नवम्बर 2021, अंक 39 में प्रकाशित

जाल–ए–दुनिया1 की बदहाली-- इस तालिब–ए–दुनिया2 का दस्तूर बदलना होगा

 जाहिर न था नहीं सही लेकिन जुहूर था

कुछ क्यूँ न था जहान में कुछ तो जरूर था।

                      –– नातिक गुलावठी

चारों तरफ अजीब से खौफ का मंजर है। रोजी–रोटी की तलाश में दर–ब–दर की ठोकर, फरेब का बोलबाला, मेहनतकशों की बदहाली और मुनाफाखोरों की मौज–ए–बहाराँ। हुक्मराँ ने अपना लक्ष्य तय कर लिया है। उसकी निगाह बाज सी तेज और दिमाग लोमड़ी सा शातिर है। उसका लक्ष्य मुनाफाखोरों, सट्टेबाजों, जालसाजों और नराधम खून के प्यासे भेड़ियों की हिफाजत करना है। वह इतना चालाक है कि अपना घृणित मंसूबा आवाम के बीच उजागर नहीं होने देता। वह दिन प्रतिदिन खुद को आवाम का सबसे बड़ा हितैशी साबित करने की जुगत में अपने प्रचार माध्यम को पूरी ताकत के साथ लगाये रखता है। वह चाहता है कि ये तालिब–ए–दुनिया यूँ ही चलती रहे। मुनाफा मेहनतकश पर हुकूमत करता रहे। इस ख्याली पुलाव को वह रोज पकाता है। सच्चाई पर पर्दा डालने की भरसक कोशिश करता रहता है, फिर भी मुनाफाखोरों के चमचमाते और मेहनतकशों के पीड़ादायक जीवन की सच्चाई हर रोज उजागर हो जाती है। आवाम इस भेदभाव, असामनता और लाचारी को हर रोज अपनी जिन्दगी में ढो रहा है।

हुक्मराँ अपनी एकतरफा बात आवाम पर थोपने से नहीं हिचकिचाता क्योंकि इसके राज में सवाल करना गुनाह करार दिया गया है। अब आवाम का सवाल करना तो लाजिम है क्योंकि हुक्मराँ ने सरसों के तेल के दाम में 39 फीसदी और खाद्य तेलों के दामों में 52 फीसदी तक औसत वृद्धि कर दी है। आवाम की जेब खाली हो रही है और हुक्मराँ “अमृत महोत्सव” मनाने में मद मस्त है। इनसान खर्च करने के लायक तभी होता है जब उसकी जेब मे रुपया हो और रुपया रोजी–रोजगार करने से आता है। इस बात में भी हुक्मराँ ने अपना जनहितैशी होने का ढोंग करने मे कोई कोर–कसर बाकी नहीं छोड़ी और हर साल लगभग 2 करोड़ रोजगार देने का वायदा किया। 2 करोड़ रोजगार मिलना तो दूर देशभर में केवल जुलाई महीने के अन्दर ही लगभग 32 लाख लोग अपने रोजी–रोजगार से हाथ धो बैठे। अब इन लोगों के और इनके परिवार वालों के भोजन, चिकित्सा, शिक्षा आादि जैसी बुनियादी सुविधाओं की व्यवस्था कौन करें?

मेहनतकश आवाम को “गरीब कल्याण योजना” के अन्तर्गत किलो–दो–किलो अनाज, चावल देकर आवाम का मजाक उड़ाना है। यह सब प्रचार के माध्यम से खुद का महिमामण्डन करने से अधिक और कुछ नहीं। आनलाइन शिक्षा के नाम पर बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में करीब 15 लाख से अधिक स्कूल बन्द पड़े हैं, जिससे करीब 28.6 करोड़ बच्चों की शिक्षा प्रभावित हो रही है और देश में बस 24 फीसदी छात्रों के पास ही इण्टरनेट सुविधा उपलब्ध है। ऐसे वक्त में प्रतिदिन की दिहाड़ी पर अपना गुजारा करने वाले मेहनतकश अपने बच्चों की पढ़ाई कराने के लिए महँगें दामों वालों उच्च तकनीकी सुविधायुक्त मोबाइल फोन कैसे खरीदें? उन्हें मोबाइल और रोटी के बीच चुनाव का सवाल दिन–रात सताता रहता है और अन्त में रोटी का चुनाव प्राथमिकता पर आ जाता है क्योंकि यह जिन्दा रहने की अनिवार्य शर्त है। बच्चों का शिक्षा से दूर–दराज तक कोई वास्ता नहीं रहता है। इसी तरह मेहनतकशों के बच्चे गलियों में घूमते हैं या फिर अवारा पशुओं, जानवरों को अपने खेल और मनोरजंन का सहारा बना लेते हैं। हुक्मराँ एक ओलम्पिक मैच के पूरे शो को देखता है और मैच खत्म होने के ठीक एक सेकेण्ड बाद ट्वीट करके खिलाड़ियों को उत्साहवर्धन और हार्दिक बधाईयों के सन्देश देता है। हुक्मराँ की तारीफ में “चैमासे के मेंढक” बोलने लगते है कि यह ट्वीट “बेहतर भारत की तरफ एक इशारा है” और इससे पूरे देश का भविष्य उज्जवल होगा। क्या हुक्मराँ के द्वारा एक शो को पूरा देखने और ट्वीट  करने भर से देश के बच्चों और युवाओं का भविश्य उज्जवल होगा? असल सवाल यह है कि हुक्मराँ ने खेल–कूद में रुचि रखने वाले बच्चों और युवाओं के लिए क्या इन्तजाम किये हैं? 31 जनवरी 2018 को ‘खेलो–इण्डिया आयोजन’ में की गयी लम्बी–चैड़ी घोषणाओं की सच्चाई यह है कि मार्च 2021 में राज्य सभा की स्थायी समिति ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया कि ‘खेलो–इण्डिया आयोजन’ के तहत 100 राष्ट्रीय खेल एकेडमी बननी थी, जिनमें से केवल 45 ही बनी। इसके अलावा 1000 छोटी–छोटी खेल एकेडमी बनायी जानी थी जिनमें से केवल 106 ही बनीं, इनमें से भी 60 ऐसी हैं जो पहले से ही बनी थी जिनकी केवल डेंटिंग–पेंटिंग की गयी। असल में जमीनी काम बहुत कम करना और नाम बदलकर निजीकरण करना इस हुक्मराँ की पुरानी आदत का हिस्सा है। क्या ये 45 खेल केन्द्र 130 करोड़ की आबादी वाले देश में खेल कौशल को बढ़ाने के लिए पर्याप्त है?

दरअसल, मौजूदा दुनिया का दस्तूर ही कुछ ऐसा है कि इसमें चन्द घरानों की खुशी को ध्यान में रखकर ही फैसले लिए जाते है जिसका एक उदाहरण यह है कि पिछले साल भारतीय अरबपतियों की कुल संख्या 102 थी, जो अब बढ़कर 140 हो गयी। उनकी कुल सम्पत्ति लगभग दोगुनी होकर 596 अरब डॉलर हो गयी, जो कई राज्यों की कुल जीडीपी से कई गुना अधिक है। भारत अब संयुक्त राज्य अमरीका और चीन के बाद दुनिया में अरबपतियों की संख्या वाली जमात में शामिल हो रहा है। इसी को हुक्मराँ विकास और समृद्धि का नाम देते है। क्या यह सचमुच पूरे देश की समृद्धि है या फिर चन्द घरानों की मौज है? एक–एक कर रोजी–रोटी, शिक्षा, चिकित्सा जैसी तमाम बुनियादी जरूरतें मुनाफे की भेंट चढ़ चुकी हैं। जिनका जिक्र मुख्य धारा के प्रचार तंत्र से गायब है। मुनाफे की रफ्तार इतनी अधिक है कि औसतन 1.13 लाख रुपये प्रति सेकण्ड के हिसाब से अरबपति अपनी सम्पत्ति बढ़ा रहे हैं। दरअसल दौलत का सकेन्द्रण लगातार तेज गति से बढ़ता जा रहा है और व्यवस्था अपने अन्तिम साँस गिन रही है। इसको हर रोज एक नयी साँस दिलाने के लिए मुनाफाखोरों द्वारा नये–नये कलाकार रंगमंच पर उतारे जा रहे हैं, जिनमें से एक कलाकार अपनी कलाकारी दुनिया भर में दिखाता घूम रहा है। उसका नाम और उसकी कूपमण्डूकता जग–जाहिर है।

मौजूदा व्यवस्था, बहुसंख्यक मेहनतकश अवाम के हक–हकूक में फैसले कभी नहीं ले सकती। यह व्यवस्था पूर्ण रूप से मुनाफे की जकड में है। मुनाफाखोरी इसके लिए प्राथमिकता की चीज है। बहुसंख्यक आबादी के हिस्से गरीबी, लाचारी, बेरोजगारी, अशिक्षा, अज्ञानता जैसी मुश्किलें ही आती हैं। इस बन्धन का तोड़ा जाना बेहद लाजिम है क्योंकि मुनाफापरस्त इस दुनिया में अवाम की बिल्कुल भी भलाई नहीं है। इसलिए हम सब मिल–जुलकर अपनी चेतना के स्तर को उन्नत करें और देश–दुनिया के स्तर पर चल रही समस्याओं की सच्चाई से वैज्ञानिकता के साथ रूबरू हों। तभी इस तालिब–ए–दुनिया की जगह पर एक खूबसूरत दुनिया की रचना सम्भव है।

1– जाल–ए–दुनिया –– बूढ़ी दुनिया

2– तालिब–ए–दुनिया –– लालची दुनिया

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