दिल्ली से पेरिस तक विनेश का संघर्ष
“माँ के पेट से मरघट तक तेरी कहानी पग–पग प्यारे दंगल–दंगल” दंगल फिल्म की ये लाइनें पहलवान विनेश फोगाट पर एकदम सही बैठती हैं। भारतीय महिला पहलवान विनेश फोगाट ने पेरिस ओलम्पिक में 7 अगस्त 2024 को एक ही दिन में तीन कुश्ती जीतकर फाइनल में जा कर इतिहास रचा। प्री क्वार्टर में अपने पहले ही मैच में विनेश ने गोल्ड मेडल की सबसे मजबूत दावेदार जापान की युई सुसाकी को 3–2 से हराया। यह पहलवान 2010 से आज तक अन्तरराष्टीय स्तर पर एक भी मुकाबला नहीं हारी थी। 82 कुश्तियों तक युई सुसाकी एक अजेय पहलवान थी। क्वार्टर फाइनल में यूक्रेन की ओक्साना जो यूरोप की चैंपियन थी उसको 7–5 से हराया और सेमीफाइनल में पैन अमरीकी गेम्स की चैंपियन क्यूबा की युसनेलिस गुजमैन को 5–0 से हराकर पहली बार भारत की कोई महिला पहलवान ओलम्पिक के फाइनल में पहुँची। अब विनेश का फाइनल अगले ही दिन 7 अगस्त 2024 को अमरीका की सारा एन हिल्डब्रेड से होना था। इससे पहले विनेश की सारा से 2 बार कुश्ती हुई और दोनों ही बार विनेश जीती। पूरा देश खुशी से झूम रहा था और सोच रहा था कि अब विनेश भारत को हर हाल में गोल्ड दिला देगी। लेकिन अगले दिन उसे 100 ग्राम ज्यादा वजन होने के चलते अयोग्य घोषित कर दिया गया। सिल्वर मेडल पक्का था क्योंकि विनेश कुश्ती के सभी नियम व शर्तों को पूरा करके फाइनल तक पहुँची थी। फिर भी सिल्वर मेडल का न मिलना शक पैदा करता है। अभी तक के कुश्ती ओलम्पिक में ऐसी कोई घटना पहले नहीं हुई है। दूसरी बात, 8 अगस्त 2024 में अन्तिम फैसला आना था जिसे 15 अगस्त के बाद तक टाल दिया गया। यह भी सन्देहास्पद है।
विनेश फोगाट के साथ हुई इस घटना ने मोदी सरकार की नियत और खेल के प्रति सरकार की नीतियों को सवाल के घेरे में ला दिया। विनेश के अयोग्य घोषित होते ही मोदी सरकार और इसके समर्थकों की अभद्र टिप्पणियाँ और व्यंग्य खुलकर सामने आने लगे। देखिए––
भाजपा नेता, यौन उत्पीड़न के आरोपी, भारतीय कुश्ती संघ के भूतपूर्व अध्यक्ष बाहुबली ब्रजभूषण शरण सिंह ने कहा है कि “विनेश को भगवान ने सजा दी। ओलम्पिक में उसके साथ अच्छा हुआ।” यह बयान ब्रजभूषण की मानसिकता को दर्शाता है। इनके दूसरे नेता विशाल वार्ष्णेय आनन्द ने बहुत ही अश्लील और अभद्र ट्वीट किया, “यौन शोषण का आरोप तो लगा चुकी थी। दो चार कपड़े उतार देती तो दो सौ ग्राम वजन कम हो जाता।” इस अमर्यादित टिप्पणी से पूरा देश शर्मसार हुआ और पूरा देश गुस्से में था। लेकिन इसके खिलाफ मोदी सरकार और भाजपा कुछ नहीं बोली। यहाँ तक कि गीता, बबिता और ताउजी महावीर फोगाट कुछ नहीं बोले। क्या उनका जमीर और स्वाभिमान भी ब्रजभूषण और मोदी सरकार ने खरीद लिया है? भाजपा सांसद मथुरा हेमामालिनी ने एक पत्रकार के पूछने पर व्यंग्य में मुस्कुराते हुए कहा कि “सरप्राइज है वेट कम करना पहलवानों और फिल्मी स्टारों के लिए भी कितना महत्वपूर्ण है। हमें ध्यान रखना होगा लेकिन अब उसे कुछ नहीं मिलेगा।” अभी ओलम्पिक संघ का फैसला भी नहीं आया था, फिर हेमामालिनी को कैसे पता था कि विनेश को कुछ नहीं मिलेगा। क्या वह ओलेम्पिक खेल संघ की जज है और खेलों के विषय की विशेषज्ञ है? सांसद कंगना रणौत ने कहा कि “विनेश ने कभी विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया था। मोदी के खिलाफ नारा लगाने के बाद भी उन्हें यह मौका (ओलम्पिक) बेस्ट ट्रेनिंग कोच दिया गया। ताकि वे अपने देश का प्रतिनिधित्व कर सके” अगर यह सच है तो फिर भारतीय कुश्ती संघ ने सिर्फ इसी साल के लिए यह विवादित नियम क्यों बनाया कि ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई करने के बाद भी अगर भारतीय कुश्ती संघ को लगेगा तो ट्रायल लेगी नहीं लगेगा तो नहीं लेगी। इसके चलते 53 किलोग्राम में विनेश का मुकाबला अन्तिम पंघाल से नहीं कराया गया और 53 किलोग्राम की चैंपियन विनेश को 50 किलोग्राम वेट में खेलने से रोका गया। मजबूरन विनेश ने अपने असली वेट से नीचे आकर 50 किलोग्राम में दोबारा अपने आप को तैयार किया और क्वालीफाई किया, यानि विनेश ने दो वेट केटेगरी 53 किलोग्राम और 50 किलोग्राम में क्वालीफाई किया। ऐसा भारतीय कुश्ती में पहली बार हुआ। अपने वेट केटेगरी के चैंपियन को खेलने से रोका गया। यह मोदी द्वारा उसे मौका देना था या रोकना था?
हम जानते हैं कि मौका मिलता नहीं है कुश्ती लड़कर उसे जितना होता है हर स्तर पर, गाँव के अखाड़ों और दंगलों में, जिला से लेकर राज्य स्तर तक, राष्ट्रीय तथा अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर, हर कदम पर लड़कर, जीतकर मौके हासिल किये जाते हैं। अपनी मेहनत, हिम्मत, लगन और धैर्य के साथ। कंगना रणौत क्या जाने यह सब?
पी टी उषा (भारतीय ओलम्पिक संघ की अध्यक्ष) का कहना है कि “वजन मैनेज करना कोच और खिलाड़ि़यों की जिम्मेदारी होती है। न कि भारतीय ओलम्पिक संघ द्वारा नियुक्त मुख्य चिकित्सा अधिकारी या उनकी टीम की।” यानी खेल अध्यक्ष और चिकित्सक की कोई जिम्मेदारी नहीं होती। फिर सवाल यह उठता है कि जब इन्हें कोई जिम्मेदारी ही नहीं है तो ये लोग वहाँ किस लिए जाते हैं? और खेलों के केन्द्रीय मंत्री मनसुख माण्डविय ने फाइनल में पहुँच कर इतिहास रचने वाली पहली भारतीय महिला विनेश को बधाई नहीं दिया। जो रजत पदक पक्का हो गया था वह भारत को कैसे मिले इसके लिए कोशिश करने के बजाय मंत्री जी संसद में विनेश फोगाट पर पेरिस ओलम्पिक में कितना खर्च किया गया, यह गिनवा रहे थे। मंत्री जी ने संसद में बताया कि सरकार ने विनेश फोगाट पर पेरिस ओलेम्पिक में 70 लाख 45 हजार 715 रुपये खर्च किये।”
राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर दर्जनों मेडल जीतने वाली चैंपियन पर किया गया खर्च बताना क्या मोदी सरकार की ओछी और घटिया सोच नहीं है। क्या ये पैसा नेता या सरकार ने अपनी जेब से दिया है? जबकि ये नेता अपने ऊपर कितना खर्च करते हैं क्या इसका हिसाब जनता को देंगें?
गोवा की विधानसभा में जहाँ बीजेपी की सरकार है, एक विधायक ने बताया कि “बीजेपी के विधायकों पर लड्डू खाने का खर्च चालीस लाख आया, एक करोड़ सत्तर लाख रुपये खानपान में खर्च किये, एक करोड़ तैंतिस लाख रुपये फाइव स्टार होटल में रुकने पर खर्च किया।” चार करोड़ 32 लाख रुपये वीआईपी ट्रांसपोर्ट पर किया गया। तो वहीं प्रधानमंत्री मोदी पर हर दिन जनता के एक करोड़ सत्रह लाख रुपये खर्च किये जाते हैं। कोई कह सकता है, वह देश के प्रधानमत्री हैं। तो फिर विनेश फोगाट क्या विदेशी पहलवान है? मेडल पर मेडल जीत कर देश का नाम पूरी दुनिया में ऊँचा किया है। सिर्फ रियो ओलम्पिक और टोक्यो ओलम्पिक के बीच 53 किलोग्राम भार में सत्रह टूर्नामेंट में सोलह मेडल जीते जिनमें 9 गोल्ड, 6 सिल्वर और एक कांस्य पदक है। विनेश पर सरकार ने जनता का जो भी पैसा खर्च किया, उसने तो उसे अपनी मेहनत से सूद समेत वापस लौटाया है। लेकिन देश के नेताओं और प्रधानमंत्री मोदी ने क्या किया?
भाजपा नेता गीता फोगाट अपने ट्वीट में लिखती हैं कि “कर्मों का फल सीधा सा है ‘छल का फल छल’ आज नहीं तो कल”। ये ट्वीट ऐसे समय में आया जब विनेश हताश और निराश होकर कह रही थी कि “माँ, कुश्ती मेरे से जीत गयी मैं हार गयी––– माफ करना आप का सपना, मेरी हिम्मत सब टूट चुकी है––– इससे ज्यादा ताकत नहीं रही, अलविदा कुश्ती।” क्या विनेश के गोल्ड जीतने का सपना सिर्फ विनेश और उसकी माँ का ही था? नहीं, यह सपना देश का था। इसलिए यह सवाल तो उठता ही है कि आखिर छल किसने किया? यौन शोषण के आरोपी ब्रजभूषण ने और उसके साथ खड़े सिस्टम ने जिन्होंने डब्ल्यूएफआई के ट्रायल को लेकर नियम बदले और वह भी सिर्फ पेरिस ओलम्पिक के लिए। यह साफ समझा जा सकता है कि छल कौन कर रहा था? और दूसरी बात यह है कि एक खिलाड़ी होने के नाते हौसला बढ़ाने के बजाय खिलाड़ी के मनोबल को तोड़ने वाला बयान क्या भाजपा नेता गीता पहलवान को शोभा देता है?
कौन है विनेश फोगाट?
विनेश को जानने के लिए राष्ट्रकवि दिनकर की ये लाइन एकदम सही बैठती हैं जिन्हें उसने ब्रजभूषण के खिलाफ लड़ते हुए ट्वीट किया था। कि “दरिया अब तेरी खैर नहीं, बूँदों ने बगावत कर ली है, नादान न समझ ऐ बुजदिल इनको, लहरों ने बगावत कर ली है। हम परवाने हैं मौत शमाँ, मरने का किसको खौफ यहाँ, रे तलवार तुझे झुकना होगा गर्दन ने बगावत कर ली है।”
18 जनवरी 2023 में 6 महिला पहलवानों ने जन्तर–मन्तर पर भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष ब्रजभूषण शरण सिंह के खिलाफ यौन उत्पीड़न का आरोप लगते हुए यह कविता ट्वीट की थी। इन 6 में विनेश मुख्य प्रदर्शनकारी की भूमिका में थी। 19 जनवरी को खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने महिला पहलवानों से बात करके कुश्ती संघ के अध्यक्ष के खिलाफ कार्रवाई करने का आश्वासन दिया और 21 जनवरी को डब्ल्यूएफआई ने जाँच कमेटी बनायी। सरकार पर भरोसा करके धरना प्रदर्शन वापस ले लिया गया, लेकिन सरकार ब्रजभूषण पर कार्रवाई करने के बजाय इसे टालती रही। मोदी सरकार के गैर जिम्मेदाराना व्यवहार से नाराज महिला पहलवान एकबार फिर से 21 अप्रैल को कनाट पैलेस थाने में एफआईआर लिखाने गये, लेकिन दिल्ली पुलिस ने एफआईआर नहीं लिखी जिसके चलते 23 अप्रैल को महिला पहलवान जन्तर–मन्तर की सड़कों पर प्रदर्शन करने के लिए मजबूर हुई। पूरे देश में महिला पहलवानों के इस प्रदर्शन का समर्थन तेजी से बढ़ रहा था जिसके चलते सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रदर्शन को अपने संज्ञान में लिया। तब जाकर ब्रजभूषण पर एफ़आईआर हुई लेकिन गिरफ्तारी नहीं हुई। उसकी गिरफ्तारी के लिए प्रदर्शन चलता रहा। महिला पहलवानों के इस प्रदर्शन को मोदी सरकार ने नयी संसद के उद्दघाटन के दिन महिला विरोधी सोच का प्रदर्शन करते हुये उन्हें सडकों पर घसीटा, कुचला और अपमानित किया, फिर जेल में डाल दिया। यौन उत्पीड़न आरोपी ब्रजभूषण को गिरफ्तार करके जेल भेजने के बजाय मोदी ने उससे नयी संसद की शोभा बढवायी। तब विनेश ने कहा था कि “देश याद रखेगा इस बात को जब नयी संसद का निर्माण हो रहा था, संवैधानिक निर्माण करने की बात चल रही थी, नए संविधान की। उस समय देश की लडकियों की न्याय की लड़ाई को दबाने की पुरजोर कोशिश की गयी थी और संविधान की हत्या की गयी थी। एक ही देश में दो चीज एक साथ हो रही थी। देश के इतिहास में यह बिल्कुल लिखा जायेगा।”
इस आन्दोलन का इतना जबरदस्त असर हुआ कि बाहुबली ब्रजभूषण से भारतीय कुश्ती संघ की अध्यक्षता छिन गयी, सांसदी भी गयी। खेल मंत्री अनुराग ठाकुर का मंत्री पद गया और मोदी की पूर्ण बहुमत की सरकार को दो बैशाखियों पर लाकर खड़ा कर दिया। इन घटनाओं में महिला पहलवानों के आन्दोलन का एक बड़ा रोल था जिसमें विनेश मुख्य भूमिका में थी। विनेश ने तब कहा था कि “अगर देश की कुश्ती को सुधारने के लिए उनका खेल खराब हो जाए तो कोई बात नहीं।” विनेश ने बिना डरे बताया था कि “ब्रजभूषण सिंगल–सिंगल लड़कियों को रूम में बुलाता था।” यह भी कहा था कि ब्रजभूषण के कितने पाप बताऊँ, “पहलवानों को गाली देना, थप्पड़ मारना, यह तो आम बात थी, सहन होती गयी। लेकिन इसके बाद महिला पहलवानों के साथ बदतमीजी बढ़ती गयी, बच्ची हो या बड़ी सभी को अपनी हवस का शिकार बनाने की हर पल कोशिश करता” इसी दुराचारी, यौन उत्पीड़न और जुल्म करने वाले के खिलाफ जन्तर–मन्तर पर महिला पहलवानों ने अपनी आवाज बुलन्द की थी।
ब्रजभूषण ने कहा था कि विनेश ट्रायल नहीं देना चाहती है क्योंकि ये किसी भी ट्रायल को पास नहीं कर सकती है। शायद ब्रजभूषण ने विनेश की हिम्मत और इरादों की ठीक से पहचाना नहीं।
2016 में रियो ओलम्पिक के क्वार्टर फाइनल में जबरदस्त चोट लगने के चलते बीच मैच में ही उसे स्ट्रेचर पर ले जाना पड़ा था। इस चोट से वापस कुश्ती के अखाड़े में आना मुश्किल था। वहीं 2017 में सर में चोट लगने के चलते ब्रेन इंजरी हो गयी थी। लेकिन विनेश अपनी हार ना मानने के मजबूत इरादे और हिम्मत से दोबारा खड़ी हो गयी।
दो साल बाद 2018 में विनेश ने आस्ट्रेलिया में हो रहे कॉमनवेल्थ गेम में गोल्ड मेडल जीतकर शानदार वापसी की और फिर 2019 में हुए कजाकिस्तान में वर्ल्ड चैंपियनशिप में विनेश ने 17 टूर्नामेंट खेले और 17 में 16 में मेडल जीते थे जिनमे 9 गोल्ड, 6 सिल्वर और एक कांस्य पदक था। ये सभी मेडल 53 किलोग्राम श्रेणी में जीते थे।
विनेश अब भारत ही नहीं पूरी दुनिया में कुश्ती की क्वीन बन चुकी थी, और विनेश को 53 किलोग्राम भार में पेरिस ओलम्पिक में एक मजबूत दावेदार माना जा रहा था।
2020 में विनेश ने डब्ल्यूएफआई से बार–बार अपना समर्थित फिजियोथेरेपिस्ट देने की अपील की, लेकिन डब्ल्यूएफआई के अध्यक्ष ब्रजभूषण ने विनेश की बात नहीं सुनी। शूटिंग खिलाड़ियों के फिजियोथेरेपिस्ट से ही कुश्ती खिलाड़ियों को काम चलाना पड़ा। इसका नतीजा यह हुआ कि टोक्यो ओलम्पिक में वे सभी काम जो एक फिजियो की देखरेख में होने थे, खिलाड़ियों को खुद ही करने पड़ रहे थे। इसके चलते विनेश बीमार हो गयी और टोक्यो ओलम्पिक में अपना दूसरा मैच हार गयी। विनेश के साथ खड़े होने के और उसकी तबियत क्यों खराब हुयी, उसे सही सलाह, सही खाना, सही इलाज और फिजियो क्यों नहीं मिला, इसका पता लगाने के बजाय कुश्ती संघ ने विनेश को सस्पेंड कर दिया।
2021 में विनेश की कोहनी में चोट थी। जिसका उन्हें ओपरेशन करना था और इसी के चलते 2021 के नेशनल ट्रायल को बीच में छोड़ना पड़ा। जिसको मीडिया और ब्रजभूषण ने मुद्दा बनाया कि विनेश ट्रायल नहीं देना चाहती जबकि डब्ल्यूएफआई विनेश के ट्रायल को लेकर गम्भीर नहीं थी। विनेश के ट्रायल को लगातार नजरन्दाज कर रही थी। आखिरकार ट्रायल देने के लिए कोर्ट के आदेश करवाकर पटियाला में ट्रायल दिये। विनेश ने कुश्ती के वेट में 50 किलो और 53 किलो दोनों ट्रायल दिया। तब जाकर विनेश ने पेरिस ओलम्पिक का अपना टिकट पक्का किया। इस बार पहले से ज्यादा मजबूत और तैयारी के साथ विनेश पेरिस पहुँची थी।
1 मई 2023 को एक इंटरव्यू में ब्रजभूषण ने कहा था “इन महिला पहलवानों का कैरियर खत्म हो चुका है।” और अपनी जाँघ पीटते (दुर्याेधन की तरह) चैलेंज देकर कहता है कि “ये गेम में सलेक्ट हो जाएगी तो कहियेगा।” जबकि विनेश ने भारतीय ट्रायल में भी 50 किलो और 53 किलो के वजन में क्वालीफाई किया और पेरिस ओलम्पिक में पूरी दुनिया की अपने वजन की तीनों पहलवानों को एक ही दिन में हरा कर फाइनल में गयी।
यह ब्रजभूषण, गोदी मीडिया और मोदी सरकार को दिया गया एक करारा जवाब है। पेरिस ओलम्पिक में कमेंटेटर कह रहे थे कि “यह वही लड़की है जिसे जन्तर–मन्तर पर कुचला गया था। आज इसने वर्ल्ड चैंपियन को हराकर इतिहास रच दिया है।” वह सिर्फ वर्ल्ड चैंपियन को ही नहीं, मोदी के अहंकार को भी तोड़ रही थी। पूरी दुनिया में यह बात बैठ रही थी कि विनेश अब खिलाड़ी से कहीं ऊपर उठकर एक संघर्ष का प्रतीक बन गयी है। लेकिन इतिहास रचने वाली इस खिलाड़ी को मोदी और उसकी सरकार के किसी भी सांसद, विधायक, मंत्री और खेलमंत्री, भाजपा कार्यकर्ता या समर्थकों और भारतीय ओलम्पिक संघ के अध्यक्ष, ओलम्पिक संघ के सदस्य किसी ने भी विनेश की इस कामयाबी पर बधाई नहीं दी। हाँ, अगले दिन 8 अगस्त को विनेश के अयोग्य घोषित होते ही सिर्फ दस मिनट के अन्दर व्यंग्यात्मक रूप में मोदी जी का एक बड़ा सा सांत्वना ट्वीट आया जैसे विनेश के अयोग्य घोषित होने का इन्तजार कर रहे हों। अपने ट्वीट में कहते हैं कि “विनेश आप चैंपियनों की चैंपियन हैं। आप भारत का गौरव है। और हर भारतीय के लिए प्रेरणास्रोत हैं। आज की हार दु:ख देती है––– चुनौतियों का सामना करना हमेशा से आपका स्वभाव रहा है और मजबूत होकर वापस आओ! हम सब आपके लिए प्रार्थना कर रहे हैं।” सवाल यह है कि क्या विनेश एक भी कुश्ती हारी है? मोदी जी विनेश की पैरवी करने के बजाय कि उसे सिल्वर मेडल मिले बस जोर तो इस बात पर है कि “आप हार गयी है और घर वापस आ जाओ।”
क्या विनेश के साथ बेईमानी हुई है?
हाँ, विनेश के साथ बेईमानी हुई है। और भारतीय कुश्ती संघ ने बेईमानी की है। उसने पहले कहा था कि ओलम्पिक कोटा प्राप्त करने वाले पहलवानों को भी ट्रायल देना होगा। तभी वह ओलम्पिक जा सकेंगें, लेकिन 21 मई को कहा कि कोई ट्रायल नहीं होगा और यह भी कहा कि इस फैसले को नियम न मना जाये। यह सिर्फ इस बार के लिए है। अंकिता पहलवान ने भी ओलम्पिक कोटा ब्राउन मेडल जीतकर पक्का किया था। इसलिए उसका 53 किलो वजन में जाना पक्का हो गया। लेकिन अगर 53 किलो वजन में ट्रायल होता तो हो सकता था विनेश 53 किलो के ट्रायल को जीतकर पेरिस में 53 किलो वजन में कुश्ती लडती। लेकिन यह मौका विनेश को नहीं मिला। इस बात का विनेश को पहले ही शक था कि उसे पेरिस में जाने से हर हाल में रोका जायेगा इसलिए विनेश ने एक बड़ा फैसला लिया। और 53 किलो और 50 किलो वजन में पटियाला में ट्रायल दिया और ओलम्पिक में जाना पक्का किया। अप्रैल में क्रिगिस्तान में एशियन कुश्ती ओलम्पिक क्वालीफाई हुई तो उसमे 53 किलो वजन में शानदार प्रदर्शन कर पेरिस ओलम्पिक में अपना खेलना पक्का किया। अगर विनेश भारतीय कुश्ती संघ के कोटा ट्रायल के भरोसे बैठी रहती तो क्या वह पेरिस ओलम्पिक में खेल पाती। उस समय के डब्ल्यूएफआई के अध्यक्ष से यह पूछा जाना चाहिए कि इस बार ट्रायल क्यों नहीं? और अगली बार ट्रायल क्यों होंगे? क्या इस बार विनेश को पेरिस ओलम्पिक में जाने से रोकना था? इसलिए सवाल तो पैदा होता है, षड़यंत्र की बू तो आती है कि आखिर ऐसा क्यों किया गया?
ऐतिहासिक स्वागत
पेरिस ओलम्पिक में 117 खिलाड़ी गये जिनमे छ: मेडल आये लेकिन देश की जनता पेरिस से वापस आने का एक ही खिलाड़ी का इन्तजार कर रही थी। और वह थी विनेश फोगाट। इस महिला पहलवान के फाइनल खेलने के जज्बे ने पूरे देश का दिल जीत लिया। विनेश के कोच वोलर स्कोस (हंगरी) ने बताया कि “विनेश ने 7 अगस्त की रात को अपना वजन कम करने के लिए इतनी मेहनत की जिसे देखकर मुझे ऐसा लगा कि शायद कहीं ये मर ना जाये।” फाइनल में गोल्ड जीतकर वह अपने आलोचकों का मुँह बन्द करना चाहती थी। ताकि पेरिस में भारतीय ध्वज लहराये और राष्ट्रगान गाया जा सके। इसके लिए जिन्दगी भी दाँव पर लगा दी इस महिला पहलवान ने। हम शायद ही अन्दाजा लगा सकते हैं कि विनेश पर क्या बीती होगी? क्योंकि विनेश के लिए यह दंगल का अखाडा नहीं बल्कि महायुद्ध का एक मैदान था। जिसमें विनेश मोदी सिस्टम से, महिला विरोधियों से, और दुनिया की अजेय पहलवानों से सबसे एक साथ लड़ रही थी और जीत रही थी, वीर अभिमन्यु की तरह। विनेश कुश्ती से नहीं सिस्टम से हार गयी। लोग विनेश के आँसुओं को, उसकी तकलीफ को कैसे कम करें हर पल यही सोच रहे थे। विनेश का फाइनल न खेल पाने को षड़यंत्र मान रहे थे। इसलिए देश के लोगों ने अपील की और ऐलान भी किया। (1) विनेश के लिए भारत रत्न की माँग की है, (2) सुप्रीम कोर्ट से जाँच करायी जाए और दोषियों पर कार्यवाई हो, (3) सर्वखाप विनेश को गोल्ड मेडल से सम्मानित करेगी। (4) रोहतक के नांदल भवन में देशभर की खाप विनेश को सम्मानित करंेगी। (5) जिले स्तर पर खाप पंचायतों द्वारा प्रदर्शन कर राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सांैपा जायेगा। (6) विनेश को कुश्ती से सन्यास लेने के फैसले को वापस लेने के बारें में मनाया जायेगा। (7) ‘आयरन लेडी’ के नाम से नवाजा जायेगा। (8) दिल्ली हवाई अड्डे से लेकर विनेश फोगाट के गाँव तक जहाँ से भी वह गुजरेगी, बच्चा–बच्चा विनेश के स्वागत में मिलेगा और हुआ भी ऐसा ही।
विनेश को अद्भुत प्यार और स्वागत मिला। दिल्ली हवाई अड्डे से लेकर विनेश के गाँव बलाली (चरखी दादरी), हरियाणा तक हर गाँव और शहर में गाड़ियों का काफिला नेताओं, मंत्रियों से भी बड़ा था, जन सैलाब था। बच्चे, क्या बूढ़े, जवान, महिलाएँ, पुरुष हर जाति–धर्म के लोग विनेश का दिल से स्वागत कर रहे थे। विनेश जिन्दाबाद के नारे लगा रहे थे। कहीं फूलों की माला से, कहीं गुलदस्ता देकर, नोटों की माला पहनाकर स्वागत कर रहे थे। कोई मिठाई बाँट रहा है, कोई तिरंगा दे रहा है, कोई कह रहा है हमें तुम पर गर्व है विनेश, ढोल नगाड़ों के साथ नाच–नाचकर फूलों की वर्षा की जा रही है। लोग शेल्फी ले रहे है। महिलाओं ने गले लगाकर, बड़ों ने आशीर्वाद देकर, दूध बाँटकर, तो कोई तीस–तीस किलोमीटर दूर से घी के कनस्तर की काँवड़ लगाकर विनेश को घी में तोल रहे हैं। जिस तरह दंगल में कुश्ती जीतने पर लोग इनाम में पैसे देते हैं। इनाम दे रहे हैं। फोटो खिंचा रहे हैं। काँवड़ लाकर गंगा जल से उसका अभिषेक कर रहे हैं। इस तरह दिल्ली से विनेश के गाँव जिसकी दूरी मात्र 110 किलोमीटर है, पहुँचने में 13 घंटे से ज्यादा का समय लग गया। चैंपियनों की चैंपियन की तरह विनेश का कदम–कदम पर स्वागत हुआ।
लोग विनेश के बारे में कहते हैं कि हम पेरिस से सोना लेने गये थे लेकिन विनेश हीरा बनकर लौटी है। कोई कहता है विनेश ने पूरे हिन्दुस्तान का दिल जीत लिया है। रास्ते में स्वागत के लिए जगह–जगह होर्डिंग बोर्ड लगे हैं। म्हारी आन–बान–शान देश की बेटी विनेश फोगाट, म्हारी छोरी, म्हारा अभिमान, पेरिस ओलम्पिक 2024 में अपनी कोशल क्षमता से देश को गौरवान्वित करने वाली संघर्ष की मिशाल भारत की चैंपियन बेटी–विनेश फोगाट का हार्दिक अभिनन्दन एवं स्वागतम, हमारी बेटी–– हमारा गौरव चैंपियन की चैंपियन। विनेश के ऊपर गीत बन रहे है। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई से तुलना की जा रही है। जुल्म और अन्याय के खिलाफ अपनी इज्जत और स्वाभिमान के लिए हिम्मत बहादुरी से लड़ने वाली संघर्षशील आयरन लेडी की तरह पेश किया है। पंचायत कर स्वागत कार्यक्रम हो रहे हैं। गोल्ड मेडल पहनायें जा रहे हैं। स्वागत समारोह में आने वालों के लिए देशी घी के लड्डू बनाये जा रहे है। यह सिलसिला लगातार चल रहा है। भारतीय इतिहास में किसी भी खिलाड़ी का इतना विविधतापूर्ण और भव्य स्वागत पहले नहीं हुआ।
देशवासियों द्वारा इतना प्यार और भव्य स्वागत देखकर विनेश भावुक हो रोने लगती है। आँसू बार–बार छलकते, दु:ख में भी कि वह देश के लिए गोल्ड नहीं ला पायी। और ख़ुशी में कि पूरा देश उसके साथ है और प्यार को विनेश सभी गोल्ड से ऊपर मानती है।
जनता का विनेश के प्रति इतना प्यार देखकर ओलम्पिक में जाने से रोकने वाली मोदी सरकार भी विनेश की तारीफ करने को मजबूर है। फाइनल में पहुँचने पर बधाई नहीं दी। जिसका पूरा देश इन्तजार कर रहा था। लेकिन अब मोदी का कहना है कि ‘विनेश पहली ऐसी भारतीय बनी जो कुश्ती में फाइनल तक पहुँची। ये हमारे लिए बड़े गर्व का विषय है।”
क्या सरकार खेलों को लेकर गम्भीर और ईमानदार है?
खेलों में भारत की खराब स्थिति को लेकर 2013 में मोदी ने कांग्रेस सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा था कि “120 करोड़ लोगों का इतना बड़ा देश––– और हमें मेडल नहीं मिलते, क्या हमने युवाओं को मौका दिया––– अरे सिर्फ सेना के नये भर्ती किए गए जवानों में से छाँटे जायें जिनकी रूचि खेलों में है, उनको ट्रेनिंग देने का काम शुरू कर दिया जाये तो 5, 7, 10 मेडल तो हमारी सेना के जवान ला सकते हैं।” अब खुद मोदी पिछले दस सालों से सरकार चला रहे हैं तीसरी बार देश के प्रधानमन्त्री हैं जो शिक्षा और योजनाएँ कांग्रेस सरकार को बता रहे थे उन्हें लागू करने का उनके पास पर्याप्त समय था। मोदी सरकार ने खेलों पर कितना ध्यान दिया और अपनी बतायी योजनाओं को कितनी गम्भीरता से लागू कर रहे हैं। हम इन तथ्यों से समझ सकते हैं। 2012 के ओलम्पिक में हमारे देश ने 83 खेलों में से 13 खेलों में हिस्सा लिया था। तब हमारे देश को 2 रजत और 4 कांस्य पदक मिले थे। हम 56वें नम्बर पर आये थे। आज 2024 में पेरिस ओलम्पिक में हमने 110 खेलों में से 16 खेलों में भाग लिया और हमें 1 रजत और 5 कांस्य पदक मिले। इस बार हम पदक तालिका में 71वें स्थान पर हैं। जबकि पाकिस्तान हमसे पदक तालिका में 10 पायदान ऊपर 62वें स्थान पर है। अगर हमारी सरकार और भारतीय ओलम्पिक संघ अपना काम ईमानदारी से करते और विनेश फोगाट को फाइनल खिलवा देते तो शायद हम पदक तालिका में 52वें स्थान पर होते और जो रजत पदक विनेश जीत चुकी थी वह ही दिलवा देते तो हम 68वें स्थान पर होते।
लेकिन सरकार की कथनी और करनी में बहुत फर्क है। इन्हें मेडल से कोई मतलब नहीं और न खेलों से कोई सरोकार है। अगर जरा भी लगाव होता तो खिलाड़ियों की प्रोत्साहन राशि में 39 करोड़ रुपये की कटौती नहीं की जाती। जो पहले 84 करोड़ रुपये थी अब 45 करोड़ रुपये कर दी गयी है। राष्ट्रीय खेल विकास कोष का सारा ही बजट गायब कर दिया। 48 करोड़ से मात्र 18 रुपये कर दिया। बजट खत्म करने से खेल आगे बढ़ेंगे या पीछे जायेंगे।
जम्मू कश्मीर में खेल सुविधा बढ़ाने के लिए पहले 20 करोड़ का बजट था। इसे भी घटाकर 8 करोड़ कर दिया गया है। राष्ट्रमंडल खेलों के लिए पहले 15 करोड़ रुपये का आवंटन था जिसे अब घटाकर मात्र एक लाख रुपये कर दिया गया है।
क्या मोदी जी 5–7–10 मेडल ऐसे ही लेकर आने वाले हैं। और जो बजट दिया जा रहा है उसमें ईमानदारी है, इसे भी हम खेलो इंडिया के तहत दिए गए बजट से समझ सकते हैं जो ओलम्पिक में जाने वाले खिलाड़ियों की तैयारी पर खर्च किया जाता है।
देश को सबसे ज्यादा पदक देने वाला राज्य हरियाणा जिसके 24 एथलीटों ने ओलम्पिक कोटा प्राप्त किया है, उनके लिए मात्र 66 करोड़ का बजट और पंजाब जिसके 19 एथलीटों ने ओलम्पिक कोटा प्राप्त किया, उसके लिए 78 करोड़ रुपये का बजट और उत्तर प्रदेश से मात्र 6 एथलीट ओलम्पिक में गये हैं, उनके लिए सबसे ज्यादा 438 करोड़ रुपये का बजट। गुजरात जिसके कुल 2 ही खिलाड़ी ओलम्पिक जाने का कोटा हासिल कर पाये, उनके लिए बम्फर 426 करोड़ रुपये का बजट दिया गया है। जहाँ ज्यादा खिलाड़ियों की ओलम्पिक तैयारी करानी है वहाँ कम से कम बजट और जहाँ इक्का–दुक्का खिलाड़ियों की तैयारी करनी है वहाँ छाप्पर फाड़ के बजट। ओलम्पिक में कुल 117 खिलाड़ी गये और खिलाड़ियों को लेकर जाने वाले अधिकारियों का 140 लोगों का स्टाफ गया और खेल संघ के अन्य अधिकारी अलग से। सब का खर्च सरकार को ही उठाना है। क्या इस तरह खिलाड़ियों के बजट से कटौती करके हम ओलम्पिक खेलों के विश्वगुरु बन जायेगें?
महिला पहलवानों के खुलकर सामने आने से भारतीय कुश्ती संघ की और मोदी सरकार की कथनी और करनी का फर्क सामने आ गया है। लेकिन क्या बाकी सभी खेल संघ की स्थिति इससे अलहदा है? या सब जगह इसी तरह की मनमानी, गुण्डागर्दी और तानाशाही है। इस तरह उपरोक्त तथ्य से सरकार की नीयत और नीतियों से यह एकदम साफ समझा जा सकता है कि दुनिया में सबसे ज्यादा युवा हमारे देश में है फिर भी हम खेलों में एक भी गोल्ड क्यों नहीं ले पाये? क्यों हम पदक तालिका में पकिस्तान से भी नीचे 71वें स्थान पर हैं? क्योंकि हमारे रहनुमाओं को खिलाड़ी और गोल्ड मेडल नहीं चाहिए। इन्हें तो भूमाफिया, गुंडे, हत्यारे और यौन उत्पीड़न करने वाले चाहिए। इन्हें अहंकार प्यारा है, देश नहीं।
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