नवम्बर 2021, अंक 39 में प्रकाशित

पण्डोरा पेपर्स

पण्डोरा पेपर्स क्या हैं?

पण्डोरा पेपर्स में दुनियाभर के ऐसे लोगों का लेखा–जोखा है जिन्होंने अपने देश में टैक्स से बचने के लिए सम्पत्ति को अपनी पहचान छुपाकर टैक्स बचत का स्वर्ग कहे जाने वाले देशों में रखा। पहले भी 2016 में पनामा पेपर्स में इस तरह का खुलासा हो चुका है। उसके बाद 2017 में पैराडाइज पेपर्स में भी दुनियाभर के अमीरों द्वारा छुपायी गयी सम्पत्ति का ब्यौरा मिला था। पण्डोरा पेपर्स में दो सौ देशों के अमीरों का विवरण है। इसमें दुनियाभर से सैकड़ों राजनीतिज्ञ, फोर्ब्स पत्रिका की सूची में शामिल सौ से ज्यादा अरबपति, सेलिब्रिटीज, ड्रग माफिया, रॉयल फैमिली और धार्मिक गुरु लिप्त हैं। इतना ही नहीं, इसमें कई देशों के पूर्व राष्ट्रपति और मौजूदा राष्ट्रपतियों के भी नाम हैं। बड़े सरकारी अधिकारी, प्रधानमंत्री, जज, मेयर और सेनाध्यक्ष तक शामिल हैं। इस जालशाजी का खुलासा करने के लिए 117 देशों से, छ: सौ से ज्यादा पत्रकार इस अभियान में शामिल रहे। “खोजी पत्रकार अन्तर्राष्ट्रीय संघ” ने एक करोड़ बीस लाख दस्तावेज इकट्ठा किये। ये दस्तावेज अंग्रेजी, स्पेनी, रूसी, फ्रांसीसी, अरबी और कोरियाई भाषा में हैं। दस्तावेजों की संख्या इतनी ज्यादा है कि अभी पण्डोरा पेपर्स का सम्पूर्ण विश्लेषण आने वाले वक्त में ही सम्भव हो पायेगा। लेकिन अब तक हुए खुलासे और रिपोर्टों के आधार पर इतना कहा जा सकता है कि दुनिया के अमीर इस धरती की सम्पदा को लूटने और अपनी तिजोरियाँ भरने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे।

 कौन अपनी सम्पत्ति छुपाते हैं?

पूँजीपतियों में भी मुख्यत: दो चरित्र हैं–– पहला, वे जो पूँजी को विभिन्न उद्योगों में निवेश करते हैं और मुनाफा कमाते हैं। ये पूँजी को लेकर कुछ हद तक साहसी और निडर होते हैं। दूसरा, वे जिन्हें पूँजी के खोने का डर होता है। यह डर कई वजह से पैदा होता है जैसे सरकार के स्थायित्व पर भरोसा न हो या सम्पत्ति के लूट लिये जाने का खतरा हो आदि। इन्हें उसी सरकार पर भरोसा नहीं होता जिसमें यह खुद शामिल होते हैं, उसी व्यवस्था से डर लगता है जिसमें रहकर इन्होंने अकूत सम्पत्ति कमाई है। इस दूसरी केटेगरी में अधिकतर नेता, अभिनेता, सेलिब्रिटीज, धार्मिक गुरु और वित्तीय कारोबार करने वाले पूँजीपति होते हैं। इनके अन्दर परजीवीपन ज्यादा होता है। इसलिए ये अपनी पूँजी को अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में निवेश करने के बजाय एक हिस्सा कहीं सुरक्षित रखना चाहते हैं। इन्हें ऐसी जगहों की तलाश होती है जहाँ ये अपनी सम्पत्ति सुरक्षित रख सकें, इनकी पहचान भी न हो और टैक्स से भी बच जाएँ। इसी का परिणाम है कि यूनाइटेड किंगडम में डेढ़ हजार से ज्यादा सम्पत्तियाँ अवैध तरीके से खरीदी गयीं।

यह कैसे सम्भव है?

अपने देश से सुरक्षित तरीके से रुपये और सम्पत्ति को सीमा से बाहर निकालने के लिए ऑफशोर कम्पनियों के जाल बिछे हैं। ये कम्पनियाँ अपने ग्राहक के लिए विदेशों में सारे इन्तजाम करती हैं। उनके नाम–पते बदलना, पहचान गुप्त रखना जैसे कामों में विशेषज्ञ कम्पनियाँ सहयोग करती हैं। इन कम्पनियों के असली मालिकों की पहचान छुपा ली जाती है। कॉर्पोरेट टैक्स के लिए स्वर्ग कहे जाने वाले देशों में यह बहुत सामान्य है। कई देशों के कानून इतने लचीले हैं कि वे नयी कम्पनी खुलने पर ज्यादा जाँच पड़ताल नहीं करते और डायरेक्टर्स की पहचान को भी गुप्त रहते हैं। पूँजीपतियों के लिए इस धरती पर ऐसे स्वर्ग केमैन आइलैण्ड, ब्रिटिश वर्जिन आइलैण्ड, स्विट्जरलैण्ड और सिंगापुर हैं। पण्डोरा पेपर्स के खुलासे के बाद अमरीका में स्थित दक्षिणी डकोटा भी नये टैक्स स्वर्ग के रूप में उभर कर सामने आया है।

विदेशों में क्या वे सिर्फ रुपये छुपाते हैं?

नहीं। सिर्फ रुपया ही नहीं। इन सम्पत्तियों में बंगले, होटल, फार्महाउस और तरह–तरह के अय्याशी के साधन भी होते हैं। वे अपनी शेल कम्पनी खोलते हैं। शेल कम्पनी ऐसी हवाई कम्पनी होती है जिसका न कोई ऑफिस होता है न कोई कर्मचारी। धनी लोग ऐसी कम्पनी में बेशकीमती चीजें परिसम्पत्ति के रूप में रखते हैं। कम्पनी का बैंक खाता होता है। उसके डाइरेक्टर्स होते हैं। इसमें नगद रुपया से लेकर, कम्बोडिया से लूटी गयी प्राचीन मूर्तियाँ, पिकासो की पेंटिंग और ब्रिटिश कलाकार बैंग्सी के भित्ति चित्र तक शामिल हैं।

अलग अलग राष्ट्रों का इन्हें लेकर क्या रुख है?

अभी ज्यादातर देश के शासक और मीडिया में पण्डोरा पेपर्स को लेकर चुप्पी साधे हुए हैं या घिसे–पिटे जवाब दे रहे हैं–– जैसे “जाँच होगी, दोषियों पर कार्रवाई होगी, अभी टिप्पणी नहीं कर सकते” आदि आदि। क्योंकि ज्यादातर देशों से या तो सरकार में शामिल लोगों के नाम पण्डोरा पेपर्स में हैं या उनके चहेते लोगों के।

खुद अमरीका के लिए पण्डोरा पेपर्स ने चुनौती खड़ी कर दी है। अमरीकी राष्ट्रपति ने दावा किया था कि वे वैश्विक वित्तीय व्यवस्था में पारदर्शिता लाने पर जोर देंगे। इन पेपर के लीक होने के बाद अमरीका खुद ही टैक्स से बचने के मामलों में स्वर्ग के रूप में सामने आया है। तमाम तरह के आर्थिक अपराधों में लिप्त सैकड़ों लोगों ने अमरीका के दक्षिणी डकोटा में अरबों डॉलर जमा किया है।

पण्डोरा पेपर्स की वजह से केन्या के राष्ट्रपति उहुरू केन्यट्टा के सामने धर्म संकट आ खड़ा हुआ है। उन्होंने खुद को भ्रष्टाचार के दुश्मन के रूप में पेश किया था। 2018 में बीबीसी को दिये एक इण्टरव्यू में उन्होंने जोर देकर कहा था कि “सभी सरकारी अधिकारियों को अपनी सम्पत्ति का ब्यौरा जनता के सामने सौंपकर पारदर्शिता लानी चाहिए।” अब खुलासा हुआ है कि इन्होंने अपने रिश्तेदारों के संग तीन करोड़ डॉलर विदेशों में जमा किये हैं। सवाल पूछने पर अभी इन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। यही हाल चेक गणराज्य के प्रमुख का है। पाकिस्तान में इमरान सरकार के एक महत्वपूर्ण मंत्री मूनिस इलाही ने सिंगापुर स्थित एक कम्पनी से 33 करोड़ डॉलर निवेश करने के लिए सम्पर्क किया।

एशिया, लातिन अमरीका, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, यूरोप, कोई भी पण्डोरा पेपर्स से बच नहीं पाया। ये बात भी ठीक है कि पण्डोरा पेपर्स में नाम आने भर से कोई अपराधी साबित नहीं हो जाता। हाँ, उसकी सम्पत्ति शक के दायरे में जरूर आती है। क्योंकि पूँजीवादी व्यवस्था सम्पत्ति की रक्षक होती है। उसे निजी सम्पत्ति से कोई एतराज नहीं। पूँजीवादी व्यवस्था में संविधान और कानून के हिसाब से सम्पत्ति के ऊपर टैक्स देना अनिवार्य है। दलाल किस्म के पूँजीपति इसी में हेराफेरी करते हैं। वे कानूनों का उल्लंघन करके या वकीलों की मदद से बारीकियों का फायदा उठाकर टैक्स से बचने में कामयाब हो जाते हैं। पण्डोरा पेपर्स में नाम आने पर भी ज्यादातर सेलिब्रिटीज, नेता और अफसरों ने किसी भी तरह की टिप्पणी से इनकार किया है। उनके वकील ही प्रवक्ता बने हुए हैं। वे कह रहे हैं कि हमारा क्लाइण्ट निर्दोष है, उसने फलाँ–फलाँ कानून के हिसाब से अपनी सम्पत्ति को विदेश में सुरक्षित किया है। भारत रत्न सचिन तेन्दुलकर का नाम पनामा पेपर्स में भी था और अब पण्डोरा पेपर्स में भी है। उनके वकील भी उन्हें बेकसूर बता रहे हैं।

पण्डोरा पेपर्स में भारत के तीन सौ से ज्यादा लोग शामिल हैं। जिनमें सचिन तेन्दुलकर, जैकी श्रॉफ, नीरा राडिया, अनिल अम्बानी, विनोद अडानी और सतीश शर्मा जैसे नाम प्रमुख हैं।

अनिल अम्बानी भारत में दिवालिया घोषित हैं और विदेश में 1.3 अरब डॉलर की कम्पनियाँ चला रहे हैं। यानी कि यहाँ उनकी कर्ज चुकाने की हैसियत नहीं और विदेशों में वे अरबों के मालिक हैं। इसीलिए देश में दिवालिया घोषित पूँजीपति विदेशों में जाकर अपने अड्डे जमाते हैं।

एक आम नागरिक इससे कैसे प्रभावित होता है?

देश में पैदा हुई पूँजी को चोरी छिपे देश से बाहर ले जाने के अर्थव्यवस्था पर बहुत व्यापक और गहरे प्रभाव पड़ते हैं।  उदाहरण के लिए, पिछले दिनों लोगों ने अपनी बचत का पैसा भवन निर्माण कम्पनी ईरीओ (आईआरईओ) में निवेश किया। इस उम्मीद से कि एक दिन उन्हें अपना फ्लैट मिलेगा। एक्सोन कैपिटल और चिल्ड्रन्स फण्ड फाउण्डेशन जैसी संस्थाओं ने अरबों रुपये प्रोजेक्ट में झोंक दिये। फिर भी ईरीओ घाटे में रही। 2018–19 में इसका घाटा पाँच अरब रुपये था। लेकिन इसके मालिक ललित गोयल बीजेपी नेता सुधांशु मित्तल के साले हैं। मिस्टर गोयल ने पाँच अरब रुपये से ज्यादा की सम्पत्ति चार कम्पनियों के माध्यम से विदेशों में चोरी छिपे निवेश कर रखी है। इनका पसन्दीदा टैक्स हैवन है–– ब्रिटिश वर्जिन आइलैण्ड। पण्डोरा पेपर्स में मिले दस्तावेजों के हिसाब से इनका रिहाइशी पता है–– मैरिना बे रेसिडेन्सीज, 18 मैरिना, बुलेवार्ड, 45.08, सिंगापुर। इस तरह एक पूँजीपति की मुनाफे की सनक से कम्पनी दिवालिया घोषित हुई। एक तो लोगों की बचत डूब गयी, दूसरा, कोर्ट–कचहरी के चक्कर में लोगों का वक्त और पैसा बर्बाद हुआ, सो अलग। सरकार को टैक्स का चूना भी लगा। कम्पनी में काम कर रहे लोगों की नौकरी छूट गयी। कुल मिलाकर इसने व्यवस्था के संकट को और बढ़ा दिया।

अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार इस तरह की सम्पत्ति का अनुमान लगाया गया है। ऐसी अवैध सम्पत्ति 6 खरब डॉलर से लेकर 32 खरब डॉलर तक हो सकती है। इससे दुनियाभर की सरकारों को टैक्स में छह सौ अरब डॉलर का नुकसान होता है। अमरीका और चीन की जीडीपी मिलकर भी 32 खरब डॉलर नहीं हैं। इससे आप अन्दाजा लगा सकते हैं कि दुनियाभर के अमीरों ने कितनी भारी तादाद में सम्पत्ति को चोरी छिपे जमा कर रखी है।

सरकारों को चूना लगाने वाले अब तक बचे हुए क्यों हैं?

वे अब तक बचे हुए हैं क्योंकि वे खुद नेता हैं, मंत्री हैं या रसूखदार लोग हैं। इसमें शामिल सभी लोग पूँजीवादी व्यवस्था का हिस्सा हैं। पूँजीवादी व्यवस्था असमानता के लिए कुख्यात है। जिन देशों में यह व्यवस्था लागू हुई वहाँ आर्थिक गैर बराबरी दिन दूनी रात चैगुनी बढ़ी। दुनियाभर में एक तरफ अरबपतियों की संख्या बढ़ रही है दूसरी ओर भुखमरी, कंगाली और बेरोजगारी भी अपनी चरम सीमाओं को पार कर रही हैं। ऐसे में वे खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं। इसलिए सुरक्षित ठिकानों में पनाह ढूँढते हैं। असल में जिस धन–दौलत का इस्तेमाल इस धरती से भुखमरी, बेरोजगारी, अशिक्षा, कुपोषण, और गरीबी मिटाने के लिए होना चाहिए था, उसका बहुत बड़ा हिस्सा चन्द अमीर घराने तिजोरियों में रखे बैठे हैं। ऐसे अपराधियों को जिन्हें जेल में ठूँस देना चाहिए उनसे वे खुद गलबाँही करते हैं। उनसे विदेश में रुपये भेजने की तरकीब पूछते हैं। आपस में सब मौसेरे भाई हैं। इसलिए बचे हुए हैं।

पण्डोरा पेपर्स ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि दुनिया के पूँजीपति एक हैं। मानो वे आह्वान कर रहे हैं–– दुनिया के अमीरो एक हो जाओ। तुम्हारे पास लूटने के लिए यह धरती है। अपनी तिजोरियाँ भर लो और इसे नरक बना दो। नकारात्मक अर्थ में ही सही यह कार्ल मार्क्स के उस आह्वान की याद दिलाती है, जिसमें उन्होंने कहा था कि दुनिया के मजदूरों एक हो। जब तक दुनिया के मजदूर एकजुट नहीं होते और पूँजीपतियों के शोषण और लूट के खिलाफ लड़ते नहीं, तब तक यह सब जारी रहेगा और दुनिया को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।

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