अगस्त 2022, अंक 41 में प्रकाशित

अग्निपथ योजना : नौजवानों की बर्बादी पर उद्योगपतियों को मालामाल करने की कवायद

14 जून 2022 को भारत सरकार ने सेना में भर्ती की प्रक्रिया में एक बड़ा बदलाव करते हुए ‘अग्निपथ’ नामक योजना की घोषणा की है। इस योजना से भर्ती होने वाले नौजवानों को सरकार ने ‘अग्निवीर’ नाम दिया है। नोटबन्दी, जीएसटी और कृषि कानून के समय जिस तरह के झूठे दावे सरकार की तरफ से किये गये थे, कुछ ऐसे ही दावे इस योजना को लेकर भी किये जा रहे हैं। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने योजना की घोषणा करते हुए कहा कि इससे नौजवानों को तो भरपूर लाभ मिलेगा ही साथ ही देश की अर्थव्यवस्था में भी सुधार होगा और देश विकास की नयी मंजिल में पहुँच जाएगा। लेकिन यह विकास किसका होगा और किसकी कीमत पर होगा यह बात रक्षा मंत्री ने नहीं बतायी। खैर, देश के नौजवानों को यह समझने में देर नहीं लगी कि इस योजना से उनका विकास नहीं होगा, बल्कि उनका भविष्य बर्बाद हो जायेगा। इसलिए योजना के सार्वजनिक होते ही देश के अलग–अलग हिस्सों में आक्रोशित नौजवान इसके विरोध में सड़कों पर उतर आये। अपने साथ हुए इस धोखे के खिलाफ नौजवानों ने संघर्ष का रास्ता अपना लिया। बिहार, राजस्थान, उत्तर प्रदेश समेत अनेक राज्यों में स्वत:स्फूर्त आन्दोलन तेजी से शुरू हुए।

कितनी ही जगह आन्दोलन में शामिल नौजवान पुलिस अफसरों के सामने इस योजना से आहत होकर रोते हुए नजर आ रहे हैं। लेकिन सरकार को इन नौजवानों की संवेदनाओं से कोई लेना–देना नहीं है। सरकार की तरफ से यह साफ कहा गया कि इस योजना को किसी भी कीमत पर वापस नहीं लिया जाएगा। साथ ही सरकार ने इस योजना का विरोध करने वाले नौजवानों पर कार्रवाई करने के आदेश दे दिये हैं। अब इन नौजवानों पर आँसू गैस के गोले दागे जा रहे हैं, लाठीचार्ज कर गिरफ्तारी तक की जा रही है। सरकार की उपेक्षा और दमन के कारण कई जगह विरोध–प्रदर्शन उग्र हो गये। सरकार से गुस्साये नौजवानों ने बिहार में भाजपा दफ्तर पर हमले तक किये, साथ ही कितनी ही जगह ट्रेनें और बसें जलाने की खबर भी आयी। नौजवानों द्वारा की गयी इन कार्रवाइयों का बहाना बनाकर सरकार इस पूरे आन्दोलन को तोड़ने और कुचलने को आतुर हो गयी। अनेक शहरों में कर्फ्यू लगा दिया गया, आन्दोलन में शामिल नौजवानों पर एफआईआर की गयी। लेकिन इतने दमन के बाद भी आन्दोलन का बड़ा हिस्सा अहिंसात्मक बना रहा।

आखिर इस योजना में ऐसा क्या है जिससे नौजवान इतने आक्रोशित और अपने भविष्य को लेकर भयभीत नजर आ रहे हैं? दरअसल, इस योजना के तहत सरकार ने सेना में ठेका प्रथा की शुरुआत कर दी है। अब सेना के तीनों अंगों थल सेना, वायु सेना, और नौ सेना में क्रमश: जवानों, ऐयरमैन और नाविकों के लिए भर्ती होने वाले नौजवानों का कार्यकाल केवल 4 साल का होगा। 4 साल बाद इनमें से 25 फीसदी तक नौजवान ही आगे नौकरी कर पाएँगे, बाकी सबकी नौकरी समाप्त कर दी जाएगी। नौकरी समाप्त होने के बाद पूर्व में सैनिकों को मिलने वाली हर सुविधा से उन्हें बाहर कर दिया गया है। उन्हें न तो किसी किस्म की पेंशन और न ही मेडिकल और कैंटीन सुविधाएँ मिलेंगी। एक सैनिक की नौकरी बेहद कठिनाइयों से भरी होती है, संवेदनशील इलाकों में हमेशा उनकी जान को खतरा बना रहता है। फिर भी वह अपनी जान की परवाह किये बिना उस तनावग्रस्त माहौल में महीनों अपने परिवार से दूर रहता है। उसके इस त्याग और समर्पण के बदले सरकार उसे और उसके परिवार को जीवन भर कुछ जरूरी सुविधाएँ देती थी। लेकिन खुद को देशभक्त कहने वाली सरकार ने अब सैनिकों से उनके ये अधिकार भी छीन लिये हैं। मोदी ने सत्ता में आने से पहले ‘वन रैंक, वन पेंशन’ की योजना लागू करने का वादा किया था। लेकिन 2014 के बाद इसी माँग पर आन्दोलन करने वाले भूतपूर्व सैनिकों और अफसरों पर मोदी सरकार ने लाठी चार्ज तक करवाया था। अब इस नयी योजना से मोदी सरकार ने ‘नो रैंक, नो पेंशन’ लागू कर दिया है।

इस नयी योजना से सरकार ने पिछली भर्तियों में चयनित नौजवानों को भी धोखा दिया है। दरअसल, पिछले 2 साल से सेना में सरकार ने कोई नयी भर्ती नहीं की है। आखिरी बार 2020 में सरकार ने लगभग 50 भर्ती रैलियों का आयोजन किया था, जिनमें डेढ़ लाख नौजवानों का चयन हुआ था। इन नौजवानों ने 4–5 साल की कड़ी मेहनत और सुबह–शाम दौड़ में खुद को तपाकर तैयारी की थी। फिजिकल और मेडिकल परीक्षा पास करने के दो साल बाद भी ये नौजवान लिखित परीक्षा के इन्तजार में दर–दर की ठोकरें खाने को मजबूर हो रहे हैं। पिछले 2 सालों से यह केवल आश्वासनों के भरोसे समय काट रहे थे। लेकिन अब सरकार ने इन्हें पूरी तरह से नजरअन्दाज कर दिया और ‘अग्निपथ’ योजना के कारण इनकी भर्तियों को अमान्य घोषित कर दिया गया है। इस फैसले के बाद कुछ नौजवान इतने आहात हुए कि उन्होंने आत्महत्या कर ली, लेकिन सरकार को उनके दु:ख से कोई लेना–देना नहीं है।

इस योजना के प्रति नौजवानों का गुस्सा देख सरकार उन्हें बहलाने–फुसलाने का भी पूरा प्रयास कर रही है। सरकार इस बात का ढोल जोर–शोर से पीट रही है कि वह 4 साल बाद नौकरी से निकाले गये नौजवानों को कर मुक्त 11 लाख रुपये देगी। लेकिन सच्चाई यह है कि इन पैसों में आधे पैसे सैनिकों की तनख्वाह से काटकर ही जमा किये जाएँगे। साथ ही नौजवानों का कहना है कि वे 11 लाख रुपये का क्या करेंगे? उससे वे अपना घर तक नहीं बना सकते हैं। उन्होंने बिना शर्त पुरानी योजना को बहाल करने का नारा दिया है। भाजपा इस योजना को लेकर सैनिकों की औसत उम्र घटाने का भी तर्क दे रही है। उनका कहना है कम उम्र के सैनिक होने से सेना की क्षमता बढे़गी। लेकिन सरकार का यह तर्क हास्यास्पद है। भारतीय सेना में मिलने वाला सर्वश्रेष्ठ वीरता का पुरस्कार, परमवीर चक्र 21 बार से ज्यादा 30 साल से ऊपर के सैनिकों को मिला है। बल्कि इस योजना से सेना में कम अनुभवी और कम प्रशिक्षित सैनिकों की भरमार होगी जिससे औसत क्षमता बढ़ने की जगह घट जाएगी। सरकार नौजवानों को इस योजना के पक्ष में सहमत करने में असफल नजर आ रही है।

आखिर क्या वजह है कि देश में इतने विरोध के बाद भी सरकार इस योजना को लागू करने पर इतनी आमादा है? एक तरफ जहाँ सेना में जाने की तैयारी करने वाले सभी नौजवान इस योजना का पुरजोर विरोध कर रहें है, वहीं दूसरी ओर, देश के उद्योगपतियों के सबसे बड़े संगठन फिक्की ने इसका समर्थन किया है। इस समर्थन के क्या मायने हैं? इस योजना को सही परिप्रेक्ष्य में समझने के लिए इसमें निहित उद्योगपतियों के स्वार्थों की जाँच–पड़ताल करना बेहद आवश्यक है। साथ ही इस योजना से देश की सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था पर पड़ने वाले दूरगामी दुष्प्रभावों को भी हमें समझना होगा।

मोदी ने सत्ता में आते ही ‘मिनिमम गवर्नमेण्ट, मैक्सिमम गवर्नेंस’ के नारे के साथ विनिवेश की प्रक्रिया को तेज कर दिया था। देश की मेहनतकश जनता ने जिन महत्वपूर्ण संस्थाओं और सरकारी उद्यमों को खड़ा करने में अपना खून–पसीना लगाया हुआ है, आज मोदी सरकार उन्हें कौड़ियों के भाव अम्बानी–अडानी जैसे बड़े उद्योगपतियों को बेच रही है। इसके चलते इन पूँजीपतियों के कब्जे में देश के महत्वपूर्ण एयरपोर्ट और बन्दरगाह, हर प्रकार की खनिज की खदानें और रेलवे स्टेशन आते जा रहे हैं। इन सभी संस्थाओं का निजी हाथों में जाने से इनमें काम करने वाले सभी स्थाई कर्मचारियों को अस्थायी बनाकर उनके सभी अधिकार छीन लिए जाएँगे। यह उद्योग आम जनता को सस्ती ऊर्जा, यातायात के सस्ते साधन और अन्य मूलभूत सुविधाएँ प्रदान करती हैं, लेकिन इनके निजी हाथों में जाने के बाद इन पर कुछ उद्योगपतियों का एकाधिकार होता जा रहा है। इससे एक तरफ जनता को मिलने वाली मूलभूत सुविधाएँ खत्म होती जा रही हैं, तो दूसरी तरफ इनमें काम करने वाले कर्मचारियों को मिलनेवाली सुविधाएँ भी खत्म हो रही हैं। इसलिए इनमें काम करने वाले कर्मचारी लम्बे समय से आन्दोलन कर रहे हैं।

इन सभी संस्थाओं और उपक्रमों में उद्योगपतियों को बड़ी संख्या में सुरक्षाकर्मियों की जरूरत है, जो इनकी सम्पत्ति और कल–कारखानों की सुरक्षा कर सकें और साथ ही जरूरत पड़ने पर मजदूरों के आन्दोलन को कुचल सकें। इन्हें फिलहाल इस काम के लिए ‘केन्द्रीय सुरक्षा बल’ मुख्यत: सीआरपीएफ पर निर्भर रहना पड़ता है। इस काम के बदले इन्हें सरकारी पैमाने के अनुसार न्यूनतम तनख्वाह और साथ ही उनकी पेंशन, मेडिकल और अन्य सुविधाओं के लिए भी फण्ड देना होता है। उद्योगपति अपने मुनाफे को और अधिक बढ़ाने की हवस में इन सुरक्षाकर्मियों पर खर्च होने वाले थोड़े से पैसे भी अब देने के लिए तैयार नहीं है। इन उद्योगपतियों को बेहद सस्ते, प्रशिक्षित और अनुशासित सुरक्षाकर्मियों की जरूरत है। अगर प्रशिक्षण देने का काम पूँजीपति खुद करे तो उसे इस काम के लिए बहुत पूँजी लगानी पड़ेगी। लेकिन सरकार ने ‘अग्निपथ’ योजना से इनकी इस परेशानी को हल कर दिया है। सरकार जनता के पैसों से 4 साल तक ‘अग्निवीरों’ को ट्रेनिंग देगी और इस ट्रेनिंग का लाभ किसी भी तरीके से देश सेवा में या फिर देश की सुरक्षा में नहीं मिल पाएगा। 4 साल बाद सेना से निकलने वाले नौजवान पहले से भयंकर बेरोजगारी में किसी तरह अपनी जिन्दगी चलाने के लिए बेहद खराब शर्तों पर भी इनके यहाँ काम करने को मजबूर हो जायेंगे। ऐसे में उद्योगपतियों की निर्भरता ‘केन्द्रीय सुरक्षा बल’ पर खत्म हो जाएगी। सम्भव है कि सरकार इनकी नयी भर्तियों पर धीरे–धीरे रोक लगाकर इसे खत्म ही कर दे। इसकी झलक हमें देखने को मिल भी रही है। गृह मंत्रालय के आँकड़े के अनुसार पिछले 4 सालों में ‘केन्द्रीय सुरक्षा बल’ की कुल भर्ती में 80 प्रतिशत की गिरावट आयी है। 2017 में 58 हजार भर्तियाँ हुई थीं, वहीं 2020 में केवल 10 हजार भर्तियाँ हुई हैं। यानी 1 लाख 20 हजार से ज्यादा पद पहले से खाली हैं। इसी तरह अर्ध–सैनिक बलों के 73 हजार से ज्यादा पद अभी भी खाली हैं। इन तथ्यों से उल्टा सरकार यह वादा कर रही है कि 4 साल बाद अग्निवीरों को इनमें 10 फीसदी का आरक्षण दिया जाएगा। जब सरकार आने वाले समय में ‘केन्द्रीय सुरक्षा बल’ को ही खत्म कर देगी तो उसमें अग्निवीरों के आरक्षण का तो सवाल ही नहीं उठता है। इस योजना से एक तरफ तो ‘केन्द्रीय सुरक्षा बल’ धीरे–धीरे खत्म हो जाएगी और उस में काम करने वाले हजारों लोगों की सुविधाओं में भारी कटौती की जायेगी। वहीं दूसरी ओर, अपनी जिन्दगी के सुनहरे समय को दाँव पर लगाकर दिन–रात दौड़ भाग करके सेना की तैयारी करने वाले नौजवान अब गार्ड की अदना–सी नौकरी करने के लिए मजबूर होंगे।

बात केवल सैनिकों के ठेकाकरण तक सीमित नहीं है बल्कि भाजपा पूरी सेना के निजीकरण की तरफ बढ़ रही है। इन उद्योगपतियों की गिद्ध नजर सेना की अकूत सम्पत्ति पर भी है। दरअसल, सेना के पास रेलवे से भी अधिक सम्पत्ति है, जिसमें 16 लाख एकड़ जमीन देशभर में फैली 62 छावनी से बाहर है। यह जमीन सैनिकों के लिए आवास, उनके परिवार वालों के लिए सैनिक अस्पताल, स्कूल, कैण्टीन आदि खोलने के लिए आरक्षित है। लेकिन इस योजना के बाद जब सभी सुविधाएँ छीन ली जायेंगी तो यह जमीन किस काम आएगी? इस जमीन को भी बेहद सस्ते में उद्योगपतियों को देने की तैयारी चल रही है। इसी काम के लिए अभी हाल ही में सरकार ने ‘ड्रोन इमेजरी’ सर्वेक्षण तकनीक के माध्यम से इस जमीन का सर्वेक्षण भी करवाया है। सेना से जुड़ी बाकी सरकारी संस्थाओं का भी निजीकरण किया जा रहा है। सेना की ‘बेस वर्कशॉप’ जिनमें सेना के वाहन और हथियारों की मरम्मत की जाती है, उनका संचालन अब निजी कम्पनियाँ करेंगी। इनमें काम करने वाले कर्मचारियों को जबरदस्ती सेवा–निवृत्त होने का दबाव बनाया जा रहा है। साथ ही 2021 में रक्षा मंत्रालय ने सेना के लिए सभी जरूरतों का सामान बनाने वाली ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड आईएफबी को भी भंग कर दिया है। अब इन कम्पनियों को सेना से काम मिलेगा इस बात की कोई गारण्टी नहीं है। इस पूरे सरकारी तंत्र को इसलिए बर्बाद किया जा रहा है ताकि अडानी उन पर कब्जा करके अरबों का मुनाफा कमा सके। सेना के आधुनिकीकरण का यही मतलब है।

भारत की अर्थव्यवस्था आज अभूतपूर्व आर्थिक मन्दी के दौर से गुजर रही है। बेहिसाब बढ़ती महँगाई और बेरोजगारी हर समय इस बात की गवाही दे रही है। ऐसे समय में पूँजीपतियों के मुनाफे की दर में कमी आना लाजमी है। इसी कमी की भरपाई के लिए आज जनता के खून की एक–एक बूँद को मुनाफे में तब्दील किया जा रहा है। 1990 के बाद से भारत नयी आर्थिक नीतियों पर चल रहा है। इन नीतियों का मतलब है आम जनता को मिलने वाली सभी कल्याणकारी योजनाओं का अन्त, देश की सारी सम्पदा और दौलत पूँजीपतियों की और सारा संकट जनता का। पिछले 30 साल से कांग्रेस भी इन्हीं नीतियों को लागू कर रही थी। लेकिन पहले से कही अधिक गहराते आर्थिक संकट ने इस प्रक्रिया को तेज कर दिया है। मोदी ने सत्ता में आते ही सबसे बड़ा हमला मजदूरों पर किया था और पिछले साल उन्हें मंजिल तक पहुँचाते हुए 4 श्रम संहिताएँ लागू भी कर दी हैं। ये श्रम संहिताएँ स्थायी रोजगार की जगह अस्थायी रोजगार का रास्ता साफ करती हैं। इससे पूँजीपति बेहद कम पैसों में कितने ही समय मजदूरों से काम ले सकेंगे और जरूरत न रहने पर उन्हें बाहर कर सकेंगे। अग्निपथ योजना भी इसी उद्देश्य के लिए है। भारत का रक्षा क्षेत्र बेहद विशाल है, अब तक यह पूँजीपतियों की पहुँच से दूर था। लेकिन पूँजीपतियों के मैनेजर के बतौर काम करने वाली सरकार अब लाखों लोगों को बर्बाद कर यह क्षेत्र भी पूँजीपतियों की मुनाफे की हवस को शान्त करने के लिए दे रही है। सरकार पूँजीपतियों की सेवा में इतनी अन्धी हो गयी है कि वह देश में व्याप्त आक्रोश को भी नजरन्दाज कर रही है। पहले से अभूतपूर्व बेरोजगारी अब और बढ़ेगी जिससे निश्चित ही बाजार में मन्दी और विकराल रूप लेगी। आज जनता तबाह–बरबाद हो रही है और सब्र किये बैठी है, लेकिन यह भी सच है कि जब जनता के सब्र का बाँध टूटता है तो उसमें बड़े–बड़े शासक बह जाते हैं।

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