फरवरी 2023, अंक 42 में प्रकाशित

रूस–यूक्रेन युद्ध की ताजा स्थिति

24 फरवरी, 2022 को रूस और यूक्रेन के बीच इसलिए युद्ध छिड़ गया क्योंकि अमरीका और नाटो की घेरेबन्दी से चिन्तित रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया था। इस युद्ध को शुरू हुए लगभग एक साल हो गये हैं। इसे द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से यूरोपीय महाद्वीप का सबसे बड़ा सैन्य संघर्ष माना जा रहा है। हमेशा की तरह यह युद्ध जनता के लिए भयावह दु:ख और विनाश लेकर आया है। इससे रूस और यूक्रेन की जनता पर ही कहर नहीं बरपा है, बल्कि रूस पर लगे आर्थिक प्रतिबन्धों की वजह से अमरीका, कनाडा और यूरोपीय देशों की अर्थवयवस्था को भी बड़ा झटका लगा है, क्योंकि वे पहले से ही आर्थिक मन्दी और कोरोना महामारी से उपजे संकट का शिकार हैं।

पिछले एक साल, इस युद्ध के खिलाफ रूस, यूक्रेन और यूरोपीय देशों सहित दुनिया के अन्य हिस्सों की जनता ने जबरदस्त प्रदर्शन किया है। इससे साफ पता चलता है कि दुनियाभर की जनता युद्ध नहीं चाहती। इनसानियत से प्यार करनेवाले लोग पीड़ा, व्यथा और आक्रोश से भर गये हैं और युद्ध का विरोध कर रहे हैं।

क्या रूस युद्ध हार गया है ?

पश्चिमी देशों के साम्राज्यवादी मीडिया का कहना है कि रूस युद्ध हार गया है और तीसरी दुनिया के देशों की मीडिया जो साम्राज्यवादपरस्त है, वह पश्चिमी मीडिया की खबरों की जूठन को प्रसारित कर रही है और हम तक केवल उन्हीं की प्रसारित खबरें ही पहुँच पा रही हैं। भारत के मुख्य धारा के मीडिया संस्थानों के विभिन्न “रणनीतिकार” टॉक–शो में रूस के हारने के दावे करते नजर आते हैं। उनके अनुसार, यूक्रेनी सेना ने खेरसॉन और दोनबास में आगे बढ़ रही है। रूसी सैनिक अधिक संख्या में मरे हैं, उसके सेनापति अक्षम हैं कि रूसी सेना के पास अधिक गोला–बारूद नहीं बचा है और इसकी मिसाइलें अपने लक्ष्यों तक पहुँचने में असमर्थ हैं। कि इस हार से बौखलाये पुतिन और उनके सेनानायकों ने यूक्रेन की जनता पर अंधाधुंध गोलाबारी कर दी है, जिससे बिजली, पानी और खाद्य पदार्थों की आपूर्ति बाधित हो गयी है और वह भूख से मर रही है। कि अगर हालात और भी बदतर हो जाते हैं, तो रूस की सरकार परमाणु हथियारों के इस्तेमाल से इनकार नहीं करती है। कि रूसी लोग यह युद्ध नहीं चाहते हैं और उम्मीद करते हैं कि राष्ट्रपति पुतिन को हटा दिया जाएगा और उनकी जगह एक ऐसा विपक्षी नेता ले लेगा, जो अधिक उदार होगा तथा अमरीका और यूरोप के इशारे पर नाचेगा।

ऐसी झूठी खबरों से भारत के टीवी चैनल और अखबार भरे हुए हैं। यह बात महत्वपूर्ण है कि भारत के सूचना पेशेवर बौद्धिक रूप से दिवालिया और निहायत आलसी होते हैं। वे जेलेंस्की सरकार की प्रचार रिपोर्टों को समाचार के रूप में प्रस्तुत करने तक खुद को सीमित रखते हैं। उनकी सूचनाएँ भ्रामक और सत्य से कोसों दूर हैं। उनके छद्म प्रचार के विपरीत वास्तविक स्थिति यह है कि रूस यह युद्ध हार नहीं रहा है, बल्कि उसकी स्थिति अधिक मजबूत होती जा रही है, इसके कई कारण हैं। युद्ध हारने का मतलब है कि रूस को उन क्षेत्रों को छोड़ना पड़ेगा, जिसे उसने जनमत संग्रह करके रूसी संघ में शामिल किया है। यब बात रूसी समाज और इससे भी अधिक हाल ही में रूस में शामिल की गयी आबादी स्वीकार नहीं करेगी और विशेष रूप से दोनबास क्षेत्र की रूसी भाषी आबादी तो बिलकुल नहीं जो पिछले आठ साल से यूक्रेन के हमले और दमन का सामना कर रही हैं, वह कभी भी यूक्रेन का हिस्सा बनना पसन्द नहीं करेगी। दूसरा कारण यह है कि रूस चाहे जो कुछ भी हो, अमरीकी साम्राज्यवाद की उस इच्छा के आगे समर्पण नहीं करेगा, जो उसके संघीय अस्तित्व को खत्म करना चाहती है। आज रूस इतना सक्षम हो गया है कि वह वैश्विक स्तर पर अमरीकी साम्राज्यवाद के वर्चस्व का विरोध करता रह सकता है और अमरीकी वर्चस्व वाली एक एकध्रुवीय दुनिया के बजाय बहुध्रुवीय दुनिया की वकालत भी करता रह सकता है।

रूस को इस रणनीति की कोई आवश्यकता नहीं है कि वह अपने सैनिकों की खुले में तैनाती करे, जिससे वे बेकार में मारे जायें, जबकि युद्ध जीतने के लिए उसके पास अन्य साधन मौजूद हैं। इस बात से यूक्रेनी सेनाओं के कमाण्डर–इन–चीफ सुरोविकिन भी सहमत हैं। हम जानते हैं कि रूस की जनसंख्या कम है, इसलिए वह अपने सैकड़ों हजारों युवकों को मोर्चे पर भेजने का जोखिम नहीं उठा सकता। हाल ही में, रूस ने सामरिक मिसाइलों का उपयोग यूक्रेन के सैन्य ठिकानों और रणनीतिक बुनियादी ढाँचे के खिलाफ किया है, जिसके चलते यूक्रेन को भारी नुकसान उठाना पड़ा है।

साम्राज्यवादी मीडिया ने खेरसॉन में रूसी सेना के पीछे हटने को उसकी हार और वापसी के रूप में प्रसारित किया, जो सही नहीं है। वास्तव में, रूस ने अपने सैनिकों के एक महत्वपूर्ण हिस्से को खतरे से बाहर निकालने और बेहतर बचाव के लिए पीछे हटाया है। उसके सैनिक खुद को फिर से संगठित करने के लिए नीपर नदी के दूसरे किनारे पर चले गये हैं। उन्होंने नदी को रक्षा की एक प्राकृतिक रेखा में बदल दिया है, जिसे पार करना बहुत मुश्किल है, क्योंकि इस समय इसकी चैड़ाई लगभग दो किलोमीटर है।

रूस–यूक्रेन युद्ध में हताहतों की संख्या

रूसी सेना के नुकसान के बारे में, यूक्रेनी सरकार बहुत बढ़–चढा कर दावे करती रही है, जबकि रूस की सरकार ने इसे बहुत कम करके बताया है। स्वीडन में उप्साला विश्वविद्यालय के एक शोधकर्ता के अनुसार, रूसी सेना के नुकसान के बारे में, यूक्रेन की सरकार अपनी सेना और जनता का मनोबल बढ़ाने के लिए दो तरह की गलत सूचनायें फैला रही है–– पहली अपने हताहतों को कम करके दिखाने का और दूसरी रूस के हताहतों को बढ़ाकर दिखाने का। साम्राज्यवादी मीडिया उसके दावों को हुबहू स्वीकार करके प्रसारित कर रहा है और रूस के हारने के बार–बार दावे कर रहा है, जबकि सच्चाई इसके उलट है। गम्भीर राजनीतिक विश्लेषकों ने यूक्रेनी दावों को तथ्य के रूप में स्वीकार करने के बारे में चेतावनी दी है, क्योंकि पश्चिमी देश रूसी सेना के नुकसान पर जोर दे रहे हैं।

रूसी समाचार माध्यमों ने रूसी मौत के आँकड़ों पर रिपोर्टिंग करना लगभग बन्द कर दिया है। जून 2022 में, कलिनिनग्राद क्षेत्र में स्वेतलोगोर्स्क सिटी कोर्ट ने फैसला सुनाया कि यूक्रेन में मारे गये रूसी सैनिकों के बारे में “वर्गीकृत जानकारी” का प्रकाशन एक आपराधिक कार्रवाई मानी जा सकती है।

यूक्रेनी सेना के हताहतों की संख्या चैंका देने वाली है। अमरीकी सैन्य अधिकारियों और विशेषज्ञों के अनुसार, दिसम्बर 2022 के अन्त तक एक लाख से अधिक यूक्रेनी सैनिक मारे गये हैं, जिसमें हर मरने वाले पर तीन घायलों को जोड़ लेना चाहिए। यानी यूक्रेन विभिन्न मोर्चों पर प्रतिदिन 300 से 400 लोगों को खो रहा है। रूस के लगभग 48 हजार सैनिक घायल और 16 हजार सैनिक मारे गये हैं, जिनमें से 8 हजार रूसी सेना के हैं और बाकी क्षेत्रीय इकाइयों, चेचन बलों और वैगनर समूह के हैं। फरवरी 2022 में, जब रूसी सेना ने यूक्रेन के खिलाफ संघर्ष शुरू किया था तो मोर्चे पर उसके डेढ़ लाख सैनिक तैनात थे, जिसमें दोनबास और चेचन विशेष बलों और वैगनर समूह की ओर से लगभग 60 हजार सैनिक और जोड़े गये थे। उनके खिलाफ संघर्ष की शुरुआत में लगभग 6 लाख यूक्रेनी सैनिक मोर्चे में शामिल थे। संयुक्त राष्ट्र के आँकड़ों के अनुसार, संघर्ष के आठ महीनों के दौरान दोनों पक्षों के 10 हजार से अधिक नागरिक मारे गये।

क्या अमरीका यूक्रेन के जरिये रूस में छद्म युद्ध लड़ रहा है ?

इस सवाल का जवाब हाँ है। दुनिया में आज तक जितने भी युद्ध हुए हैं उनका खास वर्ग चरित्र रहा है। युद्धों को मूलत: चार श्रेणियों में बाँटा जा सकता है, पहला–– शोषकों का जनता पर थोपा गया लुटेरा युद्ध, दूसरा–– जनता का आत्म रक्षात्मक और मुक्ति युद्ध, तीसरा–– दो शोषक वर्गों के बीच गृह युद्ध और चैथा–– शोषित–उत्पीड़ित जनता का अपने शासक के खिलाफ क्रान्तिकारी गृह युद्ध। साम्राज्यवादी युद्ध दो साम्राज्यवादी देशों के बीच लड़ा जाने वाला लुटेरा युद्ध होता है, जिसमें दोनों देश उपनिवेश हथियाने के लिए और अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए एक दूसरे के खिलाफ लड़ते हैं। छद्म युद्ध (प्रॉक्सी वार) का दुहरा चरित्र होता है। आमने–सामने दो देशों की सेनाएँ लडती हैं, लेकिन किसी एक देश या दोनों देशों के पीछे बड़ी ताकतों का हाथ होता है। अगर वह बड़ी ताकत साम्राज्यवादी है तो उसकी वित्तीय पूँजी और उन्नत हथियार से युद्धरत देश की मदद के बहाने युद्ध को जारी रखा जाता है। अमरीका और अन्य नाटो देश यूक्रेन के जरिये रूस से छद्म युद्ध लड़ रहे हैं। यह दो साम्राज्यवादी धड़ों–– रूसी और अमरीकी धड़ों के बीच लुटेरा युद्ध है, जिसमें अमरीकी धड़ा परोक्ष रूप से युद्ध में शामिल है।

रूस ने भी अमरीका पर यूक्रेन में छद्म युद्ध लड़ने का आरोप लगाया है। अमरीका ने यूक्रेन के लिए सैन्य समर्थन बढ़ाने और यूक्रेनी राष्ट्रपति व्लॉदिमिर जेलेंस्की की अमरीका यात्रा पर जो उत्साह दिखाया, उसे लेकर रूस ने अमरीका पर उसके खिलाफ छद्म युद्ध लड़ने का आरोप लगाया है। ज्ञात हो कि दिसम्बर 2022 में जेलेंस्की जब वाशिंगटन पहुँचे, तो अमरीकी सरकार ने एक युद्ध नायक के रूप में उनका स्वागत किया। उस अवसर पर अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने यूक्रेन को 1–8 अरब डॉलर मूल्य के सैन्य उपकरण देने की प्रतिबद्धता जाहिर की, जिसमें पैट्रियट मिसाइल रक्षा प्रणाली शामिल है। अमरीका पहले ही यूक्रेन को 50 अरब डॉलर की सैन्य सहायता दे चुका है, यह राशि 2021 के यूक्रेन के सालाना सैन्य बजट से लगभग 10 गुने के बराबर है। रूस के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने कहा कि जेलेंस्की की यात्रा के दौरान शान्ति या “रूस की चिन्ताओं को सुनने” की इच्छा के संकेत अमरीका ने नहीं दिये, जो साबित करता है कि अमरीका रूस के साथ “अन्तिम यूक्रेनी” के नाम पर छद्म युद्ध लड़ने का इरादा रखता था।

रूस कई बार शान्ति सन्धि का प्रस्ताव यूक्रेन के सामने रख चुका है, लेकिन यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लॉदिमिर जेलेंस्की ने बार–बार दुहराया है कि रूस के साथ तब तक कोई बातचीत नहीं होगी जब तक कि वह क्रीमिया सहित कब्जे वाले सभी क्षेत्रों से अपने सभी सैनिकों को वापस नहीं ले लेता। अमरीका और नाटो के उकसावे में जेलेंस्की इतने अंधे हो गये हैं कि वह अपने देश की जनता की भारी तबाही देख नहीं पा रहे हैं या देखना ही नहीं चाहते। यूक्रेन की हालत बेहद खराब हो गयी है। रूस घातक मिसाइल हमलों के जरिये यूक्रेन केविद्युत ऊर्जा स्टेशनों, पुलों, और राजधानी कीव की सरकारी इमारतों जैसे ‘निर्णय केन्द्रों’ को भी निशाना बनारहा है। उसने यूक्रेन की बिजली, पानी और रेलमार्ग प्रणालियों को स्थायी रूप से अक्षम कर दिया है। यहाँ की सामाजिक–राजनीतिक स्थिति बहुत खराब है, क्योंकि महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे चरमरा गये हैं और सर्दियों में तापमान शून्य से 20 डिग्री नीचे पहुँच जाता है। ओडेसा और अन्य स्थानों पर बिगड़ती मानवीय स्थिति को लेकर प्रदर्शन शुरू हो गये। जेलेंस्की ने यूक्रेनी प्रदर्शनकारियों को दबाने और मीडिया में कवरेज पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए यूक्रेन की सुरक्षा सेवा ‘एसबीयू’ को भेजा।

रूस–यूक्रेन युद्ध से आर्थिक नुकसान

युद्ध के शुरू होने बाद जब अमरीका और उसके सहयोगी नाटो के देशों ने रूस पर आर्थिक प्रतिबन्ध लगाया था। इससे उन्हें उम्मीद थी कि रूस आर्थिक रूप से तबाह हो जाएगा और राजनीतिक रूप से अस्थिर। पुतिन के हाथ से सत्ता निकल जायेगी। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, उलटे आर्थिक प्रतिबन्ध के चलते, पहले से मन्दी की गिरफ्त में फँसी यूरोप की अर्थव्यवस्थाएँ लड़खड़ा गयीं। चार देशों–– इग्लैण्ड, बुल्गारिया, इटली और एस्तोनिया की सरकारें बदल गयीं। सितम्बर 2022 में आर्थिक सहयोग और विकास संगठन ने कहा कि रूस–यूक्रेन युद्ध से वैश्विक अर्थव्यवस्था को अगले साल के अन्त तक उत्पादन में 2800 अरब डॉलर का नुकसान होगा। यूरो की कीमत में रिकार्ड गिरावट हुई है जबकि रूस का रूबल काफी मजबूत स्थिति में पहुँच चुका है।

अमरीका, कनाडा और यूरोपीय देशों के एकाधिकारी पूँजीपति, जिनका माल और सेवाओं के व्यवसाय पर दबदबा है, उन्होंने रूस–यूक्रेन युद्ध का बहाना बनाकर अपने उपभोक्ता मालों के दाम बढ़ा दिये हैं, इससे महँगाई तेज रफ्तार से बढ़ती जा रही है। इससे कंगाल और बेघर लोगों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हो रहे हैं। महँगाई बढ़ने का एक कारण और है–– यूरोप के ज्यादातर देश ऊर्जा के लिए रूस से आयातित पेट्रोलियम पर निर्भर हैं। प्रतिबन्ध के चलते उन्हें ऊर्जा संकट का सामना करना पड़ रहा है। इस युद्ध से आपूर्ति श्रृंखलाओं में बाधा आ रही है तथा उत्पादन और वितरण महँगा होता जा रहा है। इससे लोगों तक भोजन और अन्य आवश्यक वस्तुएँ नहीं पहुँच पा रही हैं और दुनियाभर के बाजारों में अफरा–तफरी मचा हुई है।

रूस–यूक्रेन युद्ध से जुड़े विविध पहलुओं पर गौर करने से यह पता चलता है कि तमाम अमरीकी और अन्य नाटो देशों की सहायता के बावजूद यूक्रेन के लिए यह युद्ध जीतना मुश्किल ही नहीं असम्भव है। वह लगभग तबाही के कगार पर पहुँच चुका है। अब तक उसने इस युद्ध में अपने चार प्रान्त भी गवाँ दिये हैं और वहाँ की जनता की हालत बहुत बुरी है। अगर दोनों देशों के बीच शान्ति समझौता नहीं होता या युद्ध खत्म नहीं किया जाता तो यह यूक्रेन की जनता के साथ, दुनिया की जनता को और तबाह करेगा।

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