सितम्बर 2024, अंक 46 में प्रकाशित

महिलाओं के खिलाफ बढ़ती हैवानियत

बीते 10 जुलाई को चन्दौली के अलीनगर में एक 22 साल की लड़की के साथ आठ लड़कों ने बलात्कार किया और उसे तड़पता हुआ रेल की पटरियों पर फेंक दिया। जहाँ पुलिस को इसके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करनी चाहिए थी लेकिन उसने उल्टा उस लड़की को ही दो दिन तक थाने में जबरदस्ती बैठा के रखा और उसके साथ मारपीट की।

यह सिर्फ एक लड़की की या एक जगह की बात नहीं है, बल्कि देश में हर जगह यही माहौल है–– बलिया में 6 अगस्त को एक नाबालिग बच्ची से बलात्कार किया गया और उसका वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर डाल दिया गया, हाथरस में 2 अगस्त को 5 नाबालिग लड़कों ने एक लड़की का बलात्कार किया। इसी दिन राजस्थान में दो लड़कों ने एक लड़की का लगातार तीन दिनों तक बलात्कार किया, जिसके दो दिन बाद अस्पताल में इलाज के दौरान उसकी मौत हो गयी। इन सभी घटनाओं के आरोपी या तो जेल में हैं या फरार हैं।

9 अगस्त को कलकत्ता में आरजी कर मेडिकल कॉलेज में एक महिला डॉक्टर 36 घण्टे से ड्यूटी कर रही थी, उसके साथ रेप के बाद उसकी हत्या कर दी गयी। अगले दिन ही कॉलेज में पढ़ रहे डॉक्टरों ने निष्पक्ष कार्रवाई करने की माँग के साथ परिसर में आन्दोलन शुरू कर दिया। यह आन्दोलन आग की लपटों की तरह पूरे देश में फैल गया और देश के लगभग सभी सरकारी अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजो के डॉक्टरों ने पीड़िता को न्याय दिलाने और विभिन्न माँगों को लेकर प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। 14 अगस्त को महाराष्ट्र के बदलापुर में चार साल की दो बच्चियों के साथ बलात्कार की घटना सामने आयी जिसने सबको झकझोर कर रख दिया। सामान्य लोग भी इन दोनों घटनाओं से आक्रोशित होकर सड़कों पर उतर आये, वे भी प्रदर्शन और कैण्डल मार्च निकाल रहे हैं।

देश में महिलाओं के खिलाफ हैवानियत साल दर साल बढ़ती जा रही है। पिछले साल की तुलना में इस साल महिलाओं के साथ हिंसा के मामले में चार प्रतिशत की बढ़त हुई है। एक तरफ उत्तर प्रदेश, महिलाओं के लिए देश का सबसे असुरक्षित राज्य है जहाँ हर साल महिलाओं पर हुए अपराध के 65 हजार से भी ज्यादा मामले सामनें आते हैं, यहाँ हर रोज 180 महिलाएँ किसी न किसी तरह की हिंसा का शिकार बनती हैं। दूसरी तरफ कलकत्ता को तुलनात्मक रूप से सबसे सुरक्षित राज्य बताया जाता है, वहाँ भी महिला डॉक्टर के साथ हुए बलात्कार और हत्या की घटना समाज में बढ़ती एक भयंकर सामाजिक समस्या की ओर इशारा कर रही है।

इन घटनाओं को सुनने मात्र से ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं जिनके साथ ऐसा हुआ है उन पर क्या बीती होगी, उनके परिवार का क्या हाल हुआ होगा, जिन्होंने अपनी नजरों के सामने अपनी बच्ची को तड़पते और मरते देखा। भारतीय समाज में जहाँ बेटियों को परिवार की इज्जत कहा जाता है, ये घटनाएँ उस समाज के खोखलेपन को हमारे सामने साफ जाहिर करती हैं।

2012 में निर्भया काण्ड भी ऐसी ही घटना थी जिसने पूरे देश को आक्रोश से भर दिया था। उस समय निर्भया को भी न्याय दिलाने के लिए कोलकाता रेप और मर्डर केस की तरह ही बड़े स्तर पर पूरे देश में आन्दोलन हुए थे जिसने उस समय की तत्कालीन सरकार को कड़े कानून बनाने पर मजबूर कर दिया था। उस वक्त ‘निर्भया ऐक्ट’, ‘पोक्सो ऐक्ट’ जैसे कई सख्त कानून पारित किये गये जिनमें आरोपियों के खिलाफ मृत्युदण्ड और किसी भी हाल में जमानत न देने के कड़े प्रावधान तक किये गये थे। लेकिन अगर कानून बनाने से ही यह समस्या हल हो जाती तो आज ये घटनाएँ पहले की तुलना में इतनी अधिक नहीं बढ़ती। मात्र कानून बनाना समस्या का हल नहीं है। 

सवाल यह है कि क्या मौजूद व्यवस्था में महिलाएँ सुरक्षित हो सकती हैं? क्या भारत की राजनीतिक व्यवस्था इस स्थिति में है कि वह महिलाओं को सुरक्षा दे सके?

आज हालत यह है कि देश की संसद और विधान सभाओं में कानून बनाने वाले नेताओं में से 151 मौजूदा सांसदों और विधायकों पर महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले दर्ज हैं जिसमें से 16 पर बलात्कार के गम्भीर आरोप हैं। इनसे ये उम्मीद रखना सरासर छलावा है कि ये महिलाओं के लिए सुरक्षित और बेहतर समाज बनाने के लिए कुछ कर सकते हैं।

महिलाएँ तभी सुरक्षित हो सकती हैं जब एक ऐसा समाज बनाया जाये जिसमें उन्हें बराबरी का दर्जा मिले और उन्हे बिना डरे अपने सपनों को पूरा करने की आजादी हो। इसके लिए हमें अपराध के कारणों को समझने और उसे जड़ से खत्म करने की जरूरत है, न कि केवल अपराधी को सख्त सजा देकर मन की भड़ास निकाल लेने भर से काम चलेगा। अगर यही हाल रहा तो अपराधियों को खत्म करने के बाद भी अपराध बढ़ता जायेगा क्योंकि नये–नये अपराधी पैदा करने की उर्वर जमीन समाज में मौजूद है।

–– जैनब

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