क्लीन द नेशन, यानी जोर्ज ऑरवेल की किताब उन्नीस सौ चैरासी की थॉट पुलिस
नाजी दौर के इतिहास को पलटिये आपको एक शब्द मिलेगा क्लींजिंग, जिसे यहूदियों के सफाये के सन्दर्भ में इस्तेमाल किया जाता था। उनकी बस्तियों की क्लींजिंग से लेकर नस्ल की क्लींजिंग तक का सन्दर्भ आपको जगह–जगह मिलेगा। आबादी के एक हिस्से को मिटा देने को क्लींजिंग कहते हैं। जार्ज ऑरवेल की एक किताब है–– 1984। उसका कोई भी पन्ना आप पढ़ लें, एक थॉट पुलिस का जिक्र आता है, विचार पुलिस कह सकते हैं। ऑरवेल इस संस्था की कल्पना कर रहे हैं जो हर नागरिक के मन में उभर रहे विचार को जान लेती है, नजर रखती है। जगह–जगह माइक्रोफोन और टेलीस्क्रीन लगे हैं जिसके पीछे से कोई आपको देख रहा है। कोई आपको सुन रहा है। विचार पुलिस नहीं चाहती कि एक नागरिक या इनसान के तौर पर आपके भीतर कोई भी भावना जिन्दा रहे। भले ही वह भावना अतिरिक्त खुशी की क्यों न हो। भावनाओं पर भी पार्टी का नियंत्रण है।
1984 किताब 1949 में छपी थी। इन दिनों अमरीका में यह किताब फिर से पढ़ी जाने लगी है। आज के वक्त को आखिर कैसे इस शख्स ने साफ–साफ देख लिया था। हमारे लिए लिख दिया था। दुनिया तब भी बेखबर रही। आज भी बेखबर है। सीटीएन– क्लीन द नेशन 2019 में बनी है। भारत में बनी है। पुलवामा हमले के अगले दिन 9 नौजवान फेसबुक पर इस नाम से एक ग्रुप बनाते हैं। इससे जुड़े लोग पुलवामा हमले पर सवाल उठाने वालों की पहचान करते हैं। उनके खिलाफ पुलिस में शिकायत करते हैं। उन्हें ट्रोल किया जाता है। वे गिरफ्तार होते हैं। निलम्बित होते हैं। इसके 4500 सदस्य बन जाते हैं। फेसबुक और ट्विटर ने इनके हैंडल को कैंसल कर दिया। फिर भी फेसबुक पर इनका छद्म ग्रुप चलता रहा। जिसके 40 एडमिनिस्ट्रेटर थे। ज्यादातर की उम्र 20 साल के आस–पास है। ये लोग नोएडा और दिल्ली में आईटी प्रोफेशनल के रूप में काम भी करते हैं।
एक वीडियो जारी होता है। इसके सदस्य मधुर सिंह कहते हैं कि ‘भारतीय सेना’ लिखा हुआ टी–शर्ट पहनो। उन लोगों का पता करो जो भारतीय सेना पर हँस रहे हैं। उनके मालिकों से सम्पर्क करो। जहाँ पढ़ रहे हैं उस यूनिवर्सिटी से सम्पर्क करो। उन्हें सबक सिखा दो। नौकरी से निकलवा दो। यूनिवर्सिटी से निलम्बित करवा दो। इंडियन एक्सप्रेस ने मधुर सिंह से भी बात की है। इसके कोर सदस्यों से बात कर लिखा है कि यह समूह दावा करता है कि भारत विरोधी लोगों के खिलाफ 45 प्रकार की कार्रवाई करवायी गयी। गुवाहाटी के एक कालेज का सहायक प्रोफेसर निलम्बित होता है। राजस्थान विश्वविद्यालय 4 कश्मीरी छात्राओं को निलम्बित करता है। एक ट्विटर पोस्ट के कारण जयपुर में गिरफ्तारी होती है। ग्रेटर नोएडा का इंजीनियरिंग कॉलेज अपने कश्मीरी छात्र को निलम्बित करता है। बिहार के कटिहार में एक छात्र फेसबुक पोस्ट के कारण गिरफ्तार होता है। कई संस्थाओं ने सीटीएन को कार्रवाई का पत्र दिया है। सीटीएन को पिछले हफ्ते सोशल मीडिया पत्रकारिता के लिए पुरस्कार दिया जाता है। इस पुरस्कार का नाम है सोशल मीडिया पत्रकारिता नारद सम्मान। मंच पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मनमोहन वैद्य हैं। केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी हैं। पुरस्कार देने वाली संस्था का नाम है–– इन्द्रप्रस्थ विश्व संवाद केन्द्र। यह आयोजन होता है दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में।
इंडियन एक्सप्रेस ने अवार्ड देने वाली संस्था के सचिव वागीश इस्सर से बात की है। उनका कहना है कि “इस समूह को अवार्ड इसलिए दिया गया क्योंकि हमने देखा कि ये अपने देश को बहुत प्यार करते हैं। बहुत लोग देश को प्यार करते हैं लेकिन कुछ लोग ज्यादा सक्रियता से प्यार करते हैं।” गुवाहाटी की सहायक प्रोफेसर ने कहा है कि मीडिया पीछा करने लगा। घर छोड़कर भागना पड़ा। महीने भर बाद लौटी लेकिन निलम्बन पर अभी तक फैसला नहीं हुआ है। वापस नहीं लिया गया है। जयपुर में चार कश्मीरी लड़कियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया। उनके व्हाट्स एप मैसेज का मतलब निकाला गया कि इन लोगों ने पुलवामा हमले पर खुशी जाहिर की है। उन्हें कॉलेज और हॉस्टल से निलम्बित कर दिया गया। स्थानीय लोग भी इनके खिलाफ प्रदर्शन करने आ गये। एफआईआर दर्ज हुई मगर कोई गिरफ्तार नहीं हुआ। एक्सप्रेस ने थाने के एसएचओ से बात की है। बताया है कि हमने मामले की जाँच की और निष्कर्ष यही निकला है कि कोई अपराध नहीं किया गया है। लड़कियों के खिलाफ कोई मामला नहीं बनता है। कोर्ट में जवाब सौंप दिया गया है।
जरूर इन बातों से स्थानीय स्तर पर मोहल्लों में बहस हुई होगी। लोगों को फर्जी सूचनाओं के आधार पर राष्ट्रवादी बनाया गया होगा। मीडिया में बहस हुई होगी। मामला समाप्त होने पर न समाज को अफसोस है और न मीडिया को। जगह–जगह इसी पैटर्न पर बहस के मुद्दे पैदा किये जाते हैं। लोगों के बीच से राष्ट्रविरोधी की पहचान की जाती है और दूसरे मुद्दों से लोगों को भटका दिया जाता है। हर दिन लोग इसी तरह से ड्रिल कर रहे हैं। वे जार्ज ऑरवेल के 1984 के नागरिक बन गये हैं। उनकी अपनी कोई सोच नहीं बची है। कोई समझ नहीं बची है। वे अब अपनी हँसी भी नहीं हँस सकते हैं। जब नेता कहेगा और जितना नेता हँसेगा उतना ही हँसना होगा।