मार्च 2019, अंक 31 में प्रकाशित

वेनेजुएला : तख्तापलट की अमरीकी साजिशों के बीच चरमराता हुआ एक देश

वेनेजुएला का संकट गहरा होता जा रहा है। राष्ट्रपति निकोलस मादुरो (यूनाइटेड सोशलिस्ट पार्टी) का तख्ता पलटने की समूची पटकथा वाशिंगटन में लिखी जा चुकी है और उस पटकथा के अनुसार अलग–अलग किरदार अपने अभिनय में लगे हैं। 21 जनवरी को विपक्षी गठबन्धन ‘यूनिटी कोलिशन’ के नेता खुआन गोइदो ने खुद को अन्तरिम राष्ट्रपति घोषित किया और अमरीका, कनाडा, फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी, स्पेन, बेल्जियम सहित अनेक पश्चिमी देशों ने और ब्राजील, कोलम्बिया, पेरू, चीली आदि कुछ लातिन अमरीकी देशों ने खुआन गोइदो को अपना समर्थन दे दिया। अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने फटाफट इस स्वघोषित राष्ट्रपति को मान्यता दे दी। इस घटना के साथ ही मादुरो सरकार ने अमरीका के साथ अपने कूटनीतिक सम्बन्ध समाप्त कर दिये। साथ ही आदेश दिया कि अमरीकी राजनयिक 72 घण्टे के अन्दर देश छोड़कर चले जायें हालाँकि इस आदेश को न तो अमरीका ने माना और न मादुरो सरकार ने इसे तूल ही दिया। अमरीका और उसके सहयोगी देशों ने माँग की है कि देश में आठ दिनों के अन्दर चुनाव कराये जायें, वरना गम्भीर परिणाम होंगे। वेनेजुएला के विदेश मंत्री खोखे अरिआस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कहा कि मादुरो का राष्ट्रपति पद पर बने रहना पूरी तरह वैध है और किसी को यह अधिकार नहीं है कि हमारे ऊपर चुनाव के लिए दबाव डाले।

रूस और चीन के साथ ईरान, सीरिया, क्यूबा, मैक्सिको, टर्की, निकारागुआ, उरुग्वे और बोलीविया ने खुलकर मादुरो सरकार का समर्थन किया है। इन देशों ने अमरीका को आगाह किया है कि वह वेनेजुएला के अन्दरूनी मामले में हस्तक्षेप करने से बाज आये। संयुक्त राष्ट्र में रूस के राजदूत वासिली नेबेंजिया ने वाशिंगटन पर आरोप लगाया है कि वह मादुरो सरकार का तख्ता पलटने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने अमरीका को चेतावनी भी दी है कि वह किसी भी हालत में सैनिक हस्तक्षेप न करे। रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने एक बयान में कहा कि “वेनेजुएला में विदेशी हस्तक्षेप ने अन्तरराष्ट्रीय कानून के बुनियादी तौर–तरीकों को ध्वस्त कर दिया है।” टर्की ने इस बात पर हैरानी व्यक्त की है कि “देश में एक निर्वाचित राष्ट्रपति के होते हुए कोई खुद को राष्ट्रपति घोषित कर देता है और उसे कुछ देश मान्यता भी दे देते हैं।”

इसमें कोई सन्देह नहीं कि शावेज की मृत्यु के बाद पिछले पाँच वर्षों के मादुरो के शासनकाल में देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह चरमरा गयी। महँगाई आसमान छू रही है और भारी संख्या में लोग देश से पलायन के लिए मजबूर हो गये हैं। लेकिन इसके लिए मादुरो सरकार की प्रशासनिक अक्षमता के साथ ही उन साजिशों का बहुत बड़ा योगदान है, जो वेनेजुएला के खिलाफ पिछले बीस वर्षों से अमरीका करता आ रहा है। 21 जनवरी से जो अशान्ति फैली है, उसकी वजह से अब तक जगह–जगह हुई मुठभेड़ों में 40 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। अमरीका के विदेश मंत्री माइक पोंपिओ आये दिन मादुरो सरकार के खिलाफ जहर उगल रहे हैं और रूस तथा चीन पर आरोप लगा रहे हैं कि इन दोनों देशों ने एक ‘विफल सरकार’ को बढ़ावा दिया है। सेना पूरी तरह राष्ट्रपति मादुरो के साथ है। लेकिन अगर इसमें फूट पड़ गयी, जिसकी कोशिश लगातार अमरीका कर रहा है तो हालात और भी खराब हो सकते हैं। इस बीच वाशिंगटन में तैनात वेनेजुएला के सैनिक प्रतिनिधि ने पाला बदल दिया है और मादुरो सरकार के बजाय स्वघोषित राष्ट्रपति गोइदो के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त की है।

कुल मिलाकर वेनेजुएला की स्थिति बेहद गम्भीर बनी हुई है। अन्तरराष्ट्रीय प्रेक्षकों का मानना है कि अगर निकट भविष्य में संकट का कोई समाधान नहीं ढूँढा गया और अमरीका ने सैनिक हस्तक्षेप का निर्णय ले लिया तो समूची दुनिया एक नये युद्ध की चपेट में आ जायेगी। वैसे, चीन और रूस के पास वीटो का अधिकार होने की वजह से यह उम्मीद की जा सकती है कि अमरीका पर शायद सुरक्षा परिषद का दबाव बना रहे।

30 जनवरी को अमरीका की एक और घोषणा ने समूची स्थिति को काफी जटिल बना दिया है। पहले तो इसने वेनेजुएला की सरकारी तेल कम्पनी पीडीवीएसए पर प्रतिबन्ध लगाते हुए वेनेजुएला की सेना से सत्ता के शान्तिपूर्ण हस्तान्तरण को स्वीकार करने के लिए कहा और जब उसकी इस बात पर सेना ने ध्यान नहीं दिया तो उसने अमरीकी बैंकों में मौजूद खातों का नियंत्रण खुआन गोइदो को देने की घोषणा की। इसका अर्थ यह हुआ कि वेनेजुएला के तेल की बिक्री का पैसा मादुरो की सरकार तक नहीं पहुँचेगा। गोइदो भी यही चाहते थे कि तेल की सम्पत्ति से होने वाली कमाई पर उनका नियंत्रण हो जाये। स्मरणीय है कि दुनिया का सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश वेनेजुएला अपने तेल की बिक्री के लिए अमरीका पर काफी हद तक निर्भर है। वह अपने तेल निर्यात का 41 प्रतिशत अमरीका को बिक्री करता है। इतना ही नहीं, बल्कि वह अमरीका को कच्चा तेल देने वाले दुनिया के चार सबसे बड़े उत्पादक देशों में भी शामिल है। अमरीका द्वारा गोइदो के हाथ में तेल से होने वाली आय का नियंत्रण देने के बाद वेनेजुएला सरकार ने कुछ एहतियाती कदम उठाये हैं। वेनेजुएला के अटार्नी जनरल तारेक विलियम सआब ने देश की सुप्रीम कोर्ट से कहा कि गोइदो के देश छोड़ने पर प्रतिबन्ध लगाया जाये और उनकी सम्पत्तियों को फ्रीज कर दिया जाये। अभी सुप्रीम कोर्ट ने कोई आदेश जारी नहीं किया है, लेकिन मादुरो के प्रति उसके झुकाव को देखते हुए कहा जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट यह आदेश जारी कर देगा।

अमरीकापरस्त अनेक विश्लेषकों की दलील है कि मादुरो सरकार के अन्तर्गत देश ऐसी बदहाल स्थिति में पहुँच गया था कि अमरीका के लिए हस्तक्षेप करना जरूरी हो गया। वे लोग इस तथ्य को छुपा रहे हैं कि अमरीका पिछले बीस वर्षों से लगातार वेनेजुएला की सरकार के खिलाफ सक्रिय रहा है। दरअसल अमरीका ने हमेशा लातिन अमरीकी देशों को अपना ‘बैक यार्ड’ माना और वहाँ वह ऐसी किसी सरकार को बर्दाश्त नहीं कर पाता है, जिसकी नीतियाँ समाजवादी हों। अतीत में लातिन अमरीकी देशों में अमरीका ने कब–कब हस्तक्षेप किया है, उनका दस्तावेज अगर तैयार किया जाये तो वह पूरा ग्रन्थ बन जायेगा। वेनेजुएला में भी 1998 में ह्यूगो शावेज की सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही अमरीका की सक्रियता बढ़ गयी, क्योंकि शावेज ने आते ही सबसे पहले विदेशी लूट पर रोक लगायी। उन्होंने बड़े उद्योगों का राष्ट्रीयकरण किया, भूमि सुधार कार्यक्रम के अन्तर्गत बड़े पैमाने पर भूमिहीनों के बीच जमीन का वितरण किया और अमरीकी कम्पनियों की बेलगाम लूट को रोका।

जो लोग आज मादुरो सरकार की असफलता की वजह से अमरीकी हस्तक्षेप को जायज ठहरा रहे हैं, उनके पास इसका कोई जवाब नहीं है कि जिस समय शावेज की नीतियों के फलस्वरूप वहाँ के लोगों की स्थिति काफी बेहतर हो गयी थी, तब अमरीका ने क्यों हस्तक्षेप किया था। स्मरणीय है कि 2002 में एक साजिश के तहत अमरीका ने शावेज का अपहरण तक करा लिया था और चैम्बर ऑफ कामर्स के अध्यक्ष पेद्रो कारमोना को राष्ट्रपति घोषित कर दिया था। अमरीका की यह साजिश महज 48 घण्टे तक ही कामयाब रह सकी और व्यापक जनविद्रोह ने शावेज को फिर सत्तारूढ़ कर दिया। शावेज से अमरीका क्यों नाराज था, इसके लिए उन दिनों की कुछ उपलब्धियों पर गौर करना प्रासंगिक होगा। 2005 में संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनेस्को ने बाकायदा इस तथ्य की पुष्टि की कि वेनेजुएला में कोई भी अशिक्षित नहीं रहा। 1998 से 2011 के बीच स्कूलों में प्रवेश लेने वाले बच्चों की संख्या जहाँ साठ लाख से बढ़कर एक करोड़ तीस लाख हो गयी, वहीं 2000 में विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों की जो संख्या 8,95,000 थी वह बढ़कर 2011 तक 20,30,000 हो गयी। शिक्षा के साथ जन स्वास्थ्य कार्यक्रमों को शावेज ने बड़े पैमाने पर लागू किया। 1999 में एक लाख की जनसंख्या पर डॉक्टरों की संख्या बीस थी, जो 2010 में उतनी ही जनसंख्या पर बढ़कर 80 हो गयी, यानी 400 प्रतिशत की बढ़ोतरी। इसी तरह शिशु मृत्यु दर प्रति हजार पर 19 थी, जो 2012 तक घटकर दस रह गयी। लोगों को आवास की सुविधा के मामले में भी शावेज ने एक रिकॉर्ड कायम किया। सत्ता में आने के बाद 13 वर्षों के अन्दर जनता को 7 लाख से अधिक घर बनाकर आवंटित किये गये। भूमि सुधार कार्यक्रम के अन्तर्गत 30 लाख हेक्टेयर भूमि का वितरण हुआ, जिसमें तकरीबन एक लाख हेक्टेयर भूमि वहाँ के आदिवासियों के बीच बाँटी गयी। 1998 में बेरोजगारी की दर 15.2 प्रतिशत थी, जो 2012 में घटकर 6.4 प्रतिशत रह गयी। काम के घण्टों में कमी की गयी और मजदूरों को तरह–तरह की राहत दी गयी।

शावेज को क्यूबा के फिदेल कास्त्रो का जबर्दस्त समर्थन प्राप्त था और अमरीका के लिए यह चिन्ता की बात थी। इतना ही नहीं, शावेज ने लातिन अमरीकी और कैरेबियन देशों के समुदाय को एकजुट करते हुए ‘सेलाक’ (कम्युनिटी ऑफ लातिन अमरीकन ऐण्ड कैरीबियन स्टेट्स) का गठन किया, जो अमरीका के प्रभुत्व वाले ओएएस (आर्गेनाइजेशन ऑफ अमरीकन स्टेट्स) का मुकाबला करने के लिए स्थापित किया गया था। उन दिनों वेनेजुएला की हैसियत एक खुशहाल राष्ट्र की थी। इन सबके बावजूद अमरीका ने इस हद तक वेनेजुएला को परेशान किया कि संयुक्त राष्ट्र की बैठक में शावेज ने तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति जार्ज बुश को ‘शैतान’ विशेषण से सम्बोधित किया, जिसकी पूरी दुनिया में चर्चा हुई। उन दिनों अमरीका की राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार कोंडालिजा राइस और शावेज के बीच आये दिन हो रही तीखी नोक–झोंक लगातार अखबारों की सुर्खियाँ बनी रहीं। कहने का तात्पर्य यह है कि अमरीका कभी नहीं चाहता कि लातिन अमरीका के किसी भी देश में कोई ऐसी सरकार स्थापित हो, जो पूँजीवाद के खिलाफ कारगर कार्यक्रम ले सके। वेनेजुएला के सामने आज जो संकट पैदा हुआ है, उसके मूल में पूँजीवाद बनाम समाजवाद की ही लड़ाई है।

अप्रैल 2013 में शावेज की मृत्यु हुई और इसके बाद हुए चुनाव में उनके उत्तराधिकारी निकोलस मादुरो ने सत्ता की बागडोर सम्भाली। मादुरो ने भी उन्हीं नीतियों को आगे बढ़ाया, जिनकी शुरुआत शावेज ने की थी। शावेज का एक करिश्माई व्यक्तित्व था, जिसका लाभ उन्हें मिल रहा था। मादुरो के साथ ऐसी स्थिति नहीं थी। हालाँकि मादुरो को भी जनता का व्यापक समर्थन प्राप्त था। लेकिन दिसम्बर 2015 में हुए संसदीय चुनावों में विपक्षी डेमोक्रेटिक यूनिटी के गठबन्धन को संसद में बहुमत मिल गया और पिछले सोलह वर्षों से चला आ रहा सोशलिस्ट पार्टी का नियंत्रण समाप्त हो गया। ऐसे में मादुरो के खिलाफ संसद के जरिए अमरीकी साजिशों को अमल में लाना आसान हो गया।

31 जनवरी को इन पंक्तियों के लिखे जाने तक राष्ट्रपति मादुरो ने रूस की समाचार एजेंसी आरआइए से कहा है कि देश में फैली अराजक स्थिति को काबू में लाने के लिए वह विपक्षी दलों और खुआन गोइदो के साथ बातचीत के लिए तैयार हैं। उन्होंने यह भी ऐलान किया है कि सबकी सहमति से चुनावों के लिए एक तारीख भी तय की जा सकती है। स्थिति को और भी ज्यादा तनावपूर्ण रूप लेने से रोकने में उनकी यह पहल कारगर हो सकती है, बशर्ते अमरीका इसमें कोई अड़चन न डाले।

 
 

 

 

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