अक्टूबर 2019, अंक 33 में प्रकाशित

वित्तीय कम्पनियों का मकड़जाल

पिछले 20 सालों में बहुत छोटे–छोटे कर्ज का कारोबार यानी माइक्रोफाइनेंस में 40 फीसदी सालाना की दर से बढ़त हुई है। माइक्रोफाइनेंस के जरिये आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों की खुशहाली बढ़ाने के लिए 2006 में बांग्लादेशी प्रोफेसर युनूस को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। प्रोफेसर युनूस का दावा था कि माइक्रोफाइनेंस से गरीब लोगों की जिन्दगी में खुशहाली आती है। गरीब लोगों का तो पता नहीं लेकिन माइक्रोफाइनेंस में लगी कम्पनियाँ अमीर हो गयीं। इसमें कोई संदेह नहीं।
1990 के दशक में सूक्ष्म वित्त ऋण को भारत में बढ़ावा दिया गया जिसके परिणामस्वरूप ऋण देने में गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों की भागीदारी 2010 तक 15 फीसदी तथा 2019 तक 36–5 फीसदी हो गयी। भारत में इन कम्पनियों, बैंको तथा स्वयं सहायता समूहों की संख्या 10,190 हो गयी।
ये कम्पनियाँ रिक्शा चलानेवालों, छोटे दुकानदारों से लेकर छोटे उद्योगों तक को ऋण देती हैं क्योंकि भारत में सार्वजानिक बैंक इन लोगों को ऋण नहीं देते। ये कम्पनियाँ सार्वजनिक बैंक, निजी निवेशकों से गरीबों की सहायता के नाम पर सस्ती दर में ऋण लेकर गरीब लोगों को ऋण देती हैं।
इस कारोबार के दो मॉडल हैं––—एक है माइक्रोफाइनेंस संस्थाएँ और दूसरा स्वयं सहायता समूह।
स्वयं सहायता समूह के नाम से ये कम्पनियाँ अपने ग्राहकों का समूह बनाकर 1000 से 50 हजार तक का ऋण देती हैं जिसको साप्ताहिक या मासिक किस्तों के रूप में वापस लेती हैं। यदि समूह का कोई व्यक्ति किस्त चुकाने में असमर्थ हो जाता है तो किस्त का पैसा समूह के सदस्यों को चुकाना पड़ता है जिससे कम्पनी का मुनाफा बढ़ता रहता है।
माइक्रोफाइनेंस संस्थाएँ छोटे कर्ज व्यक्तिगत रूप में देती हैं जिसके लिए ऋण लेनेवाले को लगभग 50 पन्नों की फाइल पर हस्ताक्षर करने पड़ते हैं। इसमें लिखी हुई शर्तों से ग्राहक पूरी तरह अनजान रहता है। ऋण देने से पहले कम्पनी कुल ऋण (लोन अमाउन्ट) का 2 से 5 फीसदी फाइल चार्ज काटती हैं। 200 से 500 रुपये तक की बीमा राशि ग्राहक की बिना अनुमति के काट लेती हैं। 50 हजार का ऋण लेनेवाले ग्राहक को लगभग 47 हजार 5 सौ रुपये ग्राहक को प्राप्त होते हैं जबकि 50 हजार ब्याज का भुगतान करना पड़ता है। 50 हजार रुपये का दो वर्ष में 72 हजार रुपये ग्राहक को भुगतान करना पड़ता है। यदि ग्राहक प्रति माह की निश्चित तारीख को किस्त देने में असमर्थ रहता है तो दण्डस्वरूप 500 से 600 रुपये अतिरिक्त देना पड़ता है। ग्राहक अगले दिन भुगतान नहीं करता तो ओवर ड्यू के नाम पर कम्पनी 50 रुपये से लेकर 200 रुपये अतिरिक्त वसूलती है। पूरी ऋण प्रक्रिया में ब्याज दर 35 से 50 फीसदी तक हो जाती है। गरीब आदमी अपनी सामाजिक हैसियात बनाये रखने के लिए किसी तरह किस्त का भुगतान करता है। कम्पनियों का मुनाफा बढ़ता रहता है।
वित्तीय कम्पनियाँ 8–10 हजार रुपये मासिक वेतन पर नौजवान कर्मचारियों को रखती हैं। कर्मचारी के पास अपना वाहन और स्मार्ट फोन रहता है। मासिक किस्त लेने के लिए कर्मचारी को ग्राहक के पास जाना पड़ता है जिसके तेल खर्च का वहन खुद कर्मचारी करता है। कम्पनी कर्मचारी को प्रोत्साहन के लिए 2 हजार से 10 हजार रुपये अतिरिक्त तब देती है, जब कर्मचारी उस माह की कुल किस्तों का 95 फीसदी संग्रह कर ले। 95 फीसदी संग्रह न होने पर कर्मचारी को अपने वेतन से ग्राहक की किस्त देनी पड़ती है। कर्मचारी के इस पैसे के लिए कम्पनी की कोई जिम्मेदारी नहीं रहती। 95 फीसदी किस्तों का संग्रह न होने पर कर्मचारी को मानसिक रूप से उत्पीड़ित किया जाता है। कम्पनी में काम करने वाले कर्मचारियों के लिए माँ–बहन की गाली सुनना आम बात रहती है। कम्पनी में काम के घंटो की सीमा नहीं होती है।
इन कम्पनियों में काम करने वाले ज्यादातर कर्मचारी अपना तनाव कम करने के लिए मादक पदार्थों का सेवन करते हैं या मानसिक रूप से विक्षिप्त हो जाते हैं।
बेरोजगारी के इस दौर में आर्थिक, सामाजिक तथा मानसिक उत्पीड़न झेलते हुए नौजवान नौकरी बचाये रखने की कोशिश करते रहते हैं जबकि कम्पनियों का मुनाफा दिन–दुनी रात–चैगुनी रफ्तार से बढ़ता रहता है।
सरकार की नोटबन्दी, जीएसटी जैसी योजनाओं के चलते लोगों की नौकरियाँ चली गयीं जिसके कारण इन कम्पनियों का कारोबार भी ठप होने लगा है। अब ये कम्पनियाँ पुराना ऋण चुकाने के लिए ग्राहकों को दोवारा ऋण दे रही हैं। रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक इन कम्पनियों पर बैंको का लगभग 20 लाख करोड़ रुपये बकाया है जो बैंको के कुल ऋण 92 लाख करोड़ का लगभग पाँचवाँ हिस्सा है। इन कम्पनियों को राहत देने के लिए वित्त मंत्री सीतारामन ने आदेश दिया है कि 31 मार्च 2020 तक इस ऋण को एनपीए में न डाला जाये। तात्कालिक तौर पर समाधान होता दिखाई दे रहा है जबकि यह संकट और गहरा होकर उभरेगा जिससे पूरे देश की अर्थव्यवस्था का संकट और अधिक गहरायेगा।
 

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