जुलाई 2019, अंक 32 में प्रकाशित

शासन के खूनी तांडव के बीच सूडान में विरोध प्रदर्शन

सूडानी डॉक्टरों ने जून के पहले सप्ताह में यह कहकर दुनिया में खलबली मचा दी कि पिछली सोमवार को सूडान के अर्ध सैनिक बलों ने राजधानी खार्तूम में विरोध प्रदर्शन के दौरान जमकर खूनी तांडव किया। सैनिकों ने 70 से अधिक महिलाओं के साथ बलात्कार किया। सरकारी दमन के चलते 100 लोग मारे गये और 700 से अधिक लोग घायल हुए। सूडान की सरकार ने मीडिया पर पूरी तरह प्रतिबन्ध लगा दिया है, जिससे लोगों तक सही जानकारी नहीं पहुँच पा रही है। सरकारी अत्याचार के चलते वहाँ से दूसरे देशों को पलायन कर रहे लोगों से छिटपुट जानकारी मिल रही है। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने बलात्कार और हत्या की खबरों को सही बताया लेकिन कितने व्यापक पैमाने पर हिंसा फैलाई गयी, इसका पता नहीं लग सका।

दशकों तक सेना ने सूडान की जनता पर क्रूरतापूर्वक अत्याचार किया और मई में दर्जनों प्रदर्शनकारियों की हत्या कर कर दी। इसके बाद अब सेना ने ‘लोकतंत्र’ और ‘मानवाधिकार’ का वादा करते हुए जनता से घर लौटने और उनके शासन को स्वीकार करने की सलाह दी है। किन्तु अफ्रीका के इस देश की जनता उसकी पैंतरेबाजी को अच्छी तरह समझती है और विरोध प्रदर्शन अब भी जारी है। पूरे सूडान में प्रदर्शनकारी जोर दे रहे हैं कि आमूलचूल परिवर्तन का प्रयास तब तक जारी रहेगा, जब तक पूरे शासन को उखाड़ न फेंका जाए। इन प्रदर्शनों को दबाने के लिए वहाँ की सैन्य सरकार क्रूरतापूर्वक हिंसक कार्रवाई कर रही है। इसी सिलसिले में अब तक सैकड़ों प्रदर्शनकारियों की हत्या की जा चुकी हैं और कई महिलाओं का बलात्कार किया जा चुका है।

1950 के दशक में अफ्रीका के उत्तर–पूर्वी क्षेत्र में स्थित सूडान को ब्रितानी साम्राज्यवाद से आजादी मिली थी। आजादी हासिल करने के बाद यह देश बुरी परिस्थितियों का शिकार हो गया। वह धीरे–धीरे गृहयुद्ध में फँसता चला गया। देश में सत्ता परिवर्तन लगातार होते रहे लेकिन उत्तरी और दक्षिणी सूडान के बीच गृहयुद्ध जारी रहा। इन्हीं गृहयुद्धों के बीच कर्नल उमर अल बशीर ने वर्ष 1989 में तख्तापलट कर सूडान में सत्ता की बागडोर सम्भाल ली। लेकिन 1989 के बाद भी सूडान कभी शान्त नहीं हो पाया। एक तरफ जहाँ सत्ता वर्ग सूडान की सम्पत्ति का बन्दरबाट करता रहा तो वहीं दूसरी तरफ साम्राज्यवादी शक्तियाँ भी झूठे आरोप लगाकर तरह–तरह के हमले करती रहीं।

उमर अल बशीर ने सूडान पर तकरीबन 30 वर्षों तक शासन किया। इन 30 वर्षों के दौरान गृहयुद्ध जारी रहे और सबसे ज्यादा परेशानियाँ सूडान की जनता को उठानी पड़ी। आखिरकार वर्ष 2011 में सूडान के दो हिस्से कर दिये गये। प्राकृतिक संसाधनों का ज्यादातर हिस्सा दक्षिणी सूडान के हिस्से में आया और धीरे–धीरे उत्तरी सूडान की माली हालत खराब होने लगी। अर्थव्यवस्था की बिगड़ती हालत ने आसमान छूती मुद्रास्फीति के साथ–साथ मन्दी को भी जन्म दिया। रोजमर्रा की चीजों की बढ़ती कीमतों ने लोगों में आक्रोश पैदा कर दिया। सूडान के लोग विकास की अनदेखी, खराब आर्थिक नीतियों, स्वास्थ्य और शिक्षा की बदहाली, भ्रष्टाचार, राजनीतिक समस्याओं और बाधाओं को लेकर भी काफी नाराज थे।

दिसम्बर 2018 में देश के एक हिस्से अत्बारा में बढ़ी कीमतों को लेकर प्रदर्शन शुरू हो गया जो धीरे–धीरे खार्तूम तक फैल गया। अल–बशीर ने जनता को गुमराह करने के लिए आपातकाल की घोषणा की और पूरे मंत्रिमंडल को भंग कर दिया। लेकिन जनता को सिर्फ एक ही बात मंजूर थी–– सत्ता परिवर्तन। वह लगातार सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करती रही। इसका फायदा उठाते हुए सेना ने उमर अल बशीर की सरकार को बर्खास्त कर दिया और 11 अप्रैल, 2019 को सत्ता अपने हाथ में लेते हुए आपातकाल लगा दिया। सूडानी जनता के दबाव ने 30 वर्ष से गद्दी पर काबिज निरंकुश जनरल उमर अल–बशीर के शासन को उखाड़ फेंकने में मदद की, लेकिन सेना के निरंकुश अधिकारियों ने सत्ता को हथिया लिया। इस तरह आमूलचूल परिवर्तन करने का जनता का सपना अधूरा रह गया।

इतनी हत्याओं के बाद भी सैन्य शासक वर्ग भयभीत है और राज्य शक्तिहीन। सैन्य परिषद का भी सेना पर पूरी तरह नियंत्रण नहीं है। असली शक्ति सड़कों और कारखानों में है। यह उन श्रमिकों, माध्यम वर्ग और गरीब किसानों के हाथों में है जो फिलहाल शक्तिशाली साबित हुए हैं। सूडान की जनता के पास सत्ता वर्ग को पराजित करने की शक्ति तो है किंतु समस्या यह है कि वहाँ सत्ता के एक–एक गढ़ को चकनाचूर करने के लिए जनता का कोई लोकप्रिय संगठन मौजूद नहीं है, जो जनता को मार्गदर्शन और नेतृत्व प्रदान कर सके और हत्यारे सैन्य शासन को पराजित करके जनपक्षधर सरकार की स्थापना करे।

सूडान की जनता का यह संघर्ष विशिष्ट और तात्कालिक माँगों से शुरू हुआ था लेकिन अब इसमें न्याय, अधिकार और लोकतंत्र जैसी जरूरी राजनीतिक माँग भी शामिल हो गये हैं। अगर सैन्य सरकार इन माँगों को पूरा नहीं करती है, जो स्पष्ट रूप से दिख रहा है तो जनता का विरोध जारी रहेगा। वह अपनी आजादी हासिल करके रहेगी। यूँ ही लाखों लोगों ने अपने जीवन को खतरे में नहीं डाला। उन्होंने महीनों तक इसलिए विरोध नहीं किया कि उन्हें केवल लुभावने वादों से संतोष करना पड़े। इस संघर्ष का उनके लिए कोई अर्थ नहीं होगा यदि वे अपने अधिकार पाने में सफल नहीं होते।

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