जून 2021, अंक 38 में प्रकाशित

अमरीकी घुसपैठ के आगे नतमस्तक राष्ट्रवादी सरकार

7 अप्रैल को अमरीका का सबसे बड़ा योद्धपोत–– जॉन पॉल जोन्स–– जबरन भारत की जल सीमा में घुस गया। जिस क्षेत्र में अमरीकी युद्धपोत घुसा वह समुद्री प्राकृतिक संसाधनों से सम्पन्न भारत का विशिष्ठ आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) है। यह जगह अरब सागर में केरल और लक्षद्वीप के नजदीक है। अमरीका ने इस घुसपैठ को ‘फ्रीडम ऑफ नेवीगेशन ऑपरेशन’ यानी समुद्र में कोई भी कार्रवाई करने की अपनी आजादी बताया है।

ईईजेड किसी देश का वह जल क्षेत्र है (सामान्य तौर पर जमीन से लगा 200 नॉटिकल माइल समुद्री क्षेत्र) जिसके संसाधनों का प्रबंधन, दोहन और संरक्षण करने का उस देश को विशेष अधिकार प्राप्त होता है। किसी देश के ईईजेड में घुसपैठ अन्तरराष्ट्रीय कानून के मुताबिक अपराध है और साथ ही यह उस देश की स्वायत्तता पर हमला भी है। यानी व्यापार के लिए किसी दूसरे देश का जहाज भारत के ईईजेड में तो आ सकता है, लेकिन सैन्य जहाज के आने पर पाबन्दी होती है।

भारत ने ‘यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑन दी लॉ ऑफ सी (यूएनसीएलओएस) के आधार पर इस घुसपैठ पर आपत्ति जताई है। भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा है, विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र में और महाद्वीपीय तटों में सैन्य अभ्यास या युद्धाभ्यास करने की इजाजत नहीं देता है, खासकर वह अभ्यास जिनमें तटीय राष्ट्रों की सहमति के बिना हथियारों या विस्फोटकों का प्रयोग होता हैं।’ आपत्ति की भाषा पर गौर कीजिए, इससे हल्की प्रतिक्रिया नहीं दी जा सकती।

मंत्रालय आगे कहता है, “फारस की खाड़ी से मलक्का जलडमरूमध्य की तरफ जा रहे यूएसएस जॉन पॉल जोन्स पर लगातार निगरानी रखी जा रही थी। हमने राजनयिक चैनलों के माध्यम से हमारे र्आिर्थक क्षेत्र से गुजरने को लेकर अमरीकी सरकार को अपनी चिन्ताओं से अवगत कराया है।” स्पष्ट है कि अमरीकी जहाज भारत सरकार की नजरों के सामने घुसपैठ कर रहा था। ऐसी स्थिति में भारतीय नौसेना को या रक्षा मंत्रालय को तत्काल प्रतिक्रिया करनी चाहिए थी विदेश मंत्रालय को नहीं। जब कोई हथियारबन्द घुसपैठिया, आपकी नजरों के सामने आपके घर में घुसता है तो सबसे पहले उसे तुरन्त रोका जाता है, राजनयिक बातचीत बाद में होती रहती है।

अमरीका की ओर से रक्षा मंत्रालय ने प्रतिक्रिया दी है। उसने भारत की आपत्ति को खारिज करते हुए कहा है कि भारत की मंजूरी के बिना उसके विशिष्ठ आर्थिक क्षेत्र में घुसपैठ अन्तरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन नहीं हैं। अमरीकी प्रतिरक्षा मुख्यालय, पेंटागन के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने कहा, “मैं आपको बता सकता हूँ कि नौ सेना के विध्वंसक पोत जॉन पॉल जोन्स ने मालदीव के पास समुद्री क्षेत्र में सामान्य परिचालन के तहत अहानिकारक तरीके से गुजरते हुए अपने नौवहन अधिकारों एवं स्वतंत्रता का उपयोग किया है और इस तरह उसने बिना पूर्व अनुमति के उसके (भारत के) विशिष्ठ आर्थिक क्षेत्र में परिचालन किया हैं। यह अन्तरराष्ट्रीय कानून के अनुरूप है।” यानी भारत के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र में घुसपैठ को अमरीका अपना अधिकार मानता है और इसके लिए भारत की कोई अनुमति लेने की जरूरत नहीं है।

अमरीका का भारत के ईईजेड मेंे घुसने का यह पहला मौका नहीं। उसका कहना है कि वह 2015,16,17 व 2019 में भी ऐसा कर चुका है। इस बार भी अमरीका ने ही घटना को सार्वजनिक किया है भारत ने नहीं। अमरीका ने माना हैं कि उसका जहाज भारत के ईईजेड में घुसा है। वह खूब अच्छी तरह जानता है कि अगर भारत से उसके समूद्र में घुसने की इजाजत माँगी तो भारत इनकार नहीं कर सकता था। उसने जानबूझकर अनुमति नहीं ली। इसके कुछ खास कारण है।

चीन की घेराबन्दी और दक्षिणी चीन सागर में उसके बढ़ते प्रभुत्व पर काबू पाने के लिए अमरीका हिन्द–प्रशान्त क्षेत्र में मुक्त नौपरिवहन के नाम पर अभियान छेड़े हुए है। अपने सारे पड़ोसी देशों से रिश्ते खराब करके भारत इस अभियान में अमरीका का पिछलग्गू बना हुआ है। भारत, अमरीका, जापान और आस्ट्रेलिया द्वारा बनाया गया समूह, क्वाड का मकसद ही अमरीका के इसी अभियान की सेवा करना है। अमरीका भारत के सामने स्पष्ट करना चाहता है कि हिन्द प्रशान्त क्षेत्र में मुक्त नौ परिवहन का अमरीकी सूत्रीकरण चीन की तरह भारत पर भी लागू होता है। अमरीका भारत को भी स्पष्ट संदेश देना और यह स्थापित करना चाहता था कि भारत के र्ईईजेड क्षेत्र में घुसना उसका अधिकार बन चुका है। इस घटना ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि क्वाड अमरीका, जापान और आस्ट्रेलिया के राष्ट्रीय हितों की सेवा करता है। भारत की इसमें वही हालत है जो साहबों की बैठकों में कुर्सी लगाने वालों की होती है।

भारत के मूर्ख और बौने शासकों ने भारत को अभूतपूर्व संकट में फँसा दिया है। दुनिया की एक महाशक्ति लेह लद्दाख में सर की तरफ से भारत के पर्वतों पर कब्जा कर रही है और दूसरी ने उसका समुद्र कब्जाना शुरू कर दिया है।

 
 

 

 

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