मार्च 2019, अंक 31 में प्रकाशित

बहुत देर से मैंने एक दरख्त में पनाह ले रखी है और मेरी यह ख्वाहिश है कि नीचे उतरूँ। लेकिन कम्बख्त भेड़िया मुझे उतरने नहीं देता। वह नीचे खड़ा मुझे खौफनाक नजरों से लगातार देख रहा है और इस इन्तजार में है कि मैं कब उतरूँगा और वह मुझे चीर–फाड़कर खा जायेगा। जिस दरख्त पर अब मेरा ठिकाना है, वह एक अजीब–सा दरख्त है। बल्कि अगर मैं इसे जादू का दरख्त कहूँ, तो बेजा न होगा। मैं यहाँ जो भी ख्वाहिश करता हूँ, वह फौरन पूरी हो जाती है। अगर नर्म और गर्म बिस्तर के बारे में सोचूँ तो वह मेरे करीब बिछ जाता है। उकता जाऊँ तो मेरे सामने एक शानदार टी–वी– सेट आ जाता है, जिसके स्टीरियो स्पीकर्ज होते हैं और जो दुनिया का हर स्टेशन पकड़ सकता है। अगर किसी भी खाने के लिए मेरा जी चाहे, तो वह फौरन हाजिर होता है। यहाँ सब कुछ है। हर तरह का आराम है। लेकिन यहाँ जिस चीज की कमी है और जिस चीज के लिए मैं तड़प रहा हूँ, वह है आजादी। लेकिन यह आजादी मुझसे कुर्बानी का तकाजा करती है और कुर्बानी यह कि नीचे उतरना पड़ेगा और भेड़िये को हलाक करना होगा। लेकिन मुझमें इतनी जुर्रत नहीं। मैं भेड़िये से खौफजदा हूँ और वह मुझसे ज्यादा ताकतवर है।

कभी–कभी जब मैं उस वक्त को याद करता हूँ, जब भेड़िया मेरा पीछा कर रहा था, तो मुझे पसीना छूट जाता है, एक सनसनी–सी जिस्म में फैल जाती है, दिल डूबने लगता है। तब मैं खुदा का शुक्र अदा करता हूँ कि अगर यह दरख्त मेरे सामने न आता और मुझे पनाह न देता, तो भेड़िया कब का मुझे हलाक कर चुका होता। मायूसी के इस घुप अँधेरे में कभी–कभार इस बात पर भी खुश हो जाता हूँ कि दरख्त काफी ऊँचा है, मैं यहाँ हर तरह से महफूज हूँ और भेड़िया मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता।

दिन के वक्त तो मेरी हालत ठीक रहती है। कोई न कोई मस्रूफियत निकल आती है। लेकिन ज्यों ही रात होती है, एक अजीब–सी तकलीफ का सामना करना पड़ता हैै। सो जाता हूँ, तो खौफनाक ख्वाब मुझे डराते हैं। एक कयामत–सी मुझ पर गुजरती है। तमाम जिस्म थका होता है और एक–एक अंग यूँ दु:ख रहा होता है, जैसे किसी ने चाबुक से मुझे सख्त मारा हो।

अक्सर मैं यह सोचता हूँ कि मैं कब तक इस तकलीफ में मुब्तिला रहूँगा। कब तक इन्तजार करूँगा कि भेड़िया भूख से मर जाये। लेकिन वह बजाय मरने के, पहले से ज्यादा ताकतवर हो जाता है।

एक सुबह, जब मेरी आँख खुलती है, तो अचानक दरख्त के घने पत्तों से मुझे किसी और की मौजूदगी का एहसास होता है। खौफ से एक तेज–सी चीख मेरे मुँह से निकलती है और मुझे यकीन हो जाता है कि भेड़िया आखिर अपनी कोशिश में कामयाब हो ही गया। फिर मेरी हैरत की इन्तिहा नहीं रहती। जब मुझे पता चलता है कि वह मेरे ही जैसा एक शख्स है–– परेशान और घबराया हुआ। उस अजनबी ने दरख्त पर एक और भेड़िये के खौफ से पनाह ले रखी है। उसका भेड़िया भी नीचे खड़ा गुर्रा रहा है। दरख्त पर पंजे गाड़ रहा है। लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद ऊँचे दरख्त पर चढ़ नहीं पाता।

हम दोनों लोग हैं, जो अपने–अपने भेड़िये से खौफजदा हैं। बावजूद यह कि दरख्त में हमारे लिए हर तरह का आराम मौजूद है, लेकिन हम इन आरामदेह चीजों से खुश नहीं। बेबसी और उकताहट का एहसास दिन–ब–दिन हमें खाये जा रहा है। अब तो हमें रात में नींद भी नहीं आती है। ज्यों ही आँख लगती है, भेड़िये का खौफनाक चेहरा हमें दुबारा जगा देता है। कम्बख्त अब हमारे ख्वाबों में भी घुस गया है। वह हमें यहाँ भी सुकून से रहने नहीं देता।

हम दोनों के भेड़िये अक्सर अपनी जगह खामाश बैठे रहते हैं, लेकिन कभी–कभी उन दोनों पर ऐसा जुनून सवार होता है कि वे दरख्त पर हमला कर देते हैं, उसके मोटे तने पर दाँत और पंजे गाड़ देते हैं और उस वक्त खौफनाक गुर्राहट होती है। दोनों ही भेड़ियों का यह अचानक का बावलापन हमें और डरा देता है। लेकिन एक बात यह है कि हम दोनों के भेड़ियों की तअल्लुक अपने–अपने आदमी से है। मेरे साथी का भेड़िया मुझसे कोई तअल्लुक नहीं रखता और मेरा भेड़िया उससे। खास बात यह है कि दोनों भेड़िये भी एक–दूसरे से बेतअल्लुक रहते हैं। और हम इस बात से हैरान होते हैं।

एक दिन काफी सोच–विचार के बाद हम दोनों यह फैसला करते हैं कि हम दोनों नीच उतरेंगे और अपने–अपने भेड़िये से मुकाबला करेंगे। जो भी होगा, देखा जायेगा। वरना यह दोजख जैसी तकलीफ वाली जिन्दगी कब तक हम गुजारते रहेंगे? तब हम दोनों आँखें बन्द करके नीचे कूदने का इरादा करते हैं। मेरा साथी तो कूद जाता है, अगर मैं अपनी बुजदिली की वजह से ऐसा नहीं कर पाता और अपनी जगह बैठा रह जाता हूँ।

उसका भेड़िया ज्यों ही उसे नीचे देखता है, तो फौरन उसकी तरफ लपकता है और उस पर हमला करता है। मेरा भेड़िया भी खबरदार हो जाता है और उसके कान खड़े हो जाते हैं। लेकिन जब मैं नीचे नहीं उतरता, तो वह गुस्से से आगबबूला हो जाता है और पागलों की तरह दरख्त के मोटे तने के साथ लड़ना शुरू कर देता है। इससे पहले कि मेरे साथी का भेड़िया उसे जमीन पर गिराये, वह उस छोटी–सी डाली से भेड़िये को मारता है, जो उसने दरख्त से तोड़ी हुई है। उसका भेड़िया फौरन जमीन पर गिरता है और चन्द ही लम्हों में मर जाता है।

मेरा साथी अब आजाद है। उसने अपनी बहादुरी से आजादी हासिल कर ली है। लेकिन मैं अब तक उसी पुरानी तकलीफ में मुब्तिला हूँ और खुद को कोस रहा हूँ। मेरा भेड़िया  अब पहले से ज्यादा खौफनाक हो जाता है। वह वहशी बन चुका है और हर वक्त दरख्त से टकराता रहता है। शायद उसको यह खयाल है कि  इस तरह मैं दरख्त से नीचे गिर पड़ेगा या दरख्त टूट जायेगा। मगर मैंने हर वक्त दरख्त की शाखों को मजबूती से पकड़ा होता है। और मारे खौफ के मेरा जिस्म पसीने में डूबा होता है। दिन हो या रात, मैं लगातार भेड़िये को बद्दुआएँ भी देता हूँ, लेकिन वह कम्बख्त है कि बाज नहीं आता।

मेरा साथी लगातार मुझे आवाजें देता है। वह कसमें खाता है––

“अगर तुम नीचे उतरो, तो भेड़िया तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ेगा। वह बहुत कमजोर है। तुम उसे आसानी से मार सकते हो।”

लेकिन मुझे उसकी बात पर यकीन नहीं और ऊपर खड़ा खौफ से काँप रहा होता हूँ। अब चन्द ऐसे वाकये शुरू हो जाते हैं कि मुझे यह यकीन हो जाता है कि मैं आखिरकार मर जाऊँ। अचानक दरख्त में हरकत पैदा होती है। मैं फौरन नीचे देखता हूँ कि भेड़िये ने इसे हिलाया तो नहीं? लेकिन भेड़िया अपनी जगह लेटा होता है। यह क्या? मैं चीख उठता हूँ। दरख्त पल–पल छोटा हो रहा है। मैं मारे घबराहट के दरख्त की मोटी शाखों पर जोर–जोर से उछलता हूँ कि, हो सकता है इस तरह से दरख्त रुक जाये। लेकिन दरख्त नहीं रुकता और छोटा होता जाता है। अब एक दूसरी चीज मुझे और ज्यादा खौफजदा करती है। भेड़िया बड़ा हो रहा है और थोड़ी देर में एक बैल जितना बड़ा हो जाता है। मैं चीखता हूँ, चिल्लाता हूँ, दरख्त के अन्दर इधर–उधर भागता हूँ, लेकिन बेकार। अब मैं खुद को जहनी तौर पर मौत के लिए तैयार कर लेता हूँ और इर्द–गिर्द की तमाम चीजों को अलविदाई नजरों से देखता हूँ। भेड़िया और मैं पल–पल एक–दूसरे के करीब आ रहे हैं।

मेरा जेहन अब बिलकुल बिगड़ चुका है। मेरी आँख बन्द है और मैं फाँसी पर चढ़नेवाले उस मुजरिम की तरह मौत को खुश–आमदीद कह रहा हूँ, जिसके गर्दन में रस्सी का फन्दा डाला जा चुका है और जो अब इस इन्तजार में है कि जल्लाद अब रस्सी खींचेगा। मैं इस वक्त अगर कोई आवाज सुन रहा हूँ, तो वो सिर्फ मेरे साथी की है, जो नीचे से दे रहा है कि, एक खौफ है। रूई का एक पहाड़ है, जिसे तुम एक ठोकर में अपने रास्ते से हटा सकते हो।

आखिरकार मैं हिम्मत करता हूँ और दरख्त से नीचे कूदता हूँ। मेरा भेड़िया ज्यों ही मुझे अपने सामने पाता है, मुझ पर हमला कर देता है। लेकिन इससे पहले कि वह मुझे हलाक कर दे, मैं उसे एक उस पतली और नाजुक–सी शाख से मारता हूँ, जो मैंने दरख्त से तोड़ी होती है। हाथी जैसा बड़ा भेड़िया धड़ाम से नीचे गिरता है और देखते ही देखते मर जाता है।

अब मैं आजाद हूँ। कितनी हसीन है आजादी। कितना खूबसूरत है इसका एहसास। मैं खुशी से उछलता हूँ, दीवानों की तरह उछलता हूँ। कुछ देर के बाद जब मेरा जोश कुछ कम हो जाता है तो अपने साथी की तरफ देखता हूँ, ताकि उसका शुक्रिया अदा करूँ। लेकिन मेरा साथी अपनी जगह मौजूद नहीं होता। मैं तब इर्द–गिर्द देखता हूँ तो हैरान रह जाता हूँ। मेरे चारों तरफ बेशुमार दरख्त हैं, हर दरख्त में किसी न किसी शख्स ने पनाह ले रखी है और उसका भेड़िया खड़ा गुर्रा रहा है।

अब मैं जोर–जोर से हँसता हूँ, कहकहे लगाता हूँ और उन सीधे–साधे मासूम लोगों की तरफ बढ़ता हूँ, जो नाहक अपने भेड़िये से खौफजदा हैं।

भेड़िया गुर्राता है

तुम मशाल जलाओ

उसमें और तुममें

यही बुनियादी फर्क है

भेड़िया मशाल नहीं जला सकता।

––सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

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