जून 2023, अंक 43 में प्रकाशित

गुजरात शिक्षा बोर्ड ही बेच रहा बच्चों का गोपनीय डेटा

अप्रैल में दैनिक भास्कर ने छात्रों के निजी डेटा बेचने वाले डेटा सेण्टर के एजेण्टों के जाँच–पड़ताल की चैकानें वाली रिपोर्ट पेश की। इस रिपोर्ट के अनुसार 10वीं और 12वीं में पढ़ रहे गुजरात के करीब 5 लाख बच्चों के गोपनीय डेटा 2 से 6 हजार रुपये में बेचा जा चुका है। इसमें बच्चे के नाम, माता–पिता के नाम, घर का पता और मोबाइल नम्बर इत्यादि शामिल है। नोएडा, बंगलुरु जैसे बड़े शहरों में बैठे डेटा प्रोवाइडरों का ‘शिक्षा बोर्ड’ के साथ साँठगाँठ है। जब बच्चे बोर्ड परीक्षा के फॉर्म भरते हैं तो स्कूलों में इनके निजी डेटा का इकट्ठे हो जाते हैं। स्कूल ये डेटा बोर्ड को देते हैं और बोर्ड के कर्मचारी/अधिकारी इसको डेटा एजेण्टों को बेच रहे हैं। इसके बाद इस डेटा को एजेण्ट अलग–अलग कोचिंग इंस्टीट्यूट को बेच देते हैं। दैनिक भास्कर ने इसकी पुष्टि करने के लिए 4 डेटा प्रोवाइडर वेबसाइट के एजेण्टों से मैसेज के जरिये डील की। मात्र एक मैसेज में एजेण्ट ने सैंपल के रूप में सैकड़ों बच्चों के गोपनीय डेटा भेज दिया। डेटा क्रॉस वेरीफाई करने पर बच्चों के नाम, मोबाइल नम्बर और पते बिल्कुल सही थे।

एक एजेण्ट का कहना है कि सबसे ज्यादा माँग ताजा डेटा की होती है, ऐसेे बच्चों के डेटा की जो अभी बोर्ड की परीक्षा दे चुके होते हैं। उन्हें ये कई–कई बार बेचते हैं। कभी–कभी तो 50 से भी ज्यादा बार बेचा जाता है। जब ये डेटा पुराने हो जाते हैं तो इन्हें कम दाम में बेच दिया जाता है। इसका नुकसान आज बहुत से लोग रोज झेल रहे हैं, अकसर उनके साथ ऑनलाइन ठगी होती है। बोर्ड की परीक्षा देने बाद कोचिंग संस्थान इन ताजे डेटा का इस्तेमाल लोगों को फोन करने में करते हैं। वे फोन के जरिये बच्चों के अभिभावकों को एडमिशन लेने या ऑनलाइन बैच खरीदने के लिए तरह–तरह के ऑफर देते हैं। कई बार अभिभावक इन फोन कॉल से परेशान होकर जवाब देते हैं, “हम तुम्हारे खिलाफ केस करेंगे। मैं कितनी बार मना कर चुका हूँ कि मेरे बच्चे कोचिंग नहीं करेंगे तो फिर बार–बार फोन क्यों करते हो?”

बच्चों के इस डेटा खरीद–फरोख्त पर उठ रहे सवालों के जवाब में गुजरात सीनियर सेकण्डरी एजुकेशन बोर्ड के चेयरमैन इस बात से मना करते हैं कि गुजरात बोर्ड बच्चों और अभिभावकों का गोपनीय डेटा किसी को देता है। जबकि डेटा एजेण्टों का कहना है कि हमें डेटा शिक्षा बोर्ड से ही मिलते हैं।

आज कम्पनियों के लिए किसी का निजी डेटा प्राप्त करना बेहद आसान हो गया। ये कम्पनियाँ आदमी के साथ–साथ छोटे बच्चों के डेटा का भी दुरुपयोग कर रही हैं। सरकार द्वारा लोगों की निजता का हनन न होने का दावा करने के बावजूद हो इसका एकदम उलटा रहा है। हालत इतनी बिगड़ चुकी है कि सरकार और प्रशासन खुद डेटा के अनैतिक और गैर कानूनी लेन–देन में लिप्त है।

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