मार्च 2019, अंक 31 में प्रकाशित

डिलीवरी ब्वाय की नौकरी

न्यूज चैनल और सोशल मीडिया पर एक वीडियो बार–बार दिखाया गया, जिसमें एक डिलीवरी ब्वाय ग्राहक के खाने में से थोड़ा खाना खाकर वापस पैक कर देता है। मध्मम वर्ग के लोगों के बीच यह चर्चा का विषय बन गया। उन्हें लगा कि उनका मँगाया खाना सुरक्षित नहीं है। इस घटना से डिलीवरी ब्वाय के प्रति घृणा का बढ़ना और कम्पनी के प्रति भरोसा उठना लाजिमी था। और हुआ भी वैसा ही। लेकिन कम्पनी ने ग्राहकों का भरोसा जीतने के लिए तुरन्त कार्रवाई की और एक न्यूज चैनल के माध्यम से उस डिलीवरी ब्वाय को सरेआम बेइज्जत किया, सार्वजनिक रूप से माँफी मँगवायी और अन्त में उसे नौकरी से निकाल दिया। इसके साथ ही कम्पनी ने अपने ग्राहकों से खाने की टैम्पर्ड पैकिंग का वादा भी किया। इस पूरे घटनाक्रम में कम्पनी का प्रचार भी खूब हुआ। लेकिन सवाल यह है कि क्या किसी न्यूज चैनल और सोशल मीडिया पर इस मुद्दे पर चर्चा हुई कि डिलीवरी ब्वाय किन परिस्थितियों में काम करते हैं? क्या सही मायने में उनका काम रोजगार कहा जा सकता है? इन मुद्दों पर कहीं कोई खास चर्चा नहीं हुई।

भारत में सभी कम्पनियों को अपना कारोबार बढ़ाने का अवसर दिया गया है। वे अति मुनाफा कमाने की स्थिति में हैं। कम्पनियों को बढ़ती बेरोजगारी का पूरा फायदा मिल रहा है। इससे उन्हें सस्ते श्रमिक मिल जाते हैं। इन कम्पनियों में प्रशिक्षण के दौरान प्रशिक्षुओं को तरह–तरह का प्रलोभन दिया जाता है। उन्हें बताया जाता है कि वे पाँच से दस घण्टे काम करके पन्द्रह हजार से लेकर तीस हजार रुपये तक कमा सकते हैं। लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। उन्हें यह कहकर धोखे में रखा जाता है कि तुम कम्पनी के पार्टनर हो। लेकिन यह एक छलावा होता है। कम्पनी के असली पार्टनर तो शेयर होल्डर होते हैं, जो कम्पनी में पूँजी निवेश करते हैं। कम्पनी और भी झूठ बोलती है, जैसे–– ऑर्डर डिलीवरी होने के बाद वापस आने का रुपया मिलेगा। जो कभी नहीं मिलता। हैल्पलाइन नम्बर हमेशा ऑन रहेगा। लेकिन रात में कोई नहीं उठाता। अगर ऑर्डर करने वाली कोई लड़की या महिला अकेले में बुलाये तो वर्दी उतारकर उसकी इच्छा पूरी करने के लिए चले जाना, आदि। शाम 7 बजे से रात 12 बजे तक काम करने वाले डिलीवरी ब्वाय को ऑर्डर मिलने के बाद पाँच रुपये रेस्टोरेंट तक जाने के, पाँच वहाँ इन्तजार करने के और चार रुपये प्रति किलोमीटर ग्राहक तक जाने का पैसा मिलता है। लेकिन वापस आने का उसे एक भी रुपया नहीं मिलता है। अगर ग्राहक की आखिरी स्थिति रेस्टोरेंट से पाँच किलोमीटर की दूरी से अधिक गूगल मैप पर दिखाई दे जाये, इसके बावजूद डिलीवरी ब्वाय को कुल तीस रुपये ही मिलते हैं। वापसी के रुपये कम्पनी नहीं देती। ऑर्डर को पिकअप करने से लेकर डिलीवरी करने तक जो मेहनत डिलीवरी ब्वाय करता है, उसका पूरा मेहनताना भी कम्पनी उसे नहीं देती।

शाम 7 बजे से रात 12 बजे तक काम करने वाले डिलीवरी ब्वाय अगर एक हफ्ते में 1150 रुपये का काम कर देता है तो कम्पनी 375 रुपये की प्रोत्साहन राशि देती है। लेकिन इस राशि को लेने के लिए कुछ जरूरी शर्तें बना दी गयी हैं, जो आमतौर पर न पूरी हो पाती हैं और न किसी को यह राशि मिल पाती है। पहली शर्त है कि पूरे 6 दिन शाम 7 बजे से रात 12 बजे तक ड्यूटी पर रहेगा। दूसरी शर्त है कि शनिवार और रविवार छुट्टी नहीं करेगा।

डिलीवरी ब्वाय महीने भर में मुश्किल से आठ हजार रुपये कमा पाता है, जिसमें बाइक का तेल और रख–रखाव का खर्चा तीन हजार रुपये तक आ जाता है, बचे हुए पाँच हजार में उसे अपनी गुजर–बसर करनी होती है।

कुछ समस्याएँ हैं, जिनका एक डिलीवरी ब्वाय रोज सामना करता है, जैसे–– ग्राहक का गलत पता, डिलीवरी ब्वाय जब पते पर पहुँचता है तो अक्सर उसे विकट परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है, जैसे–– ग्राहक का फोन न मिल पाना, शराब पीया ग्राहक डिलीवरी ब्वाय से गाली–गलौज और मारपीट करता है। और बिना पैसा दिये भगा देता है। हर आर्डर को तीस मिनट में पूरा करने का मानसिक दवाब होता है। सैकड़ों बार मैसेज और फोन आते हैं। ज्यादा ऑर्डर और ज्यादा कमाई के मानसिक दबाव के कारण गाड़ी पर वह नियंत्रण खो देता है और कई बार दुर्घटना घट जाती है। इसके अलावा ऐसी कई छोटी–मोटी समस्याएँ हैं जिन्हें डिलीवरी ब्वाय रोज झेलता है और वही उन्हें समझ सकता है। अभी हाल ही में दिल्ली में एक डिलवरी ब्वाय बिजली के खम्बे से टकराया और उसकी मौत हो गयी।

दिल्ली, मुम्बई, नोएडा, गुड़गाँव, फरीदाबाद, देहरादून हर जगह से दुर्घटनाओं की खबरें आती रहती हैं। लेकिन फिर भी हर ऑर्डर पर ही उसे जोखिम उठाना पड़ता है। देहरादून में डिलीवरी ब्वाय का काम करने वालों ने कम्पनी के जन विरोधी नियमों का विरोध भी किया और तनख्वाह बढ़ाने के लिए कहा तो मैनेजर ने उन्हें नौकरी से निकालने की धमकी दी। उसने कहा कि कम्पनी तुम्हारी जगह दूसरे लोगों को रख लेगी। तीन महीने बाद भी इन लोगों को बीमा कार्ड नहीं दिया गया। पूछने पर बताया गया कि जोन अपग्रेडेशन हो रहा है, इसलिए देरी हो रही है।

डिलीवरी ब्वाय लगातार मानसिक तनाव में काम करता है। उसे यह सोचने का भी समय नहीं मिलता कि कम्पनी उसे पूरा मेहनताना भी नहीं दे रही है और इसके खिलाफ उसे संघर्ष करना चाहिए। कुछ डिलीवरी ब्वाय तनाव और शारीरिक थकान से छुटकारा पाने के लिए नशे का सहारा भी लेते हैं। अगर ऑर्डर कैन्सल होता है तो कम्पनी उस खाने को कचरे के डिब्बे में फेंक देती है और डिलीवरी ब्वाय को खरी–खोटी सुनाती है। क्या किसी न्यूज चैनल या अखबार ने यह सच्चाई दिखाई? क्या इन मजदूरों की हालत मीडिया ने देखी? नहीं। बिकाऊ मीडिया से ऐसी उम्मीद बेमानी है।

क्या यह वाकई में एक सम्मानजनक रोजगार है, जिसमें जान–माल का खतरा हमेशा रहता है, कल की कोई गारंटी नहीं होती और कम्पनी कर्मचारियों के कल्याण की कोई जिम्मेदारी नहीं लेती। ऐसे  पेशों के ज्यादातर मजदूर सुविधाओं का अभाव झेलते हैं। ऐसे कामों में खटने को मजबूर हैं, जहाँ हालात जानवरों से भी बदतर हैं। कम्पनियाँ आये दिन श्रम कानूनों की धज्जियाँ उड़ा रही हैं और सरकारें कम्पनी मालिकों के लिए श्रम कानूनों को खत्म करती हैं, जिससे इनकी लूट में कोई रुकावट न आये। अचरज की बात है कि श्रम मंत्रालय ऐसे कामों को रोजगार की श्रेणी में रखता है। वह अपने आँकडे़ चमकाने की कोशिश के चलते ऐसा करता है। इसके बावजूद आज 6.1 प्रतिशत दर से बेरोजगारों की संख्या बढ़ रही है। बढ़ती बेरोजगारी की वजह से कम्पनी मालिकों को सस्ते मजदूर आसानी से मिल जाते हैं। 

 
 

 

 

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