मार्च 2019, अंक 31 में प्रकाशित

फेक न्यूज, ट्रोलिंग और फोटो, वीडियो एडिटिंग : भाजपा की चुनावी रणनीति

अक्सर सोशल मीडिया के ‘फेक न्यूज’ (झूठ खबर) की पोल तो खुलती ही रही है, लेकिन जब सत्ता में शामिल कोई आदमी इस काम को सचेत रूप में करता है, तब हमें और भी ज्यादा सजग और होशियार हो जाना चाहिए और हर खबर को सच की कसौटी पर कसकर परखना चाहिए। 

हम सभी जानते हैं कि 2014 के संसदीय चुनाव और उसके बाद कई राज्यों के चुनाव हुए और उनमें भारतीय जनता पार्टी की जीत हुई। इसे भाजपा ने ‘मोदी लहर’ कहकर देशभर में प्रचारित किया। दरअसल यह ‘मोदी लहर’ नहीं थी, बलिक चुनाव को अपने पक्ष में करने की सोची–समझी रणनीति का नतीजा थी। यह रणनीति और कुछ नहीं, वर्षों से चली आ रही तीन–तिकड़मों का नयी तकनीक के माध्यम से नया अवतार है।

एक समय भाजपा के डेटा विश्लेषक रहे शिवम शंकर सिंह का कहना है कि भाजपा चुनाव जीतने के लिए देशभर में जातिवाद फैलाने और साम्प्रदायिक दंगों को बढ़ावा देने के लिए सोशल मीडिया की तकनीक का एक खास तरह से इस्तेमाल करती है।

आज सोशल मीडिया गलत–सही प्रचार का एक बड़ा हथियार बन गया है। यह किसी को भी लोकप्रिय बनाकर या बदनाम करके सत्ता में पहुँचाने का या सत्ता से बाहर करने का काम कर रहा है। शंकर सिंह ने ‘कारवाँ’ पत्रिका को बताया कि 2014 में भाजपा का डेटा सेटअप बहुत मजबूत बन गया था, जिसे आईटी सेल के जरिये बनाया गया था। इसी के जरिये चुनावों की रणनीति बनायी गयी थी। जाति–धर्म के अनुसार मतदाता सूची को मोबाइल नम्बर के साथ मिलाया गया (आधार कार्ड के जरिये, क्योंकि इस पर घर का पूरा पता और मोबाइल नम्बर होता है)। इसके बाद लोगों को व्यक्तिगत सन्देश भेजे गये, जैसे–– समाजवादी पार्टी का मुख्य वोटर यादव समुदाय है, जो अन्य पिछड़ी जाति में आता है, तब भाजपा ने यादवों और दलितों को छोड़कर दूसरी अन्य पिछड़ी जातियों, जैसे –– जाट, गुर्जर, कश्यप, कुम्हार, सैनी, लोहार, बढ़ई, नाई, जोगी, अहीर और वर्मा आदि को अपना लक्ष्य बनाया और इन्हें सन्देश दिया कि यादवों को ही आरक्षण का सारा फायदा पहुँचाया जा रहा है। इसलिए जब तक समाजवादी पार्टी सत्ता में रहेगी, यादवों के अलावा किसी को इसका फायदा नहीं मिलेगा। इन सन्देशों के अलावा दूसरे ‘फेक न्यूज’ भी भेजे जाते हैं, जिनमें मिलते–जुलते लोग, उनके रंग–रूप, कद–काठी, पहनावा, रहन–सहन, भौगोलिक क्षेत्र और परिस्थिति के अनुसार घटना की चीजों, वीडियो और फोटो का इस्तेमाल किया जाता है, जैसे–– सीरिया का वीडियो भेजकर कहा गया कि देखो मुजफ्फरनगर में क्या हो रहा है, जिसमें मुस्लिम लड़के मिलकर एक नौजवान को मार रहे थे। वहीं एक साइकिल और मोटर– साइकिल की टक्कर वाली मुजफ्फरनगर की ही घटना को मुस्लिम लड़के द्वारा हिन्दू लड़की को छेड़ने में तब्दील करके इसे हिन्दुओं की इज्जत से जोड़ कर फैलाया गया। इसके चलते पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में दंगे हुए और देश के बड़े हिस्से में हिन्दू–मुस्लिम के बीच नफरत का माहौल बना। गौरतलब है कि 6 फरवरी को अदालत ने साइकिल और मोटरसाइकिल टक्कर के इस झगड़े में मरने वाले तीन नौजवानों (जिनमें एक मुस्लिम और दो हिन्दू थे) के केस में नौ मुस्लिमों को सजा का फैसला दिया है।

इसी तरह जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में नारों वाली वीडियो क्लिप में छेड़छाड़ करके दिखाया गया कि इसमें भारत विरोधी नारे लगाये गये थे। हाल ही में दिल्ली की एक न्यायिक जाँच में खुलासा हुआ कि भारत के खिलाफ नारे लगे ही नहीं थे। अभी हाल–फिलहाल में पुलवामा हमले के बाद भी ‘फेक न्यूज’ के मुताबिक तथाकथित मिग 16 हवाई जहाज से की गयी सर्जिकल स्ट्राइक–टू में 350 आतंकवादियों के ‘मार गिराने’ के और आतंकवादियों के कैम्पों को ‘नेस्तानाबूद’ करने की वीडियो और खबरों को पूरे देश में फैलाया गया। जबकि सच्चाई यह है कि जो हवाई हमला दिखाया जा रहा है, वह एक वीडियो गेम अरमा–टू का एक हिस्साभर है, जो जुलाई 2015 में यू ट्यूब चैनल पर प्रसारित किया गया था। इसके बाद जो मकान क्षतिग्रस्त दिखाये जा रहे हैं और जो लोग मारे गये दिखाये गये हैं, वह भी पाकिस्तान के 2013 के भूकम्प में हुई तबाही और बरबादी के हैं।

ऐसी ‘फेक न्यूज’ भाजपापरस्त आधिकारिक चैनलों से नहीं भेजी जाती हैं, बल्कि ‘नमो समर्थक 2019 बनारस’, ‘कट्टर हिन्दू सेना’ या ‘हिन्दू महासभा’ जैसे वाट्सअप समूहों से भेजी जाती हैं। इनसे अलग भी कई समूह हैं, जैसे–– ‘वी सपोर्ट इंडियन आर्मी’ और ‘वी सपोर्ट नमो’ नामक पेज। इनका दावा है कि इनके 15 लाख से अधिक समर्थक हैं। लेकिन भाजपा का कहना है कि ये पेज इनके नहीं हैं, इन्हें इनके समर्थक चला रहे हैं। दरअसल इन पेजों को, इन वाट्सअप समूहों को चलाने के लिए डेढ़ से दो करोड़ रुपये प्रतिमाह खर्च करने होते हैं। सवाल यह है कि यह धन आ कहाँ से रहा है? ऐसी झूठी वीडियो और फेक न्यूज को दिखाकर ही आज सोशल मीडिया जनता में फूट डालने का काम कर रहा है। वह जाति और धर्म के नाम पर देश के लोगों में एक दूसरे के प्रति नफरत फैलाने का काम कर रहा है और ‘पाकिस्तान पाकिस्तान’ चिल्लाकर नकली देशभक्ति फैलाने का काम कर रहा है, ताकि जनता को उनके असली मुद्दों से भटकाया जा सके।

आज झूठ फैला कर जनता को गुमराह करने के लिए सोशल मीडिया की इस आईटीसेल के साथ ही इलेक्ट्रानिक मीडिया के कई न्यूज चैनल सबसे आगे हैं। प्रिंट मीडिया के अखबार भी इनसे पीछे कतई नहीं हैं। ‘जी न्यूज’ चैनल द्वारा ‘2000 के नये नोट में चिप है’ जैसी बेहूदी अफवाह फैलायी गयी इसका पर्दाफाश होने के बावजूद चैनल के रिपोर्टर और मालिक ने माफी नहीं माँगी। बेहया और झूठे लोग मीडिया में भर गये हैं। कई बार न्यूज चैनलों और अखबारों ने भी फेक न्यूज को टीवी समाचारों और खबरों में बढ़ा–चढ़ाकर पेश किया है।

सोशल मीडिया काफी शक्तिशाली माध्यम है। अन्य मीडिया, जैसे–– न्यूज चैनल, अखबार, पत्रिका आदि के द्वारा भी लोग जानकारी पाते हैं, लेकिन उनके लिए लोगों को खुद पहलकदमी लेनी पड़ती है। जबकि सोशल मीडिया नयी–नयी झूठी–अधझूठी और सच्ची खबरें लगातार अपने आप पहुँचाता रहता है। यह लोगों के मोबाइल, लेपटाप अथवा कम्प्यूटर इंटरनेट खुलते ही आ जाता है। हमारे वाट्सएप, फेसबुक पर मैसेज के तौर पर ऐसी ‘फेक न्यूज’ आती ही रहती हैं। दरअसल इसका इस्तेमाल आम लोग भी करते हैं, सभी पार्टियाँ करती हैं, लेकिन इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल शासक वर्ग की पार्टी ही करती है।

मोदी शासन में सोशल मीडिया पर सही बात कहने और  सरकार से सवाल पूछने वालों पर जबरदस्त ट्रॉलिंग होती है। यहाँ कुछेक उदाहरण ही काफी होंगे, जैसे –– पत्रकार बरखा दत्त, राणा अयूब, रवीश कुमार, अभिसार शर्मा आदि कई दूसरे पत्रकार और ऐंकरों को भद्दी से भद्दी गालियाँ देना, उन्हें जान से मारने की धमकी देना, उनके परिवार को उठाकर ले जाने और बच्चों को उठा ले जाने की धमकी देना, उनकी माँ–बहनों के साथ अश्लील हरकतें करने की धमकी देना, उनके चेहरे पर तेजाब फेंकने, उनसे बलात्कार करने, किसी अश्लील नग्न तस्वीर पर महिला पत्रकारों के चेहरे चस्पा कर उन्हें अपमानित करने, लोगों में उनकी छवि खराब करने, साथ ही कॉल, फेसबुक और वाट्सअप पर मैसेज और फोटो रेफर करने आदि की वारदातें एक या दो बार नहीं, बल्कि आये दिन होती रहती हैं।

इसके बावजूद सच तो यही है कि जनता की ताकत को कभी कोई तानाशाह दबा नहीं पाया है, न आगे दबा पायेगा। जनता के सामने दबी हुई असलियत को सामने लाने का काम भी सच्ची सोशल मीडिया ही करती है, जैसे –– मीडिया विजिल, द वायर, न्यूज क्लिक, आल्ट न्यूज, एनडीटीवी का प्राइम टाइम और ऐसेे प्रगतिशील लोग निर्भीक होकर सरकार की झूठी बातों और फेक न्यूज की असलियत को उजागर करते रहते हैं।

एक मुहावरा है कि ‘झूठ के पाँव नहीं होते’। ऐसा लग रहा है कि बिना पाँव वाले झूठ अब इंटरनेट के जरिये आ रहे हैं। लोगों का डेटा इनके हाथ लग जाने के कारण इनका झूठ लोगों के बेडरूम से होते हुए उनके दिमाग तक आ जाता है। इतने शातिर, फरेबी और बहुरुपियों भीड़ में आज हमें खबरों के मामले में बहुत ज्यादा चैकन्ना रहने की जरूरत है। 

 
 

 

 

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