सामाजिक जनवाद की सनक
अमरीका में सामाजिक जनवाद के बड़े चेहरे ‘बर्नी सैंडर्स’ को अंत में राष्ट्रपति के प्रत्याशी से खुद को हटा देना पड़ा। यह उन ताकतों के लिए जोरदार झटका है, जो मौजूदा नवउदारवादी दौर में सामाजिक जनवाद का झण्डा उठाए हुये हैं। दूसरी ओर, कोरोना महामारी के दौर में लॉकडाउन के चलते दुनिया भर के मजदूर वर्ग और दूसरे गरीब तबकों पर भारी मार पड़ी है, उनकी मदद के लिए एक बार फिर कल्याणकारी लोक-लुभावनवादी कार्यक्रमों की माँग उठ रही है। इस तरह पूंजीवाद के अंदर ही समस्या के समाधान को पेश किया जा रहा है। इससे जरूर ही सामाजिक जनवादी तर्कों को बल मिलेगा। लेकिन लेखक ने यहाँ साफ तौर पर दिखाया है कि ऐतिहासिक रूप से सामाजिक जनवाद दिवालिया हो चुका है और वह दुनिया को कोई बेहतर भविष्य उपलब्ध नहीं करा सकता, सिवाय पूंजीवाद के सेज पर खुद को नग्न परोसने के।
आज संयुक्त राज्य अमरीका में सामाजिक जनवाद या जनवादी समाजवाद में एक उभार आया है (मैं इन शब्दों का इस्तेमाल एक दूसरे के स्थान पर रखकर करता हूँ; कम से कम अमेरिका में मैं उनके बीच बहुत अंतर नहीं पाता)। सामाजिक जनवाद की मुख्य धारा डेमोक्रेटिक सोशलिस्ट ऑफ़ अमेरिका (डीएसए) है, जिसके पूरे राजनीतिक परिप्रेक्ष्य को निम्नानुसार वर्णित किया जा सकता है। अल्पावधि में उत्पादन और वितरण की मौलिक रूप से नयी प्रणाली की कोई सम्भावना नहीं है, और क्रांतिकारी उथल-पुथल के माध्यम से तो बिल्कुल नहीं। पूंजीवाद से समाजवाद में केवल एक दीर्घकालिक शांतिपूर्ण संक्रमण से जाना सम्भव है। ऐसा विकास चुनावी राजनीति के जरिये ही हासिल करना है। संयुक्त राज्य अमरीका में दो दलीय प्रणाली के शिकंजे को देखते हुए जो लोग समाजवाद की आशा करते हैं, उन्हें इनमें से अधिक उदार के अन्तर्गत काम करना चाहिए, डेमोक्रेटिक पार्टी, सक्रिय रूप से समर्थन कर रही है और अंततः कांग्रेस और राष्ट्रपति पद के लिए निर्वाचित होने वाली है, जिसे डीएसए के कुछ दिग्गज “सामाजिक जनवादियों का वर्ग- संघर्ष” कहते हैं। क्रन्तिकारी परिवर्तन के ये बहादुर, जब उनकी संख्या पर्याप्त होगी और उनके पास एक मजबूत लोकप्रिय जनादेश होगा तो वे राज्य का उपयोग अमीरों और निगमों की शक्ति को धीरे-धीरे नष्ट करने और उन्हें मजदूरों और समुदायिक मालिकाने वाली सहकारी समितियों में तब्दील करने के लिए करेंगे। इस बीच सरकार ऐसा कानून बनाएगी जिसका वित्तपोषण नए मुद्रित धन को केंद्रीय बैंक के जरिये सार्वजनिक खजाने में भरने के साथ ही आय और सम्पत्ति दोनों पर तीव्र आरोही करों द्वारा होगा, जो हर नागरिक को आधुनिक जीवन की कई गुलेलों और तीरों के खिलाफ एक सुरक्षा कवच प्रदान करता है। सभी के लिए चिकित्सा, मुफ्त शिक्षा, बड़े पैमाने पर रहने योग्य सार्वजनिक आवास, कार्बन उत्सर्जन कम करने वाली और सार्वजनिक रोजगार पैदा करने वाली एक महत्वाकांक्षी ग्रीन न्यू डील, नौकरी में वापसी, और बहुत विस्तारित और सस्ता सार्वजनिक परिवहन हमें अपने हितों को आगे बढ़ाने के लिए अधिक खुश, अधिक उत्पादक, और अधिक मुक्त बनाएगे।
जैसे-जैसे सामाजिक जनवाद की सफलता सामने आ जाती है और हमारी सामान्य अपेक्षाओं का हिस्सा बन जाती है तो उत्पादन के साधनों और खुद राज्य, दोनों पर निजी मालिकाने के क्षीण हो जाने के साथ ही धीरे-धीरे पूर्ण समाजवाद की ओर बढ़ना सम्भव हो जाएगा। मैंने इस बारे में कोई विवरण तो नहीं देखा है, लेकिन किसी ने सोचा होगा कि कार्यस्थलों की पदानुक्रमित संरचना धीरे-धीरे सत्ता की अधिक क्षैतिज संरचना के लिए रास्ता छोड़ देगी। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसी जैसे सामाजिक जनवादी देश वैश्विक संचालक एजेंसियों के साथ पारस्परिक रूप से लाभकारी व्यापार में संलग्न होंगे, जो वैश्विक स्तर पर अन्योन्याश्रित दुनिया में जारी रहेगा।
सामाजिक जनवाद की वंशावली उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में मूल कम्युनिस्ट आंदोलन में हुई फूटों तक जाती है, जिसे जन्म देने में मार्क्स और एंगेल्स ने मदद की थी। एक तरफ वे थे जो वर्ग संघर्ष के ज़रिये मज़दूर वर्ग की आत्म-मुक्ति की मार्क्सवादी दृष्टि के प्रति सच्चे थे और जो सशस्त्र आत्म-रक्षा और सम्भावित हिंसक क्रांति से पीछे नहीं हटते थे। दूसरे वे थे जो मानते थे कि पूंजीवाद से समाजवाद में शांतिपूर्ण संक्रमण बंधनमुक्त मानवता के सपने को साकार करने का एक यथार्थवादी तरीका है। इन मतभेदों ने एक जटिल इतिहास को जन्म दिया है, जिसका विस्तार से जिक्र इस संक्षिप्त निबंध के दायरे से परे है। हालांकि, कई मुख्य बिंदु बनाये जा सकते हैं।
पहला , सबसे मजबूत सामाजिक जनवादी पार्टी जर्मनी में थी। हालांकि, जैसाकि अपरिहार्य है, जब सामाजिक जनवादियों ने चुनाव के जरिये सफलता हासिल करनी शुरू की , जर्मन सामाजिक जनवादी पार्टी (एसपीडी) में एक ऐसी पार्टी नौकरशाही तैयार हो गयी जिसमें विशिष्ट प्राधिकार हमेशा उच्च लोक पद के पास होते हैं। इसके चलते पार्टी की कतारों से इनकी आजदी बढ़ती जाती है, उसी तरह जैसे संयुक्त राज्य अमरीका में मजदूर यूनियन के नौकरशाह अपने सदस्यों से दूर हो गए हैं।
दूसरा, एक ऐसे समाज में जहाँ पूंजीवाद हावी है, जहाँ सेना और पुलिस निजी संपत्ति की रक्षा के लिए दृढ़तापूर्वक प्रतिबद्ध हैं, वहाँ वामपंथी पार्टियों को राज्य द्वारा स्थापित न्यूनतम पार्टी कार्यक्रम स्वीकार करने के लिए अपने मूल सिद्धांतों के साथ अनिवार्य रूप से समझौते करने चाहिए। जब जर्मनी प्रथम विश्व युद्ध में शामिल होने का इरादा कर रहा था तब एसपीडी ने सरकार को लड़ाई के वित्तपोषण के लिए बांड जारी करने की अनुमति देने के मुद्दे पर एक घृणित मतदान किया था। इस तरह, इसने युद्ध में पूरी तरह से भाग लिया और इसे युद्ध में मारे गए उन 90 लाख सैनिकों और उन लाखों नागरिकों की मौत के आरोप में भी हिस्सेदार होना चाहिए, जिनमें से अधिकांश मजदूर और किसान थे, ये वही लोग थे जिन्होंने सम्भवत: एसपीडी को विजेता बनाया था।
वर्ग शत्रुओं के साथ समझौता करने का एक और भयावह उदाहरण तब सामने आया जब स्वीडिश सामाजिक जनवादी पार्टी, जो पहली बार 1930 के दशक में सत्ता में आयी थी, उसने यह स्थापित करना शुरू किया कि आखिरकार दुनिया में प्रगतिशील सामाजिक जनवाद का सबसे अच्छा उदाहरण कौन बनेगा, इसने पहले और दूसरे विश्व युद्ध के दौरान नाज़ियों से समझौता किया। जैसा कि क्रन्तिकारी लेखक लुईस प्रोएक्ट लिखते हैं--
“जर्मनी, जो पहले ही डेनमार्क और नॉर्वे पर जीत हासिल कर चुका था, उसके साथ युद्ध से बचने के लिए स्वीडन ने अपनी धरती पर नाजी दस्तों के आंदोलनों के प्रति बहुत ही लचीला रवैया अपनाया। 8 जुलाई, 1940 को दोनों राष्ट्रों ने एक समझौता किया, जो नाजी युद्ध योजनाओं के लिए उपयोगी साबित हुआ। स्वीडिश रेलों से हर महीने लगभग 30,000 नाजी सैनिकों को ढोया गया और नाजी आयुध से भरी 1500 रेल भी इसी रेलवे से ले जायी गयी।
“26 जून, 1941 को, जिस दिन फिनलैंड यूएसएसआर के खिलाफ युद्ध में शामिल हुआ, उसी दिन स्वीडन ने ऑपरेशन बारब्रोसा के नाम पर 15,000 नाजी सैनिकों से भरी रेलों को पूर्व की ओर जाने की अनुमति दी। उसी वर्ष 22 जून से 1 नवंबर के बीच स्वीडिश रेलें 75,000 टन जर्मन युद्ध सामग्री को उसी दिशा में लेकर गयी। मोर्चे से वापस आने के बाद ये रेल, नॉर्वे पर कब्ज़ा करने के दौरान घायल हुए नाज़ी सैनिकों को ओस्लो के अस्पतालों में लेकर गयी जहाँ उनका तब तक इलाज किया गया जब तक कि वे कत्लगाहों में वापस जाने लायक नहीं हो गये। स्वीडिश अधिकारियों ने वेहरमैच की फौजों के लिए आधार शिविर भी स्थापित किये और उनमें भोजन, तेल और दूसरी सभी जरूरतों की पूर्ण आपूर्ति की। और इस पूरे समय के दौरान जर्मन लड़ाकू विमानों ने रूस जाने के लिए स्वीडिश हवाई क्षेत्र का इस्तेमाल किया। स्वीडन जर्मनी के लिए और ज्यादा प्यारा इसलिए भी था कि उसने एक हजार से ज्यादा ट्रक जर्मनी को बेचे या पट्टे पर दे दिये ताकि यह सुनिश्चित हो जाए कि रूस पर आक्रमण विफल नहीं होगा।”
तीसरा, सामाजिक जनवाद ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के लगभग तीन दशकों के दौरान अपनी खुद की प्रगति पर चोट की। यह तब है जबकि ग्रेट ब्रिटेन में बढ़िया राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (एनएचएस) लागू की गई थी। “एनएचएस सरकार द्वारा सीधे चलायी जाती है, मुफ्त है, और इसमें सभी के लिए सेवाओं की एक विस्तृत प्रभावशाली श्रृंखला शामिल है। यह एक जबरदस्त उपलब्धि थी, और इसने मेहनतकश वर्ग के जीवन की सबसे महत्वपूर्ण असुरक्षाओं में से एक को हटा दिया।”
पश्चिमी जर्मनी में भी सामाजिक जनवाद ने सामाजिक सुरक्षा उपायों की एक विस्तृत श्रृंखला और इसी तरह "सह-निर्धारण" की एक प्रणाली भी शुरू की, जिसमें मजदूर यूनियनों और मजदूरों के पास कुछ कानूनी अधिकार और शक्तियां थी।
"जर्मन व्यवस्था कॉरपोरेटवादी है, जिसका अर्थ है कि श्रम और पूंजी को सामाजिक साझेदार के रूप में देखा जाता है, और राज्य उनके सम्बन्धों में आत्मीय ढ़ंग से जुड़ा हुआ है। उदाहरण के लिए, जर्मन श्रम कानून, संयुक्त राज्य अमरीका और ग्रेट ब्रिटेन की तुलना में बहुत व्यापक हैं। विस्तृत कानून सामूहिक सौदेबाजी को विनियमित करते हैं, सभी मजदूरों को कुछ निश्चित लाभों की गारंटी देते हैं, अन्यायपूर्ण बर्खास्तगी पर रोक लगाते हैं, और सभी राष्ट्रीय आयोगों, एजेंसियों और नीति-निर्माता निकायों में श्रम सम्बन्धी मामलों में यूनियनों की भागीदारी को निर्धारित करते हैं। सह-निर्धारणवादी (कोडिटरमीनेशन) की एक प्रणाली भी मौजूद है, जिसके माध्यम से मजदूर अप्रत्यक्ष रूप से, अपनी यूनियनों के जरिये कॉर्पोरेट निर्णय लेने में भाग ले सकते हैं...।"
हालांकि, यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि सामाजिक जनवादी सरकारों के तहत भी पूर्व नाजी सार्वजनिक पदों पर आसीन रहे, जर्मन सेना में अधिकारी रहे, और बड़े जर्मन निगमों को चलते रहे।
युद्ध के बाद स्कैंडिनेवियाई राष्ट्रों में सामाजिक जनवाद अपनी पराकाष्ठा पर पहुँचा। वहाँ, यूनियनों के घनत्व के असाधारण उच्च स्तर (अक्सर 80 प्रतिशत से अधिक) ने राष्ट्रीय यूनियन महासंघ और उदयीमान स्वीडिश सामाजिक जनवादी पार्टी के बीच के घनिष्ठ सम्बन्ध के साथ जुडकर, उच्च आरोही करों और सार्वजनिक रोजगार के कीन्सवादी कार्यक्रम तथा क्रैडल-टू-ग्रेव (पालने से लेकर मृत्यु तक) जैसे सामाजिक कल्याण के कार्यक्रम बनाने में मदद की। पूंजी पर मजबूत नियंत्रण ने स्वीडिश पूँजी की पूरी दुनिया में स्वतंत्र आवाजाही को मुश्किल बना दिया। एक उल्लेखनीय सुरक्षा तंत्र और बहुत अल्प बेरोजगारी के प्रतिफल के रूप में, स्वीडिश श्रम ने स्वीडिश पूंजी को उतना आगे नहीं बढ़ाया जहाँ तक कि पूँजी अपनी शक्ति के चलते खुद बढ़ जाती। इसके बजाय समझौते किये गये ताकि स्वीडिश निर्यात प्रतिस्पर्धी वैश्विक लाभ बनाए रखें। इस मॉडल की कमजोरी को तब देखा जा सकता है जब स्वीडिश सामाजिक जनवाद को रेखांकित करने वाली मेदनेर योजना के हिस्से के रूप में 1970 के दशक में एक श्रमिक निधि प्रस्तुत की गयी थी, जो नए स्टॉक को अनिवार्य रूप से जारी करने के जरिये आती, यह स्टॉक मजदूरों के अधिकार में होता और अंततः उन्हें वास्तविक रूप से स्वीडिश निगमों का मालिक बनाता। पूँजी की तरफ से इसका तीव्र विरोध सामने आया और सामाजिक जनवादियों को हथियार डाल देने के लिए मजबूर होना पड़ा, उनके सामने सवाल उठ खड़ा हुआ कि आदर्श सामाजिक जनवादी राष्ट्र में कभी भी समाजवाद कैसे पैदा हो सकता है।
अमरीका में सामाजिक जनवाद किस हद तक प्रचलित रहा? बहुत ज्यादा नहीं। कुछ सामाजिक कल्याणकारी मानदंड लागू किये गये थे, जैसे विस्तारित सामाजिक सुरक्षा लाभ, मेडिकेयर, मेडिकेड, सार्वजनिक आवास (बुरी तरह से अपर्याप्त और खराब गुणवत्ता वाले), भेदभाव-विरोधी कानून, पेशेगत स्वास्थ्य और सुरक्षा क़ानून और ज्यादा आरोही संघीय कर। पूंजी को एक श्रम-प्रबंधन समझौते के लिए मजबूर किया गया था, लेकिन इसमें स्वीडन या जर्मनी जैसा कुछ नहीं था।
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वर्कर्स फंड को ठीक उसी समय आगे किया गया था, जब द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के पूंजीवादी उछाल ने तनावों से गुजरना शुरू कर दिया था और पूंजी ने अपनी शक्ति को सामाजिक जनवाद को कमजोर करने में लगाने का फैसला किया। इसके लिए पूँजी ने मांग की कि सरकारें धन और भौतिक पूंजी दोनों को कम लागत और उच्च मुनाफे की तलाश में पूरी दुनिया में अधिक स्वतंत्र रूप से आवाजाही करने की अनुमति देकर इनकी गतिविधियों पर नियंत्रणों को ढीला करें। नतीजे के तौर पर अतिसंयमी कर और सरकारी खर्च की नीतियों में फेरबदल तथा इनसे जुडे हुए समाज कल्याण सुरक्षा तंत्र को कमजोर किये जाने के चलते अमरीकी मजदूरों पर प्रतिशोध के साथ चोट लगी। हालाँकि, मजदूर वर्ग पर इसी तरह के हमले हर उस देश में होने लगे जहाँ सामाजिक जनवाद मजबूत था। रूढ़िवादी सरकारें आम हो गयी; वैश्विक दक्षिण की ओर विनिर्माण की रेलमपेल शुरू हुई; श्रम बाजारों को और अधिक "लचीला" बनाया गया; तथा कीन्सवाद और सामाजिक जनवाद पर एक वैचारिक हमला तत्काल शुरू हुआ। सामाजिक जनवाद कुछ देशों में संकट के बादलों को दूसरों की अपेक्षा दूर रखने में बेहतर ढंग से सफल रहा है, लेकिन यह कहीं भी उन्हें बरसने से नहीं रोक सका। यह खुद को फिर से जीवंत करने, सत्ता हासिल करने और कल्याणकारी राज्य को फिर से जिन्दा करने में बहुत कम कामयाब रहा है। हाल के ब्रिटिश चुनाव में जेरेमी कॉर्बिन की हार इस बात का पर्याप्त बड़ा प्रमाण है। और जले पर नमक छिड़कते हुए, न्यूयॉर्क टाइम्स के हाल ही के एक सम्पादकीय ने फिनलैंड को "पूंजीवाद का स्वर्ग" घोषित किया है।
सामाजिक जनवादी या जनवादी समाजवादी अक्सर तथ्यों से बेखबर दिखते हैं,
“पश्चिमी यूरोप में सामाजिक जनवाद ने विशेष ऐतिहासिक परिस्थितियों में आकार ग्रहण किया था-- द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अधिकांश यूरोपीय देशों में सोवियत संघ के साथ जुड़े हुए मजबूत कम्युनिस्ट आन्दोलन की मौजूदगी; युद्ध के बाद बड़े पैमाने पर हुए पुनर्निर्माण के बाद तीव्र आर्थिक विकास हुआ जो अमरीकी आर्थिक मदद और अमरीकी निर्यात द्वारा सहायता प्राप्त था; भविष्य के किसी भी क्रान्तिकारीकरण को सह-योजित करने के लिए गैर-कम्युनिस्ट मजदूर यूनियनों के साथ सहयोग करने और रियायतें बरतने की यूरोपीय पूंजी की आवश्यकता; तथा पूंजी पर सख्त नियंत्रण और निश्चित मुद्रा विनिमय दर, जिसने राष्ट्रीय विकास को सुगम बनाया। आज हम पूरी तरह से अलग दुनिया में रह रहे हैं, पूँजी और राज्य सामाजिक जनवाद को खत्म करने, सामाजिक सेवाओं का निजीकरण करने, मजदूर यूनियनों को नष्ट करने और पूंजी की क्षमता को सुनिश्चित करने के लिए एक ऐसे सहजीवी सम्बन्ध में हैं, जो पृथ्वी के हर कोने में और हमारे जीवन के हर हिस्से में पूँजी की हर इच्छा को पूरा करने की क्षमता रखता है।”
और, अब पूंजीवादी साम्राज्यवाद पर विराम लगाने का काम करने के लिए कोई सोवियत संघ या माओवादी चीन नहीं है। सोवियत संघ के पतन और चीन के पूंजीवाद की ओर मुड़ने से पहले दुनिया के लगभग 30 प्रतिशत लोग गैर-पूंजीवादी समाजों में रहते थे। आज यह आंकड़ा 1 प्रतिशत से भी कम है।
और क्या बचा है, जिस तरह अमरीकी सेना का काम उसकी हत्या करना है, जिसे भी हमारे "देशभक्तों" के खिलाफ कहा जा सके और इसीलिए अमरीकी राज्य का उद्देश्य उनको भी दंडित करना है जो पूंजीवादी समाज के मानदंडों के अनुरूप नहीं हैं, जिसे "जनता" और "लोकतंत्र" के लिए भी कहा जा सकता है। राज्य राजनीतिक और नौकरशाही संस्थाओं का एक जटिल समूह है, जो आखिकार हम पर नियन्त्रण को सुनिश्चित करने के लिए स्थापित किया गया है, ताकि हम बाजार के हुक्म का पालन करें। ऐसा कोई पूंजीवाद नहीं हो सकता जिसमे अंतर्विरोधी बाजारों की कोई प्रणाली न हो और जो हिंसक तरीके से अपने उन परिणामों को लागू ना करता हो जो हमेशा इस प्रणाली की सीमाओं के अन्दर की वे असमानताएं है जिनका विनाश असम्भव है। फिर भी, हमारे जनवादी समाजवादियों के अनुसार किसी भी तरह से यह राज्य, जो पूंजीवादी समाज में अपनी प्रकृति के चलते ही ऐसा है, वह किसी ऐसी चीज में बदल जाएगा जो कि पूरी तरह अलग है। यह साधारण लोगों का एक मंच बन जाना है। ऐसा कभी नहीं हुआ है, और यह विश्वास करने का भी कोई कारण नहीं है कि ऐसा कभी होगा। पूंजी और उसका राज्य साधारण तौर पर सिर्फ इसलिए अपना बौरिया बिस्तर नहीं समेटेंगे और वर्ग संघर्ष में सिर्फ इसलिए हार नहीं मान जाएगे क्योंकि "सामाजिक जनवादी" सार्वजनिक कार्यालय के लिए चुन लिए गए हैं, भले ही बहुत से लोग उनका समर्थन करें।
सामाजिक जनवादी सम्पूर्णता यानी सामाजिक जनवादी राजनीति, राजनीतिक अर्थव्यवस्था और पर्यावरणीय परियोजनाओं की सम्पूर्णता में उम्मीद खत्म हो गयी है। बर्नी सैंडर्स जैसा कोई किसी चमत्कार से ही राष्ट्रपति बनना चाहिए, अगर वह, उनके राजनीतिक सहयोगी और उनके समर्थकों की विरासत फिर से जीवित हो जाए और सामाजिक कल्याणकारी राज्य का विस्तार कर सके तो यह किसी आश्चर्य से कम नहीं होगा। और क्या ऐसा होगा, यह वास्तव में एक अचम्भा होगा – कुछ ऐसा जैसे नास्तिकों को ईसाई धर्म प्रचारकों में तब्दील करना- अगर यह सीधे समाजवाद की ओर ले जाता है।
और जबकि मैं इससे आगे नहीं बढ़ना चाहता, तो सामाजिक जनवादी कार्यक्रम अंत में पितृसत्तात्मक लगता है। श्रमिकों और किसानों को कुछ दिया जाएगा, लेकिन वे वही रहेंगे जो वे हैं, हाँ सुरक्षात्मक राज्य के आलिंगन में थोडा ज्यादा खुश रहेंगे। उनकी करीबी नजर अभी उन लोगों के सशक्तिकरण पर नहीं है, जिनका अपने खुद के जीवन पर वश नहीं है। क्या अपनी साझी गतिविधियों के जरिये हमें खुद के सशक्तिकरण पर ध्यान नहीं देना चाहिए, उन गतिविधयों के जरिये जिनमें हम उत्पादन और वितरण करना, अपने खुद के मिडिया का निर्माण करना, अपनी खुद की संस्कृतियां रचना, बाज़ार और राज्य की जबरदस्त शक्ति से स्वतंत्र होना शुरू करते हैं? क्या नस्लवाद, पितृसत्ता, होमोफोबिया, साम्राज्यवाद, और पागल देशभक्ति की बीमारियों का सामना अभी नहीं किया जाना चाहिए?
और इस सब के बीच, क्या हमें नयी किस्म के राजनीतिक ढांचे को गढ़ने के लिए खुद को तैयार करना शुरू नहीं करना चाहिए। ऐसा ढ़ांचा जो सामुदायिक, सामूहिक, आत्म-निर्भर और खुद का बचाव करने का इच्छुक हो। हमारे सामाजिक जनवादी उत्पादन, वितरण, और समुदाय की ऐसी वैकल्पिक धाराओं का प्रचलन कब शुरू करेंगे जैसी अब जैक्सन, मिसिसिपी में, ग्रामीण भारत में, वाया कैंपसीना में, वेनेजुएला के कम्यूनों में, क्यूबा में उन्हीं जैसे शहरी कृषि प्रयासों में, मिनियापोलिस में बनाये जा रहे श्रमिक स्कूल जैसे विद्यालयों में प्रचलित हैं और कई दूसरे लोगों के प्रयासों के बारे में मुझे पता नहीं है, लेकिन शायद पाठक जानते हैं? उदाहरण के लिए हम यह जोर कब देंगे कि सार्वजनिक भूमि वास्तव में हमारी है और निजी लाभ के लिए इस्तेमाल नहीं की जानी चाहिए? अंत में, क्या बुद्धिजीवियों को, जो फैसले सुनाते हैं, किताबें लिखते हैं, और खुद को सार्वजनिक व्यक्ति के रूप में देखते हैं, खुद को मजदूरों और किसानों की दुनिया में जोड़ते हैं उन्हें सभी के साथ अपनी भी मुक्ति का हिस्सेदार बनकर सीखना और सिखाना नहीं चाहिए?
माइकल डी येट्स मंथली रिव्यू प्रेस के संपादकीय निदेशक हैं। उनकी सबसे हालिया पुस्तक है, क्या मजदूर वर्ग दुनिया को बदल सकता है? (मंथली रिव्यू प्रेस, अप्रैल 17, 2020)
अनुवाद—प्रवीण
अंग्रेज़ी में यहाँ पढ़ें....
https://mronline.org/2020/04/17/the-social-democratic-pipedream/