संपादकीय: जून 2023

सम्पादकीय की जगह : उस समय तुम कुछ नहीं कर सकोगे –– सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

उमा रमण ( संपादक ) 380

सर्वेश्वर ने यह कविता लगभग चार दशक पहले लिखी थी। यह समकालीन तीसरी दुनिया के जून 2014 अंक में प्रकाशित हुई थी। लोकतंत्र की दुर्दशा को देखते हुए आज यह कविता पहले से कहीं ज्यादा प्रासंगिक है।

अब लकड़बग्घा

बिल्कुल तुम्हारे घर के

करीब आ गया है

यह जो हल्की सी आहट

खुनकती हँसी में लिपटी

तुम सुन रहे हो

वह उसकी लपलपाती जीभ

और खूँख्वार नुकीले दाँतों की

रगड़ से पैदा हो रही है।

इसे कुछ और समझने की

भूल मत कर बैठना,

जरा सी गफलत से

यह तुम्हारे बच्चे को उठाकर भाग जाएगा

जिसे तुम अपने खून पसीने से

पोस रहे हो।

 

लोकतंत्र अभी पालने में है

और लकड़बग्घे अँधेरे जंगलों

और बर्फीली घाटियों से

गर्म खून की तलाश में

निकल आये हैं।

 

उन लोगों से सावधान रहो

जो कहते हैं

कि अँधेरी रातों में

अब फरिश्ते जंगल से निकलकर

इस बस्ती में दुआएँ बरसाते

घूमते हैं

और तुम्हारे सपनों के पैरों में चुपचाप

अदृश्य घुँघरू बाँधकर चले आते हैं

पालने में संगीत खिलखिलाता

और हाथ–पैर उछालता है

और झोंपड़ी की रोशनी तेज हो जाती है।

इन लोगों से सावधान रहो।

 

ये लकड़बग्घे से

मिले हुए झूठे लोग हैं

ये चाहते हैं

कि तुम

शोर न मचाओ

और न लाठी और लालटेन लेकर

इस आहट

और खुनकती हँसी

का राज समझ

बाहर निकल आओ

और अपनी झोंपड़ियों के पीछे

झाड़ियों में उनको दुबका देख

उनका काम–तमाम कर दो।

 

इन लोगों से सावधान रहो

हो सकता है ये खुद

तुम्हारे दरवाजों के सामने

आकर खड़े हो जायें

और तुम्हें झोंपड़ी से बाहर

न निकलने दें,

कहें–देखो, दैवी आशीष बरस

रहा है

सारी बस्ती अमृतकुण्ड में नहा रही है

भीतर रहो, भीतर, खामोश––

प्रार्थना करते

यह प्रभामय क्षण है!

 

इनकी बात तुम मत मानना

यह तुम्हारी जबान

बन्द करना चाहते हैं

और लाठी तथा लालटेन लेकर

तुम्हें बाहर नहीं निकलने देना चाहते।

 

ये ताकत और रोशनी से

डरते हैं

क्योंकि इन्हें अपने चेहरे

पहचाने जाने का डर है।

ये दिव्य आलोक के बहाने

तुम्हारी आजादी छीनना चाहते हैं।

 

और पालने में पड़े

तुम्हारे शिशु के कल्याण के नाम पर

उसे अँधेरे जंगल में

ले जाकर चीथ खाना चाहते हैं।

उन्हें नवजात का खून लजीज लगता है।

 

लोकतंत्र अभी पालने में है।

तुम्हें सावधान रहना है।

 

यह वह क्षण है

जब चारों ओर अँधेरों में

लकड़बग्घे घात में हैं

और उनके सरपरस्त

तुम्हारी भाषा बोलते

तुम्हारी पोशाक में

तुम्हारे घरों के सामने घूम रहे हैं

तुम्हारी शान्ति और सुरक्षा के पहरेदार बने।

 

यदि तुम हाँक लगाने

लाठी उठाने

और लालटेन लेकर बाहर निकलने का

अपना हक छोड़ दोगे

तो तुम्हारी अगली पीढ़ी

इन लकड़बग्घों के हवाले हो जाएगी

और तुम्हारी बस्ती में

सपनों की कोई किलकारी नहीं होगी

कहीं एक भी फूल नहीं होगा।

 

पुराने नंगे दरख्तों के बीच

वहशी हवाओं की साँय–साँय ही

शेष रहेगी

जो मनहूस गिद्धों के

पंख फड़फड़ाने से ही टूटेगी।

 

उस समय तुम कुछ नहीं कर सकोगे

तुम्हारी जबान बोलना भूल जाएगी

लाठी दीमकों के हवाले हो जाएगी

और लालटेन बुझ चुकी होगी।

 

इसलिए बेहद जरूरी है

कि तुम किसी बहकावे में न आओ

पालने की ओर देखो––

आओ आओ आओ

इसे दिशाओं में गूँज जाने दो

लोगों को लाठियाँ लेकर

बाहर आ जाने दो

और लालटेन उठाकर

इन अँधेरों में बढ़ने दो

हो सके तो

सबसे पहले उन पर वार करो

जो तुम्हारी जबान बन्द करने

और तुम्हारी आजादी छीनने के

चालाक तरीके अपना रहे हैं

उसके बाद लकड़बग्घों से निपटो।

 

अब लकड़बग्घा

बिल्कुल तुम्हारे घर के करीब

आ गया है।

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