‘आप’ की ‘देशभक्ति की खुराक’ : प्रोफेशनल ‘देशभक्त’ बनाने का नया एजेण्डा
आम आदमी पार्टी (आप) ने 27 सितम्बर को शहीद भगतसिंह के जन्मदिवस के अवसर पर दिल्ली के सरकारी स्कूलों में ‘देशभक्ति पाठ्यक्रम’ लागू किये जाने की घोषणा की। इस मौके पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने कहा कि ऐसा वातावरण तैयार करने की जरूरत है, जिसमें हम सभी और हमारे बच्चे हर कदम पर और लगातार “देशभक्ति” की भावना को महसूस करते रहें। छत्रसाल स्टेडियम में हुए इस समारोह के दौरान ‘भारत माता की जय’, ‘वन्देमातरम’ और ‘इन्कलाब जिन्दाबाद’ के नारे भी लगाये गये। इसे देखकर ऐसा लगता है कि आप ने क्रान्तिकारियों की छवि और जनता में व्याप्त “देशभक्ति” के जुनून को भुनाने की कोशिश शुरू कर दी है।
मुख्यमंत्री का यह भी कहना था कि पिछले 74 सालों से हमने अपने स्कूलों में फिजिक्स, केमिस्ट्री और गणित तो सिखाया, लेकिन हमने बच्चों को “देशभक्ति” नहीं सिखायी। मानो, अब तक की सरकारों ने स्कूल में “देशभक्ति” का पाठ्यक्रम शामिल न करके बच्चों को “देशद्रोही” बनाया हो। उन्होंने यह भी कहा कि हमने हर तरह के पेशेवर तो तैयार किये हैं, लेकिन हमने पेशेवर देशभक्त तैयार नहीं किये। उनका कहना था कि हमेंं देशभक्त डॉक्टरों, वकीलों, इंजीनियरों, कलाकारों, गायकों, एक्टरों और पत्रकारों आदि की जरूरत है, लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि जनता का खून चूसने वाले निजी अस्पतालों के डॉक्टर, वकील आदि देशभक्त नहीं हैं तो उन पर राजद्रोह का मुकदमा क्यों नहीं चलना चाहिए?
‘आप’ का यह ‘देशभक्ति पाठ्यक्रम’ नर्सरी से कक्षा 5, कक्षा 6 से 8 और कक्षा 9 से 12 तक के लिए तैयार किया गया है। समारोह के दौरान दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने इस देशभक्ति पाठ्यक्रम के बारे में और खुलासा किया। उनका कहना था कि हम केवल “देशभक्ति” के बारे में ही बताने नहीं जा रहे हैं, बल्कि हमारा उद्देश्य “देशभक्ति” की बात को बार–बार दोहरा कर विद्यार्थियों के दिमाग में इस “देशभक्ति” के विचार को इस तरह गहरे बैठा देना है कि यह उनका जुनून बन जाये। आज हम देशभक्ति के नाम पर जुनून की सारी हदें पार करते हुए उन्मादी भीड़ द्वारा देश को बर्बाद किये जाते देख रहे हैं। उपमुख्यमंत्री भी कहीं वैसी ही जुनूनी भीड़ तैयार करने की बात तो नहीं कर रहे हैं? वे यहीं नहीं रुके आगे कहा कि इस पाठ्यक्रम के जरिये विद्यार्थियों को नैतिक मूल्यों का उपदेश देना हमारा उद्देश्य नहीं है और न ही यह कि विद्यार्थी ऐतिहासिक तथ्यों को याद कर लें। बल्कि हमारा उद्देश्य है कि वे अपनी खुद की “देशभक्ति” के बारे में सोचें।
देशभक्ति की खुराक देकर इस शोषणकारी व्यवस्था और जनविरोधी सरकारों का मानसिक गुलाम बनाने के लिए यह पाठ्यक्रम बचपन से लेकर जवानी तक चलाया जायेगा, जिसके कुछ नमूने इस तरह हैं। ‘आप’ की इस पाठ्यक्रम योजना के अनुसार नर्सरी से लेकर कक्षा 12 तक विद्यार्थियों को कम से कम 700 से 800 कहानियाँ और 500 से 600 “देशभक्ति” गीत और कविताएँ सिखायी जाएँगी। इसके तहत अब दिल्ली के स्कूलों में हरेक कक्षा की शुरुआत 5 मिनट के ‘देशभक्ति ध्यान’ से शुरू होगी। इसका मतलब यह हुआ कि हरेक छात्र हर रोज पाँच नये स्वतंत्रता सेनानियों को याद करेगा। इसके साथ ही नर्सरी से लेकर कक्षा 8 तक हर रोज एक ‘देशभक्ति पीरियड’ होगा। जबकि कक्षा 9 से 12 तक के लिए सप्ताह में दो ‘देशभक्ति पीरियड’ होंगे। “देशभक्ति” की इस योजना को लागू करने के लिए हर स्कूल में तीन “देशभक्ति” नोडल टीचर्स रखे जाएँगे। ये टीचर्स विद्यार्थियों की ‘देशभक्ति की क्लास’ लेंगे।
‘आप’ के इस देशभक्ति पाठ्यक्रम के चैप्टर कुछ ऐसे होंगे, जैसे ‘मेरे देश के लिए प्यार और सम्मान’, ‘कौन है देशभक्त’, “देशभक्ति”, ‘मेरा देश मेरा अभिमान’, ‘मेरा भारत महान लेकिन क्यों नहीं है विकसित?’, ‘मेरे सपनों का भारत’ इत्यादि। इतना ही नहीं, विद्यार्थियों को एक डायरी अपने पास रखनी होगी, जिसमें वे “देशभक्ति” कक्षा के दौरान उत्पन्न अपनी भावनाओं, विचारों और अनुभवों को लिखेंगे और आपस में उपरोक्त विषयों पर विचार–विमर्श भी करेंगे। इस बात का ध्यान रखा गया है कि स्कूल में निरन्तर दी जा रही इस ‘देशभक्ति की खुराक’ के बारे में बच्चे घर जाकर भूल न जाएँ, इसलिए उन्हें ‘देशभक्ति होमवर्क’ भी दिया जाएगा। इसके तहत बच्चों को अपने से बड़े तीन लोगों से “देशभक्ति” से सम्बन्धित सवाल पूछने होंगे, इनमें से एक बड़ा उनके घर का होगा और बाकी दो बाहर के। इसके अलावा बच्चों से इस तरह के सवाल पूछे जाएँगे कि वे देशप्रेम से ओतप्रोत होकर गौरवान्वित महसूस कर सकें, दूसरे शब्दों में कहें तो अनेक तरीकों से देश और सैनिकों का महिमामण्डन कर “देशभक्ति” की भावना उनके दिमाग में कई स्तरों पर बैठायी जाएगी। जैसे, ऐसे सवाल बच्चों से पूछे जाएँगे कि ‘हमें सैनिकों के माँ–बाप का आदर सम्मान क्यों करना चाहिए?’ अभी तो यह कहा गया है कि इस पाठ्यक्रम पर परीक्षाएँ नहीं होंगी, बल्कि विद्यार्थी अपना आकलन स्वयं करेंगे कि वे कितने देशभक्त हैं?
‘आप’ का ये ‘देशभक्ति पाठ्यक्रम’ आम आदमी पार्टी की यू टर्न लेती राजनीति के बारे में बहुत कुछ कह रहा है। इसे लेकर जिस सोच का इजहार मुख्यमंत्री ने किया है उसमें भगवा एजेण्डे की बू आती है। स्कूल में बच्चों को निरन्तर दी जाने वाली ये ‘देशभक्ति की खुराक’ पता नहीं कितने ‘प्रोफेशनल देशभक्त’ तैयार करेगी, लेकिन इतना तो तय है कि ये एक खास तरह के साँचे में ढले ऐसे कट्टर राष्ट्रवादी पैदा करने की योजना का हिस्सा है, जिस तरह के तथाकथित ‘देशभक्त’ आजकल हम देख रहे हैं। भगवा रंग में रंगे ये कट्टरपंथी झण्डे फहराने, सतही तरीके से सैनिक–सैनिक चिल्लाने को ही “देशभक्ति” समझते हैं। खुद को ‘देशभक्त’ साबित करने के लिए दूसरों को देशद्रोही बताने वाले ऐसे कूपमण्डूक, नफरत से भरे और हर तथ्यात्मक चीज को नकार कर चीखने–चिल्लाने वालों की एक फौज संघी एजेण्डे के तहत तैयार हो गयी है। अब लगता है कि इसी एजेण्डे को आगे बढ़ाने का काम ‘आप’ ने अपने हाथ में ले लिया है। दिल्ली विधानसभा चुनावों के दौरान ‘हनुमान पूजा’, नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ चले आन्दोलन से दूरी, दिल्ली में हुए दंगों के दौरान ‘आप’ का स्टैण्ड और अभी हाल ही में अयोध्या और यूपी के दूसरे धार्मिक शहरों में ‘आप’ की ‘तिरंगा यात्रा’ हिन्दुत्व की तरफ यू टर्न लेती इसकी राजनीति की दिशा को बयान करती है।
अब स्कूलों में बच्चों को दिये जाने वाला ‘देशभक्ति की खुराक’ का कार्यक्रम ‘आप’ के बारे में और भी कुछ कह रहा है। इसे समझने के लिए “देशभक्ति” पर रवीन्द्रनाथ टैगोर के विचारों को समझना जरूरी है। टैगोर, मानवता को राष्ट्रीयता से कहीं ज्यादा ऊँचे स्थान पर रखते थे। टैगोर मानते थे कि “देशभक्ति” चारदीवारी से बाहर विचारों से जुड़ने की आजादी से हमें रोकती है, साथ ही दूसरे देशों की जनता के दुख–दर्द को समझने की स्वतंत्रता को भी सीमित कर देती है। टैगोर का कहना था कि “देशभक्ति” का जुनून बेसबब परम्परावाद की ओर ले जाता है, जो किसी को भी अपने अतीत का बन्दी बना लेता है। अन्ध राष्ट्रवाद के खतरे के प्रति चेतावनी देते हुए टैगोर ने कहा था कि यह ईसाई, यहूदी, पारसी और इस्लाम धर्म के प्रति भी असहिष्णु रवैया पैदा कर देगा। आज हम ऐसा होते देख रहे हैं। विचार करने की बात है कि इस देश के करोड़ों मजदूर–किसान तमाम दुश्वारियाँ झेलते हुए दिन–रात खटकर देश के लिए उत्पादन करते हैं, अन्न उगाते हैं, जो किसी भी देश को सुचारू रूप से चलाते रहने के लिए बेहद जरूरी है। इस देश के सफाई और बिजली कर्मचारी संसाधनों के तमाम अभाव के बावजूद अपनी जान जोखिम में डालकर अपना काम करते हैं, कई बार उन्हें अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ता है, तो क्या ये काम वे देश के लिए नहीं करते, क्या ये देशप्रेम नहीं है? इसी तरह इस देश के करोड़ों ईमानदार नागरिक निष्ठा के साथ अपना काम करते हैं, जिनके श्रम से ये देश चलता है। देश कागज पर बना नक्शा नहीं, बल्कि यहाँ के जनगण हैं जो कंगाली–बदहाली में जीवन गुजार रहे हैं। असली देशभक्ति इस देश की बहुसंख्य मेहनतकश जनता के प्रति प्यार है, उनके दुख–दर्द को समझना और उनके अधिकारों की लड़ाई में उनका साथ देना है। फिर इस सतही ‘देशभक्ति की खुराक’ का नया एजेण्डा क्यों?
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