालें इस तरह हैं–– बछड़ों को पैदा होते ही उनकी माँ से अलग कर दिया जाता है। मुर्गे की चोंच काट दी जाती है क्योंकि तंग जगह के चलते वे अपने साथी मुर्गियों पर चोंच मार सकती हैं।

सीडीसी ने बताया है कि जानवरों के अपशिष्ट को नदियों और हवा में छोड़े जाने से भयानक प्रदूषण होता है। पशुओं में एंटीबायोटिक के उपयोग से ऐसे रोगजनक पैदा होते हैं जो एंटीबायोटिक–प्रतिरोधी हों जैसे–– परजीवी, बैक्टीरिया और वायरस जो इनसानों में कई भयानक बीमारी फैलाते हैं, जैसे–– कोरोना महामारी। अमोनिया, नाइट्रोजन और फास्फोरस वाला पशुमल जब पानी में जाता है तो वह ऑक्सीजन को कम कर देता है। कीटनाशक और हार्मोन मछली में हार्मोन से जुड़ी बीमारी पैदा करते हैं। आर्सेनिक और तांबा जैसे सूक्ष्म तत्व मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं ही।

अमरीका में फैक्ट्री फार्मिंग की तेज वृद्धि के सबसे बड़े कारण हैं–– दुनिया भर में मांस की खपत में वृद्धि, सस्ते मांस की बढ़ती माँग और पशुपालन का सीधे पूँजी के प्रभाव के अधीन हो जाना। अमरीका पशु उत्पादों का अधिशेष पैदा करके इसे विदेशों में निर्यात भी करता है। फैक्ट्री फार्मिंग के पीछे बड़ी पूँजी और राजनीतिक ताकत का हाथ है जो सरकार पर दबाव डालकर जन–कल्याण के कामों को सीमित करवाते हैं, खुद के लिए सरकारी सब्सिडी को ऊंचा रखने और उपभोक्ता माँग को बढ़ाने पर जोर देते हैं। सरकार की भी इन पर नजर–ए–इनायत है।

सबसे पहले फैक्टरी फार्म की शुरुआत अमरीका में हुई थी। आज यह देश लगभग सभी पशु उत्पादों के लिए फैक्टरी फार्मिंग पर निर्भर है। 1960 और 2002 के बीच अमरीका में फैक्टरी फार्म की कुल संख्या में 50 प्रतिशत की कमी आयी, जबकि इनमें ठूँसे गये जानवरों की कुल संख्या आसमान छू गयी है। 2020 तक, अमरीका के 25,000 फैक्टरी फार्मों में लगभग 1600 करोड़ जानवर थे। लगभग 99 प्रतिशत जानवर फैक्टरी फार्मों में पाले जाते हैं। एक ब्रॉयलर चिकन फैक्ट्री फार्म हर साल औसतन पाँच लाख मुर्गे–मुर्गियों का उत्पादन करता है। भारत में भी अमरीका की तर्ज पर फैक्टरी फार्मिंग का चलन बढ़ रहा है। भारत में सालाना लगभग 46 करोड़ मुर्गियाँ पाली जाती हैं और यह दुनिया में अंडे का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। 80 प्रतिशत से अधिक अंडे इन्हीं फार्मों से आते हैं।

अमरीकी कृषि विभाग (यूएसडीए) के अनुसार, 2018 में चार कम्पनियों–– कारगिल, टायसन फूड्स इंक, ब्राजील की जेबीएस और मारफिग ग्लोबल फूड्स ने लगभग 85 प्रतिशत अमरीकी अनाज–वसा वाले पशुओं को मारा, जो उपभोक्ताओं के लिए बीफ स्टीक, बीफ रोस्ट और मांस के अन्य उत्पाद बनाते हैं। यह तथ्य पशुपालन और उससे जुड़े उद्योग में इन कम्पनियों के एकाधिकार को दिखाने के लिए पर्याप्त है। 1977 में ये मात्र 25 प्रतिशत कारोबार पर अपना नियन्त्रण रखती थीं जो आज 85 प्रतिशत से अधिक हो गया है। ये कम्पनियाँ फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट्स और मार्केटिंग एग्रीमेंट्स के जरिये मीटपैकर्स उत्पादन के लिए तैयार होने से बहुत पहले पशुधन की कीमत तय कर लेती हैं। इसके चलते इस उद्योग पर इनका दबदबा कायम हो जाता है। दूसरी ओर, इसके चलते अक्सर पारिवारिक पशुपालकों को नुकसान होता है। 2007 में अमरीका के जिन आधे पारिवारिक पशुपालकों को बहुत बड़ा नुकसान हुआ था, उनमें से कई तो तबाह ही हो गये।

अमरीका सहित अन्य देशों में फैक्टरी फार्मिंग के खिलाफ विरोध बढ़ता जा रहा है। हालाँकि स्वीटजरलैण्ड में फैक्टरी फार्मिंग पर रोक लगाने वाला कानून पास न हो सका, लेकिन इस मुद्दे को देश में खासा महत्व मिला। जर्मनी के आल्ट टेलिन में फैक्टरी फार्मिंग के खिलाफ पर्यावरण कार्यकर्ताओं का प्रदर्शन जारी है। अमरीका के ओरेगान प्रान्त के छोटे पशुपालकों ने अपने आन्दोलन के जरिये फैक्टरी फार्मिंग पर संवैधानिक जीत दर्ज की है। ऐसे आन्दोलन फैक्टरी फार्मिंग को रोक पाने में पर्याप्त सिद्ध नहीं होंगे क्योंकि यह फार्मिंग पूँजीवादी व्यवस्था से नाभिनाल जुड़ी हुई है, हालाँकि आन्दोलन से जनता के अन्दर जागृति बढ़ेगी, लेकिन शोषण और पर्यावरण विनाश पर आधारित पूँजीवादी व्यवस्था का उन्मूलन ही जीत की दिशा में पहला कदम होगा।

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