मई 2024, अंक 45 में प्रकाशित

वह शख्स जिसके नक्शेकदम पर चलता है नेतन्याहू

––क्रिस बैम्बेरी,

अगर कोई एक नेता है जिसका वर्तमान इजरायली प्रधानमंत्री, बेंजामिन नेतन्याहू अनुसरण करता है, तो वह है जीव जाबोटिंस्की, जिसने संशोधनवादी यहूदीवाद की स्थापना की जो नेतन्याहू की लिकुड पार्टी का वैचारिक आधार है।

इजराइल में 2005 से ही, जाबोटिंस्की को सम्मानित करने के लिए (हिब्रू कैलेंडर के अनुसार, 29 तम्मुज, 4 अगस्त 1940 को उसकी मृत्यु का दिन) एक स्मृति दिवस मनाया जाता है। 2017 के उस समारोह में नेतन्याहू ने कहा––

“मेरे पास जाबोटिंस्की की रचनाएँ हैं, और मैं उन्हें अक्सर पढ़ता हूँ।” उसने अपने श्रोताओं को याद दिलाया कि वह अपने कार्यालय में उस यहूदी नेता की तलवार रखता है।

2023 की स्मृति सभा में नेतन्याहू ने कहा–– “जाबोटिंस्की के लेखन में “द आयरन वाल” को शामिल किये जाने के सौ साल बाद भी हम इन सिद्धान्तों को सफलतापूर्वक लागू करना जारी रखे हुए हैं। मैं ‘जारी’ कह रहा हूँ क्योंकि अपने दुश्मनों के खिलाफ एक शक्तिशाली लोहे की दीवार की तरह खड़े होने की आवश्यकता को इजराइल की हर सरकार ने अपनाया है, चाहे वह दक्षिणपंथी हो या वामपंथी। हम उन लोगों के खिलाफ रक्षात्मक और आक्रामक हथियार विकसित कर रहे हैं जो हमें नुकसान पहुँचाना चाहते हैं, और मैं आपको निश्चित रूप से बता सकता हूँ कि वे हमारे बीच मौजूद इस या उस खेमे के बीच अन्तर नहीं करते हैं।

“जो कोई भी हमें एक मोर्चे पर, या एक से अधिक मोर्चों पर नुकसान पहुँचाने की कोशिश करता है, उसे यह जान लेना चाहिए कि उन्हें इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी।

“हम परमाणु शस्त्रागार विकसित करने के ईरान के प्रयासों का दृढ़ता से विरोध करना जारी रखेंगे, और हम अपनी सीमाओं पर –– गाजा में, जूडिया और सामरिया में, सीरिया और लेबनान में आतंकवादी मोर्चे विकसित करने के उसके प्रयासों के खिलाफ दृढ़ता से खड़े रहेंगे।”

यह बयान इजरायली कब्जे वाले वेस्ट बैंक में बढ़ते तनाव के समय आया था, जहाँ इजरायल ने उस वर्ष 300 से अधिक फिलिस्तीनियों को मार दिया था, जो कि दक्षिणी इजराइल पर हमास के 7 अक्टूबर के हमले से बहुत पहले ही शुरू हुआ था। ‘आयरन वाल’, जिसका जिक्र नेतन्याहू ने किया है, जाबोटिंस्की का 1923 का निबन्ध है जिसमें उसने तर्क दिया था कि एक यहूदी राज्य केवल भारी सैन्य ताकत की स्थिति से ही बनाया जा सकता है और हथियार के दम पर ही फिलिस्तीनियों और अरब राज्यों के लिए यह साबित किया जा सकता है कि यहूदीवाद को पराजित करना असम्भव है। आज यह उस गठबंधन सरकार की अवस्थिति को रेखांकित करता है जिसके तहत नेतन्याहू दक्षिणी इजराइल पर हमास के 7 अक्टूबर के हमले का जवाब देने में नेतृत्व कर रहा है।

चरम दक्षिणपंथी यहूदीवाद

संशोधनवादी यहूदीवाद की स्थापना जाबोटिंस्की द्वारा की गयी थी, जब उसने इस विश्वास को खारिज कर दिया था कि ब्रिटेन यहूदीवादियों को एक यहूदी राज्य प्रदान करेगा, और इसके बजाय वह एक यहूदी राज्य और सेना की स्थापना के लिए उठ खड़ा हुआ था। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान उसने यहूदी सेना की तीन बटालियनों की स्थापना की थी, जो फिलिस्तीन के बादशाह के बन्दूकधारियों के तौर पर ब्रिटिश सेना का हिस्सा थी और जो फिलिस्तीन और सीरिया पर जनरल एलनबी की विजय के उत्तरार्ध में लड़ी थी। 1920 में अंग्रेजों ने उनको भंग कर दिया क्योंकि वे प्रभावी रूप से अरबों के साथ लड़ने वाले यहूदी मिलिशिया बन गये थे। वे हगनाह की रीढ़ बन गये, जो 1948 में फिलिस्तीनियों को हिंसक तरीके से विस्थापित करने (नकबा) वाला प्रमुख यहूदी सशस्त्र समूह था।

वह चाहता था कि सभी यूरोपीय यहूदी फिलिस्तीन में चले जायें और यहूदी राज्य का विस्तार जॉर्डन नदी के दोनों किनारों तक हो जाये। इजरायली इतिहासकार बेनी मॉरिस लिखते हैं––

1925 में उसने संशोधनवादी यहूदी पार्टी की स्थापना की (यह नाम इसलिए दिया गया क्योंकि इसने विशेष रूप से अधिकारसम्पन्न फिलिस्तीन में ट्रांसजॉर्डन (जॉर्डन) को फिर से शामिल करने के लिए जनादेश की शर्तों को ‘संशोधित’ करने की माँग की थी)। उसने पार्टी के युवा संगठन, बीतर की भी स्थापना की, सैन्यवादी होना जिसकी विशेषता थी। कुछ लोग उसे फासीवादी कह सकते हैं, वेष–भूसा (गहरे भूरे रंग की वर्दी), गतिविधियाँ (परेड ग्राउंड ड्रिल और हथियारों का अभ्यास), नारे और विचारधारा (‘आग और खून में जूडिया का पुनर्जन्म होगा’) और सांगठनिक ढाँचा (एक कठोर पदानुक्रम)। जाबोटिंस्की ने मुसोलिनी और उसके आन्दोलन की प्रशंसा की और बार–बार रोम से सम्बद्धता और सहायता की माँग की।

जाबोटिंस्की ने अपने विश्वास का सार प्रस्तुत करते हुए बताया––

स्वर्ग में कोई न्याय, कोई कानून और कोई ईश्वर नहीं है, केवल एक ही कानून है जो सब कुछ तय करता है और उसका स्थान लेता है–– यहूदी बसावट।

जाबोटिंस्की का मानना था कि अरब यहूदी राज्य के निर्माण के कट्टर शत्रु हैं और तदनुसार, उसने निष्कर्ष निकाला––

हम फिलिस्तीन के अरबों को या फिलिस्तीन के बाहर के अरबों को कोई मुआवजा देने का वादा नहीं कर सकते। कोई भी स्वैच्छिक समझौता दुर्लभ है। और इसलिए जो लोग अरबों के साथ समझौते को यहूदीवाद की अपरिहार्य शर्त मानते हैं, उन्हें आज खुद स्वीकार करना होगा कि यह स्थिति हासिल नहीं की जा सकती है और इसलिए हमें यहूदीवाद को छोड़ देना पड़ेगा। हमें या तो अपने बसावट के प्रयासों को स्थगित कर देना पड़ेगा या मूल निवासियों की मनोदशा पर ध्यान दिये बिना उन्हें जारी रखना पड़ेगा। इस प्रकार यहूदी बसावट एक ऐसे बल प्रयोग के संरक्षण में ही विकसित हो सकती है जो स्थानीय आबादी पर निर्भर न हो, लोहे की दीवार के पीछे, जिसे तोड़ने में वे लाचार होंगे।

1923 में “द आयरन वाल” नामक अपने निबन्ध में, जाबोटिंस्की ने तर्क दिया था कि फिलिस्तीनी अरब जनता फिलिस्तीन में यहूदी बहुमत के लिए सहमत नहीं होगी और यह कि––

यहूदी उपनिवेशीकरण, यहाँ तक कि सबसे प्रतिबन्धित, को या तो समाप्त किया जाना चाहिए या मूल आबादी की इच्छा की अवहेलना करके किया जाना चाहिए। इसलिए, यह उपनिवेशीकरण स्थानीय आबादी से स्वतंत्र किसी शक्ति के संरक्षण में ही जारी और विकसित हो सकता है–– एक लोहे की दीवार जिसे मूल आबादी तोड़ नहीं सकती। यह कुल मिलाकर अरबों के प्रति हमारी नीति है। इसे किसी अन्य तरीके से निरूपित करना केवल पाखण्ड होगा।

फिर उसने यहूदी एजेंसी, शुरुआती यहूदी सरकार के प्रमुख चैम वीजमैन और डेविड बेन–गुरियन के साथ अपने मतभेदों को इस प्रकार समझाया–– “एक पक्ष यहूदी संगीनों की लोहे की दीवार को पसन्द करता है, दूसरा ब्रिटिश संगीनों की लोहे की दीवार का प्रस्ताव करता है–––”

वास्तव में, अप्रवासी यहूदियों को बसाये जाने और ब्रिटिश शासन के खिलाफ महान अरब विद्रोह के बाद, बेन–गुरियन भी 1936 तक, इसी तरह की सोच पर आ गया था––

दोनों ने महसूस किया कि अरब तब तक लड़ते रहेंगे जब तक उनके पास अपने देश पर यहूदियों के कब्जे को रोकने की कोई उम्मीद बरकरार रहेगी। और दोनों ने निष्कर्ष निकाला कि केवल अतुलनीय यहूदी सैन्य शक्ति ही अन्तत: अरबों को संघर्ष से निराश कर देगी और वे फिलिस्तीन में एक यहूदी राज्य की शर्त पर समझौता करने को राजी हो जायेंगे। बेन–गुरियन ने लोहे की दीवार की शब्दावली का उपयोग नहीं किया, लेकिन उसका विश्लेषण और निष्कर्ष वस्तुत: जाबोटिंस्की के समान ही थे।

1931 में, जाबोटिंस्की ने इरगुन (इजरायल की भूमि में राष्ट्रीय सैन्य संगठन) की स्थापना की, जो कि अधिक मुख्यधारा वाले हगनाह से अलग एक सशस्त्र मिलिशिया था, जिसे जाबोटिंस्की ने उपनिवेशवाद का विरोध करने वाले ब्रिटिश अधिकारियों और फिलिस्तीनियों दोनों से लड़नेवाले के रूप में देखा। 1937 में, यह यिशुव (फिलिस्तीन में बसे यहूदी समुदाय) की रक्षा से आगे बढ़कर फिलिस्तीनियों पर आतंकवादी हमलों की ओर बढ़ गया।

दिसम्बर 1937 में, इरगुन के एक सदस्य ने यरूशलेम के एक बाजार में हथगोला फेंका, जिसमें दर्जनों लोग मारे गये और घायल हो गये। मार्च 1938 में हाइफा में, इरगुन और लेही (स्टर्न गिरोह) के सदस्यों ने बाजार में हथगोले फेंके, जिसमें अठारह लोग मारे गये और 38 घायल हो गये। बाद में उसी वर्ष, फिर से हाइफा में, इरगुन ने बाजार में फँसे हुए वाहनों में विस्फोट किया, जिससे 21 लोग मारे गये और 52 घायल हुए।

सभी अरब देशों के राजनीतिक जीवन में हिंसा सर्वव्यापी है। विदेशी और घरेलू, अरब और गैर–अरब दोनों तरह के विरोधियों से निपटने का यह बुनियादी तरीका है।

नेतन्याहू की निगाह में फिलिस्तीनियों के लिए आत्मनिर्णय का कोई अधिकार नहीं था, और उनके साथ कोई समझौता नहीं हो सकता था, क्योंकि वे इजराइल के उन्मूलन पर उतारू थे। ‘द वाल’ शीर्षक वाले एक अध्याय में, उसका तर्क है कि इजराइल को गोलान हाइट्स में उच्च भूमि पर और जिसे वह जूडिया और सामरिया, यानी वेस्ट बैंक कहता है–– वहाँ तक अपने सैन्य कब्जे का विस्तार करना चाहिए और जॉर्डन नदी के पश्चिम के लगभग सभी क्षेत्रों पर सैन्य नियंत्रण रखना चाहिए।

उसका निष्कर्ष एक–राज्य समाधान है, नदी से समुद्र तक––

इस भूमि को दो अस्थिर, असुरक्षित राष्ट्रों में विभाजित करना, जिसको बचा पाना असम्भव है उसकी रक्षा करने का प्रयास करना, आपदा को आमंत्रित करना है। जूडिया और सामरिया को इजराइल से अलग करने का अर्थ है इजराइल को विभाजित करना।

ओस्लो समझौते के जवाब में उसने 5 सितम्बर 1993 को न्यूयॉर्क टाइम्स के सम्पादकीय पन्ने पर ‘पीस इन आवर टाइम’ शीर्षक से एक लेख लिखा, जिसमें चेकोस्लोवाकिया के विभाजन पर हिटलर के साथ सहमति के बाद सितम्बर 1938 में म्यूनिख से लौटने पर नेविल चेम्बरलेन के दावे का सन्दर्भ दिया गया था। इसमें उसने वेस्ट बैंक में फिलिस्तीनी राज्य के पूरे सुझाव को यह कहते हुए खारिज कर दिया था–– वेस्ट बैंक पर ‘एक पीएलओ’ राज्य यहूदी राज्य द्वारा छह–दिवसीय युद्ध में जीती गयी ज्यूडियाई और सामेरियाई पहाड़ों की रक्षात्मक दीवार को उससे छीन लेगा, जिससे फिर यह एक ऐसा देश बन जायेगा जो दस मील की चौड़ाई तक पूरब से आनेवाली हमलावर सेनाओं के लिए खुला होगा।” उसने आगे कहा कि पीएलओ उस राज्य का उपयोग एक खण्डित यहूदी राज्य के खिलाफ अपने सहयोगी अरबों के हमले को भड़काने के लिए करेगा। उसने यह भी जोड़ा कि दो दशकों तक यासिर अराफात ने इस योजना का समर्थन किया है।

1996 में नेतन्याहू ने साफ–साफ कहा–– “शक्तिशाली होना शान्ति के लिए एक शर्त है। केवल एक मजबूत निवारक बुनावट ही शान्ति को संरक्षित और स्थिर कर सकती है।” अपनी पहली चुनावी जीत के बाद, उसने घोषणा की–– “सरकार एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना का विरोध करेगी और जॉर्डन के पश्चिम में इजराइल की भूमि के कुछ हिस्सों पर अरब आबादी के ‘वापसी के अधिकार’ का विरोध करेगी।” उसने कहा कि हमारी सरकार “बसावट उद्यम को मजबूत करने और विकसित करने के लिए कार्य करेगी,” और यह कि “इजरायल की राजधानी, एकजुट यरूशलम––– हमेशा इजरायली सम्प्रभुता के अधीन रहेगी।”

आज, नेतन्याहू इजराइल पर सबसे लम्बे समय तक राज करने वाला प्रधानमंत्री है। वह पहली बार 1996 में सत्ता में आया और एहुद बराक द्वारा उसकी जगह लिये जाने से पहले उसने तीन साल का कार्यकाल पूरा किया। वह 2009 में सत्ता में लौटा और फिर पिछले पन्द्रह वर्षों में से चौदह वर्षों तक राज कर रहा है।

नेतन्याहू और उसकी सरकार फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना का विरोध करते हैं, कब्जे वाले फिलिस्तीनी क्षेत्रों में अवैध यहूदी बस्ती के विस्तार का समर्थन करते हैं, वेस्ट बैंक पर कब्जा करना चाहते हैं, और एक कानून पेश किया है जो यहूदी राज्य में मूल फिलिस्तीनी अल्पसंख्यकों को समानता से वंचित करता है। सबसे बढ़कर, वे चाहते हैं कि फिलिस्तीनी स्वीकार करें कि उन्हें ऐतिहासिक हार का सामना करना पड़ा है और फिलिस्तीन पर यहूदीवादी नियंत्रण को स्वीकार करें। शान्ति केवल पूर्ण पराजय के बाद ही हो सकती है।

यह अक्सर कहा जाता है कि नेतन्याहू को गाजा में मौजूदा युद्ध जारी रखने की जरूरत है, क्योंकि अगर यह समाप्त होता है, तो उसका राजनीतिक कैरियर खत्म हो जाएगा। इस बात में सच्चाई है, लेकिन यह एकमात्र कारण नहीं है।

7 अक्टूबर को, इजराइल ने नेतन्याहू और उसके कैबिनेट सहयोगियों की सबसे प्रिय चीज–– सैन्य प्रतिरोध पर पकड़ खो दी। अचानक इजराइल असुरक्षित दिखने लगा। उसकी सरकार और आईडीएफ कमांडरों की सहज प्रवृत्ति किसी को भी उस हमले को दोहराने से रोकने के लिए गाजा के लोगों से अधिकतम प्रतिशोध लेना है। यही आज के इजराइल में ‘लोहे की दीवार’ है। लेकिन 30,000 से अधिक लोगों, जिनमें अधिकतर नागरिक और एक तिहाई बच्चे शामिल हैं, उनकी हत्या करने और गाजा को तबाह करने के बावजूद, नेतन्याहू हमास का ‘सफाया’ करने की अपनी प्रतिज्ञा में विफल होता देखा गया हैय हमास अभी भी खड़ा है, अभी भी प्रतिरोध कर रहा है।

अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर, गाजा पर इजरायली हमले ने नेतन्याहू और उसके लगुए–भगुओं के खिलाफ घृणा की लहर पैदा कर दी है, लेकिन इजराइल में नहीं, जहाँ सर्वेक्षण और स्थानीय चुनाव परिणाम लिकुड और उसके सहयोगियों के पक्ष में एक बड़ा बहुमत दिखाते हैं। नेतन्याहू और उसके समर्थक युद्ध जारी रखना चाहते हैं, और वे हिजबुल्लाह से मुकाबला करके इस युद्ध को और तेज करने पर विचार कर रहे हैं, इस विश्वास के साथ कि वे अपने प्रतिरोध को दुबारा बहाल करने के लिए एक मायावी जीत हासिल कर सकते हैं। नि:सन्देह, यह एक उन्मादी दिवास्वप्न हैय हिजबुल्लाह हमास की तुलना में कहीं अधिक मजबूत और बेहतर हथियारों से लैस है, उसके पास तैयारी करने का समय है और, 2006 में उसने आईडीएफ को बुरी तरह मात दी थी।

नेतन्याहू ‘आयरन वाल’ में अपने विश्वास से प्रेरित है। यहूदीवाद के केन्द्र में उसका यही तर्क है। लेकिन दीवार जर्जर हो गयी है। इजराइल अपराजेय नहीं दीखता। इतिहास की घड़ी यहूदीवाद के अन्त के लिए टिक–टिक कर रही है।

(क्रिस बैम्बेरी एक लेखक, राजनीतिक कार्यकर्ता और टिप्पणीकार हैं, और स्कॉटलैंड में कट्टरपंथी वामपंथी गठबंधन, राइज के समर्थक हैं। उनकी पुस्तकों में ए पीपल्स हिस्ट्री ऑफ स्कॉटलैंड और द सेकेंड वर्ल्ड वॉर : ए मार्क्सिस्ट एनालिसिस शामिल हैं। मन्थली रिव्यू के प्रति आभार।)

अनुवाद––—दिगम्बर

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