मार्च 2019, अंक 31 में प्रकाशित

पेंशन बहाली का तेज होता आन्दोलन

पिछले चैदह वर्षों से चल रहे पुरानी पेंशन बहाली का आन्दोलन तेज होता जा रहा है। 6–12 फरवरी तक देश के कई राज्यों के कर्मचारी बड़ी संख्या में हड़ताल पर चले गये। दिल्ली के रामलीला मैदान में करीब दो लाख कर्मचारियों ने हड़ताल की, जिसमें अलग–अलग विभागों के सरकारी कर्मचारी शामिल थे। 2004 में एक नयी पेंशन स्कीम लागू की गयी थी। लेकिन कर्मचारियों का कहना है कि नेशनल पेंशन स्कीम (एनपीएस) कर्मचारियों के हित में नहीं है। उनकी माँग है कि सरकार पुरानी पेंशन स्कीम को ही सभी सरकारी कर्मचारियों पर लागू करें।

1 जनवरी 2004 को सरकार ने पुरानी पेंशन स्कीम की जगह एक नयी पेंशन स्कीम शुरू की, जिसका नाम एनपीएस है। इसे 2009 में सभी निजी और सरकारी कर्मचारियों के लिए शुरू कर दिया गया और सरकारी कर्मचारियों के लिए इसे अनिवार्य कर दिया गया। एनपीएस एक तरह का बचत खाता है, जिसमें धारक अपने वेतन का अधिकतम 10 प्रतिशत और न्यूतम 5 प्रतिशत हिस्सा 60 साल की उम्र  (सेवानिवृत्ति) तक जमा करेगा। साथ ही उसे इन पैसों को निवेश के लिए तीन विकल्प दिये जाएँगे। वे अपनी जमा राशि को सरकारी बॉण्ड्स, निजी बॉण्ड्स या सिटिजन मॉडल में निवेश कर सकते हैं। सरकारी बॉण्ड्स में केवल 15 प्रतिशत तक ही निवेश करने की अनुमति है।

पेंशन निकासी योजना भी बहुत विशेष है। 60 की उम्र में व्यक्ति अपनी जमा राशि का 60 प्रतिशत ही एक मुश्त निकाल सकता है। बाकी 40 प्रतिशत में धारक को कोई वार्षिक प्लान खरीदना होगा। अगर 60 की उम्र से पहले धारक पैसा निकालेगा तो बाद में उसे जमा राशि के 80 प्रतिशत से वार्षिकी खरीदनी पडे़गी। बचे हुए 20 प्रतिशत को ही एक मुश्त निकाल सकता है। इसमें धारक को कोई कर्ज आदि की व्यवस्था भी नहीं दी जाएगी और अन्त में आपका रिर्टन शेयर मार्केट पर निर्भर करेगा। मतलब रिर्टन की कोई गारंटी नहीं है। वो इस बात पर निर्भर करेगा कि आपने पैसा किन क्षेत्रों में निवेश किया है और उनकी मार्केट अप है या डाऊन। अब कर्मचारियों से यह छिपी बात नहीं रह गयी है कि यह सब उनकी पेंशन को लूट खाने का धंधा है।

इसे एक उदाहरण से आसानी से समझा जा सकता है। माना कोई धारक 60 की उम्र तक एक लाख रूपये जमा करता है। उसके बाद वह एक लाख का 60 प्रतिशत यानी 60,000 रुपये एक मुश्त निकाल सकता है। बाकी 40 हजार रूपये से उसको कोई वार्षिकी खरीदने के लिए किसी बीमा कम्पनी के पास जाना होगा। इसके बाद बीमा कम्पनी वार्षिक ब्याज दर के हिसाब से पैसा रिर्टन करेगी। माना 10 प्रतिशत ब्याज दर चल रही है, तो उसकी पेंशन मात्र 4000 रुपये वार्षिक होगी। जबकि पुरानी पेंशन स्कीम में सरकारी कर्मचारी के अन्तिम माह के वेतन का 50 प्रतिशत पेंशन के रूप में दिया जाता था। साथ ही महँगाई भत्ता, चिकित्सा भत्ता भी शामिल था और उम्र बढ़ने पर पेंशन में वृद्धि कर दी जाती थी और वेतन आयोग लगने पर भी पेंशन में वृद्धि होती थी।

लेकिन सरकार का कहना है कि सरकारी खर्च बढ़ने के चलते अब सरकार पुरानी स्कीम के तहत पेंशन नहीं दे सकती। एक तरफ तो सरकार विधायक, मंत्रियों आदि का वेतन बढ़ाकर उन्हें उसी पुरानी पेंशन के तहत रूपये बाँट रही है। बड़ी–बड़ी कम्पनियों को टैक्स में भारी छूट दे रही है। अपने चुनाव प्रचार में लाखों–करोड़ों रूपया पानी की तरह बहा रही है। लेकिन पेंशन के लिए सरकार के पास पैसा नहीं है।

सच तो ये है कि एनपीएस के तहत सरकार अपने चहेते पूँजीपतियों और संकट में डूबी बीमा कम्पनियों को फायदा पहुँचा रही है। साफ है कि आज बीमा कम्पनियों का दिवाला निकला पड़ा है। बैंक नकदी के संकट से जूझ रहे हैं। बाजार मंदी का शिकार है। भारत के बाजार में कोई निवेश करने को तैयार नहीं है। इसीलिए सरकार ने इस बीमारी की मरहमपट्टी कर्मचारियों के पैसे छीनकर करने की ठान ली है। एनपीएस के नियम–शर्तें ऐसी हैं कि जिनको पूरा कर पाना मुश्किल है, जिससे बाद में पैसा सही सलामत मिलने की उम्मीद कम ही है।

कैग की आडिट रिर्पोट में यह तथ्य सामने आया है कि 2005–2008 तक एनपीएस में कितनी राशि जमा हुई थी, इसका कोई ब्यौरा सरकार के पास नहीं है। जिस अवधि का हिसाब है, उसमें भी सरकारी अंशदान नहीं पहुँचा और वित्तीय वर्ष 2016–17 में एनपीएस की राशि एक तिहाई से भी कम हो गयी। बची हुई राशि का क्या हुआ, इसका जवाब आडिटर के पास भी नहीं है। 31 मार्च 2017 को यह जानकारी प्रधान महालेखाकार सरिताजफा ने एक पे्रसवार्ता के दौरान समाप्त हुए वित्तीय वर्ष की रिपोर्ट में दी। इन बातों से साफ जाहिर होता है कि एनपीएस की हकीकत क्या है? कर्मचारियों का पैसा, जिसे वे यह सोचकर जमा करते हैं कि बुढ़ापे में इसके सहारे जिन्दगी गुजार लेंगे, कितने सुरक्षित हाथो में है?

 
 

 

 

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