जनवरी 2021, अंक 37 में प्रकाशित

हाथरस गैंगरेप की पाशविक बर्बरता को सत्ता का साथ

उत्तर प्रदेश के हाथरस में हुए बलात्कार और हत्या के मामले में सीबीआई ने चार्जशीट दायर कर दी है। सीबीआई ने चारों आरोपियों पर सामूहिक बलात्कार और हत्या की धाराएँ लगायी हैं। इससे उत्तर प्रदेश प्रशासन का सच दबाने और आरोपियों को बचाने का प्रयास असफल हो गया है।

14 सितम्बर की सुबह हाथरस के बूलगढ़ी गाँव में 19 साल की दलित लड़की के साथ गाँव के ही ठाकुर जाति के चार लड़कों ने सामूहिक बलात्कार और जान से मारने की कोशिश की। उस पाशविक दरिन्दगी को याद करने पर रूह काप उठती है। उसकी रीढ़ की हड्डी तोड़ दी गयी थी, जीभ और गले में गम्भीर चोटें आयी थीं। पीड़िता वाल्मीकि जाति से थी। वह सुबह अपने भाई और माँ के साथ खेत पर काम करने गयी थी। कुछ देर बाद भाई चारा लेकर घर आ गया, जबकि पीड़िता और उसकी माँ खेत में ही काम कर रही थीं। कुछ देर बाद जब माँ का काम से ध्यान हटा तो देखा पीड़िता गायब थी। जब उसे ढूँढा गया तो वह पास के खेत में अर्धनग्न और बेहोशी की हालत में मिली। पीड़िता का भाई और माँ उसे लेकर चन्दपा पुलिस थाने गये जहाँ रिपोर्ट दर्ज करने को लेकर पुलिस वाले ना नुकुर करने लगे। ज्यादा गम्भीर हालत देखकर साधारण रिपोर्ट दर्ज कर ली, लेकिन बलात्कार होने की बात को टाल दिया गया क्योंकि आरोपी ठाकुर जाति के दबंग थे।

परिवार के सदस्यों ने पीड़िता को जिला अस्पताल में भर्ती कराया। हालत बिगड़ने के चलते वहाँ से उसे एएमयू के अस्पताल के लिए रेफर कर दिया गया। वहाँ पीड़िता ने बयान दिया कि “मेरे साथ जबरदस्ती की गयी है।” डॉक्टरों की जो टीम पीड़िता के इलाज में लगी हुई थी, उनके अनुसार मेडिकल रिपोर्ट में पीड़िता का बयान सही साबित हुआ। उसके बाद भी उत्तर प्रदेश पुलिस रेप से इनकार करती रही और आरोपियों पर कोई गम्भीर कानूनी कार्रवाई नहीं की गयी। पीड़िता की मेडिकल टेस्ट कराने में देरी की गयी जिससे सबूतों को मिटाया जा सके।

घटना के 11 दिन बाद पीड़िता के टेस्ट सैम्पल लिये गये। फोरेंसिक रिपोर्ट में कोई सीमेन नहीं आने के बाद आला अधिकारियों ने आरोपियों को निर्दाेष साबित करने की कवायद शुरू कर दी। इसमें सबसे आगे यूपी पुलिस के एडीजी प्रशान्त कुमार रहे। उन्होंने दावा किया कि “फोरेंसिक रिपोर्ट में कोई सीमेन नहीं मिला है। इसलिए लड़की के साथ कोई रेप नहीं हुआ है।” एएमयू मेडिकल कॉलेज के चीफ मेडिकल ऑफिसर अजीम मलिक ने एडीजी के बयान के विरोध में कहा कि फोरेंसिक रिपोर्ट में सीमेन न मिलने का सबसे बड़ा कारण है कि सैम्पल घटना के 11 दिन बाद लिये गये थे। जबकि सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन के अनुसार सैम्पल अधिकतम 4 दिन के अन्दर लिये जाने चाहिए, तभी बलात्कार होने या न होने की पुष्टि हो सकती है। इसके आलावा सुप्रीम कोर्ट के अनुसार केवल सीमेन न मिलने के आधार पर यह तय नहीं किया जा सकता कि पीड़िता के साथ यह जघन्य अपराध नहीं हुआ है। उसके साथ जबरदस्ती और छेड़खानी करना भी बलात्कार की सीमा में ही आता है। पीड़िता की हालत में सुधार न होने के चलते उसे सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराया गया। वहाँ 29 सितम्बर को उसकी दर्दनाक मौत हो गयी।

उस परिवार की मनोदशा के बारे में हम शायद ही अन्दाजा लगा पायें जिनकी बेटी ने इस तरह दम तोड़ा हो। इसके बावजूद परिजनों को अपनी बेटी का मृत शरीर नहीं मिला। यूपी पुलिस से लाख मन्नतें करने के बावजूद परिवार को उसकी मृत बेटी का शरीर नहीं दिया गया। बेशर्मी और असंवेदनशीलता की सीमाओं को लाँघते हुए पुलिस ने परिजनों की गैर मौजूदगी में पीड़िता के मृत शरीर का अन्तिम संस्कार कर दिया। परिवार से अनुमति भी नहीं ली गयी, जबकि यूपी पुलिस के अधिकारी यह बयानबाजी करते रहे कि अन्तिम संस्कार परिजनों की अनुमति लेकर किया गया है। बाद में सुप्रीम कोर्ट में अपने बयान को बदलते हुए कहा कि हमने अन्तिम संस्कार कानून व्यवस्था की हालत को देखते हुए किया। कई ऐसी वीडियो वायरल हुर्इं जिनमें पुलिस अपने दल–बल के साथ परिजनों की अनुपस्थिति में पीड़िता का अन्तिम संस्कार करती हुई दिख रही है। आखिर योगी सरकार और उसका पुलिस महकमा इतनी हड़बड़ी में क्यों था ? कोई भी सामान्य व्यक्ति इस हड़बड़ी की वजह समझ सकता है कि योगी सरकार घटना के सभी सबूतों को मिटाना चाहती थी। क्या यूपी में दलितों और दमितों को इतना भी हक नहीं कि मरने के बाद उनका अन्तिम संस्कार परिवार के लोग कर सकंे ?  

पीड़ित परिवार को धमकाने और क्रूर आरोपियों को बचाने के लिए अभियान चलाये गये। 4 अक्टूबर रविवार के दिन बीजेपी नेता राजवीर सिंह पहलवान के घर पर आरोपियों के पक्ष में जातीय पंचायत की गयी। इस बैठक में चारों आरोपियों को बचाने की और पीड़ित परिवार के खिलाफ केस दर्ज करने की खुलेआम योजना बनायी गयी। इससे पहले भी गाँव बघाना में 10 गाँवों की दबंग जाति के लोगों द्वारा आरोपियों के पक्ष में बैठक आयोजित की जा चुकी थी।

बाराबंकी से बीजेपी नेता रंजीत श्रीवास्तव का आरोपियों के पक्ष में एक घिनौना बयान आया, जिसमें उन्होंने कहा कि “ऐसी लड़कियाँ गन्ने या बाजरे के खेत में ही क्यों मिलती हैं ? गेहूँ के खेत में क्यों नहीं मिलती हैं ? इसकी भी जाँच होनी चाहिए।” बलिया से बीजेपी विधायक सुरेन्द्र सिंह का भी बयान आया कि “रेप की घटनाएँ शासन की तलवार से नहीं रुक सकती हैं। बल्कि सभी माता–पिता को अपनी बेटियों को एक संस्कारी वातावरण में शालीन व्यवहार करने का तरीका सिखाना चाहिए।” बीजेपी नेता विनय कटियार ने अपने बयान में कहा कि हाथरस केस में कोई रेप नहीं हुआ है। योगी राज में कहीं कोई गड़बड़ी हो ही नहीं सकती। इन नेताओं ने खुलकर पीड़ित महिला और उसके परिजनों का चरित्र हनन किया और उनका मजाक उड़ाया। आरोपियों के पक्ष में बयानबाजी की, लेकिन बीजेपी पार्टी ने अपने इन नेताओं के खिलाफ कोई कार्रवाई न करके साफ कर दिया कि उसकी इन सब बातों में सहमति है। इससे मौजूदा सरकार और शासन कर रही पार्टी का महिला विरोधी और घोर जातिवादी चरित्र सबके सामने उजागर हो गया। फासीवादी सोच के लोग सत्ता पर काबिज हैं। जब तक ये सत्ता में रहेंगे, तब तक पीड़ित पक्ष को कभी न्याय नहीं मिल सकता।

बाद में, जेएनएमसीएच की एमएलसी रिपोर्ट के अनुसार यह बात स्पष्ट हो गयी है कि पीड़िता के साथ रेप हुआ था। उससे डीप पेनेट्रेशन और दुपट्टे से गला घोंटने के बारे में पता चला। इसके बावजूद पीड़ित परिवार को धमकाया गया। जिले के डीएम प्रवीण कुमार ने पीड़ित परिवार को धमकाते हुए कहा था कि ये मीडिया तो कुछ बाद चली जाएगी बाद में तो हमें ही यहाँ रहना है ? जब रक्षक ही भक्षक बने हुए हों तो आप न्याय की उम्मीद कैसे कर सकते हैं ?

इस पूरे प्रकरण में योगी सरकार और उसकी पुलिस का रवैया हमेशा आरोपियों को बचाने का रहा क्योंकि आरोपी ऊँची जाति से सम्बन्ध रखते हैं, जिनका सरकार और प्रशासन में दबदबा है। ऐसे समाज और राज मशीनरी में जनतांत्रिक मूल्यों की कोई जगह नहीं होती, जहाँ ऊँची जाति के लोग दलित बेटियों के साथ रेप करना अपना जन्मजात अधिकार मानते हैं। रेप का विरोध करने पर उनकी जीभ काट दी जाती है या रीढ़ की हड्डी तोड़ दी जाती है। ऐसे मामलों में इस देश की त्रासदी ही है कि इन्साफ पसन्द लोग भी अपने जातिवादी पूर्वाग्रहों के चलते चुप बैठ जाते हैं, जबकि उन्हें इस तरह के जघन्य अपराधों के खिलाफ एकजुटता दिखाने के लिए आगे आना चाहिए।

दलितों के साथ भयावह उत्पीड़न की मुख्य वजह उनकी कमजोर आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक हैसियत है। जमीनों के मालिक ज्यादातर सवर्ण और पिछड़े वर्ग की दबंग जातियों के लोग हैं। उत्पादन के अन्य साधनों के मालिक भी वे ही हैं। दलित जाति के लोग इन्हीं ऊँची जाति के लोगों के खेतों और उनके घरों में मजदूरी का काम करके गुजर–बसर करते हैं। उनकी राजनीतिक पहुँच भी नहीं होती। गाँव के प्रधान, क्षेत्रीय नेता, आला अधिकारी और पुलिस–दारोगा भी अमूमन इन्हीं ऊँची जातियों के होते हैं। इसी के चलते इन जातियों के लम्पट तत्व दलित बेटियों को अपना शिकार बनाकर आसानी से कानून से बच जाते हैं। दलित बेटियों को आये दिन ही ऊँची जातियों के लम्पट तत्वों द्वारा सताया जाता है। वे उनका रास्ता रोक लेते हैं, खेत या जंगल के रास्ते पर उनके साथ छेड़छाड़ करते हैं, उनके रंग–रूप और अंगों को लेकर भद्दी गाली देते हैं और उनके साथ अश्लील मजाक करते हैं। कई घटनाएँ तो ऐसी होती हैं जिनमें दलित महिला के साथ बदसलूकी उसके भाई, पति या परिवार के अन्य सदस्य के सामने ही की जाती है, फिर भी दलित परिवारों को मजबूरन चुप्पी साधनी पड़ती है। अगर कोई परिवार आवाज उठाता है तो उसके साथ मारपीट और अमानवीय व्यवहार किया जाता है और उन्हें मजदूरी पर काम नहीं दिया जाता है।

क्षेत्रीय पुलिस थानों में गरीब दलित–पीड़ित की रिपोर्ट आसानी से दर्ज नहीं की जाती। बल्कि कई बार तो उलटा उसे ही बन्धक बनाकर पीटा जाता है। जिले के आला अधिकारी भी अपनी जातिवादी मानसिकता के चलते मामले को टालने की कोशिश करते हैं। अगर जैसे–तैसे कोई केस मीडिया में आ जाता है तो मजबूरन केस दर्ज करना पड़ता है। उसके बाद केस को झूठा साबित करने की कोशिश की जाती है। बड़े अधिकारी अपनी ईमानदारी और इनसानियत को ताक पर रखकर पीड़ित के बयानों को बदलने के लिए बलपूर्वक प्रयास करते हैं। कितनी ही सरकारें आयीं और गयीं, लेकिन यहाँ की परिस्थितियों में कोई खास अन्तर नहीं आया। योगी राज में दबंगों का हौसला इतना बुलन्द है कि वे कोई भी जुर्म करने से नहीं डरते। बल्कि शासक पार्टी के नेता आरोपियों के पक्ष में राष्ट्रीय प्रतीकों और नारों के साथ रैलियों का आयोजन करते हैं। सरकार सब देखती है और ऐसे नेताओं के खिलाफ कोई करवाई नहीं की जाती। जो लोग पीड़ित परिवार की तरफ से न्याय की माँग करते हैं या उनके दु:ख में हमराही बनते हैं, उन्हीं को योगी सरकार उग्रवादी और देशद्रोही बताकर जेल में बन्द कर प्रताड़ित करती है, जैसा कि इस मामले का विरोध करने वालों के साथ भी किया गया। दुनिया के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश कहे जाने वाले भारत के लिए इससे शर्मनाक भला और क्या हो सकता है।

 
 

 

 

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