संपादकीय: जून 2021

सरकार की बेपरवाही ने लाखों लोगों की जान ले ली

उमा रमण ( संपादक ) 611

कोरोना महामारी की दूसरी लहर देशभर में कहर ढा रही है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म–– फेसबुक, वाट्सएप, ट्वीटर, हर रोज किसी करीबी रिश्तेदार, किसी दोस्त, किसी साहित्यकार, पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता, यहाँ तक कि पार्टियों के बड़े नेताओं के मरने की हृदय–विदारक सूचनाओं से भरे हुए हैं। सरकार की लापरवाही और इलाज की बदइन्तजामी को लेकर लोगों में गुस्सा, बेबसी, बदहवासी और विलाप के वीडियो आते रहे। ‘मेरे पिता इलाज के बिना मर रहे हैं’, ‘अलविदा दोस्त ऑक्सीजन बेड नहीं मिलने के कारण मैं दम तोड़ रहा हूँ’, ‘मौत मेरे सामने खड़ी है और बचने का कोई उपाय नहीं है।’ मौत से पहले के असंख्य ट्वीट या फेसबुक पोस्ट, यहाँ तक कि लाइव विडियो भी सामने आये। हर जगह ‘त्राहिमाम–त्राहिमाम’ अस्पतालों में बेड नहीं, ऑक्सीजन नहीं, यहाँ तक कि मामूली दवाएँ भी नहीं, जिनसे कोरोना संक्रमण के दुष्प्रभावों को कम किया जा सके। स्वास्थ्य सहायता समूहों द्वारा ऑक्सीजन, सीरम, अस्पतालों में बेड और दवाओं की अपीलें। एम्बुलेन्स में, सड़कों पर, अस्पताल परिसर में इलाज के बिना तड़प–तड़प कर मरते लोग।

पहले भी हमारे देश में प्लेग, हैजा और दूसरी तमाम महामारियों से लाखों लोग मरे, लेकिन उस दौरान हम अंग्रेजों के गुलाम थे और देश में इलाज के साधन नहीं थे। लेकिन आज के दौर में जब हमारा देश ऑक्सीजन, वैक्सीन और दवा उत्पादन के मामले में दुनिया के शीर्ष पर विराजमान है, मेडिकल टूरिज्म की डींग हाकते विराट प्राइवेट अस्पताल और नरसिंग होम हैं फिर भी मामूली उपचार, ऑक्सीजन और दवाओं के अभाव में लोग तड़प–तड़प कर दम तोड़ते रहे। राजधानी दिल्ली जहाँ विश्वस्तर की चिकित्सा सुविधा मौजूद है वहाँ भी बड़ी संख्या में लोग ऑक्सीजन के अभाव में मर गये। सर गंगाराम, जयपुर गोल्डन और बतरा जैसे नामी–गिरामी अस्पतालों में भी न होने के कारण लोगों की जान चली गयी। बड़े–बड़े निजी अस्पतालों में ऑक्सीजन वेन्टीलेटर, ऑक्सीजन एम्बुलेन्स और दवा नहीं है, पर्याप्त संख्या में डॉक्टर और नर्स नहीं है। ऐसे में, देश भर के जिला अस्पतालों, छोटे नरसिंग होम और प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र की हालत क्या होगी इसकी कल्पना करना भयावह है। लाखों रुपये खर्च करने के लिए तैयार, साधन सम्पन्न लोग इलाज के अभाव में काल के गाल में समा गये, तो गाँवों–कस्बों के गरीबी और बेरोजगारी की महामारी से ग्रस्त करोड़ों लोगों पर क्या बीती होगी ?

और तो और शमशान और कब्रिस्तान को चुनावी मुद्दा बनाकर वोट बटोरने वाले सत्ताधारियों ने कोरोना महामारी के शिकार लोगों की अंत्येष्ठि का भी इन्तजाम नहीं किया। शमशान और कब्रिस्तान में जगह नहीं, जलाने के लिए लकड़ी नहीं, लगातार जलती लाशों के ताप से विद्युत शवदाह गृह की चिमनी पिघल गयी। अर्थी की लम्बी कतारें, घण्टों लाइन में खड़े होकर अपनी बारी का इन्तजार, शमसान के पास फुटपाथ और पार्क में जलती चिताएँ, गंगा में बहती हजारों लाशें, नदी किनारे रेत में दबी लाशें।

कोरोना से होने वाली असंख्य मौतें दरसल सरकार की आपराधिक लापरवाही, गलत प्राथमिकताएँ और जनविरोधी नीतियों के जरिये की गयी गैर इरादतन हत्याएँ हैं। जिस दौरान देश में कोरोना का कहर जारी था, लोग दवा–इलाज के अभाव में तड़प–तड़प दम तोड़ रहे थे, उस समय प्रधानमंत्री मोदी, भाजपा के दिग्गज नेता और मंत्रीगण चुनावी सभाओं में भारी भीड़ जमा होने पर खुशी जाहिर कर रहे थे, राम मन्दिर का शिलान्यास कर रहे थे, कुम्भ मेले का आयोजन करके लाखों लोंगों की भीड़ जुटा रहे थे। लोगों के लिए ऑक्सीजन और वैक्सीन का इन्तजाम करने के बजाय प्रधानमंत्री मोदी अपने लिए 8,458 करोड़ के दो मिसाइलरोधी बोइंग 777–300 इआर खरीद रहे थे और 20,000 करोड़ का नया महल और संसद भवन सेन्ट्रल विष्टा की बुनियाद रख रहे थे।

भारत में उत्पन्न होने वाला कोरोना का नया वायरस बी–1–617 जो कोरोना की दूसरी लहर के लिए जिम्मेदार है, उसके बारे में 5 अक्तूबर 2020 को ही पता चल गया था। दो महीने बाद जनवरी 2021 में इस बारे में आगे शोध करने के लिए 10 प्रयोगशालाओं के समूह ‘कोविड जिनोमिक कन्सोर्टियम’ की स्थापना हुई, जिसके लिए 115 करोड़ का बजट तय हुआ। लेकिन स्वास्थ्य मंत्री ने इस बजट की राशि को बायोटेक्नोलोजी विभाग को नहीं दिया। उससे खुद यह धनराशि जुटाने के लिए कहा गया। आखिरकार नये वायरस का पता लगने के छ: महीने बाद जब दूसरी लहर अपने चरम पर पहुँच रही थी और लोग कोरोना की चपेट में आकर मौत के मुँह में समाते जा रहे थे, तब 31 मार्च को सरकार द्वारा इस प्रोजेक्ट के लिए 80 करोड़ रुपये दिये गये।

नए वायरस पर शोध में सरकार ने लापरवाही की  थी। 28 जनवरी को दावोस में अयोजित वर्ल्ड सोशल फोरम के वर्चुअल सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कोविड–19 के ऊपर विजय की घोषणा कर दी थी। 21 फरवरी को भाजपा ने गर्व के साथ यह प्रस्ताव पारित किया था कि प्रधानमंत्री के समर्थ, संवेदनशील, समर्पित और कुशल नेतृत्व में भारत ने कोविड–19 को परास्त कर दिया है। जाहिर है कि कोविड को हराने की घोषणा करके अपनी पीठ थपथपाने के बाद प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी ने अपना ध्यान अपने असली एजेण्डे की और मोड़ दिया, उन कुछ प्रमुख उपलब्धियों पर सरसरी निगाह डाल लेना मुनासिब होगा।

जब कोविड नया रूप धारण करके मौत का कहर ढाने के लिए देशभर में गुपचुप तरीके से अपने पाँव पसार रहा था तब 24 फरवरी 2021 को प्रधानमंत्री अहमदाबाद स्थित दुनिया के सबसे बड़े क्रिकेट स्टेडियम सरदार पटेल स्टेडियम का नाम बदलकर नरेन्द्र मोदी स्टेडियम कर रहे थे। वे राष्ट्रपति कोविन्द और अमित शाह के पुत्र जयशाह की उपस्थिति में इन्डियन प्रीमियर लीग नामक विश्व के सबसे बड़े टूर्नामेन्ट का उद्घाटन कर रहे थे जो 25 मई तक चलना था। 55,000 लोगों की उपस्थिति में इंगलैण्ड और भारत के बीच मैच को देखने वालों में प्रधानमंत्री के चहेते मुकेश अम्बानी और गौतम अदानी भी शामिल थे।

महामारी फैलने के बाद सरकार ने वैज्ञानिक विशेषज्ञों का कोविड टास्क फोर्स गठित किया था। फरवरी–मार्च 2021 में उसकी कोई बैठक नहीं हुई। इलाज और टीकाकरण पर ध्यान देने के बजाय प्रधानमंत्री की छवि बनाने और कोविड से बचाव के लिए नीम हकीमी नुस्खे और अंधविश्वास फैलाने का काम जोरों पर था। हिन्दू महासभा के अध्यक्ष त्रिदंडी महाराज गोमूत्र और गोबर का सेवन करने, ओम नम: शिवाय का जाप करने और पूरे शरीर पर गोबर पोतने को कोरोना संक्रमण से बचाव का अचूक उपाय बता रहे थे। एक मंत्री भाभी जी के पापड़ को रामबाण दवा बता रहा था तो लाला रामदेव ने रातों रात कोरोनिल औषधि को बाजार में उतार दिया था। गोदी मीडिया और मोदी की जी हजूरी करने वाले सिनेमा के हिरो–हिरोइन, क्रिकेटर और तथाकथित सेलिब्रेटी भी इन अंधविश्वासों से भरी नानी की कहानियों और नीम हकीमी नुस्खों को फैलाने में बढ़–चढ़कर हिस्सा ले रहे थे। हद तो तब हो गयी जब लाला रामदेव ने ऑक्सीजन के अभाव में मरने वालों का मजाक उड़ाते हुए एक वीडियो जारी करके अनुलोम–विलोम से ऑक्सीजन लेवल बढ़ाने का नुस्खा पेश किया था। साथ ही उसने एलोपैथी डॉक्टरों का भी मजाक उड़ाया था, जो अपनी जान की बाजी लगाकर कोरोना मरीजों की जान बचा रहे थे।

12 साल पर होने वाले हरिद्वार कुम्भ मेले का आयोजन 2022 में होना था जिसे साधू–सन्यासियों के विरोध के बावजूद एक साल पहले ही 11 मार्च से 17 अप्रैल को आयोजित किया गया। 12 और 27 अप्रैल को शाही स्नान था। ऐसी मान्यता है कि उस दिन गंगा में डुबकी लगाने से सभी पाप धुल जाते हैं। 12 अप्रैल को हरिद्वार के अलग–अलग घाटों पर लगभग 50 लाख लोगों ने डुबकी लगायी। 10 से 14 अप्रैल के बीच वहाँ 2,37,751 लोगों की कोरोना जाँच हुई जिनमें 1700 लोग कोरोना संक्रमित पाये गये। अगर सभी 50 लाख श्रद्धालुओं की जाँच होती तो संक्रमित लोगों की संख्या इस हिसाब से 42,500 होती और पूरे मेले के दौरान आये लोगों में लाखों संक्रमित मामले मिलते। कोविड के बढ़ते मामलों को देखते हुए कुम्भ मेले के आयोजन पर पूछे गये सवाल के जवाब में उत्तराखण्ड के तत्कालीन मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने कहा था कि माँ गंगा में स्नान करने वालों को कोरोना नहीं होगा।

कुम्भ मेला जैसे विराट धार्मिक जमावड़े का समय से सालभर पहले आयोजन किया जाना कोई संयोग नहीं, बल्कि प्रयोग था क्योंकि उसी दौरान देश के 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव और उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव होना था। चुनाव की तिथि कुम्भ मेले के आस–पास तय करने का मकसद हिन्दू वोटरों को लुभाना था क्योंकि उस दौरान कुम्भ नहाने के लिए देशभर से लगभग 15 करोड़ तीर्थयात्रियों के आने की सम्भावना थी।

अप्रैल के मध्य में जब कोविड की दूसरी लहर पूरे देश में फैल चुकी थी तब प्रधानमंत्री मोदी और उनकी पार्टी के तमाम बड़े नेता पाँच राज्यों की चुनावी रैलियों और खास तौर से बंगाल चुनाव में मशगूल थे। 17 अप्रैल को मोदी ने आसनसोल की एक रैली में कहा था कि “मैंने एसी सभा पहली बार देखी है।” ‘दो गज की दूरी मास्क जरूरी’ की अपनी ही बातों की खिल्ली उड़ते देखकर प्रधानमंत्री ने जिस दिन यह उद्गार व्यक्त किया, उसी दिन देश में कोरोना संक्रमण के 2,61,000 नये मामले सामने आये और उस दिन कोरोना से 1501 लोगों की मौत हुई थी। 21–22 अप्रैल को जब कोविड संक्रमित लोगों की संख्या प्रतिदिन 3,00,000 से ऊपर और मृतकों की संख्या 2000 से अधिक हो गयी, तब भी अमित शाह बंगाल में चुनावी रैली कर रहे थे।

बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान 22 अक्तूबर 2020 को भाजपा ने अपने घोषणापत्र में पहला यही वादा किया था कि कोविड की वैक्सीन बनते ही बिहार के हर व्यक्ति का मुफ्त टीकाकरण होगा। 23 अप्रैल 2021 को बंगाल चुनाव के दौरान भी भाजपा ने वादा किया था कि पार्टी सत्ता में आयी तो बंगाल के सभी लोगों को मुफ्त में टीका लगाया जायेगा। बिहार में चुनाव जीतने और मुफ्त टीकाकरण की घोषणा के आठ महीने बीतने के बाद बिहार ही नहीं, बल्कि पूरे देश में टीकाकरण की जमीनी हकीकत क्या है यह किसी से छिपा नहीं है।

2020 तक भारत दुनिया का सबसे ज्यादा वैक्सीन निर्माता देश था, लेकिन सरकार के उपेक्षापूर्ण रवैये की वजह से आज भारत वैक्सीन का आयात कर रहा है, जबकि आज अमरीका और चीन कोविड वैक्सीन बनाने में भारत से आगे निकल गये हैं। 2012 में चेन्नई के निकट एक विराट एकीकृत वैक्सीन कॉम्पलेक्स एचबीएल की बुनियाद रखी गयी थी। यह पहले के तीन पुराने वैक्सीन लैब– कुन्नूर, चेन्नई और मोहाली की जगह लेने वाला था और वहाँ रैबीज, चेचक, जापानी इनसेफेलाइटिस, हेपेटाइटिस बी और अन्य बीमारियों के 58.5 करोड़ टीके हर साल बनते थे। लेकिन 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद इस प्रोजेक्ट को फण्ड देना बन्द कर दिया गया। 2017 में बढ़े हुए खर्च 710 करोड़ का अनुमोदन किया गया, लेकिन 2019 में स्वास्थ्य मंत्रालय ने उस प्रोजेक्ट का खर्च देने से इस आधार पर इनकार कर दिया कि इससे मुनाफा नहीं होगा। आज एचबीएल में 6 प्रोडक्शन लाइन हैं जो चालू हालत में नहीं हैं। उन्हें पूरी तरह क्रियाशील बनाने में 150 करोड़ का खर्च आयेगा, ताकि उन्हें कोविड वैक्सीन इकाई में तब्दील किया जा सके। एचबीएल ने स्वास्थ्य मंत्रालय और नीति आयोग को इस सम्बन्ध में पत्र लिखा, लेकिन सरकार ने धन मुहैया करने से मना कर दिया। सार्वजनिक उद्यमों के प्रति मोदी सरकार की घोर उपेक्षा और मुनाफा–केन्द्रित सोच के कारण राष्ट्रीय महत्त्व की इस परियोजना को कोविड का टीका बनाने में नहीं लगाया गया। हालत यह है कि आज वहाँ अस्पतालों के लिए संक्रमणरोधी और सेनिटाइजर बनाने का काम हो रहा है।

इसके अलावा एचबीएल कोविड सैम्पल को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए वायरस ट्रांसपोर्ट मीडियम (वीटीएम) किट बनाने में भी सक्षम है। जाँच किट की भारी माँग को देखते हुए बहुत सस्ते में इसका निर्माण सम्भव है, लेकिन इसके लिए एचबीएल को राज्य और केन्द्र से उत्पादन लाइसेन्स की जरूरत है। इस सम्बन्ध में एचबीएल द्वारा दिया गया आवेदन अधर में लटका है और 5 मई 2021 तक उसे स्वीकृति नहीं मिली थी। नवउदारवादी नीतियों के प्रबल समर्थक होने के नाते सार्वजनिक उद्यमों के प्रति मोदी सरकार का रवैया जानने के लिए एचबीएल सबसे ज्वलन्त उदाहरण है। जनवरी 2021 में सरकार ने इसकी बिक्री का भी फैसला ले लिया जिसका कोई खरीदार अभी तक सामने नहीं आया और इस तरह बिलकुल नये प्लाण्ट को जंग खाने के लिए छोड़ दिया गया।

जिस समय देश में टीकाकरण की सबसे ज्यादा जरूरत थी, उस दौरान जनवरी से 16 अप्रैल 2021 के बीच ‘वैक्सीन मैत्री’ कार्यक्रम के तहत मोदी सरकार ने 95 देशों को 6.64 करोड़ खुराक वैक्सीन का निर्यात किया। अमरीका ने अपने वैक्सीन निर्माताओं के आगे यह शर्त रखी थी कि जब तक वहाँ के हर नागरिक को टीका नर्ही लग जाता, तब तक वे निर्यात नहीं करेंगे। लेकिन “विश्वगुरू” और “वैश्विक नेता” की छवि बनाने के आगे मोदी सरकार ने अपने लोगों की परवाह नहीं की।

पूरी दुनिया में अगस्त 2020 से ही टीके की खरीद शुरू हो गयी थी। अमरीका और यूरोपीय यूनियन अपने देश की जनसंख्या से अधिक खुराक खरीद रहे थे जबकि भारत से टीके का निर्यात हो रहा था और सरकार ने पहली बार जनवरी 2021 में 1.65 करोड़ और बाद में 10 करोड़ खुराक का ऑर्डर सीरम इन्स्टीट्यूट ऑफ इंडिया को दिया। पहले मोदी सरकार ने घोषित किया कि टीके की खरीद केवल केन्द्र सरकार करेगी कोई, निजी बिक्री नहीं होगी। लेकिन उसने गैर भाजपा राज्य सरकारों को पर्याप्त मात्रा में वैक्सीन मुहैया नहीं किया। उसने न तो वैक्सीन प्लांट का वित्तपोषण करके उसे टीका बनाने के लिए तैयार किया और न ही पर्याप्त मात्रा में टीके की खरीद की। आखिरकार 1 मई 2021 को उसने राज्य सरकारों को सीधी खरीद और आयात की अनुमति दी।

वैक्सीन निर्माण में सार्वजनिक खर्चे पर निजी मुनाफे का उदाहरण भी साफ–साफ देखने को मिला। भारत बायोटेक का कोवैक्सीन पूणे स्थित नेशनल इन्स्टीट्यूट ऑफ वायरोलोजी में विकसित किया गया था जो आइसीएमआर के अधीन है। उसने यह टीका भारत बायोटेक को बिना किसी रॉयल्टी के, निर्माण और वितरण के लिए दिया। कम्पनी ने भारत सरकार के निर्देशानुसार इसकी कीमत सरकारी अस्पतालों के लिए 600 रुपये और निजी अस्पतालों के लिए 1200 रुपये तय की। इस कम्पनी की कोवैक्सीन उत्पादन क्षमता 2 करोड़ टीका प्रतिमाह है। कोविशिल्ड निर्माता सीरम इन्स्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) ने टीका बनाने के लिए एस्ट्राजेनेका (स्वीडेन) से लाइसेन्स लिया है। और हर महीने 7 करोड़ खुराक तैयार कर रही है। उत्पादन शर्तों के मुताबिक इस कम्पनी को 90 करोड़ खुराक एक्स्ट्राजेनेका और 14.5 करोड़ खुराक नोवावैक्स को देना है। जनवरी से मई के बीच इसने भारत सरकार को 3 करोड़ खुराक दिया जिसमें 1 करोड़ विश्व स्वास्थ्य संगठन के हिस्से का था। इस कम्पनी के मालिक ने अपने उत्पादन का विस्तार करने के लिए 80,000 करोड़ रुपये अगले 12 महीने में टीका खरीदने के लिए उपलब्ध कराने की माँग की, जिसपर सरकार राजी नहीं हुई। अब तक स्पष्ट नहीं है कि सरकार ने इस मद में कितना धन निर्धारित किया है। सच तो यह है कि टीकाकरण के बारे में मोदी सरकार की नीति और नीयत संदिग्ध है। आखिरकार, जब सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया और टीकाकरण के लिए निर्धारित रकम के बारे में सवाल उठाया तो सरकार ने एक बार फिर अपना रवैया बदला और आनन–फानन में प्रधानमंत्री मोदी ने 18 साल से 45 साल तक के लोगों को मुफ्त टीका लगाने की घोषणा की।

जैसा कि पहले ही बताया गया, कोविड की दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन न मिलने के चलते अनगिनत लोग घुट–घुटकर मरते रहे। वायरस से भी कहीं ज्यादा घातक ऑक्सीजन की भारी कमी थी। जबकि देशभर में ऑक्सीजन के कई प्लाण्ट केन्द्र सरकार की अनुमति के बिना लग नहीं पाये, क्योंकि मोदी सरकार ने लोगों की जिन्दगी के लिए इतने महत्त्वपूर्ण काम में पूरी तरह ढिलाई की। स्वास्थ्य से सम्बन्धित संसद की स्थायी समिति ने अक्टूबर 2020 में ही चेतावनी जारी की थी कि कोविड की दूसरी लहर आसन्न है और ऑक्सीजन की भारी कमी सम्भव है। स्वास्थ्य मंत्रालय के अधीन सेन्ट्रल मेडिकल सर्विसेज सोसायटी (एसएमएसएस) को ऑक्सीजन प्लाण्ट लगवाने का जिम्मा दिया गया। 21 अक्तूबर को उसने 14 राज्यों में कुल 154 मैट्रिक टन क्षमता वाले 162 ऑक्सीजन प्लाण्ट लगाने के लिए बोली मँगायी। दिसम्बर में ठेके दिये गये जिन्हें डेढ़ महीने में प्लाण्ट लगाना था। इस पर कुल 201.58 करोड़ रुपये, यानी प्रति प्लाण्ट औसतन 1.25 करोड़ रुपये पीएम केयर से दिये गये। हर प्लांट की उत्पादन क्षमता से 100–150 रोगियों को ऑक्सीजन सहायता मिल सकती थी जो अपने आप में बहुत ही अपर्याप्त था। लेकिन ठेका छूटने के चार महीने बाद, 14 अप्रैल 2021 तक जिन 162 प्लांट का ठेका दिया गया था उनमें से सिर्फ 33 प्लाण्ट ही खड़े हुए।

देश को 800 मैट्रिक टन ऑक्सीजन की कमी थी, जिसकी जगह सरकार ने 154 मैट्रिक टन ऑक्सीजन के लिए प्लाण्ट लगवाने का ठेका दिया और केवल 20 प्रतिशत उत्पादन करने वाले प्लाण्ट ही लग पाये। अगर सरकार ने समय रहते पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन की आपूर्ति का इन्तजाम किया होता तो लाखों लोगों की जान बचायी जा सकती थी। लेकिन सरकार ने उल्टा ही काम किया। सरकारी आँकड़ों के मुताबिक महामारी के दौरान भारत ने 9000 मैट्रिक टन ऑक्सीजन का निर्यात किया। जनवरी 2021 में ऑक्सीजन के निर्यात में साढे़ सात गुने की बढ़ोतरी हुई। एक समय ऑक्सीजन का सबसे बड़ा उत्पादक देश आज 50,000 मैट्रिक टन ऑक्सीजन आयात करने और वायु सेना के विमान से लाने पर मजबूर है।

दुनियाभर के पर्यवेक्षकों, स्वास्थ्य रक्षा विशेषज्ञों, पत्रकारों और न्यायविदों ने बार–बार संकट की गम्भीरता और सरकार के गैरजिम्मेदाराना रवैये की और ध्यान दिलाया। मद्रास उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बैनर्जी ने 26 अप्रैल 2021 को कहा था कि “आप (चुनाव आयोग) अकेली संस्था है जो आज की परिस्थिति के लिए जिम्मेदार है। चुनावी रैली करने वाली राजनीतिक पार्टियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गयी। आपके चुनाव आयोग पर मानवहत्या का मुकदमा दर्ज होना चाहिए।” न्यायमूर्ति बनर्जी का इशारा समझना कठिन नहीं, क्योंकि सबको पता है कि चुनाव आयोग किसके अधीन है। इसी तरह 4 मई 2021 को उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय के दो न्यायाधीशों की बेंच, जिसमें जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और जस्टिस ललित कुमार शामिल थे, उसका मानना था कि सिर्फ अस्पतालों में ऑक्सीजन की आपूर्ति न होने के कारण कोविड–19 के रोगियों की मौत “एक अपराधिक कृत्य है, जो नरसंहार से कम नहीं” क्योंकि सरकार ने अस्पतालों में पर्याप्त ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं की। उल्लेखनीय है कि मुख्य मंत्री योगी ने उत्तर प्रदेश में ऑक्सीजन और अस्पतालों में बेड की कमी से पूरी तरह इनकार किया था और इस बारे में सोशल मीडिया पर लिखने वालों पर देशद्रोह का मुकदमा करने की धमकी दी थी।

जिस समय महामारी की दूसरी लहर अपने चरम पर थी, लोग इलाज के अभाव में काल के गाल में समा रहे थे और पूरा देश एक अभूतपूर्व त्रासदी से गुजर रहा था, तब मोदी की छवि निखारने का काम जोरों पर चल रहा था। कारण यह है कि इस महामारी ने सरकार की आपराधिक उपेक्षा, उसके झूठे दावे, नकली राष्ट्रवाद, कॉर्पोरेट भक्ती और जनविरोधी चरित्र को पूरी तरह उजागर कर दिया। दुनियाभर में सरकार की असफलताओं और लापरवाही के चर्चे होने लगे। दुनिया के छोटे–छोटे देशों से भी कोरोना पीड़ितों के लिए सहायता आने लगी। मोदी समर्थक लोगों की सहायता करने के बजाय, रातोंरात उनके गुस्से और घृणा को ढकने के लिए सक्रीय हो गये। वे मोदी सरकार की आलोचना करने वालों को नकारात्मकता फैलाने वाले, देशद्रोही, भारतमाता की छवि धूमिल करने वाले गिद्ध और हिन्दुओं के दुश्मन बताने में लग गये। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने माहौल बिगाड़ने वालों (यानि कोरोना इलाज में सरकार की नाकामी पर सवाल उठाने वालों) पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगाने और उनकी सम्पत्ती जब्त करने की धमकी दी। हरियाणा के मुख्यमंत्री पर जब कोविड से होने वाली मौतों को कम करने का आरोप लगा तो उनका कहना था कि मरने वालों की संख्या पर बहस करना बेकार है क्योंकि अब वे लोग वापस तो आयेंगे नहीं। केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र शेखावत ने जोधपुर के अस्पताल में कोविड रोगियों के परिवार वालों से कहा कि बालाजी को नारियल चढ़ाने से सब ठीक हो जायेगा। विदेश मंत्री जयशंकर ने भारतीय राजनयिकों को निर्देश दिया कि वे सरकार की कोरोना से निपटने में असफलता पर दुनियाभर में मीडिया द्वारा “एकतरफा” रिपोटिंग का जवाब दे। विड़म्बना यह है कि उन्हीं के सहकर्मी, 5 देशों के राजदूत रहे अशोक अमरोही, 27 अप्रैल को मेदान्ता अस्पताल के पार्किंग में बेड का इन्तजार करते हुए तड़प–तड़प कर मर गये थे। उत्तर प्रदेश के 3 मंत्री और 5 भाजपा विधायक और कई नवनिर्वाचित प्रधान कोरोना की भेंट चढ़ गये। उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनावों में ड्यूटी पर तैनात लगभग 1500 कर्मचारियों की कोरोना से मौत की भी खबर आयी लेकिन लोगों की जान से ज्यादा प्रधानमंत्री और उनकी सरकार की छवि की चिन्ता की गयी।

इन तथ्यों की रोशनी में यह कहना अतिशयोक्ति नहीं कि कोरोना की दूसरी लहर में लाखों लोगों की मौत के लिए मोदी सरकार की गलत प्राथमिकता, कोरोना की गम्भीरता को नजरअन्दाज करना, देश में पहले से मौजूद भरपूर संसाधनों को लोगों की जीवन रक्षा लगाने के काम में अपराधिक लापरवाही तथा लाखों लोगों की जिन्दगी को दाँव पर लगाकर अपने चहेतों की दौलत में इजाफा करने और हिन्दू राष्ट्र परियोजना को आगे बढ़ाने की सनक जिम्मेदार रही है।

कोरोना की दूसरी लहर और कहर के दौरान यह सर्वमान्य सच्चाई एक बार फिर रेखांकित हुई कि मोदी सरकार किसके लिए अच्छी है और किसके लिए अच्छे दिन आये हैं। एक तरफ जहाँ देशभर में करोड़ों लोगों का रोजी–रोजगार छिन गया, देश की अर्थव्यवस्था चैपट हो गयी, वहीं मोदी के चहेते अडानी–अम्बानी की सम्पत्ति इस महाविपदा के दौरान भी तेजी से बढ़ी। मई 2014 से अब तक अम्बानी की सम्पत्ति 23.6 अरब डॉलर से बढ़कर 84 अरब डॉलर और अडानी की सम्पत्ति 1.9 अरब डॉलर से बढ़कर 55.7 अरब डॉलर हो गयी।

आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार कोरोना से देशभर में मरनेवालों की संख्या तीन लाख से ऊपर है, जानकारों का कहना है कि यह हकीकत से बहुत कम है। कई जगहों पर मौत के आँकड़ों का ऑडिट भी नहीं हुआ है। अपनी शर्मिंदगी को छिपाने के लिए सरकारें आँकड़ों में हेरफेर कर रही हैं।

इतिहास में इस दौर का वृतान्त काले अक्षरों में लिखा जायेगा, जब सत्ता के शीर्ष पर विराजमान जनसेवक की निगाह में एक अरब चालीस करोड़ लोगों की हैसियत कीडे़ मकोड़े से अधिक नहीं थी। जब बेगुनाह लोग हर रोज हजारों की तादाद में दवा–इलाज के बिना मर रहे थे तो वह अपने लिए करोडों रुपये खर्च करके विमान और आलीशान महल बनाने में लगा था। आपदा को अवसर में बदलनेवाले अकर्मण्य और गैरजिम्मेदार शासकों ने इस कोविड नरसंहार में असंख्य निर्दोष देशवासियों की जान ले ली। इस मानवनिर्मित त्रासदी में बलिदान हुए सभी जाने–अनजाने लोगों को गम और गुस्से से भरी श्रद्धांजलि!

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