जनवरी 2021, अंक 37 में प्रकाशित

उत्तराखण्ड : थानो जंगल कटान, विकास के नाम पर विनाश

 उत्तराखण्ड का नाम सुनते ही हमारे दिमाग में सबसे पहले जो तस्वीर बनती है वह है हरे–भरे जंगल, पहाड़, जंगली जानवर, बर्फ, ठंडा मौसम और हर वह चीज जो रूह को सुकून दे सके।

जहाँ एक तरफ हमारी सरकार हरा–भरा राज्य होने की डींगें हाँकती है, वहीं दूसरी ओर राजधानी से 20 किलोमीटर दूर, उत्तराखंड सरकार ने 243 एकड़ वन भूमि को एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एएआई) को हस्तान्तरित करने के लिए राष्ट्रीय वन्य जीव बोर्ड की मंजूरी लेने का फैसला किया है। यदि स्वीकृति दे दी गयी, तो देहरादून के जौलीग्राण्ट हवाई अड्डे के विस्तार के लिए थानो रेंज में 10,000 से अधिक पेड़ों को काट दिया जायेगा।

 थानो के जंगल में कुल 9,745 पेड़ हैं जिसमें खैर (3,405), शीशम (2,135), सागौन (185) और गुलमोहर (120) जैसी कीमती प्रजातियाँ शामिल हैं। साथ ही पेड़ों की 25 अन्य प्रजातियाँ भी हैं जिन्हें काटने का प्रस्ताव है। इस क्षेत्र में पक्षियों की 104 प्रजातियाँ पायी जाती हैं। राजाजी राष्ट्रीय पार्क से महज 8 किलोमीटर की दूरी पर यह जंगल हाथियों की आवाजाही का भी रास्ता है। इसके अलावा प्रदेश में विकास परियोजना की राह से वाइल्ड लाइफ का अड़ंगा दूर करने के लिए सरकार शिवालिक सहित प्रदेश में 14 एलिफैण्ट रिजर्व खत्म करने जा रही है। तैयार प्रस्ताव के अनुसार प्रदेश में दून से लेकर शारदा नदी तक करीब 5200 वर्ग किलोमीटर का एरिया एलिफेंट रिजर्व के नाम पर नोटिफाई है। शिवालिक रिजर्व के कारण जौलीग्राण्ट एयरपोर्ट के विस्तार में दिक्कत आ रही है। इस कारण सरकार शिवालिक समेत अन्य एलिफेंट रिजर्व को डिनोटिफाई करने जा रही है।

इन पेड़ों को काटे जाने के पक्ष में सरकार तर्क देती है कि भविष्य में हवाई यातायात की बढ़ती माँग को ध्यान में रखते हुए हवाई अड्डे का विस्तार होना जरूरी है। अब सवाल यह है कि इन हवाई सेवाओं का लुत्फ उठा कौन रहा है ? राज्य में नौकरी के नाम पर सरकारी नौकरियाँ या छोटा–मोटा काम करने वाले लोगों की तादाद ज्यादा है। यह वर्ग हवाई जहाज में जाना तो दूर, कभी हवाई अड्डे तक भी नहीं जाता। तो क्या हमारी विरासत में मिले पेड़ों का खात्मा सिर्फ मुट्ठी भर नेताओं और अमीरों की अय्याशियों के लिए किया जा रहा है ?

उत्तराखण्ड के प्रमुख वन्यजीव वार्डन जबर सिंह सुहाग ने द वायर साइंस से बात करते हुए पुष्टि की कि बोर्ड ने ग्यारहवें रिजर्व को निरूपित करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। उन्होंने पहले द वायर साइंस को बताया था कि एक हाथी रिजर्व को राज्य में “विकास” में बाधा डालने की इजाजत नहीं दी जा सकती है।

“आज यह हाथी रिजर्व के नाम पर है, कल कोई तितली रिजर्व आ जायेगा। इस तरह से उत्तराखण्ड में कोई काम नहीं हो सकता। हाथी कहीं से भी गुजर सकता है, इसका मतलब यह नहीं है कि इसे कोई कोरिडोर घोषित किया जायेगा।”

आज जलवायु परिवर्तन हमारे सामने बहुत बड़ी समस्या है। इतनी बड़ी संख्या में पेड़ों को काटकर पर्यावरण का भारी नुकसान होगा जिसकी भरपाई करना सम्भव नहीं है। एक समय देहरादून के ऊपरी हिस्सों में भी बर्फ गिरती थी। किसी समय घरों में पंखे नहीं होते थे आज वहाँ भी एयर कंडिशनर दिखाई देते हैं। पहले ही विकास के नाम पर ऑल वेदर रोड के चलते जंगलों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है, यदि इस योजना को मंजूरी मिलती है तो वन्य जीव प्रभावित होने के साथ अमूल्य वृक्ष प्रजातियों का नुकसान होगा। रिपोर्ट के अनुसार देहरादून की हवा में इतनी गन्दगी है कि कोई व्यक्ति सुबह से शाम तक घण्टाघर (देहरादून के केंद्र) में खड़ा रहे तो उसके अंदर 6 सिगरेट के बराबर धुआँ घुस जाएगा। जब पर्यावरण की चंद साँसे बची हो उस वक्त थानो के हजारों पेड़ों को काटना वेण्टिलेटर का बटन बन्द करने जैसा होगा। जिस जगह हवाई अड्डे का विस्तारीकरण होना है वह भूकम्पीय क्षेत्र–4 के अंतर्गत आता है, इससे छेड़छाड़ करना वैसे भी खतरे से खाली नहीं है। परियोजना के लिए भूजल के दोहन के चलते भविष्य में पानी की भारी कमी होगी।

हमारा राज्य और इसके जंगल हमारे पूर्वज की विरासत हैं। हम गौरा देवी, गोविंद सिंह रावत, चंडी प्रसाद भट्ट, शिवानंद नौटियाल, हयात सिंह जैसे लोगों के वंशज हैं, हमारे भविष्य को विकास की बलि चढ़ाने का हक हमारी सरकार को नहीं है। यह मिट्टी हमारी है, यह पानी हमारा है, ये जंगल हमारे हैं जिनको हमारे पूर्वजों ने संजोकर हमें सौंपा है, अब इनको बचाना हमारी जिम्मेदारी है।

क्या आप ऐसा विकास चाहेंगे जो जंगल के विनाश की कीमत पर चन्द लोगों की अय्याशी का इन्तजाम करता हो ?

शायद नहीं। बिलकुल नहीं।

–– शालिनी

 
 

 

 

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