जून 2023, अंक 43 में प्रकाशित

सौर ऊर्जा से भी पर्यावरण को नुकसान

राजस्थान के बीकानेर बाड़मेर, जैसलमेर और जो/ापुर जैसे जिलों में बहुत से दैत्याकार सोलर प्लाण्ट लगाये गये हैं। 25 मई के दैनिक भास्कर अखबार मे इन सोलर प्लाण्टों के हानिकारक प्रभाव के बारे में एक जाँच रिर्पोट छपी। इस रिर्पोट के मुताबिक जिन जगहों पर प्लाण्ट लगे हैं वहाँ केे तापमान में 3 से 5 डिग्री सेल्सियस की भयानक बढ़ोतरी हुई है। सौर ऊर्जा को ‘ग्रीन एनर्जी’ बताया जाता है लेकिन इसी ‘ग्रीन एनर्जी’ से रेगिस्तानी इलाकों का संवेदनशील पर्यावरण, प्राकृतिक संसा/ान और जैवजगत तबाह हो रहे हैं।

 राजस्थान भारत में सबसे ज्यादा लगभग 17 हजार मेगावाट सौर बिजली पैदा करता है। जो/ापुर जिले में स्थित भादला सोलर पॉवर प्लाण्ट दुनिया का सबसे बड़ा सोलर प्लाण्ट है। यह 14 हजार एकड़ में फैला हुआ है। राज्य में इस तरह के छोटे–बड़े सैकड़ों प्लाण्ट है। एमजीएस विवि बीकानेर के पर्यावरण विज्ञान विभाग के विभागा/यक्ष प्रोफेसर अनिल छंगाणी का कहना है कि सोलर प्लाण्ट के कारण पूरे पश्चिमी राजस्थान का तापमान बढ़ रहा है। बिट्स राँची के वैज्ञानिकों ने भी इसकी पुष्टि की है। भारत में सोलर कचरे के निस्तारण की कोई नीति नहीं है। गरीब खेत मालिक थोड़े से रुपयों के लालच में पेड़ कटवाने की सहमति देते हैं। जो ग्राम समाज या वन विभाग के पेड़ हैं उन्हे काटने की इजाजत भी बहुत आसानी से मिल जाती है। इसके चलते रेतीले इलाके में हजारों पेड़ काट दिये गये हैं। वहाँ एक–एक पेड़ बेशकीमती है। ऐसा ही होता रहा तो कुछ सालों बाद का दृश्य डरावना होगा। शायद इन इलाकों में कोई आबादी या जीव ही न बचे।

सोलर प्लाण्ट में बिजली बनाने के लिए पानी का इस्तेमाल नहीं होता है। लेकिन फोटोवोल्टिक पैनलों को ठण्डा और साफ करने के लिए भारी मात्रा में पानी की जरूरत होती है। इसके लिए आस–पास के तालाबों के पानी का इस्तेमाल किया जाता है। इसके चलते इलाके के ज्यादातर तालाब खाली हो गये हैं। राजस्थान जैसे रेगिस्तानी राज्य में साफ पानी की मौजूदगी बेहद कम है। यहाँ तक कि मनुष्यों और पशुओं को पीने के लिए भी पर्याप्त साफ पानी नहीं हैं, सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी उपलब्/ाता का तो सवाल ही नहीं। ऐसे राज्य में सोलर प्लाण्टों को साफ और ठण्डा रखने के लिए हर हफ्ते करोड़ों लीटर पानी खर्च कर दिया जाना बेहद खतरनाक है।

सोलर प्लाण्ट लगाने के लिए राजस्थान के रेतीले जिलों में नाममात्र के पेड़ों में से खेजड़ी, रोहिड़ा, केर, बेर, कुमटिया के लाखों पेड़ काट दिये गये हैं और नये पेड़ पनप नहीं रहे हैं। इस भयानक तबाही से इन इलाकांे में चिड़ियाँ, तितलियाँ, म/ाुमक्खियाँ और बहुत से छोटे–जीव जन्तु बेमौत मारे जा रहे हैं।

ग्रीन एनर्जी के नाम पर जिस सौर ऊर्जा को बढ़ावा दिया जा रहा है, वास्तव में उससे भी पर्यावरण को भारी नुकसान हो रहा है। राजस्थान का उदाहरण हमारे सामने है। सच तो यह है कि सौर ऊर्जा पैदा करनेवाली अडानी की कम्पनियाँ पर्यावरण के बारे में रत्ती भर भी चिन्ता नहीं करतीं। पर्यावरण को बचाने का तरीका यह है कि ऊर्जा की खपत को कम से कम किया जाये। क्या पर्यावरण को विनाश के कगार पर पहुँचाने वाले पूँजीपति पर्यावरण की रक्षा के लिए अपना मुनाफा छोड़ने को तैयार होंगे? नहीं, इसलिए सौर ऊर्जा और ‘ग्रीन एनर्जी’ का उनका शिगूफा पर्यावरण की कोई मदद करने वाला नहीं है।

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