संपादकीय: मई 2018

कठुआ, उन्नाव बलात्कार : ये कहाँ आ गये?

उमा रमण ( संपादक ) 185

अप्रैल के पूर्वार्द्ध में उत्तर प्रदेश के उन्नाव और जम्मू के कठुआ में बलात्कार और हत्या की जो नृशंस घटनाएँ प्रकाश में आयीं, उसके बाद देशभर में गम और गुस्से की लहर दौड़ गयी। वैसे तो महिलाओं के ऊपर यौन हिंसा की बर्बर घटनाओं से हर रोज अखबार भरे होते हैं, हर 20 मिनट में देश के किसी न किसी हिस्से में बलात्कार की वारदात होती है और जिस दौरान इन दोनों घटनाओं को लेकर पूरे देश में लोग सड़कों पर उतर रहे थे, उसी बीच सासाराम, सूरत, दिल्ली, नोएडा, एटा और कई अन्य इलाकों से ऐसी ही दरिन्दगी की खबरें सामने आयीं। लेकिन कठुआ और उन्नाव का जघन्यतम अपराध इस मामले में तमाम दूसरी घटनाओं से अलग और विचलित करने वाला है कि ये मामले भाजपा शासित राज्यों में हुए और सत्ता से जुड़े लोगों ने अपराधियों को बचाने के लिए एडी–चोटी का जोर लगा दिया।

उन्नाव की घटना में लिप्त भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सैंगर को बचाने में पूरा शासन–प्रशासन लगा रहा। पीड़िता और उसके परिवार द्वारा बार–बार गुहार लगाये जाने के बावजूद उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने उसके खिलाफ केस दर्ज करने और उसकी गिरफ्तारी से यह कहते हुए साफ इनकार किया कि विधायक के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं है। इस बीच पीड़िता और उसके परिवार को लगातार धमकिया मिलती रही। पिता की शिकायत पर विधायक के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय पुलिस ने उसे फर्जी केस में गिरफ्तार किया और इतनी बरबता से पिटाई की गयी कि हिरासत में ही उनकी मौत हो गयी। उनके पूरे शरीर पर चोटों के निशान और मरने से पहले कागजों पर अँगूठे की छाप लेते लोगों का वीडियो भी सामने आया। इन सारी घटनाओं के बीच अपराधी विधायक टीवी चैनलों पर बेहया हँसी हँसते हुए अपने निर्दोष होने का बयान देता रहा, पुलिस के आला अफसर उसे माननीय विधायक जी सम्बोधित करते रहे, और भाजपा के कई नेता पीड़िता का चरित्र हनन करते रहे और विधायक के पक्ष में खड़ा उत्तर प्रदेश का शासन–प्रशासन अट्ठास करता रहा। और तो और उन्नाव मामले में पीड़िता को न्याय दिलाने की जगह योगी सरकार ने भाजपा के एक बड़े नेता स्वामी चिन्मयानन्द पर चल रहे बलात्कार के एक मामले को वापस लेने का फैसला भी कर लिया।

आखिरकार इस घटना को लेकर जनता के बढ़ते गुस्से और सोशल मीडिया पर चलायी गयी मुहिम के बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश और एक अन्य न्यायधीश की पीठ ने इस घटना को संज्ञान में लिया। मुख्य न्यायधीश ने अपराधी के बचाव में पूरे शासन–प्रशासन के खड़े होने को लेकर गहरी चिन्ता जतायी और इसे एक खतरनाक संकेत बताया। उन्होंने निर्देश जारी किया कि बलात्कार के आरोपी विधायक पर मुकदमा दर्ज कर उसे गिरफ्तार किया जाए। इसके बाद ही सीबीआई ने विधायक को हिरासत में लेकर पूछताछ शुरू की और उस पर मुकदमा दर्ज किया।

कठुआ की घटना तो और भी भयावह है, जिसमें एक आठ साल की बच्ची का अपहरण करके उससे एक मन्दिर में कई दिनों तक सामूहिक बलात्कार किया गया और उसकी हत्या करके लाश जंगल में फेंक दी गयी। चार्जशीट के मुताबिक उस बच्ची की हत्या करने से पहले मामले की जाँच में शामिल पुलिस अधिकारी दीपक खजूरिया ने कहा कि थोड़ा इन्तजार करो मरने से पहले मैं इसके साथ बलात्कार करूँगा।

घटना की शुरुआत 10 जनवरी को हुई जब कठुआ जिले के हीरानगर तहसील में रसाना गाँव की 8 साल की एक बकरवाल बच्ची घोड़ा चराने गयी और देर शाम तक वापस नहीं लौटी।  बच्ची के परिवार ने हीरानगर थाने में रिपोर्ट लिखवायी जिस पर कोई कार्रवाई नहीं की गयी। एक हफ्ते बाद 17 जनवरी को उस मासूम की लाश जंगल में मिली। मेडिकल रिपोर्ट से पता चला कि उसके साथ कई दिनों तक सामूहिक बलात्कार किया गया और उसके बाद पत्थर से कुचल कर उसकी हत्या कर दी गयी। इस घटना के खिलाफ आरोपियों की गिरफ्तारी की माँग कर रहे उस बच्ची के परिजनों को पुलिस दमन का सामना करना पड़ा। इस घटना के खिलाफ जब पूरे जम्मू–कश्मीर में लोग सड़कों पर उतरे और विधान सभा में भी मामला उठा तब एक 15 साल के लड़के को गिरफ्तार किया गया। इसके बावजूद असली गुनाहगारों की गिरफ्तारी के लिए आन्दोलन जारी रहा। 20 जनवरी को थाने के एसएचओ को निलम्बित करने और मजिस्ट्रेट जाँच का आदेश दिये जाने के बावजूद जब लोगों का आक्रोश ठंडा नहीं हुआ तो मुख्यमंत्री ने 23 जनवरी को मामला राज्य पुलिस की अपराध शाखा को सौंप दिया जिसने विशेष जाँच दल बनाकर नये सिरे से जाँच शुरू की। जाँच दल ने सब इन्सपेक्टर आनन्द दत्ता और स्पेशल पुलिस अधिकारी दीपक खजूरिया को गिरफ्तार किया जो इस बलात्कार के मामले में शामिल था। जाँच दल ने चार पुलिस वालों और चार अन्य गिरफ्तार किया जिसमें साजिश रचने वाला मुख्य आरोपी पूर्व राजस्व अधिकारी साँजी राम भी शामिल था। हद तो तब हो गई जब इस पूरे मामले को साम्प्रदायिक रंग दे दिया गया। हिन्दू एकता मोर्चा ने उस मासूम बच्ची के बलात्कार और हत्या में शामिल आरोपियों के समर्थन में कठुआ में जुलूस निकाला। जुलूस में तिरंगा लहराते हुए जय श्री राम के नारे लगाये गये। इसमें जम्मू कश्मीर सरकार में शामिल भाजपा के दो मंत्री लालसिंह और चन्द्रप्रकाश गंगा भी शामिल हुए जिन्होंने भड़काऊ भाषण दिया। 9 अप्रैल को वकीलों के एक समूह ने अपराध शाखा को आरोप पत्र दाखिल करने से रोका। जम्मू बार एसोसिएशन ने मासूम बच्ची के पक्ष में खड़ी वकील दीपिका रजावत को डराया धमकाया। अगले दिन 10 अप्रैल को कानून मंत्री के हस्तक्षेप के बाद भी छ: घण्टे तक हंगामा चलता रहा, तब जाकर अदालत में आरोप पत्र दाखिल हो पाया।

चार्जशीट में उस मासूम बच्ची के साथ किये गये जघन्यतम अपराधों का ब्योरा संज्ञा शून्य कर देने वाला है। उसके विस्तार में जाने के बजाय इस मामले की मूल वजह को जानना जरूरी है। चार्जशीट में यह दर्ज है कि इस घटना की साजिश रचने वाले साँजी राम ने बकरवाल समुदाय को उस इलाके से भगाने के लिए इस घृणित अपराध को अंजाम दिया। उसने अपने इस कुकृत्य में अपने भतिजे, बेटे सहित छ: लोगों को शामिल किया। जम्मू कश्मीर में बकरवाल समुदाय चरवाहे हैं। जो जाड़े में मैदानी इलाकों और गर्मी में बर्फीले घास के मैदानों में डेरा डालते हैं। कठुआ के रसाना इलाके में उनके डेरा न डालने और चारागाह की जमीन न दिये जाने के लिए उसने बकरवाल समुदाय के खिलाफ स्थानीय हिन्दुओं को उकसाया था। इस मुहिम में भाजपा के मंत्री ही नहीं बड़े नेता भी शामिल रहे हैं। जम्मू कश्मीर के भाजपा प्रभारी राम माधव ने कठुआ बलात्कार की घटना में शामिल अपने मंत्रियों के इस्तीफे पर सफाई देते हुए अपने बयान में यह भी कहा था कि हमने सरकार से खानाबदोशों द्वारा वन भूमि के अतिक्रमण से सम्बन्धित आदिवासी विभाग के एक निर्देश को वापस लेने की माँग की थी। जाहिर है कि भाजपा अपनी रणनीति के तहत जम्मू में हिन्दूओं के भीतर यह काल्पनिक भय भर रही है कि वहाँ मुस्लिम आबादी बढ़ रही है। सच्चाई यह है कि जम्मू कश्मीर में बकरवाल घूमंतू समुदाय हजारों वर्षों से रह रहा है। वन भूमि पर उनका नैसर्गिक अधिकार है। लेकिन नफरत की राजनीति के झण्डाबरदार अपनी वोट की राजनीति में वहाँ फूट के बीज बो रहे हैं, जिसका नतीजा कठुआ की इस नृशंसतम घटना के रूप में सामने आया।

कठुआ और उन्नाव की घटनाओं को देखकर ऐसा लगने लगा कि जैसे इस देश में एक नयी राजनीतिक संस्कृति स्थापित करने की कोशिश हो रही है–– सत्ता पक्ष से जुड़े लोगों को कानून से ऊपर होना चाहिए और उन्हें हर तरह का अपराध करने की खुली छूट होनी चाहिए। पहले भी राजनीतिक पार्टियाँ अपने लोगों के अपराध छुपाने और उनको बचाने के लिए पर्दे के पीछे सरकारी मशीनरी का प्रयोग करती थीं। लेकिन इन दोनों घटनाओं में जिस तरह सरेआम पीड़ित पक्ष को डराने धमकाने, उनका मुँहबन्द करने, घर्म और देशभक्ति की आड़ में आरोपियों को बचाने के लिए आन्दोलन छोड़ने, न्याय प्रक्रिया को बाधित करने और एक मामले में पीड़िता के पिता की हत्या करवाने तक का अभियान चलाया गया वह देश में लोकतंत्र और न्याय–व्यवस्था को बेमानी बना देने की कोशिश थी। यह सत्ताधारी पार्टी और उसके समर्थकों को कानून से ऊपर स्थापित करने का एक कुत्सित प्रयास था।

गम और गुस्से की इस घड़ी में हमें गम्भीरता से विचार करना चाहिए कि बलात्कार की तेजी से बढ़ रही घटनाओं के पीछे क्या कारण हैं। अकसर बलात्कारियों को फाँसी देने की माँग उठती है। पिछले कई राज्यों ने बलात्कार के खिलाफ बड़े कानून बनाये भी है। सवाल यह है कि जब बलात्कार के अधिकांश मामलों में चार्जशीट ही दाखिल नहीं होती, कानूनी प्रक्रिया भी पूरी नहीं होती, तो कठोर सजा तात्कालिक गुस्से पर पानी फेरने के सिवा और कुछ नहीं। जब राज्य मशीनरी अधिकांश बलात्कारियों के बचाव में खड़ी है और 90 प्रतिशत मामलों में लम्बी प्रक्रिया, सामाजिक दबाव और धमकी के भय से मुलजिम छूट जाते हैं तो कड़ी सजा की बात करना बेमानी है। सर्वोच्च न्यायालय की एक वकील ने बताया कि मुज्जफरनगर साम्प्रदायिक हिंसा के दौरान सात मुस्लिम महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार के मुकदमे दर्ज हुए। जिनमें से एक पीड़िता की मौत हो गयी, पाँच ने मामले से खुद को अलग कर लिया और एक महिला का अभी तक बयान नहीं लिया गया है। आज जब योगी सरकार दंगे के दौरान अपने लोगों के खिलाफ हुए मुकदमे वापस ले रही है तब बलात्कारियों के मुकदमे का क्या हश्र होगा।

जहाँ तक कड़़े कानून की बात है, हमारे देश में न्याय पैसे का खेल है। ऐसे में कड़े कानून गरीबों के खिलाफ ही इस्तेमाल होंगे। यह तय है। इसलिए सवाल कानूनी प्रक्रिया को सही ढंग से पूरा करने का है न कि कड़े कानून बनाकर जनविरोधी सरकार के हाथ में और नये अस्त्र देने का। बलात्कार की जड़ें गहरी हैं जो पुरुषसत्ता और सामन्ती सोच में निहित हैं। औरत के प्रति घटिया नजरिया, उनकी पवित्रता, औरत के प्रति मान–मर्यादा की फर्जी धारणा, माँ–बहन की गन्दी गालियों से शुरू होकर अपने दुश्मन से बदले में उसकी इज्जत लूटने तक जाती है। यह हमारे यहाँ की सड़ी–गली सामन्तवादी संस्कृति के साथ–साथ विकृत–वीभत्स साम्राज्यवादी संस्कृति के अश्लील गठबन्धन का नतीजा है। जब तक एक स्वस्थ समाज नहीं बनाया जाता जिसमें हर तरह के भेदभाव को मिटा दिया जाये तब तक इस समस्या का समाधान नहीं किया जा सकता। एक न्यायपूर्ण समतामूलक समाज में, जिसमें लिंग, जाति, धर्म, क्षेत्र और ऊँच–नीच की दीवार न हो, इस बर्बरता को खत्म किया जा सकता है।

देश भर में इन दोनों घटनाओं को लेकर उत्पन्न आक्रोश, लोगों का सड़कों पर उतरना और जनाक्रोश को देखते हुए न्यायपालिका के हस्तक्षेप ने तात्कालिक रूप से कानून के रक्षकों द्वारा कानून को अपनी जेब में रखने की साजिश को बेनकाब किया और उन्हें पीछे हटने के लिए मजबूर किया। इन दोनों घटनाओं को लेकर जितने बड़े पैमाने पर देश के कोने–कोने में विरोध प्रदर्शन हुए हैं वह अपने आप में उम्मीद जगानेवाली है। जनता की जागरूकता ही उनके अधिकारों को महफूज रख सकती है। वरना इस नये दौर के मुहाफिजों ने कानून की धज्जी उड़ाने और हर कीमत पर अपनी साम्प्रदायिक विभाजनकारी राजनीति को जारी रखने में कोई कमी नहीं छोड़ी है। आज भी इन दोनों मामलों में कार्रवाई को प्रभावित करने से वे बाज नहीं आयेंगे। जम्मू–कश्मीर के मंत्रीमण्डल से जिन दो भाजपा नेताओं ने देशव्यापी विरोध को देखते हुए इस्तीफा दिया, वे अब खुलकर कठुआ मामले के साम्प्रदायीकरण की मुहिम में शामिल हैं। सत्ता चाटुकार टीवी चैनलों और सोशल मीड़िया पर अफवाह और झूट का अम्बार खड़ा किया जा रहा है। विकास के नाम पर सत्ता में आने वाली सरकार जब हर मोर्चे पर असफल साबित हो गयी है, देश में आर्थिक संकट गहरा रहा है, भ्रष्टाचार खत्म होने के बजाय उसके नये–नये कीर्तिमान बन रहे हैं, तब एक ही आजमाया हुआ नुस्खा फिर से काम में लाया जा रहा है। देश भर में साम्प्रदायिकता का जहर फैलाना और असली समस्या से जनता का ध्यान भटकाना। ऐसे में हर संवेदनशील और जागरूक नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह उनके झूठ का पर्दाफाश करे और जनता के बीच सच्चाई का प्रसार करे। देशव्यापी सचेतन और संगठित प्रयास ही देश को रसातल में पहुँचाये जाने से रोक सकता है।

 
 

 

 

सम्पादकीय (पुराने अंक)

2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
2009
2008
2007
2006